सांप काटने से होने वाली मौतों में 94% ग्रामीण भारत से, फिर भी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर एंटीवेनम और उपचार सुविधाओं की कमी

हर साल, भारत में 58,000 लोग सांप काटने से अपनी जान गंवा देते हैं, जिनमें से सबसे अधिक मौतें उत्तर प्रदेश में होती हैं। भले ही प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर एंटीस्नेक वेनम को 'आवश्यक' दवाओं में शामिल किया गया हो, लेकिन फिर भी केंद्रों पर एंटीवेनम की कमी का सामना करना पड़ता है।
#snake bite

साल 2020, अगस्त महीने की तीन तारीख को 23 वर्षीय सुनीता की सांप काटने के बाद बड़ी मुश्किल से जान बच पायी थी, जो उनके लिए किसी चमत्कार से कम नहीं है। छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले के कटगो गांव की सुनीता ने अपने घर के बाहर कदम रखा कि उन्हें सांप ने डंस लिया, कुछ ही देर में उनका शरीर पीला पड़ गया, उल्टी हुई और बेहोश हो गईं।

और इसके बाद असली परीक्षा शुरू हुई। बेहोशी की हालत में, सुनीता के घर वाले उन्हें 15 किमी दूर एक स्वास्थ्य केंद्र पर ले गए, जहां उन्हें इंजेक्शन दिया गया और फिर राजधानी रायपुर के एक अस्पताल के लिए रेफर कर दिया गया, जो वहां से लगभग 120 किमी दूर है। यह जिंदगी और मौत की लड़ाई थी, सुनीता का परिवार वाले उनकी जान बचाने के लिए दर-दर भटक रहे थे।

“हम उसे स्कूटर [दोपहिया] पर स्वास्थ्य केंद्र ले गए, उसे इंजेक्शन दिया गया था, लेकिन वह अभी भी बेहोश ही थी। केंद्र से उसे रायपुर के मेखहारा अस्पताल के लिए रेफर कर दिया गया, क्योंकि वह आईसीयू सुविधा वाला सबसे करीबी अस्पताल [120 किलोमीटर दूर] था, “सुनीता की 28 वर्षीय बहन शिमला मेरावी ने गाँव कनेक्शन से उस दिन का दर्दनाक अनुभव साझा किया। शिमला ने आगे कहा, “मैंने सोचा था कि हम सुनीता को खो देंगे, लेकिन अस्पताल में इलाज के बाद वह बच गई।”

23 वर्षीय सुनीता के परिवार ने उन्हें सांप के काटने से होने वाली मौतों के आंकड़ों का हिस्सा बनने से तो बचा लिया, जिसके अनुसार एक साल में सांप काटने से 58,000 मौतें होती हैं, जोकि दुनिया भर के सालाना सांप काटने से होने वाली मौतों का लगभग आधा हैं।

सुनीता कहती हैं कि यह एक चमत्कार है कि वह इससे बच गईं। फोटो: अरेंजमेंट

जुलाई, 2020 के एक अध्ययन ‘ट्रेंड इन स्नेकबाइट मोर्टलिटी इन इंडिया फ्रॉम 2000 टू 2019 इन अ नेशनली रिप्रजेंटेटिव मोर्टलिटी स्टडी‘ से पता चलता है कि भारत में हर साल सांप काटने के लगभग 2.8 मिलियन मामले सामने आते हैं और पिछले दो दशकों में देश में सांप काटने से 1.2 मिलियन से अधिक लोगों की मौत हुई है। देश में सांप काटने से होने वाली मौतों में 94 प्रतिशत तक ग्रामीण भारत में होती हैं।

जुलाई 2020 की स्टडी से यह भी पता चलता है कि सांप काटने से होने वाली मौतों में से 70% आठ राज्यों- बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश (जिसमें तेलंगाना, हाल ही में परिभाषित राज्य शामिल है), राजस्थान और गुजरात में हुई। उत्तर प्रदेश एक साल में 8,700 मौतों के साथ सबसे ऊपर है, उसके बाद आंध्र प्रदेश (5,200) और बिहार (4,500) राज्य आते हैं।

आधी से ज्यादा सांप काटने से होने वाली मौतें दक्षिण-पश्चिम मानसून के मौसम में जून से सितम्बर के महीने में होती हैं, जब सांप और इंसान एक दूसरे के सामने घरों और बाहर ज्यादा आते हैं।

मानचित्र: 2004-13 में भारत में सर्पदंश से मृत्यु दर जोखिम का वितरण

Source: elifesciences.org

“विडंबना यह है कि भारत एंटीवेनम के प्रमुख उत्पादकों में से एक है, लेकिन यहां के ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों को एंटीवेनम की भारी कमी का सामना करना पड़ता है, जो सांप काटने से होने वाली मौतों का एक प्रमुख कारण है, “केरल के जॉस लुइस, जोकि वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के साथ काम करते हैं, ने गांव कनेक्शन को बताया। “सांप काटना हमारे देश में उपेक्षित सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट है, “उन्होंने आगे कहा।

इलाज में देरी

“ज्यादातर सांप काटने से होने वाली मौतें एंटीवेनम इंजेक्शन मिलने में देरी के कारण ही होती हैं। कभी-कभी लोग मरीज के लिए तंत्र और जादू टोना का सहारा लेते हैं, “लखनऊ के टर्टल सर्वाइवल एलायंस के वैज्ञानिक शैलेंद्र सिंह, जो विलुप्त होने के उच्च जोखिम वाली प्रजातियों पर काम करते हैं, ने गांव कनेक्शन को बताया।

जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार कैसे ग्रामीण स्तर पर ज्यादातर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) सांप काटने के मामलों से निपटने के लिए अपर्याप्त हैं। “इलाज के लिए एंटीवेनम जरूरी है, लेकिन एंटीवेनम की उपलब्धता हमेशा एक मुद्दा रहा है, खासकर ग्रामीण क्षेत्र के अस्पतालों, पीएचसी और सीएचसी, जहां पर इसकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है। हमेशा कमी बनी रहती है, “मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य अधिकारों पर काम करने वाली एक सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता अमूल्य निधि ने गांव कनेक्शन को बताया।

“दूसरा पहलू आईसीयूकी कमी है। सर्पदंश सरकार के लिए प्राथमिकता ही नहीं है, क्योंकि यह एक ग्रामीण-आदिवासी केंद्रित बीमारी है, न कि शहरी मुद्दा, “अमूल्य निधि ने आगे कहा। वह जन स्वास्थ्य अभियान, नागरिक समाज संगठनों के एक राष्ट्रीय नेटवर्क और स्वास्थ्य अधिकारों के लिए काम करने वाले लोगों के आंदोलनों के एक कार्यकारी सदस्य भी हैं।

एंटीवेनम तक पहुंच की कमी और उपचार में देरी को जुलाई 2020 के अध्ययन में भी बताया गया था, जिसमें कहा गया था कि सांपट काटने के जहर (काटने से जहर के विषाक्त पदार्थों के संपर्क में) से होने वाली अधिकांश मौतें और गंभीर परिणाम सुरक्षित और प्रभावी एंटीवेनम तक समय पर पहुंच से बचा जा सकता है।

सुनीता का ही मामले को देखें, जिन्हें 120 किलोमीटर दूर बेहोशी की हालत में ले जाना पड़ा था। “स्वास्थ्य केंद्र से, हमने एक कार बुक की और अस्पताल पहुंचे जो 120 किलोमीटर दूर था। सुनीता को अगली सुबह ही होश आया, “शिमला मेरावी, उनकी बहन ने कहा। परिवार को अस्पताल पहुंचने के लिए 1,500 रुपये खर्च करने पड़े, इतनी राशि जो बहुत से गरीब परिवार के लिए खर्च करना बहुत मुश्किल होता है।

“हमने उम्मीद खो दी थी कि हम उसे बचा पाएंगे। हम किस्मत वाले थे लेकिन यहां सभी आदिवासी इतने भाग्यशाली नहीं हैं, “शिमला ने कहा। उनके अनुसार, गांवों में सर्पदंश के मामले आम थे। “पिछले साल, हमारे गांव से ऐसे पचास मामले सामने आए, जिनमें से पांच लोगों की मौत भी हो गई। उनका समय पर इलाज नहीं हो सका। ऐसे गांव हैं जहां आज भी बिजली, पानी और सड़क नहीं है, “उन्होंने बताया।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) भी यह स्वीकार करता है कि भारत में हर साल कई लोग सांप काटने से मर जाते हैं, जब वे दूर स्वास्थ्य सुविधा के लिए जाते हैं।

पीड़ित को स्वास्थ्य सुविधा तक पहुंचने के लिए खुद दौड़ना या ड्राइव नहीं करना चाहिए। मोटरबाइक एम्बुलेंस ग्रामीण भारत के लिए एक व्यवहार्य विकल्प हो सकता है, स्वास्थ्य मंत्रालय का सुझाव है।

“ज्यादातर पीएचसी और सीएचसी में एंटीवेनम नहीं होते हैं। कभी-कभी लोगों को जिला अस्पतालों में ले जाना पड़ता है जो आमतौर पर गांवों से बीस-तीस किलोमीटर दूर होते हैं, “पटना स्थित आशा कार्यकर्ता संघ, बिहार की अध्यक्ष शशि यादव ने गांव कनेक्शन को बताया। उन्होंने कहा, “ग्रामीणों को इलाज के लिए निजी स्वास्थ्य केंद्रों के पास जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है।”

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में एक पीएचसी में चिकित्सा अधिकारी अनुज कुमार चौधरी ने पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी को स्वीकार किया। “सांप काटने के मामले यहां आते हैं लेकिन हम उन्हें सीएचसी [सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र] रेफर करते हैं। उन्हें एंटी स्नेक वेनम और टिटनेस के इंजेक्शन दिए जाते हैं। एंटीवेनम केवल सीएचसी स्तर पर उपलब्ध है। उपचार की गंभीरता और समय मायने रखता है, “उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया।

एंटीवेनम इंजेक्शन की कमी

भारत में सांपों की लगभग 300 प्रजातियां हैं। इनमें से केवल 15 जहरीले हैं। लेकिन इन 15 प्रजातियों में से केवल चार – कोबरा, रसेल वाइपर, क्रेट और सॉ स्केल्ड वाइपर – 98 प्रतिशत मौतों का कारण हैं।

जहरीले सांप काटने से लकवा हो सकता है जो सांस लेने से रोक सकता है, रक्तस्राव विकार जो घातक रक्तस्राव, अपरिवर्तनीय किडनी फेल और ऊतक क्षति का कारण बन सकता है जो स्थायी विकलांगता और अंग विच्छेदन का कारण बन सकता है।

लुईस बताते हैं कि विष के साथ घोड़ों को इंजेक्शन लगाने से एंटीवेनम का उत्पादन होता है ताकि वे विषाक्त पदार्थों के खिलाफ एंटीबॉडी उत्पन्न कर सकें। उनके अनुसार, जहर केवल तमिलनाडु से इकट्ठा किया जाता है और पूरे भारत में इस्तेमाल होने वाले एंटीवेनम के निर्माण के लिए उपयोग किया जाता है।

एंटीस्नेक वेनम को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के लिए ‘आवश्यक’ दवा के रूप में शामिल किया गया है। पीएचसी के लिए भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानक (आईपीएचएस) 2012 के दिशानिर्देशों के अनुसार, 24 घंटे की आपातकालीन सेवाओं में चोटों और दुर्घटना का उचित प्रबंधन, प्राथमिक उपचार, घावों की सिलाई, रेफरल से पहले रोगी की स्थिति का स्थिरीकरण, कुत्ते के काटने / सांप के काटने / बिच्छू के काटने के मामले और अन्य आपातकालीन स्थितियां शामिल हैं।

इन दिशानिर्देशों का हवाला देते हुए, अमूल्य निधि ने कहा, “आईपीएचएस के अनुसार, पीएचसी सहित सभी ग्रामीण सरकारी अस्पतालों में एंटीवेनम होना चाहिए। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों [जैसे बिहार] में, सर्पदंश के मामले बढ़ जाते हैं। इनमें से ज्यादातर मामले रात के समय होते हैं। समय पर एंटीवेनम देना बहुत जरूरी हो जाता है। लेकिन इसकी व्यापकता को जानने के बावजूद इस मुद्दे की उपेक्षा की जाती है।”

“ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी संख्या में अस्पतालों में एंटीवेनम की कमी है। लेकिन अस्पताल की उदासीनता के कारण, कई ग्रामीण निजी स्वास्थ्य केंद्रों में जाने को मजबूर हैं, जहां इन एंटीवेनम की कीमत पांच सौ रुपये से अधिक है, “भारतीय वन्यजीव ट्रस्ट के जॉस लुइस ने कहा।

“तालुका स्तर के प्रत्येक अस्पताल में एंटीवेनम होना चाहिए। लेकिन कई बार, हम देखते हैं कि या तो ये शीशियां उपलब्ध नहीं हैं या पुरानी हैं, जिसका अर्थ है कि उन्होंने अपनी क्षमता खो दी है, “लुईस ने बताया।

महाराष्ट्र के एक डॉक्टर, एसपी कलंत्री के एक ट्विटर थ्रेड ने बताया कि गरीब ग्रामीण लोगों के लिए अक्सर एंटीवेनम अनुपलब्ध या अप्रभावी होते हैं, जिन्हें काटने की सबसे अधिक संभावना होती है। उन्होंने ट्वीट किया, “ज्यादातर पीएचसी या तो पर्याप्त मात्रा में एंटीवेनम का स्टॉक नहीं रखते हैं या पूरी खुराक का केवल दसवां हिस्सा ही देते हैं।”

झोलाछाप डॉक्टरों और स्थानीय जड़ी बूटियों पर निर्भरता

जाहिर है, पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच न होने के कारण, ग्रामीण अपने पास के झोलाछाप या पारंपरिक हर्बल चिकित्सकों के पास सभी तरह के सर्पदंश के इलाज के लिए जाते हैं। मॉनसून के मौसम में सबसे ज्यादा सर्पदंश के मामले में झोलाछाप तेजी से कमाई करते हैं।

“इन दिनों मेरे पास लंच करने का भी समय नहीं है। मैं अगले तीन से चार महीनों तक व्यस्त रहूंगा, “उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के थलिसैन गांव के एक पारंपरिक हर्बल चिकित्सक शोभन सिंह बिष्ट ने गांव कनेक्शन को बताया। “कई गांवों के लोग मेरे पास आते हैं। वे दिन और रात के किसी भी समय आते हैं। मैं उनका इलाज जड़ी बूटी से करता हूं। और एक या दो दिनों में, वे ठीक हो जाते हैं, “उन्होंने आत्मविश्वास से कहा।

बिष्ट के अनुसार, वह पिछले 30 वर्षों से सर्पदंश से पीड़ित लोगों का इलाज कर रहे हैं, सर्पदंश रोगियों के इलाज के लिए पहाड़ी गांवों के पास कोई अस्पताल नहीं है। “लोग हर्बल दवाओं के साथ मुझ पर भरोसा करते हैं। अगर उन्हें तीन घंटे तक इलाज नहीं मिला, तो वे मर जाते हैं, “उन्होंने कहा कि वह प्रति मरीज 50 रुपये से 100 रुपये कमाते हैं।

हालांकि, डब्ल्यूएचओ के अनुसार, सर्पदंश के मामलों में पारंपरिक दवाओं और अन्य उपचार जैसे घाव का चीरा या छांटना, चूषण, या ‘काले पत्थरों’ से इलाज से बचना चाहिए।

भारत में रसेल वाइपर के काटने के बाद लड़की में “टूटी हुई गर्दन”।

जागरूकता बढ़ाना और सांपों को बचाना

भारत में दुनिया में सबसे ज्यादा सर्पदंश से होने वाली मौतों की रिपोर्ट के बावजूद, इसकी ग्रामीण आबादी में सर्पदंश के लक्षणों और उपचार के बारे में जागरूकता की कमी है।

“ये सर्पदंश गांवों में आम हैं। घर से थोड़ी दूर शौचालय बनाए जाते हैं और अक्सर लोगों का सामना सांपों से होता है, “छत्तीसगढ़ के रायपुर में सांप बचाव अभियान से जुड़ी एक सामाजिक कार्यकर्ता मंजीत कौर ने गांव कनेक्शन को बताया।

“कभी-कभी लोग यह भी नहीं समझ पाते हैं कि उन्हें सांप ने काट लिया है। काटे हुए हिस्से के काले होने पर ही वे इसे समझ पाते हैं। अगर समय पर सर्पदंश की सूचना दी जाती है, तो लोगों को बचाया जा सकता है, “कौर ने आगे कहा।

कौर के 50 वॉलंटियर्स के अनौपचारिक नेटवर्क ‘वी द पीपल’ की मदद से, वह 1988 से सांप संरक्षण और बचाव कार्य कर रहीं हैं।

“सर्पदंश के मामले आम तौर पर बरसात के मौसम में बढ़ जाते हैं, क्योंकि जहां सांप छिपते हैं, वहां पानी भर जाता है, उदाहरण के लिए खेत और चूहे के बिल। मानसून के दौरान मेंढक जैसे भोजन भी आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। “मानसून के दौरान, हमें दस गुना अधिक बचाव कॉल आते हैं, “उन्होंने कहा।

मंजीत के अनुसार ग्राम पंचायत स्तर पर जागरूकता की जरूरत है। उन्होंने कहा, “रात में टॉर्च लेने जैसे साधारण उपायों से भी सांप काटने को रोका जा सकता है।”

विशेषज्ञों का सुझाव है कि रबर के जूते और दस्ताने पहनकर खेतों में जाने से सर्पदंश को रोकने में मदद मिल सकती है। “वे एक ग्रामीण के लिए थोड़े महंगे [लगभग 500 रुपए प्रति जोड़ी] हैं, लेकिन यह वास्तव में मददगार हो सकता है। अक्सर खुले में पड़े अनाज चूहों को आकर्षित करते हैं जिससे सांप निकल आते हैं। स्वच्छता सुनिश्चित करना, उचित प्रकाश व्यवस्था, अंधेरे कोनों से बचना, टॉर्च का उपयोग करते समय ऐसे मामलों से बचा जा सकता है, “लुइस ने सुझाव दिया।

सर्पेंट मोबाइल ऐप

जब ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्र सांप काटने के मामलों से जूझ रहे हैं, एक मोबाइल एप्लिकेशन – सर्पेंट – ग्रामीण भारतीयों के बचाव में आ रहा है। इसे 2016 में लॉन्च किया गया, इस ऐप में भारत के सभी सांपों के लिए एक गाइड (वर्तमान में केवल अंग्रेजी भाषा में) और सर्पदंश का इलाज करने वाले निकटतम अस्पताल को खोज सकते हैं।

ऐप लोगों को निकटतम सांप विशेषज्ञ से जोड़ सकता है जो सांप के काटने की आपात स्थिति में उनकी मदद कर सकते हैं। यह विशेषज्ञों को तस्वीरें भेजकर जहरीले सांपों की पहचान करने में भी मदद करता है। यह वास्तविक समय की रिपोर्ट भी देता है कि कितने बचाव दल फील्ड में हैं, बचाए गए सांपों की संख्या और अन्य महत्वपूर्ण डेटा।

“आजकल गांवों में बड़ी संख्या में परिवारों के पास स्मार्टफोन है। वे इसे चलाना जानते हैं। इसे एक लाभ के रूप में लेते हुए, हमने एक ऐप विकसित किया है जो उन्हें सांप काटने के मामलों का इलाज करने वाले नजदीकी अस्पताल को खोजने में मदद कर सकता है, “भारत के वन्यजीव ट्रस्ट के लुइस, जिन्होंने ऐप लॉन्च करने में मदद की, ने गांव कनेक्शन को बताया।

उन्होंने कहा कि “स्नेक ऐप्स सांप आपात स्थिति के लिए ओला और उबर की तरह हैं”

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