किसान आंदोलन: सरकार ने किसानों के खत का दिया जवाब, कहा- नए मुद्दे उठाना उचित नहीं, फिर भी सरकार हर मसले पर वार्ता को तैयार

यह चिट्ठी संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा 23 दिसंबर को लिखी गई सरकार के चिट्ठी के जवाब में है, जिसमें किसान संगठनों ने सरकार से कृषि कानूनों के निरस्तीकरण के संबंध में ठोस लिखित प्रस्ताव देने की बात कही थी।
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लगभग एक महीने से जारी किसान आंदोलन के बीच सरकार ने किसानों और उनके
प्रतिनिधियों को वार्ता के लिए एक बार फिर से आमंत्रण किया है। भारत सरकार के कृषि
एवं किसान कल्याण मंत्रालय विभाग के संयुक्त सचिव विवेक अग्रवाल ने किसान आंदोलन
की अगुवाई कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा को पत्र लिखकर कहा है कि सरकार खुले दिल से
हर मुद्दे पर वार्ता करने को तैयार है, इसलिए किसानों को भी वार्ता के लिए एक कदम
आगे बढ़ाना चाहिए।

सरकार की तरह से पत्र में लिखा गया है कि वह किसानों के हर मुद्दे का
तर्कपूर्ण समाधान के अपनी प्रतिबद्धता को दोहराती है। नए कृषि कानूनों से न्यूनतम
समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और सरकार इसके लिए लिखित आश्वासन
देने को भी तैयार है। इसके अलावा विद्युत संशोधन अधिनियम और पराली से संबंधित
अध्यादेश पर भी सरकार बात करने को तैयार है।

पत्र में यह भी लिखा गया है कि जब इन मुद्दों को लेकर 3 दिसंबर से वार्ता की
शुरूआत हुई थी, तब कभी भी ‘आवश्यक वस्तु
अधिनियम’ को मुद्दा नहीं बनाया गया था और ना ही इसमें संशोधन की मांग की गई थी। लेकिन
20 दिसंबर को किसान संगठनों द्वारा आपत्ति दर्ज कराई गई कि सरकार ने अपने लिखित
प्रस्तावों में इसे क्यों नहीं शामिल किया गया। हालांकि यह उचित व तर्कसंगत नहीं
है कि कोई नई मांग (पराली, विद्युत संशोधन आदि), जो कि कृषि कानूनों से परे हैं,
उन पर वार्ता किया जाए, लेकिन अगर किसान संगठन चाहते हैं तो सरकार खुले मन से इन
सभी मुद्दों पर बात करने को तैयार है।

विवेक अग्रवाल ने आगे लिखा है कि किसानों को भी खुले मन से आगे आते हुए इस
किसान आंदोलन को समाप्त करते हुए वार्ता के लिए आना चाहिए। उन्होंने लिखा कि किसान
अपनी सुविधा अनुसार समय और तारीख तय कर लें, उनके तय समयानुसार ही विज्ञान भवन पर
हर मुद्दे पर बात होगी। अब देखना होगा कि संयुक्त किसान मोर्चा इस पर क्या जवाब
देता है।

इससे पहले कल 23 दिसंबर को संयुक्त किसान मोर्चा ने विवेक अग्रवाल को पत्र
लिखकर कहा था कि संयुक्त किसान
मोर्चा वार्ता को तैयार है, बस सरकार अपनी तरफ से ठोस लिखित प्रस्ताव दे। संयुक्त
किसान मोर्चा की तरफ से डॉ. दर्शन पाल ने यह चिट्ठी लिखते हुए कहा था कि सरकार ने 9
दिसंबर को जो 10 सूत्रीय लिखित प्रस्ताव दिए थे, उसमें काफी कमियां थी और वे ठोस
नहीं थे।

संयुक्त किसान मोर्चा ने
लिखा कि सरकार ने जो 9 दिसंबर को जो लिखित प्रस्ताव दिए थे, वह 5 दिसंबर के वार्ता
के मौखिक प्रस्ताव का महज लिखित वर्जन था। सरकार यह क्यों नहीं समझ रही है कि हम
तीनों कानूनों को पूरी तरह से निरस्त करने की मांग कर रहे हैं, जबकि सरकार इनमें
संशोधन की बात कर रही है। बिना इसके लिखित प्रस्ताव के कोई भी संभव नहीं है।

दर्शन पाल ने आगे लिखते
हुए कहा कि इसके अलावा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकार ने लिखा है कि यह पहले की ही
तरह जारी रहेगा, जबकि किसान संगठन इसे राष्ट्रीय किसान आयोग के सिफारिशों के
अनुसार सभी फसलों पर सी2+50% (लागत का दोगुना दाम और
50 प्रतिशत अतिरिक्त) के न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग कर रहे हैं। इसके अलावा विद्युत
अधिनियम और वायु गुणवत्ता अधिनियम पर भी सरकार का लिखित प्रस्ताव स्पष्ट नहीं है।

संयुक्त किसान मोर्चा ने लिखा है कि किसान संगठन खुले दिल से वार्ता करने को
तैयार है, बशर्ते सरकार ठोस लिखित प्रस्ताव किसानों के समक्ष रखें। आपको बता दें
कि किसान संगठनों और सरकार के बीच वार्ता 6 दौर के बातचीत के बाद 8 दिसंबर से ही बंद
है। अंतिम बार किसान संगठनों और सरकार की तरफ से गृह मंत्री अमित शाह की बैठक हुई थी, जो कि बेनतीजा निकली थी। इसके पहले किसान
संगठनों की दो दौर की वार्ता सचिव स्तर पर और फिर तीन दौर की वार्ता कृषि मंत्री
नरेंद्र तोमर और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के साथ हुई थी। हालांकि ये सभी
वार्ताएं विफल रही थी।

इसके बाद से सरकार और किसान संगठनों के बीच से लगातार पत्राचार हो रहा है। 9 दिसंबर को सरकार
की तरफ से किसानों को दस
सूत्रीय लिखित प्रस्ताव
दिया गया, जिसे किसान संगठनों ने उसी दिन खारिज
कर दिया। इसके बाद लगभग एक हफ्ते तक सरकार और किसान संगठनों के बीच कोई वार्ता
नहीं हुई।

17 दिसंबर को कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने किसानों के नाम एक खुली चिट्ठी
लिखते हुए कहा था कि ये कानून किसानों के हित
में नए अध्याय की नींव बनेंगे, देश के किसानों
को और स्वतंत्र करेंगे, सशक्त करेंगे। जिसके
जवाब में 20
दिसंबर को किसान संगठनों ने 20 पन्ने की एक खुली चिट्ठी लिखी
थी और कहा था कि
सरकार किसानों की मांगों को पूरी करने के प्रति गंभीर नहीं है, उल्टे सरकार के
जिम्मेदार लोगों की तरफ से आंदोलन पर अलगाववादी होने के आरोप लगाए जा रहे हैं।

इसके बाद फिर से सरकार ने
20 दिसंबर को संयुक्त किसान मोर्चा के दर्शन पाल सिंह को एक पत्र लिखा, जिसके बाद
23 दिसंबर को फिर से किसानों ने उसका जवाब
दिया। सरकार का आज का पत्र 23 दिसंबर के पत्र का ही जवाब है, जिसे आप यहां पढ़
सकते हैं।

 

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