पटना/दिल्ली: 21 साल के संजय (बदला हुआ नाम) की दिल्ली में
नई-नई नौकरी लगी थी। पैसा भी ठीक-ठाक मिल रहा था। इसी बीच कोविड-19 को लेकर देशभर में लॉकडाउन लग गया, तो हजारों नौकरीपेशा लोगों की तरह उनकी भी
तनख्वाह रुक गई। दो महीने तक संजय की तनख्वाह नहीं आई और उस पर रूम किराया देने के
लिए मकान मालिक की तरफ से दबाव भी बढ़ने लगा। इसी बीच उसे पता चला कि ऑनलाइन ऐप के
जरिये बिना किसी झंझट के कुछ ही मिनटों में लोन मिल जाता है। उसने तुरंत वह इंस्टेंट
मोबाइल लोन ऐप डाउनलोड किया और 3500 रुपए लोन ले
लिया।
इसमें से 1500 रुपए प्रोसेसिंग फीस के नाम पर काट लिये गये
और सिर्फ 2 हजार रुपए उसे मिल गये।
लोन चुकाने की समय-सीमा एक हफ्ते की थी और लोन की रकम के अतरिक्त 500 रुपए देने थे। लेकिन, 3500 रुपए का कर्ज संजय को बहुत महंगा पड़ा और 5 लाख रुपए से ज्यादा रकम चुकाकर वह कर्ज से बोझ
से मुक्त हुए।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड
ब्यूरो की साल 2020 में आई ‘क्राइम इन इंडिया 2019’ रिपोर्ट के
मुताबिक पूरे देश में साल 2017 में जहां साइबर
अपराध के कुल 21796 केस दर्ज हुए थे
वहीं, 2018 में 27248 जबकि साल 2019 में ये आंकड़ा बढ़कर 44546 पहुंच गया था। जो 2017 की अपेक्षा दोगुने से ज्यादा हैं।
साल 2019 में साइबर क्राइम में आईटी एक्ट से जुडे पैसे
से लेन के देन के 3393 केस दर्ज हुए
जिनमें एटीएम से फ्रांड, ऑनलाइन बैंकिंग
फ्रांड और ओटीपी समेत कई मुद्दे इनमें सबसे ज्यादा के आनलाइन बैकिंग (2093)
से जुड़े थे।
संजय के बड़े भाई गांव
कनेक्शन को बताते हैं, “चूंकि, तनख्वाह आ नहीं रही थी, तो एक हफ्ता बीत जाने के बावजूद वह लोन चुकाने की हालत में
नहीं था। इधर, लोन देने वालों
की तरफ से फोन कर लगातार लोन चुकाने के लिए दबाव बनाया जा रहा था।”
“लोन देते वक्त आधार कार्ड,
पैन कार्ड का डिटेल, फोटो और मोबाइल की फोटो गैलरी तथा कॉन्टेक्ट लिस्ट में
एक्सेस का अधिकार मांग लिया गया था, तो लोन वसूलने वालों ने फोन कर धमकाना शुरू कर दिया कि अगर लोन जल्दी नहीं
चुकाया, तो उसकी फोटो को
सार्वजनिक कर बताया जाएगा कि उसने पैसा नहीं चुकाया है, उसके नाम से वाट्सएप ग्रुप बनाकर बदनाम किया जायेगा।
कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव नंबरों पर कॉल कर दूसरों को भी ये बातें कहने की धमकियां
दी जाने लगीं,” उन्होंने आगे
बताया।
इससे संजय दबाव में आ गये,
तो उन्हीं लोगों ने सलाह दी कि इसी तरह के एक
दूसरे लोन ऐप से नया लोन लेकर पुराना लोन चुकाया जा सकता है। एक ऐप से अधिकतम 3500 रुपए ही लोन लिये जा सकते थे और उसमें से भी 1500 रुपए बतौर प्रोसेसिंग फीस कट जाते थे, तो संजय ने दो लोन लिया। इससे 4 हजार रुपए मिले और उन्होंने पहला लोन चुका
दिया। लेकिन, दो ऐप लोन का कर्ज उन पर
आ गया। अब दोनों लोन की वसूली के लिए कॉल आना शुरू हो गया था। उधर तनख्वाह मिल
नहीं रही थी, तो बदनामी के डर से वह हर
हफ्ते ऐप लोन के जरिये नये सिरे से लोन लेते और पुराना लोन चुकाते रहें। यह क्रम
चलता रहा और संजय ऑनलाइन फर्जीवाड़े के दलदल में धंसते चले गये।
पहले सप्ताह में साढ़े
तीन हजार का लोन था, जो दूसरे सप्ताह 7 हजार हो गया। सात हजार चुकाने के लिए संजय ने
चार लोन लिया, तो तीसरे सप्ताह 14 हजार रुपए कर्ज हो गया चौथे सप्ताह बढ़कर 24 हजार रुपए हो गये। इस तरह लोन बढ़ते-बढ़ते 5 लाख रुपए पर पहुंच गया, तो संजय को अहसास हुआ कि वह एक बड़े फर्जीवाड़े में फंस गये
हैं।
संजय के भाई बताते हैं,
“लोन बढ़ जाने और लोन चुकाने के लिए लगातार फोन
कॉल्स धमकियों से परेशान होकर उसके जेहन में आत्महत्या करने तक का खयाल आने लगा
था। नवंबर के शुरू में सुबह-सुबह उसने मुझे फोन किया और पूरी बात बताई। उसकी बात
सुनकर मेरे पैरों के नीचे से जमीन ही खिसक गई थी। मैंने किसी तरह पैसे का इंतजाम
कर 5 लाख लोन चुकाया और भाई
को वापस बुला लिया।”
लोन चुका देने के बाद
संजय अब धीरे-धीरे सामान्य जीवन में लौट रहे हैं। पिछले दिनों साइबर थाने की पुलिस
ने संजय से संपर्क कर पूरी पूरी जानकारी और शिकायत दर्ज की है।
संजय खुशकिस्मत था उसके
पास थोड़ी हिम्मत और अपने भाई को मुसीबत बताई और कहीं से पैसे का इंतजाम हो सका।
लेकिन दिल्ली के 25 साल के हरीश की
जान चली गई। बिना कोई वजह बताए, सुसाइड नोट लिखे ही
हरीश ने फांसी लगा ली थी। लेकिन बाद में उनकी बहन, पिता और परिवार के दूसरे लोगों के नंबर फोन कर रिकवरी एजेंट
(लोन वसूलने वाले लोग) के बार-बार के फोन कॉल्स और हरीश के फोन से उनकी मौत के तार
इस्टेंट
लोन ऐप (तुरंत लोन) वालों से जुड़े हैं।
संजय और हरीश की तरह अब
तक अनगिनत लोगों को इंस्टेंट मोबाइल लोन ऐप के जरिये फांसा जा चुका है। हरीश की
तरह तेलंगाना, चेन्नई समेत कई
शहरों में लोग आत्महत्या कर चुके हैं।
इंडियन स्कूल ऑफ एथिकल
हैकिंग के मैनेजिंग डायरेक्टर और साइबर विशेषज्ञ संदीप सेनगुप्ता के मुताबिक,
इस तरह की व्यवस्था बेहद आसान होती है, जिस कारण लोग आसानी से इनके चंगुल में फंस जाते
हैं। उन्होंने गांव कनेक्शन के साथ बातचीत में कहा, “इस तरह के प्लेटफॉर्म पर बिना भौतिक रूप से किसी से मुलाकात
किये लोन मिल जाता है। लंबी कागजी प्रक्रिया भी नहीं होती, तो लोगों को लगता है कि लोन लेने के बाद वे नहीं भी
चुकायेंगे, तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
इसलिये वे इन जालजासों के झांसे में आ जाते हैं।”
“लेकिन उन्हें यह नहीं पता
होता है कि इस तरह के ऐप डाउनलोड करते ही फोन की सारी जानकारियों तक उनकी निर्बाध
पहुंच हो जाती है,” उन्होंने बताया।
आधा दर्जन लोग कर
चुके हैं आत्महत्या
हैदराबाद, बंगलुरू और अन्य जगहों पर मानसिक दबाव में आकर
आत्महत्या की एक के बाद कई घटनाओं के बाद इन लोन के बाद मौत बांटने वाले इन ऐप के
मकड़जाल का खुलासा हुआ। दिल्ली के हरीश से पैसा वसूलने के लिए रिकवरी एजेंट ने
हरीश के अलावा उनके पिता के नाम भी वाट्सएप ग्रुप बना दिया गया था और उन्हें भी
बदनाम किया जा रहा था।
समाचार वेबसाइट द
स्क्रॉल के मुताबिक, इस ऐप के जरिये
लोन लेकर आत्महत्या करने की पहली घटना हैदराबाद में 17 दिसम्बर को सामने आई थी, जिसमें 25 साल की एक महिला
ने जान दे दी थी। आत्महत्या की एक और वारदात 18 दिसम्बर को हुई, तो हैदराबाद की पुलिस ने मामले की पड़ताल शुरू की और 21 दिसंबर को 6 लोगों को
गिरफ्तार किया।
जांच में पुलिस को पता
चला कि इसके तार कई शहरों में फैले हुए हैं। इसके बाद हैदराबाद और साइबराबाद पुलिस
ने दिल्ली, गुड़गांव और हैदराबाद से
कुल 17 लोगों को दबोचा और
इंस्टेंट लोन कंपनियों के खिलाफ 23 मामले दर्ज
किये। तेलंगाना डीजीपी दफ्तर से जारी बयान के मुताबिक, गूगल प्ले स्टोर में कम से कम 60 इंस्टेंट मोबाइल लोन ऐप मौजूद थे, जिनके जरिये तुरंत लोन दिये जाते थे और फिर लोन चुकाने के
लिए मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता था।
Don’t fall prey to unauthorized mobile apps for instant loans. #cyberabdpolice #Instantloanfrauds #LoanAppsFraud @TelanganaDGP @TelanganaCOPs @CyberCrimePSCyb @PRohini_IPS pic.twitter.com/2yjLRcEqoB
— Cyberabad Police (@cyberabadpolice) December 23, 2020
मनोरोग चिकित्सक लोन लेने,
प्रताड़ना और फिर सुसाइड के पीछे की मानसिक
स्थिति पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं कि जो लोग सीधे-सादे होते हैं और जिन्हें
आत्मसम्मान प्यारा होता है, वे आसानी से इस
गिरोह के जाल में फंस जाते हैं।
कोलकाता के एसएसकेएम
अस्पताल के साइकेट्री विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर और जाने-माने साइकेट्रिस्ट
(मनोचिकित्सक) सुजीत सारखेल ने गांव कनेक्शन से कहा, “किसी भी सामान्य आदमी के लिए इस जाल में फंस जाना बहुत आसान
है। जो शातिर है और सारी तिकड़म जानता है, वो तो इससे बच जायेगा, लेकिन सामान्य
लोगों के लिए बचना मुश्किल होता है। इस पूरे खेल में खास बात ये है कि लोन की रकम
बहुत कम होती है, जिससे लोन लेने
वाले को लगता है कि वह कभी भी इसे आसानी से चुका देगा। लेकिन, जब लोन नहीं चुका पाता है, तो घर परिवार में बदनाम होने का डर सताने लगता
है। बदनामी के डर से ही वह एक लोन चुकाने के लिए दूसरा और दूसरा लोन चुकाने के लिए
तीसरा लोन लेता है।”
कैसे फंसाते हैं
कर्ज के जाल में
गूगल प्ले स्टोर में
शर्तिया 10-15 मिनट के भीतर लोन देने
के लिए दर्जनों ऐप मौजूद हैं। कैश मामा, हे फिश, लोन जोन, धनाधन जैसे ऐप प्ले स्टोर में हैं, जिन्हें डाउनलोड करने पर एक दूसरे ऐप में जाने
को कहा जाता है, जहां से लोन देने
की प्रक्रिया शुरू होती है।
इस ऐप में आधार कार्ड,
पैन कार्ड के डिटेल्स और आवेदक की एक ताजातरीन
फोटो ली जाती है। इन जानकारियों के अलावा लोन लेने वाले के मोबाइल फोन के
कॉन्टैक्ट डिटेल और फोटो गैलरी का एक्सेस भी ले लिया जाता है। ये सबकुछ कुछ ही
मिनटों में हो जाता है और इसके बाद लोन की रकम आ जाती है।
लोन चुकाने की अवधि एक
हफ्ता होती है। इस अवधि में लोन नहीं चुकाने पर ब्लैकमेलिंग शुरू हो जाती है। फोटो
पर फ्रॉड लिखकर सार्वजनिक करने, रिश्तेदारों को
फोन कर बदनाम करने, वाट्सएप ग्रुप
बनाकर उसे धोखेबाज घोषित करने की धमकियां दी जाती हैं।
लोन लेने वाला बहुत
परेशान हो जाता है, तो वे लोग दूसरे
ऐप के जरिये लोन लेकर उसे चुकाने को कह देते हैं। कुछ मामलों में एक हफ्ता खत्म
होने पर रोजाना जुर्माने के रूप में मोटी रकम चार्ज किया जाता है और कुछ ही दिनों
में मामूली रकम एक मोटी राशि में तब्दील हो जाती है।
21,000 करोड़ के
फर्जीवाड़े का खुलासा, चीन से जुड़े तार
मामले की छानबीन में जुटी
तेलंगाना पुलिस ने अब तक इस ऐप के जरिये 21000 करोड रुपए के फर्जीवाड़े का खुलासा किया है। उधर, चेन्नई पुलिस ने इस मामले में चीनी मूल के दो
नागरिकों को गिरफ्तार किया है, जिससे इस फर्जीवाड़े
के चीनी लिंक का पता चलता है।
चेन्नई के पुलिस कमिश्नर
महेश कुमार अग्रवाल के मुताबिक, दोनों चीनीनागरिकों को बंगलुरू से 31 दिसंबर 2020 व 1 जनवरी 2021 को गिरफ्तार
किया गया। ये लोग भारतीय मूल के लोगों के साथ मिलकर इंस्टेट मोबाइल लोन ऐप का कॉल
सेंटर चला रहे थे। जांच में यह भी पता चला है कि कॉल सेंटर का संचालन चीन से हो
रहा था।
इस मामले में गिरफ्तार लोगों में 25 साल का असम का एक युवक भी शमिल है। आरोपित युवक की तरफ से पैरवी कर रहे सुप्रीम कोर्ट के वकील पंकज सिंह, गौतम झा और अनुराग दास ने गांव कनेक्शन से कहा, “मेरे क्लाइंट को दिल्ली में एक चीनी कंपनी में नौकरी का आॅफर मिला था। उन्हें कंपनी की ब्रांडिंग का जिम्मा दिया गया था और कई दस्तावेज लिये गये थे। इन दस्तावेजों का ग़लत इस्तेमाल और उनके हस्ताक्षर के साथ छेड़छाड़ कर उसकी जानकारी के बिना ही उन्हें कंपनी का डमी डायरेक्टर बना दिया गया था।”
आरोपित युवक को आईपीसी की धारा 420 के तहत तेलंगाना पुलिस ने 14 अगस्त को गुरुग्राम से गिरफ्तार किया था। सितंबर में ईडी ने उसे अपनी हिरासत में ले लिया। तब से वह जेल में है।
“बाद में उन्हें पता चला कि उनके नाम पर फर्जीवाड़ा हुआ है, तो मार्च 2020 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी। मेरे क्लाइंट को पता नहीं था कि कंपनी लोन के जाल में लोगों को फंसा रही थी। वह निर्दोष हैं,” वकीलों ने कहा।
दिसम्बर में ही हैदराबाद,
साइबराबाद और रचकोंडा पुलिस ने लोन ऐप से जुड़ी
60 शिकायतें दर्ज की थीं और
कई कॉल सेंटरों में छापा मारा था। हैदराबाद पुलिस ने भी इस फर्जीवाड़े के तार चीन
से जुड़े होने की बात कही थी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, हैदराबाद पुलिस कमिश्नर अंजनि कुमार ने कहा था, “हैदराबाद और गुरुग्राम में चल रहे कॉल सेंटरों
में काम करने वाले कॉलरों को इंडोनेशिया से निर्देश मिलता था और ऐसा लगता है कि
लोन ऐप का संचालन चीनी मूल के लोगों द्वारा किया जा रहा था। गुरुग्राम में हुई
छापेमारी में हमें एक चीनी नागरिक का पोसपोर्ट भी मिला है।”
वहीं, तेलंगाना के सीआईडी की जांच में इंस्टेंट
मोबाइल लोन ऐप का अप्लिकेशन सर्वर चीन में मिला है। यही नहीं, सीआईडी ने इस मामले में जिन चार कंपनियों के
ठिकानों पर छापेमारी की थी, उनमें से तीन
कंपनियों के डायरेक्टर चीनी मूल के पाये गये हैं।
आरबीआई के नियमों
की हुई अनदेखी, ईडी ने शुरू की
जांच
इंस्टेंट मोबाइल लोन ऐप
फर्जीवाड़े की जांच का दायरा दिनों-दिन बढ़ रहा है। खैर, पिछले हफ्ते प्रवर्तननिदेशालय (ईडी) ने संजय के मामले में प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत केस
दर्ज किया। ये केस देश के अलग अलग हिस्सों में इस फर्जीवाड़े को लेकर हुई शिकायतों
की बुनियाद पर दर्ज किया गया है। जांच अधिकारियों ने बताया है कि वे इन ऐप्स के
अकाउंट में किन स्रोतों से पैसे आये हैं और कहां कहां पैसा गया है, इसकी जांच करेंगे।
ईडी की जांच में मालूम
हुआ है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के नियमों की अनदेखी कर ये ऐप संचालित हो
रहे थे। इधर, आरबीआई भी अपने स्तर पर
इंस्टेंट लोन कंपनियों की फंडिंग के स्रोतों की जांच शुरू कर दी है।
संदीप सेनगुप्ता का मानना
है कि जागरूकता की कमी के कारण लोग फर्जीवाड़ा करने वाले गिरोह की खुराक बन जाते
हैं। उन्होंने कहा, “आरबीआई अक्सर
बयान जारी करता है कि ऐसे किसी भी संस्था से वित्तीय लेनदेन न करें, जिसे आरबीआई से लाइसेंस नहीं मिला है। लोग भी
जानते हैं कि इन ऐप्स को लोन देने की आधिकारिक अनुमति नहीं है, लेकिन तुरंत लोन पाने की चाहत में वे फंस जाते
हैं।”
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