गांव की पगडंडियों पर बच्चों को मुफ्त कोचिंग देती है यह अंतर्राष्ट्रीय वेटलिफ्टर, कई खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर जीत चुके हैं मेडल

पूनम तिवारी के लिए गांव की पगडंडियों से निकलकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारोत्तोलन खेल को खेलना इतना आसान नहीं था। ख्याति पा चुकी पूनम गांव के दर्जनों बच्चों को भारोत्तोलन खेल का प्रशिक्षण दे चुकी हैं। इस खिलाड़ी से प्रशिक्षण पाकर कई बच्चे राष्ट्रीय स्तर पर गोल्ड मेडल जीत चुके हैं। सीरीज में आगे पढ़िए पूनम तिवारी के जिंदगी से जुड़े कई अनछुए पहलुओं के बारे में ...
#International women day

हरदोई (उत्तर प्रदेश)। खेतों के पास एक कच्ची पगडंडी पर मार्च की दोपहरी में कोच पूनम तिवारी दूर गांवों से आये कुछ लड़के और लड़कियों को पावर लिफ्टिंग, वेट लिफ्टिंग और स्ट्रेंथ लिफ्टिंग खेल का अभ्यास कराने में व्यस्त है। इसकी वजह है कि 15 मार्च को इनमें से कुछ खिलाड़ी कूच बिहार, पश्चिम बंगाल में राष्ट्रीय स्तर पर खेलने जा रहे हैं।

यूपी के हरदोई जिला मुख्यालय से लगभग एक किलोमीटर दूर नई बस्ती में भारोत्तोलन खेल का अभ्यास करते खिलाड़ियों का ये अद्भूत नजारा आपको दूर से ही देखने को मिल जाएगा। यहां सीखने आने वाले बच्चे आसपास के सुदूर गांवों से आते हैं। यहां सीखने वाले खिलाड़ियों में लड़कियों की संख्या ज्यादा है, इसका कारण है कि इन्हें अभ्यास कराने वाली कोच एक महिला है।

खुद पूनम तिवारी राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर खेल अपने राज्य और देश के लिए कई मेडल्स जीत चुकी हैं। अब उनके द्वारा सिखाए गए खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और मेडल जीत रहे हैं। पूनम ने बताया कि उनके द्वारा प्रशिक्षित 23 खिलाड़ी राष्ट्रीय और 24 खिलाड़ी राज्य स्तर पर प्रतिभाग कर चुके हैं। इनके खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय स्तर पर 4 सिल्वर, 6 गोल्ड, 8 कांस्य पदक जीते हैं, वहीं 14 ने स्टेट स्तर पर गोल्ड, 3 कांस्य, 2 सिल्वर जीते हैं।

अभ्यास करतीं खिलाड़ी

अपने गांव से करीब 60 किलोमीटर की दूरी तय कर यहां पावर लिफ्टिंग खेल का अभ्यास करने आई 22 वर्षीय सैलजा अपने माथे का पसीना पोछते हुए बताती हैं, “हमारे गांव में लड़कियों का खेलना अच्छा नहीं मानते और मेरा तो बिल्कुल भी नहीं क्योंकि मैं एक चार साल की बच्ची की माँ भी हूं।”

सैलजा उत्साहित होकर बताती हैं, “मुझे पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर खेलने का मौका मिल रहा है और इस बात से मैं बहुत खुश हूं। मेरे घर वाले मुझे यहां खेल का अभ्यास करने के लिए इसलिए जाने देते हैं क्योंकि इन्ही कोच द्वारा प्रशिक्षित हमारी भांजी राष्ट्रीय स्तर पर एक गोल्ड और दो सिल्वर मेडल जीत चुकी है।”

सैलजा अपनी जिस भांजी का जिक्र कर रही थीं, उसका नाम पलक सिंह हैं। साल 2017 में पलक द्वारा पावर लिफ्टिंग में गोल्ड मेडल जीतने के बाद तीन-चार और लड़कियां को यहां खेलने आने का मौका मिला।

महज 17 साल की पलक सिंह आत्मविश्वास से भरकर कहती हैं, “हमारी कोच (पूनम तिवारी) के यहां हम लगभग पांच साल से सीखने आ रहे हैं। यहां से सीखने के एक साल बाद मुझे पावर लिफ्टिंग में राष्ट्रीय स्तर पर पहला गोल्ड मिला। इसी साल स्ट्रेंथ लिफ्टिंग में भी एक रजत पदक मिला। मेडल मिलने के बाद से ही मेरी बड़ी बहन, सहेली और मेरी मामी को भी खेलने का मौका मिला।”

अपने घर में बैंठी पूनम। पीछे खेल के बदले उन्हें मिले सैंकड़ों ईनाम रखे हैं।

खूब तारीफ बंटोरने वाली 45 वर्षीय कोच पूनम तिवारी का यहां तक पहुंचने का सफर इतना आसान नहीं था। दो भाई और चार बहनों में सबसे बड़ी पूनम के पिता ट्रक ड्राईवर और मां हाउस वाइफ हैं। उनका जन्म साधारण मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ, जहां उन्होंने नौवीं कक्षा से ही अपनी पढ़ाई और घर खर्च के लिए ट्यूशन पढ़ाना शुरु किया था। स्नातक के बाद पूनम ने डीपीएड (डिप्लोमा इन फिजिकल एजुकेशन) का एग्जाम दिया जहां उन्हें प्रदेश में आठवां स्थान मिला।

जब पूनम से पूछा गया कि उन्होंने भारोत्तोलन खेल ही क्यों चुना तो इसका जवाब देते हुए उन्होंने कहा, “मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मैं अंतर्राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी बनूंगी। मैं घर की आर्थिक हालात को ठीक करने के लिए सिर्फ सरकारी नौकरी करना चाहती थी, पर अपने शिक्षकों के सहयोग से मैं खेल में आ गई। भारोत्तोलन खेल मैंने इसलिए चुना क्योंकि मैं कोई ऐसा खेल खेलना चाहती थी जो दूसरे खेलों से थोड़ा अलग और कठिन हों।”

आगे बात करते हुए पूनम कहती हैं, “जब मैं पहली बार पावर लिफ्टिंग में साउथ कोरिया खेलने जा रही थी, उस समय दिल का दौरा पड़ने के कारण मेरे पिता अस्पताल में भर्ती थे। डॉक्टरों ने कहा था कि उनकी कभी भी मृत्यु हो सकती है। ऐसे में मुझे खेल और पिताजी दोनों को देखना था, पर मेरे पापा ने उस समय मुझे हौसला दिया कि मैं खेलने जाऊं। हरदोई जिले के लोगों ने चंदा इकट्ठा करके मुझे खेलने के लिए भेजा। मेरी एक ही ख्वाहिश थी कि मैं यह खेल जीत जाऊं और जो पैसा मिले उससे अपने पिता का अच्छे से इलाज करवा सकूं,” यह शब्द कहते हुए पूनम की आंखे नम थी।

खिलाड़ियों को खेल की बरीकियां सिखतीं पूनम।

उस समय पूनम ने साउथ कोरिया में पावर लिफ्टिंग खेल में एक सिल्वर मेडल जीता और कामयाबी का सिलसिला शुरू हो गया। पूनम ने वहां जो पैसे मिले थे उन पैसों से अपने पापा का इलाज करवाया । इसके बाद पूनम को नहीं याद कि उन्होंने कितने गोल्ड, सिल्वर और कांस्य पदक जीते। पूनम के घर में एक कमरा अवार्डों से भरा है, जो पूनम की कामयाबी की गवाही देता है। साल 2002 में पूनम ने भारोत्तोलन से कोच का कोर्स किया। और अन्तराष्ट्रीय रेफरी बनी। इन्हें स्ट्रांग वीमेन ऑफ नार्थ इण्डिया का खिताब और स्ट्रांग वीमेन ऑफ यूपी के खिताब से सम्मानित किया गया। पूनम यूपी स्ट्रेंथ लिफ्टिंग में सचिव और भारत फेडरेशन की सदस्य भी हैं।

पूनम वैसे तो कई सालों से स्टेडियम में सैकड़ों बच्चों की कोच रही हैं, लेकिन कोविडकाल में स्टेडियम बंद होने के कारण उन्होंने अपने घर के बाहर कच्चे रास्ते पर पिछले एक साल से बच्चों को निशुल्क अभ्यास कराना शुरु करा दिया।

पूनम बताती हैं कि उनके इस सफर में यहाँ तक पहुंचने में पिता और पति का बहुत रोल रहा है। पिता ने ऐसे समय घर में स्टेडियम में जाने की इजाजत दी जब लोग केवल लड़कियों को थोड़ा बहुत पढ़ाकर शादी कर देते थे, मेरी वजह से उन्होंने समाज के तमाम ताने सहे। पांच साल पहले पिता का देहांत हो गया है, जिस तरह उन्होंने मुझे खेलने के लिए इतना प्रोत्साहित किया उसी से प्रेरणा लेकर मैं भी दूसरी लड़कियों को प्रोत्साहित करती हूँ। मेरे पति राजधर मिश्रा भी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी हैं। जब मुझे भारोत्तोलन का प्रशिक्षण चाहिए था, उस समय लखनऊ में इसके लिए कोई कोच नहीं थे। तब मेरे पति सप्ताह में एक दिन हरदोई आकर मुझे प्रशिक्षण देते थे। सभी की मदद से ही आज मैंने इतने मेडल जीते हैं।”

हरदोई की छोटी गलियों से होकर विदेश में जाकर खेलना, फ्लाईट पर बैठना पूनम के लिए किसी बड़े सपने से कम नहीं था। लेकिन पूनम के बुलंद हौसले ने उन्हें ये मुकाम दिलाया। इसके साथ ही पूनम ने अपने भाई बहनों को भी खेलने के लिए प्रोत्साहित किया, इन्होंने कई जगह उन्हें प्रतिभाग कराया पर ज्यादा रूचि न होने की वजह से वो इसमें सफलता हासिल नहीं कर पाई।

पूनम आगे बताती हैं, “मैं 50 से अधिक महिलाओं को यह खेल सिखा चुकी हूं। गांव में महिलाएं अभी भी खेलों में आगे नहीं आती हैं। लेकिन एक-दो खिलाड़ियों को मेडल जीतने पर उनका उत्साह बढ़ा है। भारोत्तोलन (वेटलिफ्टिंग) खेल महिलाओं के लिए कठिन और मेहनत भरा माना जाता है, पर अब कई लड़कियां और महिलाएं आगे आ रही हैं। जब मेरे जैसी एक गरीब परिवार में जन्मीं और हरदोई की छोटी से नुमाईश(मेला) देखने वाली लड़की मलेशिया के बड़े माल घूमकर आ गई, तो फिर आप क्यों नहीं?”

पूनम के पास एक मुस्लिम समुदाय की 21 वर्षीय लड़की सनोवर भी सीखने आती हैं। अभी 15 मार्च को सनोवर स्ट्रेंथ लिफ्टिंग में नेशनल खेलने जा रही हैं। सनोवर बताती हैं, “हमारे समुदाय में लड़कियों का खेलना अच्छा नहीं माना जाता है, पर मुझे अच्छा लगता है तो मैं ज़िद करके सीखने आती हूं। मैं इसी में अपना करियर बनाऊंगी और ये साबित करूंगी कि अगर लड़कियों को मौका मिले तो वह कुछ भी कर सकती हैं।”

यहां सीखने आने वाले खिलाड़ियों के लिए उनकी गरीबी और सीमित संसाधन कोई बाधा नहीं हैं। इनके बुलंद हौसले इन्हें उड़ान दे रहे हैं। अपनी मजदूरी के दिन से आधे दिन की छुट्टी लेकर आये 18 वर्षीय अनंतराम रैदास कहते हैं, “मैं मजदूरी न करूं तो घर का खर्चा नहीं चलेगा लेकिन खेलना मेरा जूनून है, इसलिए दोनों काम करता हूं। अच्छी बात ये है कि मुझे खेल सीखने के लिए कोई फीस नहीं देनी पड़ती। सुबह 6 बजे से 8 बजे तक खेल का अभ्यास करता हूं, फिर 9 से 5 मजदूरी भी करता हूं। मैं राष्ट्रीय स्तर पर खेल चुका हूँ।”

ये भी पढ़ें- महिला दिवस विशेष : महिलाओं की विशेष अदालत जहां सुलझ जाते हैं कोर्ट और थानों में लंबित मामले

संवाद: 21वीं सदी में खुद को कहां देखती हैं महिला किसान

Recent Posts



More Posts

popular Posts