छत्तीसगढ़: अधर में अटकी चावल से एथेनॉल योजना

छत्तीसगढ़ में चावल से एथेनॉल बनाये जाने की योजना पर पिछले दो सालों से भी अधिक समय से काम चल रहा है। उम्मीद जताई जा रही थी कि इस साल जनवरी से राज्य में एथेनॉल का उत्पादन शुरू हो जाएगा, लेकिन केंद्र और राज्य के बीच, एथेनॉल उत्पादन का मामला अटक कर रह गया है।
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रायपुर (छत्तीसगढ़)। चावल उत्पादन में शीर्ष राज्यों में शामिल छत्तीसगढ़ में चावल से एथेनॉल बनाने की योजना फिलहाल अधर में लटकती नजर आ रही है। चावल से एथेनॉल बनाने के लिए केंद्र सरकार की अनुमति मिलने के बाद प्रदेश में एथेनॉल इकाइयों के जल्द स्थापित होने की उम्मीद थी, लेकिन अभी तक एक भी इकाई स्थापित नहीं हो पाई है।

केंद्र सरकार, फूड कापोर्रेशन ऑफ इंडिया यानी एफसीआई से चावल खरीदकर एथेनॉल बनाने की बात कह रही है, जबकि राज्य सरकार अपने सरप्लस चावल से एथेनॉल बनाना चाहती है। केंद्र और राज्य की इस तनातनी के कारण चावल से एथेनॉल की योजना जमीन पर नहीं उतर पा रही है।

राज्य में नवंबर 2018 में कांग्रेस पार्टी की सरकार आने के लगभग छह महीने बाद ही धान से एथेनॉल बनाने की संभावना पर काम शुरू कर दिया गया था। 13 अगस्त 2019 को मंत्रिमंडल ने धान, गन्ना, पुआल, मक्का, ज्वार, बाजरा आदि से बॉयो-एथेनाल उत्पादन के लिए संयंत्र की स्थापना को प्रोत्साहित करने का फैसला लिया। अनुमान यह था कि अगले छह महीनों में राज्य में एथेनॉल उत्पादन संयंत्र स्थापित हो जाएंगे। लेकिन मामला फाइलों में ही उलझा रहा, हालत ये हुई कि राज्य की औद्योगिक नीति में छह महीने के भीतर एथेनॉल उत्पादन संयंत्र लगाये जाने पर इंसेंटिव दिए जाने संबंधी फैसले को 18 महीने तक बढ़ाना पड़ा।

पिछले साल सितंबर से दिसंबर के बीच सात निवेशकों के साथ राज्य सरकार ने एथेनॉल उत्पादन संयंत्र के लिए 1162 करोड़ रुपए का एमओयू भी किया, छत्तीसगढ़ सरकार ने तकरीबन 6 लाख मीट्रिक टन चावल से एथेनॉल उत्पादन का लक्ष्य रखा था। इन संयंत्रों से आरंभिक तौर पर प्रतिदिन 890 किलोलीटर एथेनॉल उत्पादन की योजना बनाई गई. लेकिन कागजों से इतर धरातल पर हाल ये है कि अभी तक संयंत्रों की स्थापना के लिए भूमि चयन की प्रक्रिया भी पूरी नहीं हो पाई है।

दिसंबर 2020 में भूपेश सरकार ने पीपीपी मॉडल पर 4 एथेनॉल संयंत्र लगाने के लिए किया था MOU.. फोटो अरेंजमेंट

राज्य में यह पहला अवसर नहीं है, जब बायोफ्यूल बनाने की योजना पर काम हो रहा हो। रमन सिंह की भाजपा सरकार ने 2006-07 में रतनजोत यानी जैट्रोफा से बायोफ्यूल बनाने की योजना पर काम शुरू किया था। राज्य के एक बड़े हिस्से में रतनजोत के पौधे लगाए गये थे और तब राज्य के मुख्यमंत्री ने नारा दिया था- “डीजल नहीं अब खाड़ी से, डीजल मिलेगा बाड़ी से।” सरकार का दावा था कि 2014 तक छत्तीसगढ़ डीजल के मामले में पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो जाएगा। मीडिया में खबरे छपती रहीं कि सरकारी गाड़ियां इसी रतनजोत के तेल से चल रही हैं। बताया गया कि रेलवे और उड्डयन विभाग में रतनजोत के तेल का उपयोग किया जा रहा है लेकिन 2014 आते-आते इस योजना का दम निकल गया। अरबों रुपये खर्च करने के बाद भी अच्छी गुणवत्ता के बीज की अनुपलब्धता के कारण योजना बंद हो गई। ऐसे में जब चावल से एथेनॉल बनाने की बात शुरू हुई तो भी संशय बने हुए थे और संशय के बादल अब भी छाए हुए हैं।

छत्तीसगढ़ की मुख्य फसल धान है। यहां साल में दो बार धान की खेती की जाती है। फोटो- दिवेंद्र सिंह 

छत्तीसगढ़ में होता है धान का बंपर उत्पादन

असल में 2500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से समर्थन मूल्य पर धान खरीदी का फैसला राज्य सरकार के लिए गले की हड्डी बन गया है। दरअसल छत्तीसगढ़ देश धान की सबसे ज्यादा कीमत देने वाला राज्य है। देश में धान का न्यूनतम मूल्य पिछले साल 1868 रुपए कुंटल था लेकिन छत्तीसगढ़ में भूपेश सरकार सत्ता में आने के बाद से ही 2500 रुपए का रेट दे रही है।

धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में धान का बंपर उत्पादन होता है। कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में सालाना करीब 1 करोड़ 27 लाख मीट्रिक टन धान का उत्पादन होता है। इनमें से वर्ष 2020-21 में राज्य सरकार ने रिकॉर्ड 92 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदी की है। वर्ष 2018-19 में 80.38 व 2019-20 में 83.94 लाख मीट्रिक धान की खरीदी की गई थी। लेकिन केंद्र सरकार द्वारा चावल खरीदी की मात्रा कम किये जाने से खरीदे गये धान का उपयोग एक बड़ी समस्या है। अरबों रुपये के धान पिछले कई-कई सालों से खरीद कर रखे हुए हैं और खुले में रखे गये धान, सड़ रहे हैं।

छत्तीसगढ़ में खाद्य विभाग के विशेष सचिव मनोज सोनी के अनुसार, 2020-21 में खरीदे गये 92 लाख मीट्रिक टन धान में से 76.44 लाख मीट्रिक टन धान मीलिंग (चावल बनने के लिए) के लिए दिया जा चुका है लेकिन 15.56 लाख मीट्रिक टन धान अभी भी गोदामों में पड़ा हुआ है। इसके अलावा 2500 रुपये प्रति क्विंटल के समर्थन मूल्य पर खरीदे गये 9.65 लाख मीट्रिक टन धान को महज 1200 रुपए से 1400 रुपए प्रति क्विंटल में नीलाम करना पड़ा है।”15.56 लाख मीट्रिक टन धान अभी भी गोदामों में पड़ा हुआ है

राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक 15.56 लाख मीट्रिक टन धान अभी भी राज्य के गोदामों में पड़ा है। फोटो- सागर फरिकार

जाहिर है, सरकार इस तरह के घाटे से निपटने के लिए चावल से एथेनॉल निर्माण को एक महत्वपूर्ण कदम मान कर चल रही थी।

मनोज सोनी कहते हैं- ‘हमारे पास सरप्लस धान होता है। हर साल भारत सरकार हमें जितना चावल उपार्जन का लक्ष्य देती है, उससे अधिक धान हमारे पास होता है। हमने हमेशा भारत सरकार से कहा कि अगर आप हमारे सरप्लस धान का पूरा चावल नहीं लेते तो सरप्लस चावल का एथेनॉल बनाने की अनुमति दे दें, लेकिन केंद्र सरकार हमें अनुमति नहीं दे रही है। केंद्र सरकार एफसीआई से चावल खरीदकर एथेनॉल बनाने बोल रही है।’

छत्तीसगढ़ बायोफ्यूल विकास प्राधिकरण के परियोजना अधिकारी सुमीत सरकार भी प्रतीक्षा में हैं कि जल्दी से जल्दी मामला निपटे और राज्य में चावल से एथेनॉल बनाने का काम शुरू हो। सुमीत सरकार कहते हैं- ‘छत्तीसगढ़ सरकार धान से एथेनॉल बनाने को बढ़ावा दे रही है। इसके लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल तीन बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व केंद्र सरकार को चिट्ठी लिख चुके हैं। केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री और खाद्य मंत्री से भी उन्होंने पिछले दिनों मुलाकात की है। मुख्यमंत्री की पहल के बाद केंद्र सरकार कह रहा है कि एफसीआई के पास जो अतिशेष चावल है, उससे एथेनॉल बनाना प्रारंभ करें। परंतु राज्य सरकार प्रयास कर रही है कि एफसीआई के अलावा राज्य पूल के चावल से एथेनाल बनाने की अनुमति दी जाए।’

देश के कई राज्यों हर साल हजारों कुंटल खाद्यान बारिश आदि से हो जाता है बर्बाद। फोटो अरेंजमेंट

चावल से एथनॉल प्रोजेक्ट: विपक्ष को भरोसा नहीं

राज्य की विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी चावल से एथेनॉल बनाये जाने की योजना को लेकर शुरू से संदेह व्यक्त कर रही है। उसका दावा है कि यह अंतत: घाटे का सौदा साबित होगा। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने गांव कनेक्शन से बात करते हुए कहा, ” चावल से एथेनॉल बनाना पेट्रोल के समकक्ष ही पड़ेगा। ऐसे में इसके कोई सुखद परिणाम आने की कोई संभावना नहीं है।”

कौशिक ने आगे कहा – ‘एथेनॉल सड़े-गले धान या चावल से बनाना समझ आता है, लेकिन 20 से 25 रुपए किलो वाले चावल से एथेनॉल बनाना, फायदे का सौदा हो ही नहीं सकता। यह प्रोजोक्ट सर्वाइव नहीं कर पाएगा।’

विधानसभा में इस बात को लेकर भी बहस हो चुकी है कि राज्य में एथेनॉल तो चावल से बनेगा लेकिन जिन कंपनियों से राज्य सरकार ने एमओयू किया है, उन्हें धान की आपूर्ति की बात कही गई है। ऐसी स्थिति में धान खरीद कर उसकी मिलिंग करवाना और फिर एथेनॉल बनाना, निवेशकों को भारी पड़ सकता है।

हालांकि राज्य के कृषि मंत्री व सरकार के प्रवक्ता रविंद्र चौबे चावल से एथेनॉल योजना को किसान हितैषी मानते हैं. “उन्होंने गांव कनेक्शन से कहा कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पहल पर राज्य में एथेनॉल निर्माण इकाई की स्थापना किसानों के हित को ध्यान में रखते हुए की जा रही है, राज्य में धान का उत्पादन, खरीदी व निष्पादन की प्रक्रिया सतत रूप से चल रही है। ऐसे में एथेनॉल इकाई की स्थापना से राज्य की आर्थिक व्यवस्था को विशेष गति मिलेगी।

उन्होंने आगे कहा ‘एथेनॉल प्रोजेक्ट पर तेजी के काम चल रहा है। केंद्र सरकार से इस दिशा में लगातार बातचीत चल रही है। केंद्र सरकार ने एथेनॉल प्रोजेक्ट के लिए एनवॉयरमेंट क्लियरेंस में छूट प्रदान की है। इससे संयत्र स्थापित होने के काम में और तेजी जाएगी। केंद्र ने गन्ना और मक्का से एथेनॉल बनाने को पहले ही मंजूरी दे दी है।’

अपने घोषणा पत्र में किसानों से किए गए वादे के मुताबिक भूपेश सरकार सत्ता में आने के बाद 2500 रुपए प्रति कुंटल प्रति धान की खरीदी कर रही है। फोटो- सागर फरिकार

खाद्य सुरक्षा का सवाल

राज्य के जाने-माने कृषि वैज्ञानिक डॉ. संकेत ठाकुर चावल से एथेनॉल बनाने की योजना को अच्छा मानते हैं, परंतु इसकी सफलता पर उन्हें संदेह है। संकेत ठाकुर कहते हैं कि जब भी चावल से एथेनॉल की बात आती है, तब यही कहा जाता है कि चावल तो खाने के काम आता है। इससे एथेनॉल नहीं बना सकते। पर हमारे यहां धान की बंपर पैदावार होती है। सरकार जरूरत से अधिक धान खरीदती है। ऐसी स्थिति में हमें चावल से एथेनॉल बनाने का काम क्यों नहीं करना चाहिए? चावल से एथेनॉल बनाने का प्रोजेक्ट पिछली सरकार को भी दिया गया था, लेकिन इस पर काम नहीं हो पाया। पिछली सरकार में जैट्रोफा से बायोफ्यूल निकालने का काम शुरू किया था, लेकिन योजना फेल हो गई।

डॉ. संकेत ठाकुर कहते हैं- ‘छत्तीसगढ़ में पारंपरिक रूप से एथेनॉल बनता है। आदिवासी क्षेत्रों में राइस बीयर का प्रचलन है। रही बात राज्य सरकार की योजना की तो तीस रुपए किलो के दो किलो चावल से एक लीटर एथेनॉल बनाया जा सकता है। पेट्रोल की कीमत इस समय 100 रुपए से ऊपर है। ऐसे में एथेनॉल पेट्रोल से सस्ता होगा लेकिन मूल बात ये है कि इसके क्रियान्वयन को लेकर सरकार की दशा-दिशा क्या है।’

हालांकि खाद्य सुरक्षा से जुड़े जन संगठन चावल से एथेनॉल बनाये जाने के पक्ष में नहीं हैं। जन स्वाथ्य अभियान से जुड़ी खाद्य विशेषज्ञ सुलक्षणा नंदी कहती हैं कि सरकार की इस योजना का असर खाद्य सुरक्षा पर पड़ेगा। उन्होंने कहा, “छत्तीसगढ़ में कुपोषण पहले ही है। ऊपर से कोरोना ने लोगों के सामने आर्थिक दिक्कतें पैदा कर दी हैं। इसलिए सरकार को पहले लोगों के स्वास्थ्य के बारे में सोचना चाहिए। सरकार पीडीएस के तहत परिवार को प्रति व्यक्ति 7 किलो के हिसाब से राशन देती हैं। इसे बढ़ा 15-20 किलो किया जा सकता है। अगर, चावल अतिशेष है तो उन राज्यों को दिया जा सकता है, जिन राज्यों में धान का उत्पादन कम होता है।”

इन बहसों के बीच फिलहाल राज्य सरकार की तरफ से कागजी कार्रवाइयां जारी हैं लेकिन योजना की अड़चने और इसकी रफ़्तार को देखते हुए तो यही लगता है कि अभी छत्तीसगढ़ में चावल से एथेनॉल के लिए कुछ साल और प्रतीक्षा करनी होगी।

ये भी पढ़ें- छत्तीसगढ़ को क्यों कहा जाता है धान का कटोरा ? #GaonYatra

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