कुछ हफ़्ते पहले ही छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के सभी 229 गाँव कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर की चपेट में थे। अब, इन गांवों में से 69 प्रतिशत को प्रशासन द्वारा कोरोना वायरस मुक्त घोषित कर दिया गया है। इनमें से ज्यादातर आदिवासी बहुल गांव हैं।
दंतेवाड़ा कलेक्टर दीपक सोनी ने गांव कनेक्शन को बताया, “हम अपने जिले के शेष गांवों को 15 जून तक कोविड मुक्त बनाने में सक्षम होंगे।”
सोनी ने बताया कि गांवों को कोविड मुक्त बनाने और उनकी प्रगति की निगरानी करने के लिए प्रशासन हर पखवाड़े पंचायत, सरपंच (ग्राम प्रधान) और कोरोना जागरूकता टीमों के साथ समीक्षा बैठक कर रहा है।
सोनी ने आगे कहा, “हमने ग्राम स्तर पर स्थानीय आदिवासी नेताओं को चुना है जो गोंडी में संवाद कर सकते हैं। गोंडी और हल्बी भाषाओं में ऑडियो और वीडियो संदेश आदिवासी समुदायों को कोरोना से संबंधित कार्यक्रमों को बेहतर ढंग से समझने में मदद करते हैं।”
दंतेवाड़ा के अलावा, राज्य के अन्य जिले भी कोविड मुक्त घोषित होने की राह पर हैं। राज्य के 28 जिलों में से कम से कम 12 ने यह घोषणा की है कि उनके गांव कोरोना मुक्त हैं। पिछले महीने, 27 मई को राज्य सरकार ने कहा था कि राज्य के 20,000 गाँवों में से लगभग 10,000 गाँव कोविड मुक्त हैं, जिसका अर्थ है कि आधे गाँवों में एक भी सक्रिय कोविड-19 रोगी नहीं था।
कोरोना जागरुकता दल
दंतेवाड़ा जिला प्रशासन ने कहा कि गांवों को वायरस से मुक्त करने के लिए उसने बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाया है। आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा घर-घर निगरानी, होम आइसोलेशन में रहने वालों की निगरानी, आदिवासी गोंडी और हल्बी भाषाओं में जागरूकता कार्यक्रम और क्वारंटीन केंद्रों की स्थापना जैसे कुछ उपाय किए गए।
इस वायरस से छुटकारा पाने के इस अभियान के केंद्र में कोरोना जागरुकता दल हैं। इसके सदस्यों में स्थानीय शिक्षक, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, मितानिन (महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता) और स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी शामिल हैं जिन्हें चौबीसों घंटे ड्यूटी पर रखा गया है।
दंतेवाड़ा जिले की 36 वर्षीय आंगनवाड़ी कार्यकर्ता अनीता साहू कोरोना जागरुकता दल की सदस्य हैं। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया, “सबसे ज्यादा समस्या अप्रैल में थी। इसके बाद घर-घर जाकर निगरानी शुरू की गई। हम सुबह निकलते थे और हर दिन शाम को ही लौटते थे। हमने बहुत काम किया है।”
जिन लोगों में कोविड के लक्षण (खांसी, सर्दी या बुखार) थे उन्हें तुरंत परीक्षण के लिए अस्पताल में भेजा गया, और इसके साथ ही उन्हें दवा किट, जिसमें विटामिन और पैरासिटामोल शामिल थे, प्रदान किए गए।
जिला मजिस्ट्रेट ने बताया, “एक मरीज के लिए कोविड संक्रमण के बाद के एक या दो दिन बेहद महत्वपूर्ण होते हैं, इसलिए हमने बिना किसी देरी के लक्षणों वाले लोगों को दवा किट प्रदान की।”
37 वर्षीय पंकज भदौरिया को दंतेवाड़ा के अपने गांव नकुलनगर में दूसरी लहर की भयावहता याद है। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया, “पिछले महीने, गांवों में कोरोना जंगल की आग की तरह फैल गया, लेकिन अब स्थिति नियंत्रण में है। जीरो वाले कई गांव हैं यहां। [हमारे जिले में शून्य कोविड मामले वाले कई गांव हैं।]
भदौरिया की मां भी कोविड संक्रमित हो गई थीं। वे बताते हैं, “लगभग बीस दिन पहले उनकी कोविड रिपोर्ट पॉजिटिव आई। जिले की टीम हमें उसकी नब्ज, ऑक्सीजन के स्तर और दिन भर की दवाओं की निगरानी के लिए नियमित रूप से संपर्क करती थी। दवा किट के अलावा, हमें एक ऑक्सीमीटर भी दिया गया था।” भदौरिया ने बताया कि उनके गांव में कोविड के अब केवल दो या तीन सक्रिय मामले हैं।
जनजातीय भाषाओं में जागरूकता कार्यक्रम
दंतेवाड़ा जिले में कई आदिवासी समुदाय रहते हैं। इन समुदायों तक कोविड सावधानियों और टीकाकरण का संदेश पहुंचाने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि उनसे स्थानीय भाषाओं में संवाद किया जाए। यही वजह है कि जिला प्रशासन ने गोंडी और हल्बी भाषाओं में जागरूकता बढ़ाने के लिए स्थानीय आदिवासी नेताओं को चुना।
सोनी ने बताया, “हमने स्थानीय नेताओं को चुना जो संदेश को दूर-दूर तक ले जाने के लिए ग्राम स्तर पर गोंडी और हल्बी भाषाओं में संवाद कर सकते थे।”
@DantewadaDst कलेक्टर श्री @DeepakSoni_1 ने स्थानीय बोली गोंडी में लोगों से #कोरोना अनुरूप व्यवहार अपनाने व 45 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्तियों से टीका लगवाने की अपील की है।#LargestVaccineDrive#Unite2FightCorona@BOC_MIB @PIBHindi @MIB_Hindi @PIBRaipur @ddnewsraipur @CGAIRNEWS pic.twitter.com/zRzpOdjmz5
— Regional Outreach Bureau Raipur, Chattisgarh (@ROBRAIPUR) April 9, 2021
दंतेवाड़ा कलेक्टर ने आगे बताया, “हमने विभिन्न आदिवासी समुदायों के नेताओं से भी अनुरोध किया कि वे लोगों को टीकाकरण के लिए प्रेरित करें। हमने पहले नेताओं का टीकाकरण कराया ताकि वे दूसरों के लिए रोल मॉडल बन सकें।”
जिले में टीकाकरण
दंतेवाड़ा जिला प्रशासन के अनुसार जिले में अब तक 95,000 से अधिक वैक्सीन की खुराक दी जा चुकी है। जिले के लगभग 80 प्रतिशत गांवों ने 25 दिनों में ही 45 से अधिक उम्र वाली श्रेणी के लिए निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त कर लिया है।
आंगनवाड़ी कार्यकर्ता साहू ने कहा, “हमारे गाँव में टीकाकरण का काम अच्छा चल रहा है। हम सभी ने इसके लिए वास्तव में कड़ी मेहनत की है।”
इस बीच, दूरदराज के गांवों में रहने वाले आदिवासी समुदायों का टीकाकरण सुनिश्चित करने के लिए कम से कम 20 बसें उपलब्ध कराई गई हैं।
भदौरिया ने कहा, “ये बसें ग्रामीणों को टीकाकरण केंद्रों तक पहुँचाती हैं, केंद्रों में पका हुआ भोजन भी उपलब्ध कराया जाता है।” भदौरिया ने हाल ही में जिले के 22 सरकारी टीकाकरण केंद्रों में से एक में कोविड वैक्सीन लिया है।
सोनी ने आगे बताया कि इसके अलावा, प्रशासन ने यह सुनिश्चित करने के लिए भी व्यवस्था की थी कि टीकाकरण केंद्रों पर आने वाले ग्रामीणों के सरकार से संबंधित अन्य काम पूरे हो जाएं। इनमें आयुष्मान कार्ड, श्रमिक पंजीकरण, पेंशन योजना और किसान क्रेडिट कार्ड से संबंधित कार्य शामिल हैं।
जिला प्रशासन का दावा है कि अस्पताल के बिस्तर और आईसीयू को भी अपग्रेड किया गया है। 23 अप्रैल को, राज्य में कोविड के सर्वाधिक नए 17,397 मामले दर्ज किए गए थे। 6 जून को, केवल 999 नए मामले सामने आए हैं, यानी छह सप्ताह में 94 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है।
कोविड मुक्त घोषणाओं का नहीं है कोई वैज्ञानिक आधार
एक ओर जहां जिला प्रशासन 15 जून तक सभी गांवों को कोविड मुक्त घोषित करने की उम्मीद कर रहा है, वहीं कुछ सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ ऐसी घोषणाओं पर संदेह जता रहे हैं। जन स्वास्थ्य अभियान के राष्ट्रीय सह-संयोजक और छत्तीसगढ़ में सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वास्थ्य अधिकारों के लिए काम करने वाले एक गैर-लाभकारी संगठन की सुलक्षणा नंदी ने कहा कि क्षेत्रों को कोविड-मुक्त घोषित करने जैसी घोषणाएं दिखावा के अलावा और कुछ नहीं हैं।
नंदी ने गांव कनेक्शन से कहा, “इन घोषणाओं का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। पिछले साल, अप्रैल में गोवा ने खुद को पहला “कोरोना मुक्त” राज्य घोषित किया था। ऐसा नहीं है कि आपने क्षेत्र से कोविड-19 को मिटा दिया है, जैसा कि हम चेचक जैसी बीमारियों के लिए कह सकते हैं।”
नंदी ने बताया, “दूसरी लहर में छत्तीसगढ़ को होम आइसोलेशन और रेफरल की निगरानी के संबंध में बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। लोगों को गंभीर बीमारी होने की स्थिति में उच्च स्वास्थ्य केंद्रों तक पहुंचने में भी भारी समस्याओं का सामना करना पड़ा, क्योंकि लॉकडाउन चल रहा था और सरकारी रेफरल अपर्याप्त था।”
सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने यह भी बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों या शहरी झुग्गियों में लोगों के पास ऑक्सीमीटर या थर्मामीटर नहीं हैं, और सरकार ने सभी गांवों या शहरी मलिन बस्तियों में इसकी व्यवस्था नहीं की है।