क्या है मॉडल एग्जाम कोड? क्या इससे रुक जाएगी भर्ती परीक्षाओं में होने वाली देरी और भ्रष्टाचार?

सरकारी भर्तियों में होने वाली देरी और भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए शिक्षाविदों-शोधार्थियों के एक समूह, परीक्षा देने वाले अभ्यर्थियों, कोचिंग संस्थाओं और देश भर के लगभग 50 युवा और बेरोजगार संगठनों ने सरकार से एक परीक्षा आचार संहिता (मॉडल एग्जाम घोषित) करने की मांग की है। इसमें किसी भी भर्ती प्रक्रिया को नौ महीने में पूरा करने सहित कई अन्य मांगे की हैं।
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उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के मोहित
दीक्षित (32 वर्ष) जब 24 साल के थे, तब उन्होंने प्रतियोगी
परीक्षाओं की तैयारी शुरू की थी। 8 साल लगातार परीक्षा देने के बाद भी वह अब तक
सफल नहीं हो सके हैं। शुरूआत में कई परीक्षाओं में उन्हें असफलता मिली, लेकिन जब
वह इन परीक्षाओं में सफल होने लगे तो उन्हें भर्ती परीक्षाओं में होने वाली
हीलाहवाली, लापरवाही और भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ा। गणित से परास्नातक करने
वाले मोहित 32 साल के उम्र में भी बेरोजगार हैं और पिता के मौत के बाद अपने
जीविकोपार्जन के लिए तैयारी के साथ-साथ ट्यूशन भी पढ़ाने लगे हैं।

लगातार 8 साल सरकारी नौकरी की तैयारी में लगाने के बाद उनके ऊपर मनोवैज्ञानिक
दबाव के साथ-साथ पारिवारिक और सामाजिक दबाव भी बढ़ गया है और उन्होंने बताया कि इस
वजह से उनकी भी शादी भी नहीं हो रही है। मोहित की तरह ही जैसा कुछ हाल मध्य प्रदेश के जबलपुर के रहने वाले ऋषभ यादव
(23 वर्ष) का भी है।

2015 से 2018 जबलपुर में
फिटर ट्रेड से आईटीआई करने के बाद किसी आईटीआई कॉलेज में टेक्निकल ऑफिसर, ट्रेनर
के रूप में काम करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने तैयारी भी करना शुरू कर दिया था,
क्योंकि 2018 के अगस्त महीने में राज्य सरकार ने लगभग 450 टेक्निकल ऑफिसर के पदों
पर भर्ती करने की धोषणा की थी। लेकिन मध्य प्रदेश में लगातार सरकारें बदलती रहीं
और अभी तक इस भर्ती प्रक्रिया का अभी तक अधिसूचना जारी नहीं हो सका है।

उत्तर प्रदेश के अम्बेडकर नगर के अंकित निगम (27 वर्ष) एक ऐसे ही अभ्यर्थी हैं। दिसंबर, 2018 में वह उत्तर
प्रदेश राज्य कर्मचारी चयन आयोग (UPSSSC) द्वारा आयोजित की गई परीक्षा में शामिल हुए थे। अगस्त, 2019 में इस परीक्षा
का परिणाम आ गया, जिसमें वह सफल घोषित हुए। उन्हें लगा था कि आने-वाले दो-तीन
महीनों में उनका डॉक्यूमेंट वेरिफाई होगा और फिर ज्वाइनिंग हो जाएगी। लेकिन तब से
लगभग एक साल और तीन महीना बीत चुका है, लेकिन अंकित और उनके जैसे लगभग 2000 अभ्यर्थियों
का अभी ज्वाइनिंग
नहीं हुआ।

सरकारी भर्तियों में इसी
प्रकार की हीला-हवाली, लापरवाही, भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए युवाओं की बात उठाने वाले संगठन युवा हल्ला बोल की रिसर्च टीम, शिक्षाविदों-शोधार्थियों
के एक समूह, परीक्षा देने वाले अभ्यर्थियों, कोचिंग संस्थाओं और देश भर के लगभग 50
युवा और बेरोजगार संगठनों ने सरकार से एक परीक्षा आचार संहिता (मॉडल एग्जाम घोषित)
करने की मांग की है। इस आचार संहिता की सबसे खास बात यह है कि इसमें किसी भी भर्ती
प्रक्रिया को 9 महीने के भीतर पूरा करने की ना सिर्फ बात की गई है बल्कि उसका पूरा
मैकेनिज्म भी बताया गया है, ताकि किसी भी प्रतियोगी छात्र को अपने भविष्य के
निर्धारण के लिए वर्षों तक इंतजार नहीं करना पड़े।

इसके अलावा इस परीक्षा
आचार संहिता में पेपर लीक और ऑनलाइन परीक्षा में होने वाली गड़बड़ियों में सुधार
के लिए विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने, सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जजों को
परीक्षा चयन आयोगों का समीक्षा अधिकारी नियुक्त करने, ऑनलाइन परीक्षा प्राइवेट
वेंडर की बजाय नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (NTA) से कराने, परीक्षा शुल्क निःशुल्क करने, परीक्षा केंद्रों
को 100 किलोमीटर के भीतर रखने और किसी भी भर्ती प्रक्रिया को कोर्ट में जाने पर
उसे फास्ट ट्रैक कोर्ट में चलाये जाने की व्यवहारिक बातें की गई हैं।

इस मॉडल एग्जाम कोड को ड्रॉफ्ट करने
वाले प्रमुख सदस्य और युवा हल्ला बोल के राष्ट्रीय समन्वयक गोविंद मिश्रा कहते हैं
कि इस ड्राफ्ट को बनाने में कई विशेषज्ञ लोग जुड़े, जिसमें शिक्षाविद्,
प्रोफेसर्स, कोचिंग संस्थानों के अध्यापक, वर्षों से विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं
में लगे अनुभवी प्रतियोगी छात्रों के विचारों को शामिल किया गया है। इसमें सभी
व्यवहारिक और तकनीकी पक्षों का भी ध्यान दिया गया है।

9 महीने के भीतर किसी भी
भर्ती प्रक्रिया को पूरा कराने के सवाल पर गोविंद कहते हैं, “यह बिल्कुल भी
अव्यवहारिक और असंभव नहीं है। कई ऐसी प्रतियोगी और प्रवेश परीक्षाएं हैं, जो
सालाना कैलेंडर के मुताबिक बिल्कुल समय पर होता है और 10 दिन से एक महीने के भीतर
ही उसका परिणाम आ जाता है।” उन्होंने हाल ही
में सम्पन्न हुए आईआईटी जेईई, नीट मेडिकल और यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा का नाम
गिनाया।

गोविंद कहते हैं कि जब ये
सब परीक्षाएं अपने कैलेंडर के अनुसार पूरा हो सकती हैं, तो अन्य परीक्षाएं क्यों
नहीं जिसमें गरीब और निम्न मध्यम वर्ग के लाखों नहीं करोड़ों प्रतियोगी छात्र
बैठते हैं और उन पर ना सिर्फ अपने करियर, अपने सपनों को पूरा करने का भार होता है
बल्कि अपने परिवार का आर्थिक बोझ उठाने का भी दबाव होता है। वर्तमान परीक्षा
प्रणाली ऐसी हैं कि ये प्रतियोगी छात्र बोझ उठाने की बजाय खुद अपने परिवार वालों के
लिए बोझ सरीखे हो गए हैं।

इसकी पुष्टि हमें एक अन्य
प्रतियोगी छात्रा बाराबंकी की प्रिया शर्मा (25 वर्ष) करती हैं। एसएससी,
यूपीएसएससी, शिक्षक भर्ती सहित लगभग आधा दर्जन प्रतियोगी परीक्षाओं के परिणाम का
इंतजार कर रहीं प्रिया गांव कनेक्शन से फोन पर बताती हैं कि वह यूपीएसएसएसी की
ग्राम विकास अधिकारी परीक्षा में सफल हो चुकी हैं और पिछले डेढ़ सालों से
ज्वाइनिंग लेटर का इंतजार कर रही हैं। इसके अलावा उनकी कई और परीक्षाएं भी बेहतर
हुई हैं, जिनके रिजल्ट का इंतजार है। लेकिन उनके घर वाले अब और इंतजार करना नहीं
चाहते और उन पर शादी करने का दबाव बना रहे हैं।

कुछ ऐसी ही बातें यूपी के
बहराईच जिले के विकास शुक्ला (24 वर्ष) और बिहार के मुजफ्फरपुर के अमन झा (26
वर्ष) भी कहते हैं, जो अपने-अपने राज्यों में शिक्षक भर्ती परीक्षाओं के अभ्यर्थी
हैं लेकिन मामले के क्रमशः कोर्ट में जाने और पेपर लीक होने के कारण परीक्षा बेहतर होने के बावजूद भी उनका परिणाम
रूका हुआ है और उनके घर वाले अब उन्हें कुछ कमाने और अपने पैरों पर खड़ा होने का
दबाव बना रहे हैं।

वर्तमान में केंद्र सरकार
और राज्य सरकारों की लगभग 50 से अधिक भर्तियां प्रक्रिया में हैं, जिसमें करोड़ों युवाओं ने दांव लगाया है। हालांकि ऐसी लगभग दो दर्जन से अधिक
भर्तियों की प्रक्रिया वर्षों से लटकी हुई है। कोई 2014 में दी हुई परीक्षा के
परिणाम इंतजार कर रहा है, तो कोई परिणाम आने के बाद इस बात का इंतजार कर रहा है कि
कब उनकी ज्वाइनिंग होगी?

इस मॉडल एग्जाम कोड में देश के सभी शिक्षण संस्थाओं, स्वास्थ्य
संस्थानों और विभिन्न विभागों में पड़ी लाखों भर्तियों को जल्द से जल्द पूरा करने
की भी मांग की गई है। संसद में दी गई एक जानकारी के अनुसार, देश भर में लगभग 24 लाख सरकारी नौकरियों के पद खाली हैं। ये पद केंद्र सरकार से लेकर विभिन्न
राज्य सरकार के नौकरियों के लिए हैं।

केंद्र सरकार के कार्मिक
और प्रशिक्षण विभाग के अनुसार सिर्फ केंद्र सरकार के अंदर आने वाली नौकरियों में सात लाख से अधिक पद खाली हैं। सबसे अधिक पद प्राथमिक शिक्षकों के खाली हैं,
जिनकी संख्या देश भर में 9 लाख है। इसके अलावा माध्यमिक शिक्षकों के 1.1 लाख पद, पुलिस
विभाग में 5.4 लाख पद, रेलवे में 2.5 लाख पद, डिफेंस सर्विसेज और पैरामिलिटरी
फोर्सेज में लगभग 1.2 लाख पद, स्वास्थ्य विभाग में 1.6 लाख पद, डाक विभाग में
54000 पद और न्यायालयों में 58000 पद खाली हैं।

गोविंद कहते हैं कि यह
सिर्फ सरकारों द्वारा खुद से स्वीकार की गई रिक्त पद हैं। कई ऐसे विभाग हैं जिसमें
राष्ट्रीय और वैश्विक मानक से बहुत कम कर्मचारी कार्यरत हैं। वह उदाहरण देते हुए
कहते हैं कि भारत में प्रति दस लाख जनसंख्या पर सिर्फ 10 से 15 जज नियुक्त हैं,
वहीं अमेरिका में यह संख्या 10 गुना से अधिक लगभग 110 जज प्रति 10 लाख नागरिक हैं।
इसी तरह पुलिस बल की बात करें तो भारत में प्रति एक लाख नागरिकों पर सिर्फ 129
पुलिसकर्मी हैं, जो कि पूरे विश्व में सिर्फ अफ्रीकी देश यूगांडा से बेहतर है।

“इसी तरह अगर प्रति 30-35 छात्र पर एक शिक्षक की बात की जाए
तो देश भर में खाली पड़े शिक्षकों की पदों की संख्या 10 लाख से कहीं अधिक होगी।
वहीं स्वास्थ्य विभाग में भी जनसंख्या के अनुरूप डॉक्टरों व अन्य स्वास्थ्य
कर्मियों की भर्ती की जाए तो यह भी संख्या 1.6 लाख से कहीं अधिक होगी। इसलिए जरूरत
है कि इन सभी पदों पर वैश्विक नहीं पर देश के संसद या कोर्ट द्वारा तय वाले मानकों
के अनुसार भर्तियां कम की जाए ताकि बेरोजगारी भी दूर हो और लोगों को एक बेहतर
कानून व्यवस्था, शिक्षा-स्वास्थ्य सुविधा और प्रशासन मिले,” गोविंद आगे कहते हैं।

गौरतलब है कि रूरल हेल्थ
स्टैटिस्टिक्स के अनुसार भारत के ग्रामीण क्षेत्र में 26,000 की आबादी पर
महज एक एलोपैथिक डॉक्टर हैं
जबकि वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन
(डब्ल्यूएचओ) के अनुसार हर 1,000 लोगों पर एक डॉक्टर होना
चाहिए। यह बात खुद सरकार भी स्वीकार करती है। 22 नवंबर, 2019 को एक सवाल के जवाब में लोकसभा में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने 31 मई 2018 की एक रिपोर्ट के हवाले से बताया था कि
देश के प्राथमिक
स्वास्थ्य केंद्रों में 34,417 डॉक्टरों
की जरूरत है जबकि सिर्फ 25,567 डॉक्टरों की ही तैनाती है।

इन पदों को भरने के लिए
समय-समय पर केंद्र सरकारें और राज्य सरकारें भर्तियां भी निकालती हैं, लेकिन वह भी
समय से पूरी नहीं हो पाती है। कार्मिक मंत्रालय की एक अधिसूचना और सुप्रीम कोर्ट
के एक आदेश के अनुसार किसी भी सरकारी नौकरी की भर्ती प्रक्रिया 6 महीने के अंदर
पूरी हो जानी चाहिए लेकिन दो-दो, तीन-तीन साल पूरी हो जाने के बाद भी ये भर्ती
प्रक्रियाएं कभी कोर्ट में तो कभी विभागों की लेट-लतीफी, लापरवाही और भ्रष्टाचार
में फंसी होती हैं।

पेपर लीक, लापरवाही और
भ्रष्टाचार के मामलों पर आईआईटी गुवाहाटी के प्रोफेसर और शिक्षाविद् डॉ. बृजेश रॉय
कहते हैं कि इस मॉडल एग्जाम कोड में इन सब पर व्यापक रूप से चर्चा की गई है। “अगर कोई भर्ती
प्रक्रिया का मामला कोर्ट में चला जाता है तो उसे फास्ट
कोर्ट में चलाया जाए ताकि जल्दी से जल्दी मामले का पटाक्षेप हो और लाखों युवा अपने
भविष्य को लेकर सालों-साल तक अधर में नहीं रहे। इसके अलावा यह एग्जाम मॉडल कोड यह
भी मांग करता है कि कोई भी भर्ती प्रक्रिया कोर्ट में जाने के बावजूद पूरी तरह से
रूक ना जाए, उस पर स्टे ना लगे बल्कि विवादित सीटों के अतिरिक्त अन्य सीटों पर
भर्तियां चलती रहे।”

उन्होंने इस संबंध में
उत्तर प्रदेश के 69000 शिक्षक भर्ती प्रक्रिया का भी उदाहरण दिया, जिसमें शिक्षामित्रों के
37339 पदों पर दावे के बाद भी सुप्रीम कोर्ट ने बाकी बचे शेष पदों पर भर्ती प्रक्रिया जारी रखने का निर्देश दिया है और लगभग दो साल के संघर्ष के बाद सफल प्रतियोगी छात्रों को अब नियुक्ति पत्र मिलने लगा है।

मॉडल एग्जाम कोड के बारे
में गांव कनेक्शन ने कुछ कोचिंग संस्थाओं के शिक्षकों और प्रतियोगी छात्रों से भी
बात की, लगभग सभी ने इस बात पर सहमति जताई कि कोई भी प्रतियोगी परीक्षा
शुचितापूर्ण और समयबद्ध तरीके से एक निश्चित कैलेंडर के अनुसार 9 महीने से एक साल
के भीतर पूरी हो जानी चाहिए।

इस संबंध में यथार्थ
क्लासेज, पटना में प्रतियोगी परीक्षाओं के तैयारी करवाने वाले शिक्षक रजनीश झा
कहते हैं, “जब कोई तैयारी चलती है, तो उसमें सिर्फ एक छात्र नहीं बल्कि
उसके साथ उसका परिवार, उसके टीचर, उसका संस्थान सब लगा होता है। यह बात बिल्कुल
सही है कि कोचिंग अब एक व्यवसाय का रूप ले चुका है लेकिन अगर प्रतियोगी
परीक्षार्थी ऑनलाइन से लेकर संसद और सड़क तक अगर कोई आंदोलन करते हैं तो उनका सबसे
पहले साथ उनके अध्यापक ही देते हैं। वे सुख-दुःख के हर समय में उनके साथ होते हैं।
इसलिए अगर कोई अच्छा छात्र सिर्फ इस वजह से संघर्ष करता है कि प्रशासनिक लापरवाही
की वजह से उसका रिजल्ट रूका हुआ है तो दुःख होता है। इसलिए ऐसा कोई मैकेनिज्म
विकसित करना चाहिए जिससे यह पंचवर्षीय योजना खत्म हो और कोई भी सफल छात्र साल भर
के भीतर नौकरी ले, नहीं तो भविष्य की अन्य तैयारियों में लग जाए।”

गोविंद मिश्रा ने बताया
कि वह इस परीक्षा आचार संहिता के ड्रॉफ्ट को कार्मिक मंत्रालय सहित देश और राज्यों
के सभी भर्ती आयोगों को ज्ञापन सहित दे चुके हैं ताकि इसके सुझावों को लागू किया
जा सके, लेकिन कहीं से अभी तक इसको लेकर कोई सकारात्मक जवाब नहीं आया है। उन्होंने
बताया कि उनका संगठन अब इसको लेकर व्यापक स्तर पर रणनीति बना रहा है और चाह रहा है
कि इसको लेकर संसद से सड़क तक चर्चा हो। आगामी शीतकालीन सत्र को देखते हुए वे कई
सांसदों को भी इस ड्रॉफ्ट की कॉपी भेजकर उन्हें इस मुद्दे पर संसद में चर्चा
करने-करवाने की अपील भी कर रहे हैं।

आप इस मॉडल एग्जाम कोड के ड्रॉफ्ट को यहां पढ़ सकते हैं-

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