ग्राउंड रिपोर्ट: घाघरा की बाढ़ से कई गांवों में कटान, जलस्तर घटने-बढ़ने से दहशत में ग्रामीण

यूपी के 24 जिलों के सैकड़ों बाढ़ की चपेट में हैं। गंगा-यमुना के साथ घाघरा, शारदा और राप्ती जैसी नदियों में सैलाब से 8 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हैं। घाघरा एल्गिन ब्रिज पर लाल निशान के ऊपर इस साल 60 दिन बही है तो बलिया में 51 दिन ऐसा हुआ जबकि पिछले साल 24 दिन ऐसा हुआ था।
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अखरी (सीतापुर, यूपी)। जहां तक नजर जाती है सिर्फ पानी मटमैला पानी नजर आता है। घाघरा नदी का बहाव इतनी तेज है कि दूर तक डराने वाली आवाज सुनाई देती है। लेकिन नदी के साथ जीते हुए बुजुर्ग शंकर को जैसे डर ही नहीं लगता। उनके गांव जाने वाली आधी सड़क नदी में कट चुकी है, कुछ हिस्से में ऊपर से पानी बह रहा है। नदी की कगार (आधे कट चुके हिस्से) पर बैठे शंकर ने अपनी लाठी पानी में सहारे के लिए लगा रखी है।

दादा, नदी के इतने नजदीक बैठे हैं आपको डर नहीं लगता है?

इस सवाल के जवाब में शंकर (65 वर्ष) जो कहते हैं वो बाढ़ प्रभावित इलाकों के लाखों लोगों की दर्दनाक कहानी है। “काहे का डर, नदी जब अपने पर आएगी सब काट ले जाएगी। करीब दो बीघा (0.5 एकड़) जमीन थी कट गई। अब घर बचा है देखो कितने दिन तक बचा रहे।”

मायूसी भरे शब्दों में अपनी बात खत्म करते हुए शंकर उठकर खड़े होते हैं और नदी की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं, “वो देखो वहां (करीब 500 मीटर आगे) खेत था, सब गया।”

यूपी के सीतापुर जिले के अखरी गांव में नदी का हाल बताते बुजुर्ग शंकर। फोटो- अरविंद शुक्ला

शंकर का गांव अखरी यूपी में सीतापुर जिला मुख्यालय से करीब 110 किलोमीटर दूर है। घाघरा और शारदा नदी में आई बाढ़ से जिले के कई दर्जन गांव में बाढ़ की चपेट में है। उत्तर प्रदेश में 75 में से 24 जिले बाढ़ का सामना कर रहे हैं। भारी मानसून की बारिश और पहाड़ों से आने वाले बरसाती पानी के चलते घाघरा, गंगा, यमुना, चंबल, केन, बेतवा, राप्ती, टोंस नदियों में उफान आया था, कई नदियों में जलस्तर अभी खतरे के निशान से ऊपर तो कुछ में हालात सुधर गए हैं। एक मोटे अनुमान के अनुसार प्रदेश के करीब 800,000 लोग प्रभावित हैं। सैकड़ों घर और हजारों एकड़ खेत में फसलों को नुकसान हुआ है।

“पिछले साल नदी गांव से 500 मीटर उत्तर दिशा में थी, 2021 में काटकर गांव (अखरी) से सटी हुई बह रही है। रोड के उत्तर दिशा में तीन मकान (शिव भगवान, राजेश) इस साल कट गए हैं। उधर आगे परमगौड़ा और कंचनापुर (जिला बाराबंकी) गांव थे, कई वर्षों से कटान हो रही थी इस बार इन गांवों का अस्तित्व खत्म हो गया।” बृजेश तिवारी (35 वर्ष) अपने गांव के हालात बताते हैं।

वो आगे कहते हैं, “अगर सही समय पर बंधेज (बंधा या स्टैंड) नहीं बनाए गए तो ये गांव भी नहीं बचेगा।” सरकार की तरफ से कटान रोकने के पिछले साल यहां न सिर्फ सिल्ट निकाली गई थी बल्कि बांस और सीमेंट की बोरियों से ठोकरें भी बनाई गई थीं। जिसमें कुछ बची हैं कुछ पानी में समा गईं।”

सीतापुर जिले के अंगरौरा गांव, पिछले कुछ वर्षों में ये गांव 80 फीसदी कट गया है। ग्रामीण बंधे, सड़क किनारे और आसपास के गांवों में रह रहे हैं। फोटो- अरविंद शुक्ला

नदी में समाते खेतों-मकानों को देख पलायन

अखरी गांव में नदी की तरफ बचे मकानों में पहला मकान अनिल तिवारी (50 वर्ष) का है। नदी उनके घर से महज 90 से 100 मीटर की दूरी है। उनके पास 10 बीघा (2 एकड़) खेती योग्य जमीन थी जो कुछ वर्ष पहले नदी में कट गई। अब सिर्फ मकान बचा है। लेकिन भरे पूरे परिवार में वो यहां रहने वाले अकेले हैं

“यहां कुछ बचा नहीं तो सब लोग लखऩऊ चले गए। लड़के वहां किराए पर कमरा लेकर रहते हैं और मजदूरी करते हैं। मैं यहां अकेले रहता हूं।” अनिल कहते हैं।

नदी उनके घर के बहुत करीब आ गई है। थोड़ा सा पानी जलस्तर बढ़ा तो घर में पानी भर सकता है। लेकिन वो घर छोड़ना नहीं चाहते।

 “डर लगता है लेकिन कहां कूद पड़े। जहां पैदा हुए वहीं मरेंगे। अपना घर माटी छोड़ने का मन किसे करता है। यहां बड़ी तकलीफें हैं। लेकिन कोई हल करने वाला नहीं। हमने सरकार से घर बनाने के लिए जमीन मांगी थी लेकिन वो भी नहीं मिली। हमारे आसपास के पांच गांव (परमगौड़ा, कंचनापुर (बाराबंकी) अखरी, शंकरपुरवा और बाबा की कुटी ये सब लोग बेहाल हैं।” वो कहते हैं।

सीतापुर की महमूदाबाद तहसील में ही अखरी से करीब 3-4 किलोमीटर दूर अंगरौरा गांव है। ये पूरा गांव लगभग कट चुका है। कुछ लोग यहां बंधे के किनारे और कुछ लोग पक्की सड़क के किनारे झोपड़ी बनाकर रहते हैं। जबकि गांव के कुछ लोग आसपास के गांवों में अपने खेतों में घर बनाकर रहने लगे हैं। लेकिन इन गांवों में भी बाढ़ का पानी आ गया है।

50 साल की गायत्री का घर पहले अंगरौरा में था लेकिन कटान में कटने के बाद वो पड़ोस के गांव हरपालपुरवा में रहती हैं। लेकिन इस बार वहां भी पानी आ गया तो वो कुछ जरुरी सामान लेकर बंधे के ऊपर रहने लगीं। वो बाढ़ से नहीं लेकिन इस बात से दुखी हैं कि उनका अनाज और भूसा घर में भीग गया।

14 अगस्त को जब पूरे देश आजादी के 75वें साल का जश्न मनाने की तैयारी कर रहा था। तो हरपालपुरवा के सूबेदार (35 वर्ष) अपना बचा खुचा सामान बचाने की जुगत में थे। पहले नाव पर करीब 1.5 किलोमीटर फिर सिर पर बड़ा सा गठरा बांधे वो सामान लेकर जा रहे थे।

“गांव में पानी आ गया है। दुआरे-मुहारे (घर-आंगन) पानी आ गया है। सब लोग अपना सामान निकाल रहे हैं।” 

पिछले साल गांव कनेक्शन ने अक्टूबर में इस इलाके से ग्राउंड रिपोर्ट की थी, कचनापुर और परमगौड़ा गांव के जो  कुछ घर बचे थे वो इस वर्ष कट गए

घाघरा में इस बार जून के महीने में ही बाढ़ आ गई थी। इसके बाद के बाकी दिन बाढ़ के साए में ही कट रहे हैं। घाघरा का पानी कभी थोड़ा घटता है तो कभी खतरे के निशान से ऊपर बहने लगता है।

सिंचाई विभाग में शारदा-घाघरा कैनाल खंड के अधिशासी अभियंता (सीतापुर) विशाल पोरवाल गांव कनेक्शन को बताते हैं, “सीतापुर में फिलहाल स्थिति सामान्य है। सिंचाई विभाग की सभी परियोजनाएं सुरक्षित हैं। रामपुर मथुरा ब्लॉक के अखरी-अंगगौरा में कटान रोकने के काम जारी हैं। पिछले साल कई जगहों पर सिल्ट निकालने का काम हुआ था। लहरपुर तहसील में भी सिल्ट निकाली गई थी। जहां भी कटान का डर होता है वहां हम लोग बांस और सीमेंट की खाली बोरियों में रेत भरकर स्टैंड बनाते हैं ताकि कटान रुके।”

विशाल पोरवाल आगे जोड़ते हैं, “गंगा-यमुना में कटान वैसी नहीं होती है। लेकिन घाघरा और शारदा की प्रवृत्ति रुख बदलने वाली है। पिछले 20-25 सालों में इन्होंने कई जगहों पर कई किलोमीटर का रुख बदला होगा। ये एक तरफ काटती जाती है दूसरी तरह रेत छोड़ती जाती हैं। सिंचाई विभाग कई तरह के प्रयोग करता है ताकि नदी का वेग (रफ्तार) को कम किया जा सके।”

घाघरा और शारदा दोनों नदियां नेपाल के रास्ते भारत में प्रवेश करती हैं।

बाढ़ में जिंदगी। अंगरौरा गांव में घाघरा का जलस्तर बढ़ने के बाद 14 अगस्त की स्थिति। फोटो- अरविंद शुक्ला

तिब्बत से निकलकर नेपाल के रास्ते भारत में घाघरा का प्रवेश

केंद्रीय जल आयोग के मुताबिक घाघरा की कुल लंबाई 1080 किलोमीटर है जिसमें से करीब 500 किलोमीटर जो भारत में बहती है। जबकि शारदा की कुल लंबाई 546.5 किलोमीटर है, जिसमें से 223 किलोमीटर हिस्सा नेपाल में है बाकी भारत में बहता है। शारदा सीतापुर और बहराइच के बॉर्डर पर चहलारी घाट में घाघरा में मिलती है। घाघरा आगे जाकर सरयू में मिलती है जो पूर्वांचल में आगे चलकर बलिया और बिहार के छपरा के बीच गंगा में मिलती है। इस बीच इसमें राप्ती समेत कई और नदियां मिलती हैं। घाघरा को यूपी में अधिकृत रूप से अब सरयू कहा जाता है।

केंद्रीय जल आयोग के आंकड़ों के मुताबिक पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष घाघरा अब तक खतरे के निशान से ऊपर कम दिनों के लिए ऊपर बही है लेकिन राप्ती के मिलने के बाद इसका फ्लो (बहाव) तेज हो गया है। घाघरा में तीन जगहों (एग्लिन ब्रिज- बाराबंकी, अयोध्या और तुर्तीपार) पर डेंजर साइन हैं।

केंद्रीय जल आयोग में मिडिल गंगा डिवीजन-1, में अधिशासी अभियंता आशीष अवस्थी दिल्ली से फोन पर बताते हैं, “साल 2021 में जून से लेकर 20 अगस्त जो 80-81 दिन हैं उसमें एग्लिन ब्रिज पर 54 दिन पानी खतरे के निशान से ऊपर बहा है जबकि पिछले साल 60 दिन ऐसा हुआ था। यानि घाघरा में पिछले साल की अपेक्षा बाढ़ वैसी नहीं है लेकिन राप्ती के घाघरा में मिलने के बाद उफान ज्यादा है। तुर्तीपार (बलिया जिला) साइट पर इस बार 51 दिन पानी खतरे के निशान के ऊपर पहुंचा है जबकि पिछले साल समान अवधि में सिर्फ 24 दिन ऐसा हुआ था।”

उत्तर प्रदेश में इस वर्ष बाढ़ ने 24 से ज्यादा जिलों को चपेट में लिया। मध्य प्रदेश और राजस्थान की भीषण अतिवृष्टि से इटावा,औरैया, जालौन और हमीरपुर में चंबल, यमुना, पहुंज नदियों ने भारी नुकसान पहुंचाया। तो ये सभी नदिया यमुना मिलकर प्रयागराज में गंगा में मिली, जिसके बाद प्रयागराज, मिर्जापुर भदोही से लेकर वाराणसी तक गंगा में सैलाब आ गया। औरैया, जालौन और इटावा समेत 3-4 अगस्त को पानी आने के बाद 8-9 अगस्त में हालात सुधरने लगे थे।

वहीं दूसरी ओर शारदा-घाघरा और राप्ति नदियों में सैलाब से लखीमपुर, सीतापुर, बहराइच, गोंडा, आजमगढ़, अयोध्या, गोरखपुर, बलिया समेत कई जिलों में बाढ़ का पानी गांवों में घुस गया है। 

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राजस्थान, एमपी, हरियाणा से छोडे गए पानी से बिगड़ी स्थिति

13 अगस्त को गाजीपुर में बाढ़ का हवाई सर्वे और बाढ़ में राहत और बचाव कार्यों की समीक्षा करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि प्रदेश में 24 जिलों के 600 से ज्यादा गांव प्रभावित हैं।”

उन्होंने कहा कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और हरियाणा से अतिरिक्त जल छोड़ा गया, जिससे यमुना, चम्बल व बेतवा नदी में अधिक जल का स्तर बढ़ गया है। इससे प्रदेश में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हुई है।

यूपी सरकार के 13 अगस्त तक के आंकड़ों के मुताबिक अकेले गाजीपुर में 32 राजस्व गांवों की 1.5 लाख आबादी तो वहीं बलिया में गंगा, सरयू एवं टोंस नदी के कारण 112 राजस्व ग्रामों की 1,41,450 लोग बाढ़ की चपेट में थी।

मुख्यमंत्री ने कहा बरसात को देखते हुए नदियों के जलस्तर की लगातार मॉनिटरिंग की जा रही है। एनडीआरएफ और एसडीआरएफ और आपदा प्रबंधन की टीमें पूरी तरह सक्रिय हैं। प्रभावित लोगों को हर संभव मदद की जा रही है।

बाढ़ के साथ जीना सीख लिया। दो महीने से बाढ़ के बीच गुजर कर रहा एक परिवार। 

बांध के अंदर और बाहर की जिंदगी- कोई हो गया सुरक्षित, कहीं विस्थापन का इंतजार

हर साल आने वाली बाढ़ से ग्रामीणों को बचाने के लिए साल कुछ साल पहले चहलारी घाट से बाराबंकी के एल्गिन ब्रिज तक 54 किलोमीटर लंबा बांध बनाया गया था। इस क्षेत्र को गांजर बेल्ट कहा जाता है। बांध से सीतापुर में करीब 58 और बहराइच, बाराबंकी समेत आसपास के जिलों के करीब 250 गांवों को राहत मिली है। बांध के बाहर वाले तो एक हद तक सुरक्षित हो गए लेकिन अंदर लोगों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। महमूदाबाद तहसील क्षेत्र में करीब 20 गांव ऐसे हैं, जो बाढ़ की चपेट में आते हैं।

इन गांवों के लोगों की मांग रही है कि इन्हें सुरक्षित जगहों पर बसाया जाए। विस्थापन के तहत कई गांवों के लोगों को बंधे के उस तरफ जमीनें भी मिली हैं तो कुछ अभी इंतजार में हैं। तो कुछ लोग जमीन मिलने के बाद घरों से दूर जाना नहीं चाहते। कुछ लोगों के मुताबिक उन्हें घर के लिए जमीन ऐसी जगह मिली की रहना मुश्किल है।

अखरी-अंगरौरा में कटान और लोगों को विस्थापित के सवाल पर राजस्व विभाग में लेखपाल नृपेंद्र यादव बताते हैं, “गांवों के चारों तरफ पानी है लेकिन अंदर नहीं घुसा है। थोड़ा बहुत पानी आया तो वो 2-3 दिन में उतर गया था। जिन लोगों का घर नदी में कटता है उसकी लिस्ट हम जिले को भेजते हैं उन्हें मुआवजा मिल जाता है।”

लोगों के विस्थापन के मुद्दे पर वो कहते हैं, “अखरी गांव में जगह नहीं है। अंगरौरा 80 फीसदी कट चुका है। परमगौड़ा (कलुआपुर) जो पहले कटा था उन्हें दूसरे गांवों में जगह दी गई है। एसडीएम साहब पिछले दिनों दौरे पर आए थे उन्होंने कुछ लोगों की लिस्ट दी गई है जिन्हें खतरों के देखते हुए आगे बसाया जाना है। ऊपर के अधिकारियों ने कार्रवाई की मुझे इसकी जानकारी नहीं है।”

राजस्व विभाग और दूसरे विभागों की रिपोर्ट पर उत्तर प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की तरफ से नुकसान की भरपाई की जाती है।

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बाढ़ में पक्का घर कटने पर 95100 और झोपड़ी पर मिलते हैं 4100 रुपए

लेखपाल नृपेंद्र यादव के मुताबिक पक्का मकान कटने पर 95100 रुपए, कच्चा घर (दीवारें कच्ची) होने पर 5200 रुपए मिलते हैं जबकि घास फूस की झोपड़ी कटने पर 4100 रुपए मिलते हैं। जबकि जमीन कटने पर 37500 रुपए प्रति हेक्टेयर का मुआवजा मिलता है वहीं फसल के नुकसान पर 13500 रुपए प्रति हेक्टेयर का मुआवजा दिया जाता है।”

घाघरा हर साल सैकड़ों लोगों की जमीन खेत इधर से उधर कर देती है। जिनके खेत नदी में कट जाते हैं उनमें से कुछ लोग दूसरी तरफ की जमीन जोत लेते हैं, जिनमें अक्सर रबी के सीजन की फसल हो जाती है। लेकिन इस बार ग्रामीणों के मुताबिक मई महीने से जो अतिवृष्टि शुरू हुई उससे इन्हें गर्मियों में होने वाली फसलों का भी नुकसान हो गया।

हरपालपुरवा के बदलू (60 वर्ष) पिछले कई दिनों से बंधे पर रह रहे हैं, वो कहते हैं, “बाढ़ के चलते इस बार भी पिछले साल की तरह एक दाना नहीं होगा। इस साल तो मई की बारिश और जून की बाढ़ में पिपरमेंट (मेंथा) भी पूरी चली गई। अब फसल नहीं मंजूरी (मजदूरी) के गुजारा होगा।”

ग्रामीणों के मुताबिक बंधे के उस तरफ कई गांवों में धान की रोपाई हुई थी, लेकिन उसमें अब एक से 3 फीट पानी चल रहा है। तो फसल होने की उम्मीद बहुत कम है।

लेकिन लेखपाल नृपेंद्र कहते हैं, “इस साल जून में ही बाढ़ आ गई थी तो धान कौन लगा ही पाया हम तो वहां रोज़ जाते हैं। और मेंथा तो ज्यादातर लोगों की मई में ही कट जाती हैं।”

लेखपाल की इन बातों आशय ये भी निकाल जा सकता है कि फसल मुआवजे के मिलने की गुंजाइश बहुत कम है। क्योंकि रिपोर्ट भी लेखपाल को लगानी होती है।

बाढ़ के बीच अपने घरों से निकलते सीतापुर जिले में बाबा की कुटी गांव के बच्चे।

बाढ़ प्रभावित इलाकों में हर बाढ़ पीड़ित को 10 किलो चावल, 10 किलो आटा, 10 किलो आलू, लइया-चना, मसाला, नमक, मोमबत्ती, केरोसिन ऑयल देने का प्रावधान है। मुख्यमंत्री ने अपने बयान में निर्देश दिया था कि जहां किरोसिन ऑयल नहीं है वहां पेट्रोमैक्स या जेनरेटर के जरिए लाइट की व्यवस्था होनी चाहिए। अखरी अंगगौरा में लोगों को किट मिली हैं। लेकिन कई शिकायत करते हैं, “मोदी-योगी के स्तर से बहुत कुछ होता है लेकिन नीचे वाले यहां तक बहुत कटौती कर लेते हैं।”

घाघरा में बाढ़ जब कम होती है तो ये नदी और तेजी से कटान शुरू कर देती है। अखरी के पड़ोसी गांव कुटिया के साधु राम विजय दास कहते हैं, “5 साल पहले ये नदी बहुत दूर थी, लेकिन अब ये सर पर आ गई है। हमारे जिले के अधिकारी ऊपर तक हमारी बात नहीं पहुंचाते। नदी में कुछ ऐसा काम किया जाएगा, तो जितना बचा है उसमें ही जीवन गुजारा जाए।”

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