ऑक्सीजन त्रासदी की 6 दर्दनाक कहानियां: किसी का एम्बुलेंस में टूटा दम, किसी की वेंटिलेटर पर गई जान, अपनों को बचाने के लिए सोशल मीडिया का सहारा

लखनऊ से लेकर दिल्ली, भोपाल तक निजी अस्पतालों में बिना ऑक्सीजन के मरीज दम तोड़ रहे हैं। जिन मरीजों का घरों में इलाज चल रहा है, उन्हें ऑक्सीजन मिलने की कोई उम्मीद नहीं दिख रही है। हताश परेशान लोग अपनों की जान बचाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं और सोशल मीडिया पर गुहार लगा रहे हैं..
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30 साल के ईशान त्रिपाठी लखनऊ के बलरामपुर अस्पताल (सरकारी अस्पताल) में भर्ती थे, उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत थी, जिसकी वहां सुविधा नहीं थी। वेंटिलेटर के अभाव में 22 अप्रैल की दोपहर उनका निधन हो गया। कई प्रभावशाली लोगों ने उनके लिए ट्विटर पर मदद मांगी थी लेकिन मदद नहीं पहुंची।

कोरोना से पीड़ित लखनऊ में आलमबाग इलाके में रहने वाले सुबोध तिवारी चिनहट के एक नर्सिंग होम में भर्ती थे। बुधवार को हालत बिगड़ने पर उन्हें किसी बड़े अस्पताल में शिफ्ट किया जाना था, परिजन उन्हें एंबुलेंस में लेकर निकले लेकिन रास्ते में ऑक्सीजन खत्म होने से उनकी मौत हो जाती है।

लखनऊ में रहने वाले लेखक और किस्सागो हिमांशु बाजपेई ने सुबह अपने फेसबुक पर एक दर्दभरा मैसेज लिखा, “वही हुआ जिसका डर था। रात बहुत भारी साबित हुई। सबकी मदद करते रहे हम। अपने घर की बच्ची को नहीं बचा पाए। सारी दुआएं बेकार गयीं। कुछ नहीं हो पाया। कितने असहाय हैं हम। कहीं ऑक्सीजन नहीं बाक़ी। आज लखनऊ की तबाही का दिन है।”

हिमांशु के घर की एक बच्ची चरक अस्पताल में भर्ती थी लेकिन वहां ऑक्सीजन नहीं बची थी, कहीं से कुछ इंतजाम नहीं हो पाया। बच्ची की मौत हो गई।

लखनऊ के ठाकुरगंज इलाके में स्थित निजी अस्पताल रॉकलैंड में भर्ती आशीष श्रीवास्तव के भाई शैलेंद्र ने कल रात (21 अप्रैल) में ट्विटर पर एक वीडियो शेयर किया, जिसमें वे कह रहे थे कि रॉकलैंड अस्पताल में ऑक्सीजन खत्म हो रही है। कहीं और लेकर जाइए, लेकिन लखनऊ में कहीं इंतजाम नहीं हो पा रहा, मेरी मुख्यमंत्री योगी जी से विनती है कि हमारे मरीज को तुरंत ऑक्सीजन उपलब्ध कराई जाए।”

बृहस्पतिवार (22) की दोपहर गांव कनेक्शन ने शैलेंद्र को कॉल किया। उस वक्त वे अपने मरीज को लेकर कानपुर जिले के अकबरपुर इलाके में भटक रहे थे, शैलेंद्र ने बताया, “सुबह रॉकलैंड अस्पताल में ऑक्सीजन पूरी तरह खत्म हो गई, तो लोग अपने-अपने मरीज लेकर अस्पताल खोजने लगे। मेरी यहां कानपुर के ग्रामीण इलाके के एक डॉक्टर से बात हुई लेकिन जब यहां पहुंचे तो यहां भी ऑक्सीजन नहीं था, अब हमारा मरीज एंबुलेंस में है और हम भटक रहे हैं। कहीं ऑक्सीजन का इंतजाम नहीं है।

दिल्ली में रहने वाले पत्रकार मोहम्मद आदिल ने लखनऊ में अपने एक पत्रकार साथी को रात 1.58 मिनट पर मैसेज किया, “लखनऊ में मेरी खाला (मौसी) रहती हैं जिनका ऑक्सीजन लेवल 50 तक पहुंच गया है अभी कोरोना नहीं है। कहीं बेड या ऑक्सीजन का इंतजाम हो जाए, जानता हूं मुश्किल काम है इस वक्त में।”

इससे पहले कि उनका पत्रकार साथी वो मैसेज देख पाता, उन्होंने सुबह 6.20 मिनट पर एक और मैसेज किया, “खाला का सुबह 5 बजे इंतकाल हो गया।”

लखनऊ के रंजीत गौतम के पिता मातादीन दुबग्गा के एक अस्पताल में भर्ती हैं, सुबह से वो बिना ऑक्सीजन सपोर्ट के हैं। क्योंकि अस्पताल में ऑक्सीजन नहीं है। दो खाली सिलेंडर लेकर वो किसी तरह पूछते हुए चौधरी चरण सिंह एयरपोर्ट (अमौसी एयरपोर्ट) के आगे स्थित एक ऑक्सीजन प्लांट पर पहुंचे थे, लेकिन वहां प्रशासन की टीम पहुंच गई और उन्हें ऑक्सीजन नहीं मिल सकी। 14 अप्रैल को उनकी मां कोविड से गुजर चुकी हैं। रंजीत अपने पिता को बचाने के लिए हाथ पैर मार रहे है लेकिन हताश हो चुके हैं। अब तक उनके तीन से चार लाख रुपए खर्च हो चुके हैं, जो उन्होंने कर्ज़ लिया था।

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रंजीत के पिता मातादीन गौतम जो 22 अप्रैल को सुबह से बिना ऑक्सीजन सपोर्ट के हैं। फोटो वाया रंजीत

ये 6 कहानियां लखनऊ समेत उत्तर प्रदेश के कई जिलों में ऑक्सीजन की कमी से मरते मरीजों, इधर-उधर भागते दौड़ते हताश परिजनों की बेबसी और सरकारी सिस्टम की पोल खोलने की बानगी भर है।

लखनऊ में ऑक्सीजन को लेकर मारामारी पिछले एक हफ्ते से मची हुई है लेकिन कहीं न कहीं से लोग कई गुना ज्यादा कीमत, कई गुना ज्यादा सिक्योरिटी मनी देकर इंतजाम कर रहे थे, निजी अस्पतालों में बेड मिलने पर लोगों को बड़ा सहारा मिल रहा था लेकिन 21 अप्रैल (बुधवार) को लखनऊ के कई निजी अस्पतालों ने अपने यहां नोटिस लगा दिए, जिसमें कहा गया कि उनके पास ऑक्सीजन खत्म हो रही है, ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं हो पा रही है, इसलिए अपने मरीजों को कहीं और ले जाइए।

सोशल मीडिया साइट्स फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सएप पर लोग सैकड़ों लोग ऑक्सीजन के लिए अपील करते नजर आ रहे हैं। निजी अस्पतालों में ऑक्सीजन आपूर्ति को लेकर लोगों ने सरकार से सवाल भी करना शुरू किए।

बुधवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दफ्तर के ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया था कि ऑक्सीजन की मांग और आपूर्ति में संतुलन बना रहे इस लिए सभी अस्पतालों में मेडिकल ऑक्सीजन का ऑडिट कराया जाना चाहिए। ऑक्सीजन की कालाबाजारी करने वालों के खिलाफ त्वरित और कठोरतम कार्रवाई की जाए। अति गंभीर परिस्थितियों को छोड़कर किसी भी इंडिविजुअल व्यक्ति को ऑक्सीजन की आपूर्ति न की जाए। केवल संस्थागत आपूर्ति ही होगी।” इसी ट्वीटर हैंडल पर बाद में ये भी बताया गया कि डॉक्टर का पर्चा दिखाने पर ऑक्सीजन मिलेगी। 22 अप्रैल को मीडिया में ये भी खबरें प्रकाशित हुई कि मुख्यमंत्री ने अस्पतालों को निर्देश दिया है कि वहां 36 घंटे का बैकअप होना चाहिए। लेकिन हालात, तीमारदार और अपनों को खोने वाले लोग कुछ और कह रहे हैं।

अपने परिवार की एक बच्ची को खोने वाले हिमांशु तिवारी ने एक और पोस्ट में लिखा, “व्यक्तिगत प्रयास से हॉस्पिटलों में ऑक्सीजन सप्लाई नहीं चालू हो सकती। वो सिर्फ सरकार ही कर सकती है। व्यक्तिगत प्रयास से इस वक़्त ऑक्सीजन बेड और सिलेंडर भी कोई साधारण इंसान नहीं दिलवा सकता। लखनऊ को अब सिर्फ सरकार बचा सकती है और यही मौजूदा वक़्त की सबसे डरावनी बात है। क्यूंकि सरकार सिर्फ़ ख़ुद को बचाती है।”

दिल्ली में अस्पताल पहुंचे हाईकोर्ट

ऑक्सीजन की किल्लत सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही नहीं है, दिल्ली से लेकर मध्य प्रदेश और झारखंड तक में हालात बदतर हैं। दिल्ली के पटपड़गंज स्थित मैक्स हॉस्पिटल के बाद एक और अस्पताल सरोज सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, रोहिणी ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। अस्पतालों ने कोर्ट से गुहार लगाई है कि उन्हें तत्काल ऑक्सीजन की सप्लाई उपलब्ध कराई जाए। सरोज अस्पताल ने कहा कि उनके पास सिर्फ कुछ घंटे की ऑक्सीजन बची है। इससे पहले 21 अप्रैल को मैक्स अस्पताल ने बताया था कि उनके नेटवर्क के सभी अस्पतालों में क्षमता 1400 कोविड मरीजों की है लेकिन वो पिछले कुछ दिनों से ऑक्सीजन की किल्लत का सामना कर रहे हैं। 21 तारीख को मैक्स ने कोर्ट में एक चार्ट पेश किया जिसमें के मुताबिक उनके अस्पतालों में किसी में 2 घंटे तो किसी में 18 घंटे की ही ऑक्सीजन बची है।

ऑक्सीजन के लिए भोपाल में भी लोग परेशान हैं। अभय मिश्रा नाम के यूजर ने 22 अप्रैल को एक बजे ट्विटर पर लिखा “गुलमोहर कॉलोनी में स्थित निरवाना अस्पताल में महज एक घंटे की ऑक्सीजन शेष है। अस्पताल में 24 जिंदगियां ऑक्सीजन पर ही निर्भर हैं।”

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