क्या गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करना चाहिए?

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाना चाहिए। गाय का भारत में धार्मिक महत्व तो है ही लंबे समय तक खेती और एक आबादी की आजीविका का आधार रही हैं। लेकिन क्या राष्ट्रीय पशु घोषित किए जाने से गाय से जुड़ी कई समस्याएं और मुद्दे खत्म हो जाएंगे? गांव कनेक्शन ने इस मुद्दे पर की लोगों से उनकी राय जानी।
#straycattle

लखनऊ (उत्तर प्रदेश)। भारत में गाय सबसे चर्चित पशु है। इस बार गाय इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक टिप्पणी के बाद चर्चा में है। गोहत्या के एक केस की सुनवाई के समय कोर्ट ने कहा है कि गाय भारत की संस्कृति है, राष्ट्रीय पशु घोषित करने के लिए सरकार को बिल लाना चाहिए।

1 सितम्बर को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में गोहत्या रोकथाम अधिनियम के तहत अपराध के आरोपी को जमानत देने से मना करते हुए कहा, “गाय भारत की संस्कृति का अभिन्न अंग है और इसे राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाना चाहिए।”

जस्टिस शेखर कुमार यादव ने कहा कि गाय को मौलिक अधिकार देने और गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने के लिए सरकार को संसद में एक विधेयक लाना चाहिए और गाय को नुकसान पहुंचाने की बात करने वालों को दंडित करने के लिए सख्त कानून बनाना चाहिए। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में गौशाला और फर्जी गौरक्षकों पर भी टिप्पणी की। हाई कोर्ट के न्यायाधीश ने कहा, सरकार गोशालाओं का निर्माण भी करवाती है, लेकिन जिन लोगों को गाय की देखभाल करनी होती है, वे उनकी देखभाल नहीं करते हैं। अदालत ने कहा कि सरकार को ऐसे लोगों के खिलाफ भी कानून बनाना होगा जो छद्म रूप में गाय की रक्षा की बात गौशाला बनाकर करते तो हैं, लेकिन गौरक्षा से उनका कोई सरोकार नहीं है और उनका एकमात्र उद्देश्य गोरक्षा के नाम पर पैसा कमाने का होता है।

20वीं पशुगणना के अनुसार देश में गोवंशीय पशुओं की कुल संख्या 192.49 मिलियन है, जबकि मादा गायों की कुल संख्या 145.12 मिलियन है। फोटो: दिवेंद्र सिंह

हाईकोर्ट की इस फैसले को लेकर चर्चा तेज हो गई है। सोशल मीडिया से गांव की चौपालों पर चर्चा हो रही है। हरियाणा गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष श्रवण कुमार गर्ग गांव कनेक्शन से कहते हैं, “सरकार को हाईकोर्ट की बात माननी चाहिए और गाय को राष्ट्रीय पशु बनाने को लेकर बिल लाना चाहिए। गाय पशु नहीं है यह माता है, इसलिए सरकार को इस बारे में सोचना चाहिए ताकि गाय का संरक्षण हो सके।”

छुट्टा पशुओं की समस्या पर वो कहते हैं, “भारत में मां (देशी गाय) को छोड़कर लोगों पर मौसी (जर्सी फ्रीजियन जैसी गाय) को घर ला दिया, अब मां की जगह तो मौसी नहीं ले सकती न, फिर क्या कुछ दिन बाद उन्हें सड़क पर छोड़ दिया गया, इसमें लोगों की ही गलती है। लेकिन पिछले कुछ सालों में गो संरक्षण पर काम हो रहा है, हरियाणा ही नहीं दूसरे राज्यों में गौशाला बनी हैं, आने वाले कुछ साल में एक बार फिर गाय सड़कों पर नहीं लोगों के घरों में दिखने लगेंगी।”

केंद्रीय गोवंश अनुसंधान संस्थान,मेरठ के वैज्ञानिक डॉ संजीव वर्मा भी हाईकोर्ट की टिप्पणी से इत्तेफाक रखते हैं, वो कहते हैं, “गाय को राष्ट्रीय पशु नहीं राष्ट्र माता घोषित करना चाहिए, क्योंकि यह तो माता का सम्मान किया जाता है, लेकिन अगर चलिए राष्ट्रीय पशु भी घोषित कर दिया जाता है तो कुछ बात का ध्यान रखना चाहिए। लोग कहते हैं कि छुट्टा पशुओं की समस्या है तो छुट्टा जानवर भारत सरकार या फिर राज्य सरकारों ने नहीं छोड़े हैं, उन्हें किसानों ने ही छोड़ा है।”

साल 2019 में जारी 20वीं पशुगणना के अनुसार देश में गोवंशीय पशुओं की कुल संख्या 192.49 मिलियन है, जबकि मादा गायों की कुल संख्या 145.12 मिलियन है। देश में विदेशी/संकर नस्लों की गोवंशीय पशुओं की संख्या 50.42 मिलियन और स्वदेशी//अवर्गीय की संख्या 142.11 मिलियन है। सरकार की इसी रिपोर्ट में एक और आंकड़ा है, ये आंकड़ा देश में छुट्टा गोवंश का है। जिससे यूपी, एमपी समेत कई राज्यों के किसान परेशान हैं। दिन रात अपने खेतों की रखवाली करते हैं।

साल 2012 में जारी 19वीं पशुगणना के अनुसार देश में छुट्टा पशुओं की संख्या 51.88 लाख थी, जबकि 2019 में जारी 20वीं पशुगणना के अनुसार इनकी संख्या 50.22 लाख हो गई है।

कई राज्यों में छुट्टा पशुओं की है समस्या

उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में छुट्टा पशुओं को अन्ना पशु कहा जाता है, यहां सड़कों पर सैकड़ों की संख्या में गोवंश चलते हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों में यह समस्या दूसरे जिलों तक भी पहुंच गई, जिससे निजात दिलाने के लिए सरकार ने गौशाला का भी निर्माण कराया लेकिन पूरी तरह से समस्या से मुक्ति नहीं मिल पायी।

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जिले के अशोगापुर गांव के किसान मन्नू मौर्या भी छुट्टा गोवंश की समस्या से परेशान हैं और खेत में मचान बनाकर फसल की रखवाली करते हैं। मन्नू मौर्या कहते हैं, “हम छोटे किसानों के साथ बहुत समस्या है, खेत को घेरने के लिए महंगा तार नहीं लगा सकते हैं, इसलिए खेत में रहना पड़ता है। कई किसान तो ऐसे भी हैं जो हफ्तों तक घर नहीं जाते हैं, एक दिन के लिए खेत छोड़ के जाओ रात भर में फसल चर जाते हैं।”

2019 में जारी 20वीं पशुगणना के अनुसार देश में छुट्टा जानवरों की संख्या 50.22 लाख हो गई है। फोटो: दिवेंद्र सिंह

मध्य प्रदेश के सतना में फूलों की खेती करने वाले नीरज त्रिपाठी (39 वर्ष) की समस्या भी मन्नू मौर्या से कम नहीं, नीरज तीन एकड़ में फूलों की खेती करते हैं और फसल को बचाने के लिए एक लाख रुपए प्रति एकड़ खर्च करके खेत की फेंसिंग करवाई है। नीरज बताते हैं, “अब खेती करनी है तो फसल तो बचानी ही होगी, अगर फेंसिंग नहीं करेंगे तो कभी-कभी 50 के झुंड में गाय-बछड़े आते हैं, एक ही बार में पूरी फसल बर्बाद कर देंगे। फेंसिंग करने के बाद भी एक लोगों को दिन-रात रखवाली करनी पड़ती है।”

गाय को राष्ट्रीय पशु का दर्जा देने की बात को लेकर किसान अलग-अलग तरह से अपनी बात रखते हैं। लेकिन ज्यादातर लोगों की बातों का आशय ये निकलता है कि गाय का राष्ट्रीय पशु का दर्जा जरुर मिले लेकिन उनकी समस्या का समाधान भी हो।

उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के सरसौल ब्लॉक के महुआ गाँव के किसान भंवर पाल सिंह के ज्यादातर किसान छुट्टा जानवरों से परेशान हैं। इस समय उनके गांव में ज्यादातर किसान करेला की खेती करते हैं, जिससे जानवर नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। भंवरलाल गांव कनेक्शन से कहते हैं, “मैंने भी पढ़ा कि गायों को राष्ट्रीय पशु घोषित करने की बात की जा रही है, लेकिन जिस तरह हमारा नुकसान हो रहा उसके बारे में भी सोचना चाहिए। हमारे गांव में ज्यादातर किसान इस समय करेला की खेती करते हैं। मैंने करेला के साथ मिर्च लगाई है, इसी हफ्ते तार तोड़कर जानवर घुस गए और फसल खा गए।”

बुंदेलखंड के एक गांव में अन्ना यानी छुट्टा पशु। फोटो: दिवेंद्र सिंह

“गाय तो हमारे लिए भी पूजनीय है और हमेशा रहेगी। लेकिन ये भी सच है कि आजकल हमारे जैसे छोटे किसान सबसे ज्यादा इनसे ही परेशान है। दिन-रात खेती की रखवाली करनी होती है। कोई किसान नहीं चाहता की गाय-सांड को कष्ट हो लेकिन इंसान भी क्या करे, फसल नहीं बचेगी को खाएगा क्या, तो सरकार गाय को राष्ट्रीय पशु जरूर बनाए लेकिन किसान की समस्या को भी देखा जाए।” यूपी में तराई इलाके के एक किसान ने बिना नाम बताए अपनी बात रखी।

एक बार फिर गौवंश आधारित खेती में लौटना होगा

भारत में गोवंश खेती का आधार रहे हैं। लेकिन पिछले कुछ दशकों में खासकर मशीनीकरण के बाद ये गाय और गोवंश खासकर बछड़े और सांड किसानों के अनुपयोगी हो गए। जिसके बाद उनकी बढ़ती संख्या कई राज्यों में किसानों के लिए मुसीबत बन गई।

एनीमल वेलफेयर बोर्ड के सदस्य और गैर मिलावटी समाज ग्वाला गद्दी के कर्ताधर्ता मोहन जी अहलूवालिया गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने से लेकर छुट्टा पशुओं की समस्या तक खुलकर अपनी बात रखते है और गाय के आर्थिक लाभ गिनाते हैं।

देश में एक बार फिर लोगों को गौवंश आधारित खेती करनी चाहिए। फोटो: दिवेंद्र सिंह

“छुट्टा जानवरों से किसान इसलिए परेशान हैं क्योंकि कभी इस तरह से ध्यान ही नहीं दिया गया, क्योंकि किसानों को लगा कि गाय उनके लिए उपयोगी ही नहीं है, जबकि ऐसा नहीं है। जब देश में जनसंख्या कम थी, फसलों का उत्पादन कम था, लोगों के पास ज्यादा खेत थे तब तकनीकी खेती के लिए जरूरत थी, किसानों को कृषि यंत्रों पर सब्सिडी दी गई, खेती को बढ़ावा दिया गया जो कि अच्छी बात थी, भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बना। लेकिन अब फिर हालात बदल रहे हैं। जनसंख्या बढ़ी है। खेत कम हुए हैं। जमीनों का बंटवारा हो रहा है। उसमें ट्रैक्टर की उपयोगिता कम हुई है।  इसलिए अब फिर एक बार गाय-बैल की तरफ लौटना होगा।” अहलूवालिया कहते हैं।

उनके मुताबिक जिस तरह से दुनिया में जैविक उत्पादों की मांग बढ़ी है। भारत के लिए अपार संभावनाएं है। वो कहते हैं, “भारत मेहनत करने वाला देश है, जोकि यूरोप या अमेरिका में नहीं है, अगर भारत जैविक खेती करता है तो दुनिया में भर में छा सकता है।” गैर मिलावटी समाज ग्वाला गद्दी का घी अमेरिका, सिंगापुर, यूक्रेन, दुबई और बहरीन जैसे देशों में भेजा जाता है।

छुट्टा पशु और गाय आधारित अर्थव्यवस्था को लेकर मोहन जी अहलूवालिया दक्षिण अमेरिकी देश उरुग्वे का उदाहरण देते हैं।  “उरुग्वे की कुल जनसंख्या 34 से 35 लाख है, जबकि गायों की संख्या 1 करोड़ 36 लाख है, इस हिसाब से एक आदमी पर 4 गाय आती है, उस हिसाब से तो वहां गाय को गली-गली में घूमना चाहिए, खेती बचनी ही नहीं चाहिए, लेकिन यहां ऐसा नहीं है। वहां पर न तो गाय को माता का दर्जा दिया लेकिन वहां पर आज दुनिया की सबसे अच्छी गाय हैं। मैं ये नहीं कह रहा कि भारत में गाय को माता का दर्जा न मिले, ये तो भारतीय सभ्यता की पहचान है। इसलिए गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने के साथ ही प्रोटोकॉल भी तय करें।” अहलूवालिया के प्रोटोकॉल से मतलब गाय को हानि न पहुंचाने के नियम-कानूनों से है।

गांव कनेक्शन सर्वे में भी लोगों ने छुट्टा जानवरों को बताया था गंभीर समस्या

भारत के ग्रामीण मीडिया प्लेटफार्म गाँव कनेक्शन ने ग्रामीण भारत की समस्याओं और मुद्दों को समझने के लिए मई 2019 में देश के 19 राज्यों में एक सर्वे कराया था। इस सर्वे में 18,267 लोगों की राय ली गई थी। सर्वे में छुट्टा पशुओं की समस्या को भी शामिल किया गया। इसमें 43.6 फीसदी लोगों ने माना कि छुट्टा पशुओं की समस्या नहीं थी लेकिन अब यह एक समस्या बन गई। वहीं 20.5 प्रतिशत लोगों ने माना कि यह एक समस्या है।

“किसानों ने पहले उसका पोषण नहीं किया जब दूध देना बंद कर दिया तो उसे छोड़ दिया, अगर उन्होंने गाय को खिलाया होता या फिर बैलों से काम लिया होता तो छोड़ने की ही नौबत क्यों आती, जबकि गाय से दूध ही नहीं गोबर भी मिलता है, जिससे खाद भी बना सकते हैं, ” केंद्रीय गोवंश अनुसंधान संस्थान के डॉ संजीव वर्मा ने कहा।

पिछले कुछ वर्षों में भारत में गाय की नस्लें खराब हो गई हैं, जिनकी सुधार की जरूरत है। फोटो: दिवेंद्र सिंह

गायों को लेकर सबसे बड़ी समस्या ये है कि वो बेहद कम दूध देती हैं। बुंदेलखंड जैसे कई हिस्सों में गाय समय पर बच्चे भी नहीं देती हैं। जो देती है वो इतना कम दूध देती हैं कि किसान के लिए इस महंगाई के जमाने में उनका रखरखाव आसान नहीं रहता।

गाय के छुट्टा घूमने को लेकर विशेषज्ञ नस्ल का खराब होना को भी बड़ा कारण मानते हैं, जबकि भारत में पाई जाने वाली गिर और साहीवाल जैसी कई नस्लें बहुत कम देखरेख और विपरीत वातावरण में भी बेहतर दूध देती हैं। लेकिन पिछले कुछ दशक पहले की बात करें तो सरकार ने देशी गाय छोड़कर विदेशी गायों पर ज्यादा ध्यान दिया, जिसकी वजह से देशी गायों की नस्लें भी संकर होकर बिगड़ती होती गईं। बुंदेलखंड के अन्ना पशु (छुट्टा जानवर) उसका बड़ा उदाहरण हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों में एक बार फिर देशी गायों का संरक्षण हो रहा है।

देसी नस्ल के गोवंश को बढ़ावा देने की है जरूरत

गाय और गोवंश की उपयोगिता पर भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई), बरेली के पशु आनुवंशिकी विभाग के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. रणवीर सिंह गांव कनेक्शन से कहते हैं, “एक बार राज्य और केंद्र सरकार देसी गायों को बढ़ावा दे रही है, अगर ऐसा ही रहा तो आने वाले कुछ सालों में एक बार फिर लोगों के घरों में देशी गाय दिखाई देंगी, लेकिन इस बारे में सरकार, वैज्ञानिकों के साथ ही किसानों को भी ध्यान देना होगा, तब जाकर देशी गायों का संरक्षण हो पाएगा।”

वो आगे कहते हैं, “अगर गाय दूध भी नहीं रही है तब भी उससे जैविक खाद बना सकते हैं। डीएपी, यूरिया, रासायनिक कीटनाशकों से हमारी जमीन का स्वास्थ्य खराब हो गया है और इसे ठीक करने के लिए गाय, केंचुए और सूक्ष्मजीव से अच्छा कुछ नहीं हो सकता।”

चित्रकूट में गोवंश विकास एवं अनुसंधान केन्द्र में देसी गायों का संरक्षण किया जा रहा है।

मध्य प्रदेश के सतना जिले से 87 किमी. दूर चित्रकूट में गोवंश विकास एवं अनुसंधान केन्द्र में पिछले 25 वर्षों से अधिक समय से देसी गायों की 14 नस्लों के संरक्षण और विकास के लिए शोध किया जा रहा है। अनुसंधान केन्द्र में साहीवाल (पंजाब), हरियाणा (हरियाणा), गिर (गुजरात), लाल सिंधी (उत्तराखंड), मालवी (मालवा, मध्यप्रदेश), देवनी (मराठवाड़ा महाराष्ट्र), लाल कंधारी (बीड़, महाराष्ट्र) राठी (राजस्थान), नागौरी (राजस्थान), खिल्लारी (महाराष्ट्र), वेचुर (केरल), थारपारकर (राजस्थान), अंगोल (आंध्र प्रदेश), कांकरेज (गुजरात) जैसी देसी गायों के नस्ल संरक्षण पर अनुसंधान चल रहा है।

गोवंश विकास एवं अनुसंधान केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. राम प्रकाश शर्मा कहते हैं, “अन्ना पशु विदेशी पशुओं के संकर के बाद खराब हुई नस्लें हैं, लेकिन अभी भी देर नहीं हुई है, अगर लोग ध्यान दें तो एक बार फिर हर एक घर में गाय मिल सकती है। सरकार भी देसी गायों के संरक्षण पर काम कर रही है। देशी गाय की नस्लें किसी भी वातावरण के हिसाब से ढल जाती हैं।”

कई राज्यों में छुट्टा पशुओं के लिए गौशालाएं बनायी गईं है। फोटो: दिवेंद्र सिंह

योगी आदित्यनाथ सरकार ने उत्तर प्रदेश निराश्रित और बेसहारा गायों के कल्याण के लिए 2019 में नई पॉलिसी बनाई थी और एक 0.5 फीसदी का सेस लगाकर राज्यभर में गौशाला खोली हैं। इसके अलावा छुट्टा गायों की समस्या से किसानों को निजात दिलाने के लिए बेसहारा गोवंश सहभागिता योजना शुरूआत की है। इस योजना के तहत छुट्टा गाय पालने वाले लोगों को सरकार रोजाना प्रति पशु के हिसाब से 30 रुपए दिए जाते हैं, यानी एक गाय के 900 रुपए महीने दिए जाते हैं।

छत्तीसगढ़ में भी छुट्टा पशुओं की समस्या है यहां भूपेश बघेल सरकार ने गोधन न्याय योजना लागू की। जिसके जरिये राज्य सरकार द्वारा गाय-भैंस पालने वाले पशुपालकों और किसानों से गोबर खरीदा जा रहा है। पशु पालक से खरीदे गए गोबर का उपयोग सरकार जैविक खाद और वर्मी कंपोस्ट खाद बनाने के लिए कर रही है।

छत्तीसगढ़ राज्य ने गोबर ख़रीदी की शुरूआत कर गोबर को ग्रामीण विकास एवं आर्थिक मॉडल का एक बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा बना दिया है। इससे पहले पशुपालक गोबर का उपयोग कंडे बनाने करते थे जिससे मामूली आय ही हो पाती थी। मगर अब सरकार की गोधन न्याय योजना से पशुपालकों और किसानों की अतिरिक्त आय हो रही है।

Recent Posts



More Posts

popular Posts