धान की नर्सरी 25 दिन से ज्यादा की हो चुकी है, लेकिन किसान अनिल वर्मा हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं कि वो धान की रोपाई कराएं। मेंथा की फसल में बारिश के चलते भारी नुकसान उठा चुके अनिल डीजल की महंगाई को देखते हुए जो पहले 12-13 एकड़ में धान की रोपाई करने वाले थे वो अब सिर्फ 4-5 एकड़ में करेंगे। बाकी खेत खाली पड़ा रहेगा।
“पिछले साल हमने 13 एकड़ में धान लगाया था। लेकिन इतना महंगा डीजल है। खाद महंगी है, मजदूरी महंगी है। पिछले साल हमने अपना धान 900 रुपए कुंटल बेचा था। किसान जब धान लेने जाए तो बीज मिलता है 200-250 रुपए किलो और जब बेचने जाए तो बिकता है 9 से 10 रुपए किलो। ऐसे में क्या मिलेगा खेती से।” अपने खेत की मेड़ पर बैठे अनिल वर्मा (35 वर्ष) ने कहा, वो बाराबंकी जिले के सूरतगंज ब्लॉक में टांडि गांव रहते हैं। जून के महीने में हुई अतिवृष्टि से उनकी मेंथा की 4 एकड़ पूरी फसल लगभग चौपट हो चुकी है।
पिछली 1 जुलाई 2020 को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में डीजल का रेट 63.93 रुपए लीटर था जो 1 जुलाई 2021 को बढ़कर 88.69 हो गया था। यानी करीब 24.76 रुपए लीटर महंगा हो गया है। साल 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य लेकर चल रही केंद्र सरकार ने 9 जून को खरीफ की फसलों को लेकर न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी किया, जिसमें सामान्य धान का भाव 1940 रुपए कुंटल किया गया है। ये पिछले वर्ष 2020-21 के 1868 रुपए प्रति कुंटल के मुकाबले 72 रुपए ज्यादा है।
डीजल ऐसा इनपुट है जिसका हर चीज में इस्तेमाल होता है। डीजल महंगा तो ट्रैक्टर से जुताई, सिंचाई महंगी, मंडी तक जाने-आने का भाड़ा महंगा, एग्री इनपुट (खाद, उर्वरक आदि) महंगे हो जाते हैं। एक तरह से पूरे सिस्टम में इन्फ्लेशन (महंगाई) हो जाता है। – प्रो. सुखपाल सिंह, प्रो. आईआईएम (ए) और पूर्व चेयरमैन, सेंटर फॉर मैनेजमेंट इन एग्रीकल्चर, IIM -A
“एक तो डीजल इतना महंगा हो गया है। दूसरे बीज की महंगाई है। मजदूरी दिन प्रतिदिन बढ़ रही है। समर्थन मूल्य में मात्र 50-60 रुपए की बढ़ोतरी होती है। ट्रैक्टर से जुताई जो प्रति घंटे 400-500 रुपए थी वो 1000 हो गई है। सरकार को चाहिए एमएसपी कम से कम 200-400 रुपए बढ़ाए।” मध्य प्रदेश में सतना जिले के बदरऊ गांव के किसान आशीष पांडे (35 वर्ष) कहते हैं।
डीजल की बढ़ी लागत पर किसानों और खेती पर क्या असर पड़ेगा?,
भारतीय प्रबंध संस्थान (IIM-A), अहमदाबाद के सेंटर फॉर मैनेजमेंट इन एग्रीकल्चर (CMA) के प्रोफेसर और पूर्व चेयरमैन प्रो. सुखपाल सिंह के मुताबिक डीजल ऐसा कंपोनेंट हैं जिसकी कीमत बढ़ने पर पूरे सिस्टम में महंगाई आ जाती है।
“डीजल ऐसा इनपुट है जिसका हर चीज में इस्तेमाल होता है। डीजल महंगा तो ट्रैक्टर से जुताई, सिंचाई महंगी, मंडी तक जाने-आने का भाड़ा महंगा, एग्री इनपुट (खाद, उर्वरक आदि) महंगे हो जाते हैं। एक तरह से पूरे सिस्टम में इन्फ्लेशन (महंगाई) हो जाता है। हर कोई रेट बढ़ा देता है। तो इससे खेती की लागत तो बढ़नी ही है।”
वो आगे कहते हैं, “एमएसपी (MSP) में बढ़ोतरी और डीजल की महंगाई की सीधी तुलना ठीक नहीं है। अगर पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों को देखेंगे तो पंजाब में बिजली पूरी तरह मुफ़्त है। वहां 80% सिंचाई बिजली के ट्यूबवेल से होती है। दूसरी बात सरकार क्योंकि बिजली पर सब्सिडी देती है तो वो फसल की लागत में इस तरह डीजल की कीमत नहीं जोड़ती। ऐसे में जिन किसानों के पास मुफ्त की बिजली या बिजली कनेक्शन नहीं उन्हें भी वही रेट मिलेगा तो बिजली मुफ्त वाले राज्यों में मिलता है। लेकिन लागत में अंतर काफी आ चुका होगा।”
केंद्र सरकार ने खरीफ विपणन सीजन 2021-22 धान की जो एमएसपी (1940 रुपए) तय की है, सरकार के मुताबिक वो लागत का डेढ़ गुना है। लेकिन समस्या ये है कि ज्यादातर किसान अपनी फसल एमएसपी पर बेच नहीं पाते हैं। कई रिपोर्ट बताती रही हैं कि देश में सिर्फ 6 फीसदी किसानों को एमएसपी का लाभ मिलता है। सरकार के थिंक टैंक ‘नीति आयोग’ की जनवरी 2016 में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में महज़ छह फीसदी किसानों को ही एमएसपी का लाभ मिलता है।
पिछले साल धान के सीजन में यूपी बिहार, पश्चिम बंगाल समेत कई राज्यों में हजारों किसान 800-1200 रुपए प्रति कुंटल में खुले बाजार में बेचने को मजबूर हुए थे। यहां तक की यूपी-बिहार समेत कई राज्यों से धान चोरी-छिपे पंजाब ले जाकर बेचे जा रहे थे, जिस पर पंजाब में कई बिचौलियों और आढ़तियों के खिलाफ एफआईआर तक हुई थीं। गांव कनेक्शन ने धान के कम रेट और कालाबाजारी को लेकर कई रिपोर्ट प्रकाशित की थी।
धान भारत में खरीफ सीजन की मुख्य फसल है। देश में किसानों की स्थिति ही नहीं खाद्य सुरक्षा food security की बड़ी जिम्मेदारी भी धान पर है। भारत में 10 जून लेकर अगस्त के पहले हफ्ते तक किसान धान की रोपाई करते हैं। गेहूं भारत में लगभग 10 राज्यों में होता है लेकिन धान कुछ राज्यों को छोड़कर लगभग हर राज्य में पैदा किया जाता है। लेकिन डीजल की बढ़ी कीमतों के बाद किसान परेशानी में हैं।
एक तो डीजल इतना महंगा हो गया है। दूसरे बीज की महंगाई है। मजदूरी दिन प्रतिदिन बढ़ रही है। समर्थन मूल्य में मात्र 50-60 रुपए की बढ़ोतरी होती है। सरकार को चाहिए एमएसपी कम से कम 200-400 रुपए बढ़ाए। – आशीष, पांडे, किसान मध्य प्रदेश
धान की बढ़ी एमएसपी के मुकाबले लागत कितनी बढ़ी?
उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में हथिया गाजीपुर के किसान अंकित सिंह धान की लागत और उससे होने वाले उत्पादन का गणित अपने शब्दों में समझाते हैं। “धान में सबसे ज्यादा खर्च डीजल का होता है। 25 एकड़ धान में हमारा करीब 600 लीटर डीजल (पूरी फसल) खर्च होता है। पिछले साल धान रोपाई के दौरान हम 65 रुपए में डीजल लाए थे इस बार 90.50 में लाए हैं। एक एकड़ में धान तो 15-20 कुंटल ही पैदा होता है। पिछले साल 1000 रुपए कुंटल में बेचा था। इतनी महंगाई में क्या बचेगा?”
अगर सिर्फ अंकित के खेत में डीजल की खपत और उत्पादन का गुणा भाग किया जाए तो खेती पर डीजल की बढ़ी लागत का असर साफ दिखता है। पिछले साल अंकित ने जो 600 लीटर डीजल (65 रुपए/ली) 39000 रुपए का लिया होगा वो इस बार (90.50 रु/ली) 55500 रुपए का पड़ेगा। जबकि अगर उनके खेत का उत्पादन अधिकतम (20 कुंटल/एकड़) हो तो 500 कुंटल होगा। अब अगर उसकी मार्केटिंग की बात करें तो अगर वो पिछले साल एमएसपी (1868 रुपए/कुंटल) पर गया होता तो 934000 रुपए का होता है, जबकि इस बार (1940/ कुंतल) में बिक जाए तो 970000 रुपए मिलेंगे। यानि एमएसपी बढ़ने से उन्हें 36000 रुपए ज्यादा मिलेंगे जबकि उनका डीजल 55500 रुपए का अतिरिक्त खर्च होगा। ये अलग बात कि है अंकित ने पिछले साल अपना धान 1000 रुपए कुंतल बेचा था।
पिछले साल धान रोपाई की अपेक्षा इस वर्ष धान की रोपाई तक डीजल 25 रुपए लीटर महंगा हो गया है। डीजल की बढ़ोतरी का से किसान इसलिए भी परेशान हैं, क्योंकि खरीफ में मानसून के निर्भरता के बावजूद खेती का बड़ा हिस्सा ट्यूबवेल (tubewell) की सिंचाई पर निर्भर है।
45 फीसदी सिंचाई ट्यूबवेल पर आधारित है
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अधीन संस्थान कृषि मूल्य एवं लागत आयोग (CACP)की साल 2018-19 की खरीफ रिपोर्ट के अनुसार भारत में 45 फीसदी सिंचाई ट्यूबवेल (डीजल सेट- बिजली) से होती है। जबकि 18 फीसदी कुओं और 26 फीसदी कैनाल (नहर) से होती है। वहीं 4 फीसदी टैंक और 7 फीसदी में अन्य स्त्रोत आते हैं।
भारत में पिछले वर्षों में सिंचित क्षेत्र जरुर बढ़ा है, लेकिन इस अनुपात में भूगर्भ जल निर्भरता भी बढ़ी है, जिसके लिए डीजल पंपिंग सेट या बिजली आवश्यक है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की एक 2019 में आई रिपोर्ट “इरीगेशन इन इंडिया- स्टेटस, चैलेंज, एंड ऑप्शन” में बताया गया है कि 1950-51 में कुएं और ट्यूबवेल से सिंचाई की भागीदारी कुल सिंचित क्षेत्र 29 फीसदी थी जो 2014-15 में बढ़कर 63 फीसदी हो गई है। जबकि इस दौरान जबकि इसी दौरान नहरों पर आधारित सिंचाई घटकर 40 फीसदी से 24 फीसदी बची है।
नहरों और बिजली की अनुपलब्धता का मतलब है डीजल का खर्च। उत्तर प्रदेश में मिर्जापुर जिले के मड़िहान तहसील के सुगापंख गांव के किसान रमाशंकर पांडे के पास 14 एकड़ से ज्यादा जमीन है। उनके पास ट्रैक्टर, पंपिंग सेट, बोरिंग जैसे साधन भी हैं इलाके में नहर भी है। अपने इलाके के वो अच्छे किसान भी हैं। लेकिन 92 रुपए (उनके इलाके में रेट) लीटर लेकर खेती करना उन्हें फायदे का सौदा नहीं दिख रहा।
“जब हम खेती शुरू किए थे तो डीजल 3-5 रुपए लीटर था, लेकिन आज तो आसमान छू रहा है। पेट्रोल डीजल का भाव है। जबकि तब (साल याद नहीं 1988-90 के आस पास) बनिया धान एक रुपए 75 पैसे किलो में खरीदा था।”
रमाशंकर सरकार से डीजल के अनुपात में अनाज की एमएसपी भी बनाए रखने की मांग करते हैं।
पहाड़ी क्षेत्र बाहुल इलाके मिर्जापुर के जिला कृषि अधिकारी पवन कुमार ने गांव कनेक्शन को बताया कि जिले में पिछले साल 86256 हेक्टेयर में धान की खेती की गई थी, इस वर्ष कुल खेती करने का लक्ष्य 87116 हेक्टेयर धान की खेती होगी।”
उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में लगभग डेढ़ लाख हेक्टेयर में धान की खेती होती है। इसी जिले में खैराबाद ब्लॉक के बनेहटा गाँव के रहने वाले ने हरप्रीत सिंह के पास 21 एकड़ खेत में धान लगा है। हरप्रीत गांव कनेक्शन को बताते हैं, “पिछले साल हमने 64 रुपए में डीजल लिया था और इस साल कुछ दिन पहले 87 रुपए में लिया है। मेरी डीजल की खपत धान के सीजन में करीब 400 लीटर है, जबकि आधा से ज्यादा सिंचाई में बिजली से करता हूं। अगर पूरी तरह डीजल पर खेती करनी पड़े तो मेरी आधी जमीन बिक जाएगी।”
सीतापुर जिले के जिला कृषि उपनिदेशक अरविंद मोहन मिश्र ने बताते हैं, “जिले डेढ़ लाख हेक्टेयर में धान की खेती की जाती है। ऐसे में बारिश की वजह से किसानों को कुछ राहत मिली है। जुताई से खर्च ज्यादा किसानों पर न पड़े, इसलिए सरकार ने हर ब्लॉक में एक फार्म मशीनरी बैंक की स्थापना की है। जहां से किसान न्यूनतम रेट पर किराया देकर अपने खेत की ट्रैक्टर से जुताई करवा सकता है।”
उत्तर प्रदेश में औसतन 58-59 लाख हेक्टेयर में धान की खेती होती है। कृषि विभाग उत्तर प्रदेश के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2019-20 में प्रदेश में 59.41 लाख हेक्टेयर धान की खेती हुई थी और 171.36 लाख मीट्रिक टन का उत्पादन हुआ था। जबकि प्रति हेक्टेयर (2.50 एकड़) उत्पादकता 28.04 कुंटल थी।
डीजल, बीज, कीटनाशक-खरपतवार नाशक सब हुए महंगे
समस्या सिर्फ ये नहीं है कि सिर्फ डीजल के दाम बढ़े हैं। धान के बीज से लेकर कीटनाशक और खरपतवार नाशक भी महंगे हुए हैं। बाराबंकी के बेलहरा में शुक्ला ट्रेडर्स नाम से एग्री इनपुट की दुकान चलाने वाले ज्ञानेंद्र शुक्ला फोन पर बताते हैं, धान का बीज 15-20 फीसदी महंगा हुआ है। वो कहते हैं, ” सबसे ज्यादा महंगाई हर्बीसाइड (खरपतवार नाशक) में आई है वो प्रति लीटर 40-50 रुपए महंगे हुए हैं। धान का बीज भी महंगा हुआ है लेकिन बाद में कंपनी से कुछ रेट कम किए क्योंकि खपत नहीं हो रही ही थी।”
मुनाफा न होने से खेती से दूर हो रहे किसान?
बाराबंकी के एक और किसान जितेंद्र मौर्य ने इस बार धान की खेती का रकबा घटाया है। वो कहते हैं, “हर साल हम 10-12 किलो बीज लाते थे। इस बार हम 8 किलो लाए हैं। डीजल 90 रुपए लीटर है और धान बिक रहा 9-10 रुपए किलो। एक बीघे में (5 बीघे का एक एकड़) ज्यादा से ज्यादा धान 5 कुंटल होगा। तो भी 1000 में बेचकर 5000 रुपए ही मिलेंगे क्योंकि बिकना 10 रुपए में ही है। इतनी ही लागत आ आ आएगी। तो एक दिन ऐसा होगा की खेती छोड़कर भागो।”
सीतापुर के बुजुर्ग सियाराम यादव, जितेंद्र की तरह ही खेती के लिए बढ़ती लागत को मुसीबत मानते हैं। अहारा हबीबपुर गांव के किसान सियाराम कहते हैं, ” डीजल के दाम रोज बढ़ रहे हैं। पेस्टीसाइड की कीमत बढ़ गई है। उपज तो बढ़ती नहीं है। इस हिसाब से किसान को क्या मिलेगा। किसानों को रिटर्न नहीं आता इसलिए वो खेती छोड़कर शहरों की तरफ भाग रहे हैं।”
रिपोर्टिंग सहयोग- यूपी के मिर्जापुर से बृजेंद्र दुबे, बाराबंकी से वीरेंद्र सिंह, सीतापुर से मोहित शुक्ला और एमपी के सतना से सचिन तुलसा त्रिपाठी