एक साल से अधिक समय हो गया है, लेकिन सुंदरबन के गोपाल नगर ग्राम पंचायत में रहने वाले लोग भयानक और क्रूर अम्फान चक्रवात के असर से उबर नहीं पाए हैं, जिसने उन्हें पिछली मई में कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान परेशान किया था। तूफान ने उनके गाँव में नारियल के पेड़ों को उखाड़कर और खेतों और मीठे पानी के स्त्रोतों को समुद्री पानी से भर दिया था।
“हमने चक्रवात में जौमीन (भूमि), जैजात (संपत्ति), पुकुर (तालाब), ग्रह (घर), धान (फसल) खो दिया,” 35 वर्षीय रिंटू दास ने गांव कनेक्शन को बताया जिन्होंने चक्रवात अम्फान में अपनी बकरियां, गाय और कच्चा घर खो दिया था। “खारा पानी हमारे खेतों और तालाबों में घुस गया। इसने हमारी मिट्टी को नुकसान पहुंचाया और हमारी मछलियों को मार डाला। अब हर जगह खारापन है। अमरा की कोरबो? (हम क्या करेंगे?)” नाराज होते हुए दास अपनी स्थानीय भाषा बंगाली में पूछ हैं।
कहानी सुनें
पश्चिम बंगाल के सुंदरबन डेल्टा के ग्रामीणों के लिए चक्रवात नया नहीं है। लेकिन गर्म होती दुनिया और जलवायु परिवर्तन के बीच उष्णकटिबंधीय चक्रवात अधिक तेज होते जाते हैं और उनकी आवृत्ति भी बढ़ती जा रही है। डेल्टा द्वीपों में रहने वालों लोगों के लिए अपने जीवन और आजीविका को बनाए रखने में मुश्किल आ रही है। जैसे-जैसे समुद्र का स्तर बढ़ रहा है, इनमें से कई द्वीप धीरे-धीरे डूबते जा रहे हैं।
सुंदरबन में ग्रामीण महिलाओं के एक समूह का एक समूह एक गैर-लाभकारी संस्था की मदद से एक अनूठी पहल की है। ये महिलाएं चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं को रोकने के लिए एक ‘ग्रीन बैरियर्स’ बनाने की कोशिश कर रही हैं।
दक्षिण 24 परगना जिले के गोपाल नगर ग्राम पंचायत में बनश्री मैंग्रोव सुरक्षा समिति से जुड़ी 16 से अधिक महिलाएं सस्टेनेबल एनवायरनमेंट एंड इकोलॉजिकल डेवलपमेंट सोसाइटी (सीड्स) इंडिया के साथ काम कर रही हैं जो एक गैर-लाभकारी संस्था है जो आपदाओं के संपर्क में आने वाले लोगों की मदद करती है। अब ये गोपाल नगर गांव में हजारों मैंग्रोव के पेड़ों की सुरक्षा कर रहे और नए पौधे भी लगा रहे हैं।
इस संयुक्त पहल के तहत स्थानीय गोबाधिया नदी, हुगली की एक सहायक नदी के किनारे पांच एकड़ (दो हेक्टेयर) भूमि पर स्वदेशी प्रजातियों सहित 6,500 से अधिक मैंग्रोव लगाए जा रहे हैं। इस परियोजना को हाल ही में स्वतंत्रता दिवस पर 15 अगस्त को शुरू किया गया था, जब गांव की महिलाओं ने एक ही दिन में 3,000 से अधिक मैंग्रोव पौधे लगाए थे, जो अब उनकी रोजाना रखवाली भी कर रही हैं।
इस प्रकार समुद्र के बढ़ते स्तर और जलवायु परिवर्तन से की वजह से आने वाले खतरों को जवाब देने के अलावा मैंग्रोव पौधरोपण ग्रामीण महिलाओं को आजीविका के अवसर भी दे रहा है, जिन्होंने सीड्स इंडिया के साथ एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं और उन्हें पोषण और सुरक्षा के लिए भुगतान किया जा रहा है।
सुंदरबन डेल्टा
पिछले तीन दशकों में भारत और बांग्लादेश में पारिस्थितिक रूप से नाजुक सुंदरवन क्षेत्र में क्षरण के कारण मैंग्रोव (136।77 वर्ग किमी) का 24।55 प्रतिशत खत्म हो गया है। अधिकांश क्षरण स्थायी हैं।
ऐसे समय में मैंग्रोव के महत्व को समझना महत्वपूर्ण है, जब भविष्य में चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं में और तेजी आने की भविष्यवाणी की गई हो। मैंग्रोव पौधों का एक समूह है जो नमकीन मिट्टी और ज्वार में जीवित रह सकता है। वे मिट्टी के किनारों की रक्षा के साथ-साथ क्षति को कम करके चक्रवात जैसी आपदाओं के लिए एक प्रभावी बाधक के रूप में काम करते हैं।
जर्नल साइंस में प्रकाशित 2005 का एक अध्ययन बताता है कि प्रति 100 वर्ग मीटर में 30 मैंग्रोव पेड़ों का घनत्व सुनामी लहर के प्रवाह को 90 प्रतिशत तक कम कर सकता है।
“पश्चिम बंगाल में भूमि द्रव्यमान बहुत उथला है। सतह के उच्च तापमान के कारण चक्रवात और उच्च ज्वार की तीव्रता बढ़ गई है। मैंग्रोव चक्रवात के दौरान लहरों की गति को तोड़ देते हैं। वे रक्षा की रेखा हैं, “संजय वशिष्ठ, निदेशक, क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क साउथ एशिया (CANSA) ने गांव कनेक्शन को बताया।
CANSA जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने की कोशिश करता है। आठ दक्षिण एशियाई देशों में इस संगठन के साथ 300 से अधिक लोग काम कर रहे हैं।
“मैंग्रोव जैव विविधता का एक हॉटस्पॉट भी है और तटीय क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों के लिए मददगार है। मत्स्य पालन सुंदरबन के समुदायों के लिए आजीविका के विकल्पों में से एक है। मैंग्रोव मछलियों को रहने के लिए जगह देता है, “वशिष्ठ आगे कहते हैं।
बचाव के लिए मैंग्रोव
दक्षिण 24 परगना जिले में गोपाल नगर ग्राम पंचायत को सुंदरबन के कमजोर गांवों में से एक माना जाता है। गांव ने चक्रवात यास (2021), चक्रवात अम्फान (2020), और चक्रवात आइला (2009) सहित कई चक्रवातों का सामना किया है।
स्थानीय लोगों को आजीविका के साधन जैसे पशुधन और मिट्टी के घर गंवाने पड़े। सीड्स इंडिया के एक सर्वे से पता चला है कि इस गांव में लगभग 300 बस्तियों को अम्फान ने नष्ट कर दिया था, जिसने पिछले साल राज्य में विनाश और तबाही का निशान छोड़ा था।
मैंग्रोव लगाकर ग्रामीणों को चक्रवात के प्रभाव से बचाने के लिए एक प्राकृतिक अवरोध पैदा करने की उम्मीद है।
“हमारे गाँव में मैंग्रोव को लगाने के लिए हम मैंग्रोव जंगल से पौधे लेने के लिए सबसे पहले सुबह-सुबह नाव से जंगल में गए। अगले दिन [15 अगस्त] वन अधिकारियों ने कुछ पौधे लगाए और फिर हम महिलाओं ने इसे संभाला। स्वयं सहायता समूह के सदस्य रिंटू दास ने गांव कनेक्शन को बताया कि हमने छोटे-छोटे गड्ढे खोदकर शाम तक सभी पौधे रोप दिए।
उनके अनुसार उनका काम केवल एक दिन तक सीमित नहीं है।
“इन मैंग्रोव को लगाने के अलावा हम इन पौधों की रखवाली भी करते हैं। हमें उन्हें गायों और बकरियों से बचाना है जो उनके पत्ते खाते हैं। इसके अलावा मछुआरे भी इन पौधों को उखाड़ देते हैं, ” 35 वर्षीय रिंटू ने कहा।
गैर-लाभकारी संस्था के साथ अनुबंध के तहत इन ग्रामीण महिलाओं को इन पौधों की तब तक रक्षा करनी होती है जब तक कि वे पांच फीट से अधिक ऊंचाई तक नहीं बढ़ जाते। इसका मतलब कम से कम एक से डेढ़ साल के लिए अतिरिक्त जिम्मेदारी है।
सीड्स इंडिया के प्रोग्राम मैनेजर, कोलकाता के फैज अहमद खान ने गांव कनेक्शन को बताया, “यही कारण है कि हमने इन महिलाओं के साथ एक साल का अनुबंध किया है।”
संयुक्त पहल और आय का स्त्रोत
इस संयुक्त पहल और साल भर के अनुबंध के तहत 16 स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को तीन किस्तों में 90,000 रुपये दिए जाने हैं।
“हमने तीस हजार की पहली किस्त जारी कर दी है। हम पांच एकड़ भूमि को मैंग्रोव से ढकने की कोशिश कर रहे हैं। पिछले दो-तीन वर्षों में गोपाल नगर और आसपास के गांवों में दस से पंद्रह एकड़ (चार से छह हेक्टेयर) मैंग्रोव कवर चक्रवात के कारण नष्ट हो गए हैं, ” खान ने बताया।
एक बार मैंग्रोव लगाए जाने के बाद महिलाओं की एक मात्र भूमिका उन्हें एक वर्ष तक सुरक्षित रखना है।
“चक्रवातों के कारण घरों के पास की भूमि का क्षरण हो जाता है। कई घर भी क्षतिग्रस्त हुए हैं। यह वह जगह है जहाँ मैंग्रोव मदद करते हैं। हम बेल जैसे मैंग्रोव की स्थानीय प्रजातियों पर नजर गड़ाए हुए हैं। कटाव को रोकने की इसकी क्षमता बहुत अधिक है, “कार्यक्रम प्रबंधक ने बताया।
जलवायु विशेषज्ञ बताते हैं कि मैंग्रोव का सामुदायिक स्वामित्व महत्वपूर्ण है ताकि वे पौधों की देखभाल कर सकें साथ ही वे इस बात पर भी जोर देते हैं कि इस तरह के वनीकरण की घटनाएं एक या दो दिन तक सीमित नहीं रहनी चाहिए।
“दुर्भाग्य से इस तरह की पहल केवल एक दिन की होती है। अगर इन पौधों की देखभाल नहीं की जाती है तो मैंग्रोव के नष्ट होने की भी दर बहुत है। “वशिष्ठ ने कहा। उन्होंने जोर देकर कहा कि प्राकृतिक आपदाओं जैसी घटनाओं से बचाने के लिए देशी मैंग्रोव प्रजातियों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट (2019) के अनुसार पश्चिम बंगाल में भारत के मैंग्रोव कवर का 42।45 प्रतिशत हिस्सा है। इसके बाद गुजरात (23।66 फीसदी) और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (12।39 फीसदी) का नंबर आता है। बंगाल में मैंग्रोव दक्षिण 24-परगना (2,082 वर्ग किमी), उत्तर 24-परगना (25 वर्ग किमी) और पुरबा (पूर्व) मिदनापुर (चार वर्ग किमी) में 2,112 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैले हुए हैं।
लेकिन अन्य वनों की तरह मैंग्रोव कवर भी खतरे में है जिससे तटीय क्षरण हो रहा है। दास और उनके एसएचजी की 15 अन्य महिलाओं को उम्मीद है कि वे जो ग्रीन बैरियर्स लगा रही हैं, उससे चक्रवातों के प्रभाव को कम करने और उनके गांव की सुरक्षा करने में मदद मिलेगी।