बिहार के चंपारण जिले के गौहना ब्लॉक के रुपौलिया गांव निवासी अमीश 11 जुलाई की रात सोये तो उन्हें अंदाजा भी नहीं था कि वह रात उन पर कितनी भारी पड़ने वाली है। आधी रात के करीब तेज आवाज सुनकर उनकी नींद खुली तो बिस्तर से कूदकर सीधे पत्नी और तीन बच्चों को बचाने भागे। दरअसल, मुसीबत बाढ़ बनकर सिर पर खड़ी थी। अमीश ने पत्नी बच्चों के साथ जितना हो सका जरूरी समान समेटा और गांव के बाहर ऊंचे टीले की ओर भागे।
देखते ही देखते उनका मिट्टी का घर अचानक आई बाढ़ से घिर गया था। पूरा परिवार रातभर बारिश में टीले पर खड़ा रहा और इंतजार करता रहा कि पानी कम हो। उनके पास इंतजार करने के अलावा कोई रास्ता नहीं था।
दरअसल, 11 जुलाई को हुई तेज बारिश से बूढ़ी गंडक नदी की सहायक नदियां छगरा और अमावा उफन पड़ी थीं। उत्तरी चंपारण जिले के कई गांवों में बाढ़ का कहर बरपाने वाली दोनों नदियों ने रुपौलिया गांव को घेर लिया था। घंटों इंतजार के बाद पानी तो उतरा लेकिन अचानक आई बाढ़ अपने साथ अमीश चंद का मिट्टी का घर और उसमें रखा पूरा सामान भी बहा ले गई।
अमीश ही नहीं, गांव के और भी कई लोगों के घर और सपने अचानक आई बाढ़ के साथ बह गए। सुबह बच्चों और पत्नी के साथ मलबा देखते अमीश कहते हैं, “मेरे सामने घर बह गया और मैं कुछ नहीं कर सका। हमेशा भय बना रहता है कि कब क्या हो जाए?”
एक गांव का नहीं है दर्द
यह कहानी केवल अमीश और रुपौलिया गांव की नहीं है, बल्कि भारत-नेपाल सीमा के पास पश्चिम चंपारण में गौनाहा ब्लॉक के लोग अचानक आने वाली बाढ़ से आए दिन दो चार होते रहते हैं। जब भी नेपाल में भारी बारिश होती है, तो कई छोटी-बड़ी नदियां, जिनमें दोनों देशों में बहने वाली नदियां भी हैं, उफान पर आ जाती हैं। इनकी चपेट में आने वाले सीमावर्ती गांवों में भारी तबाही मचती है। सबसे भयावह यह है कि अचानक आने वाली यह मुसीबत पांच-दस बार नहीं बल्कि इस साल तो अभी तक 66 बार आ चुकी है।
कोई सुनने को तैयार नहीं
हर बार जब ऐसी बाढ़ आती है तो अमीश चंद जैसे सैकडों लोगों की गृहस्थी तबाह कर जाती है। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि इसका कभी कोई हिसाब नहीं होता। न तो सरकार इसे बाढ़ नुकसान में शामिल करती है और न ही मुख्य धारा की मीडिया की नजर कभी इधर पहुंचती है। ऐसे में हर साल हजारों लोग मुसीबत का सामना करने को मजबूर हैं।
72 नदियां बनती हैं कहर
पिछले 15 वर्षों से उत्तर बिहार में बाढ़, पानी और स्वच्छता जैसे मुद्दों पर पर काम कर रहे ‘मेघ पाइन अभियान’ के मैनेजिंग ट्रस्टी एकलव्य प्रसाद गांव कनेक्शन को बताते हैं, भारत-नेपाल सीमा से सटे उत्तर बिहार के पशिम चंपारण, पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, मधुबनी, अररिया और किशनगंज जिले में लगभग 72 ऐसी नदियां हैं जो दोनों देशों की सीमाओं में बहती हैं। इनमें से अधिकांश बरसाती नदियां हैं, लेकिन जब भी नेपाल में बारिश होती है इनका कहर सीमावर्ती गांवों पर टूटता है।
3 inundation maps of #Bihar – July 13/04 & June 27 are indicating that floods in North Bihar are also about d small/seasonal/transboundary rivers & typologies along with 8 river basins. Therefore, smalls & typologies are the must next @SanjayJhaBihar #Floods #Monsoon2020 pic.twitter.com/KaydfVEb8O
— Megh Pyne Abhiyan (@MeghPyneAbhiyan) July 15, 2020
अनुवाद- इंदु सिंह
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