महाराष्ट्र: साप्ताहिक बाजारों की बंदी ने तोड़ी काजू के किसानों की कमर, आधी कीमत पर काजू बेचने को हुए मजबूर

कोरोना की दूसरी लहर में संक्रमण को रोकने के लिए राज्य सरकार ने 1 मई तक बंद कर रखे हैं साप्ताहिक बाजार, प्रदेश में सबसे ज्यादा काजू उत्पादन करने वाले सिंधुदुर्ग, सांगली और कोल्हापुर आदि जिलों के किसानों को हो रही दिक्कत।
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सिंधुदुर्ग/सांगली (महाराष्ट्र)। कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए महाराष्ट्र सरकार की ओर से साप्ताहिक बाजार बंद करने के बाद काजू के लिए प्रसिद्ध कोंकण के काजू उत्पादक किसान इन दिनों मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। यही वह समय है, जब काजू के बीजों की बिक्री और खरीदी की जाती है। वहीं, इस बार बेमौसम बरसात, ओले और बादलों की नमी के कारण काजू की फसल की पैदावार और गुणवत्ता भी प्रभावित हुई है। अब बाजार नहीं खुलने से किसान आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं।

सिंधुदुर्ग जिले के काजू उत्पादक किसान सुशांत नाइक (40 वर्ष) बताते हैं कि साप्ताहिक बंदी के कारण कई दलाल सक्रिय हो गए हैं, जो किसानों से महज 50 से 60 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से काजू के बीज खरीद रहे हैं, जो सामान्य दर से करीब आधी है। सुशांत कहते हैं, “काजू के बीजों को सुखाकर किसान उसे स्टोर कर लें और दलालों को सस्ती दर पर अपना कच्चा माल न बेचें। ऐसा नहीं करने पर काजू के बीजों के रेट बहुत नीचे चले जाएंगे। सरकार भी दलालों के खिलाफ कार्रवाई करें, जिससे किसानों का शोषण न हो।”

सिंधुदुर्ग जिले में करीब 50 हजार हेक्टेयर में होती है खेती

अकेले सिंधुदुर्ग जिले में करीब 50 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में काजू का उत्पादन किया जाता है। काजू के उत्पादन के मामले में सिंधुदुर्ग का वैभववाडी क्षेत्र प्रसिद्ध है। सिर्फ इसी क्षेत्र से हर साल 15 सौ करोड़ रुपए के काजू का कारोबार किया जाता है। हर साल फरवरी से काजू की फसल का मौसम शुरू होता है। ज्यादातर काजू उत्पादक किसान साप्ताहिक बाजारों में अपनी उपज बेचते हैं, जहां बड़े व्यापारी बड़े पैमाने पर खरीद करते हैं। इस बार फिर कोरोना की दूसरी लहर के कारण साप्ताहिक बाजार बंद है और काजू की खरीदी और बिक्री नहीं हौ रही है। पिछले कुछ दिनों में राज्य के सभी जिलों में संक्रमण तेजी से बढ़ा है। सिंधुदुर्ग में अब तक ग्यारह हजार से अधिक व्यक्ति कोरोना संक्रमण से पीड़ित हो गए हैं, जिनमें ढाई सौ अधिक मरीजों की मृत्यु हो चुकी है।

काजू के बीजों के दाम पिछले कुछ वर्षों से लगातार घट रहे हैं। फोटो साभार: कल्पेश शिरके

एक काजू प्रसंस्करण यूनिट के मालिक धनश्री सावंत (52 वर्ष) बताते हैं, “पाबंदी के कारण फिलहाल शादी और अन्य पार्टियां बंद हो गई हैं। लिहाजा रेस्टोरेंट और पर्यटन क्षेत्र के जरिए भी होने वाली काजू की मांग नहीं है। वे कहते हैं, ” दोबारा पाबंदियां हटें और लोगों की दिनचर्या सामान्य हो तो काजू के दाम निर्धारित किए जाने में सहूलियत होगी। ज्यादातर कारखाने वाले और व्यापारी स्थिति सामान्य होने की राह देख रहे हैं, क्योंकि स्थानीय स्तर पर उन्होंने किसानों से काजू के बीज खरीद भी लिए तो उनका पैसा फंस जाएगा।”

महाराष्ट्र में कोरोना मरीजों की संख्या में बेहताशा वृद्धि को देखते हुए राज्य की उद्धव ठाकरे सरकार ने 1 मई तक सख्त पाबंदियां लगाई हैं। इसके तहत पिछले कई दिनों से राज्य में संपूर्ण साप्ताहिक बाजार भी बंद किए गए हैं। अकेले सिंधुदुर्ग जिले में 20 से 25 स्थानों पर साप्ताहिक बाजार लगता है। यहां होने वाली खरीदी-बिक्री फरवरी से लेकर मई के पहले सप्ताह तक चलती है। इससे काजू का कारोबार भी प्रभावित हुआ है।

कोरोना से पहले बाढ़ ने ढाया था सितम

इसी तरह, पश्चिम महाराष्ट्र के सांगली और कोल्हापुर जिले के काजू उत्पादक किसान कहीं अधिक मुसीबत का सामना कर रहे हैं। क्योंकि कोरोना से पहले इन दोनों जिलों में आई बाढ़ के कारण किसानों को नुकसान उठाना पड़ा था। सांगली के तासगांव क्षेत्र में काजू उत्पादक किसान दिलीप डभोले (48 वर्ष) बताते हैं, “सांगली के किसान जब बाढ़ की तबाही से उबरने लगे थे, तब कोरोना का संकट आ गया। सरकार को चाहिए कि विशेष पैकेज की घोषणा करें, क्योंकि प्राकृतिक आपदा के चलते सांगली और कोल्हापुर जिले में काजू उत्पादक किसानों को दो सौ करोड़ रुपए का घाटा सहना पड़ा था। यहां कई हजार हेक्टेयर काजू की फसल बाढ़ ने सड़ा दी थी।”

दूसरी तरफ, कई काजू उत्पादक किसानों ने इस संभावना के कारण अब तक फुटकर में काजू के बीज नहीं बेचे हैं कि बाद में जब बाजार खुलेगा तो उन्हें बाजार में काजू की बिक्री पर एकमुश्त अच्छे दाम मिलेंगे। यही वजह है कि काजू उत्पादक किसानों ने उपज के लिए जो लागत लगाई थी उसका पैसा अभी तक नहीं निकला है और इन किसानों को मुनाफे के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। हालांकि, सिंधुदुर्ग जिले में इस समय यहां काजू की दर 105 से लेकर 115 रुपए प्रति किलोग्राम बनी हुई है। लेकिन, साप्ताहिक बंदी से किसानों को डर है कि बीजों के दाम नीचे जा सकते हैं।

पिछली बार 130 की जगह 70 से 80 रुपये में बेचे थे बीज

हालांकि, पिछली बार भी काजू उत्पादक किसानों को लॉकडाउन के कारण उनकी उपज के अपेक्षित दाम नहीं मिल सके थे। तब काजू व्यापारियों ने काजू के दाम 130 रुपये प्रति किलो से घटाकर 70 से 80 रुपए प्रति किलो तक कर दिए थे। लिहाजा यहां के काजू उत्पादक किसान यह सोचकर निराशा और दुख में डूबे हुए हैं कि पिछले साल की तरह कहीं इस वर्ष भी उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ जाए।

सिंधुदुर्ग जिले में खांबाले गांव के किसान मंगेश गुरव (38 वर्ष) बताते हैं कि मौसम की मार भी अब स्थायी हो गई है और पिछले कई वर्षों से लगातार अनियमित बारिश और प्रतिकूल तापमान के कारण काजू की उत्पादकता के साथ उसकी गुणवत्ता में भी गिरावट आ रही है। इसके अलावा लगातार दूसरे साल भी कोरोना के कारण लगने वाली सख्त पाबंदियाें से मंडियां भी प्रभावित हो रही हैं।

इस बारे में मंगेश कहते हैं, “मेरे दो एकड़ के बगीचे में काजू के कई झाड़ हैं। पहले काजू के झाड़ों से 800 से 1,000 किलोग्राम तक काजू की पैदावार होती थी। लेकिन, अब यह घट गई है और इस वर्ष सीजन के आखिरी दिनों तक अंदाजा यह है कि करीब 400 से 800 किलोग्राम तक काजू पैदा होंगे। यहां ओले पड़ने से काजू की फसल को बहुत ज्यादा नुकसान हुआ है। हमारी समस्या यही खत्म नहीं होती है, क्योंकि जब इसे बेचने की बारी आई है तो बाजार बंद होने से हमारी उपज खरीदने के लिए बड़े व्यापारी नहीं मिल रहे हैं।”

बेमौसम बारिश, बाढ़, ओले और बादलों की नमी के कारण किसानों को पहले ही काफी घाटा सहना पड़ा है। फोटो साभार: सुनील होरंबे

मंगेश इस स्थिति से बेहद हताश हैं और कहते हैं, “सीजन में यदि बाजार नहीं खुले तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी, क्योंकि कई किसानों को तुरंत नकद की जरूरत पड़ रही है और उन्हें अपनी लागत भी निकालनी है। सारे किसान काजू की उपज को लंबे समय तक घर पर नहीं रख सकते हैं। सरकार काजू उत्पादक किसानों की उपज खरीदने के लिए कोई व्यवस्था बनाए तो ही हम लोग संकट से उबर सकेंगे।”

सिंधुदुर्ग में किसान व फल उत्पादक संघ के अध्यक्ष विलास सांवत (54 वर्ष) बताते हैं कि महाराष्ट्र में एक लाख 91 हजार हेक्टेयर पर काजू की खेती की जाती है। काजू की सबसे अधिक खेती सिंधुदुर्ग, रत्नागिरी, रायगढ़, पालघर, कोल्हापुर और सांगली जिलों में होती है। राज्य में हर साल सामान्यत: दो लाख सत्तर हजार टन का काजू उत्पादित किया जाता है। कोंकण और पश्चिम महाराष्ट्र का काजू अपने विशिष्ट स्वाद और आकार के कारण दुनिया भर में प्रसिद्ध है, लेकिन पिछले सालों में काजू की फसल की दर लगातार घट रही है। कुछ साल पहले किसानों ने व्यापारियों को अपना कच्चा माल दौ सौ रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बेचा था, लेकिन पिछले साल महज 70 रुपये प्रति किलो की दर पर व्यापारियों को काजू के बीज बेचने के लिए मजबूर हुए हैं।

विलास सांवत इसके पीछे के कारण स्पष्ट करते हुए बताते हैं, “सरकार काजू की न्यूनतम राशि पर खरीदी की गारंटी नहीं देती है। सरकार को चाहिए कि 150 से 160 रुपये प्रति किलोग्राम की दर पर खरीद की न्यूनतम राशि निर्धारित कर दे। यदि महाराष्ट्र सरकार न्यूनतम राशि पर खरीद नहीं कर सकती है तो गोवा सरकार की तर्ज पर 25 रुपये प्रति ग्राम पर सब्सिडी दे।”

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