नई दिल्ली/लखनऊ। सरकारी नियंत्रण में होने वाली अफीम की खेती कभी भारत के कई राज्यों में होती थी, लेकिन पिछले कुछ दशकों में ये राजस्थान, मध्य प्रदेश और यूपी के कुछ हिस्से में सिमटकर रह गई है। सरकार के मुताबिक अफीम का उपयोग सिर्फ औषधि निर्माण में होता है, इसलिए जरुरत के हिसाब से ही इसके लाइसेंस दिए जाते हैं। इसके अलावा सरकार ने विदेश को निर्यात होने वाली अफीम पर रोक लगा दी है, इसका असर भी खेती पर पड़ा है। संसद में एक सवाल के जवाब में सरकार ने कहा कि अफीम की खेती के लिए सरकार का मौजूदा नियम (मॉर्फिन प्रणाली) ही लागू रहेगी।
अफीम की खेती और नियम पर सरकार ने संसद में कहा, “देश में अफीम की खेती संयुक्त राष्ट्र संघ के ड्रग मामलों संबंधी सम्मेलन और एनडीपीएस एक्ट 1985 के अनुसार अफीम और उसमें मौजूद उत्पाद अल्कलॉइड के चिकित्सा उपयोग के उद्देश्य से की जाती है। पहले अफीम गोंद का उपयोग घरेलू उपयोग के लिए एल्कलॉइड के निकालने के अलावा कई देशों में निर्यात के लिए भी किया जाता था, लेकिन अब आयातक देश अफीम गोंद के बजाए कॉन्सेन्ट्रेटर ऑफ पोस्ता स्ट्रॉ से एल्कलॉइड निकालकर अपनी चिकित्सा जरुरतें पूरी कर रहे हैं। इसलिए देश में अब अफीम का उत्पादन केवल देश की जरुरत (घरेलू उपयोग) के लिए ही किया जाता है। देश में अफीम की गोंद की अब जरूरत कम होती है। देश में अफीम का उत्पादन सिर्फ आवश्यकता पर निर्भर करता है, इसलिए इसकी खेती का रकबा कम या ज्यादा भी होता रहता है।”
संसद के शीतकालीन सत्र में राजस्थान में नागौर से सांसद और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी से राष्ट्रीय संयोजक हनुमान बेनीवाल के सवालों का जवाब देते हुए केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी ने कहा कि अफीम की खेती में पहले जो औसत उपज के आधार पर सरकार को अफीम देने का नियम था वो कम वैज्ञानिक था उसके बदले जो मार्फिन का नियम है वो ज्यादा वैज्ञानिक है, साथ ही इससे गुणवत्ता वाली मॉर्फिन (Morphine) मिलती है, इसलिए आगे भी यही नियम लागू रहेगा।
देश में अगर अफीम की खेती की बात करें तो सरकार के आंकड़ों के अनुसार साल 2012-13 में मध्य प्रदेश में 3084 हेक्टेयर में, राजस्थान में 2529 हेक्टेयर और उत्तर प्रदेश में 6 हेक्टेयर में अफीम की खेती हुई थी। जबकि साल 2015-16 के दौरान मध्य प्रदेश में 76 हेक्टेयर, राजस्थान में 477 और उत्तर प्रदेश में 4 हेक्टेयर में अफीम की खेती हुई थी। वहीं अगर साल 2021-22 के अनुमानित अनुमान की बात करें तो मध्य प्रदेश में 2850, राजस्थान 3142 और उत्तर प्रदेश में 201 हेक्टेयर में अफीम की खेती हुई है। कुल उत्पादन की बात करें तो पिछले 10 वर्षों में सबसे ज्यादा क्षेत्रफल की बात करें 2016-17 में 8712 हेक्टेयर और 2015-16 में सबसे कम 557 हेक्टेयर ही रकबा था। हालांकि पिछले 10 वर्षों में अपेक्षाकृत यूपी का रकबा बढ़ा है। वहीं अगर पूरे देश में अफीम के उत्पादन की बात करें तो सरकार के जवाब के मुताबिक साल 2016-17 में 560 टन रही जबकि 2017-18 में 280, 2018-19 में 405, 2019-20 में 287 और 2020-21 के अनंतिम आंकड़ों के मुताबिक 315 टन हुआ, (उपरोक्त सभी में उत्पादन में 70 सांद्रता है)।
इसके अलावा पिछले 5 वर्षों में ही अगर विदेश से मंगाई गई कोडीन फॉस्फेट के आंकड़े देखे तो पता चलता है सरकारी कारखानों में आयतित कोडीन फॉस्फेट की मात्रा 2016-17 में शून्य किलोग्राम थी, जबकि 2017-18 में 15000 किलोग्राम, 2018-19 में 12500 किलो, 2019-20 में 20000 और 2020-21 में 11000 किलोग्राम था।
अफीम की खेती भारत में पूरी तरह सरकार के नियंत्रण में होती है। इसलिए लाइसेंस जारी किया जाता है। खेत की इंच-इंच जमीन की नपाई होती है। सरकार जो मात्रा तय करती है, उतनी उसे हर हाल में देनी होती है। फसल बर्बाद होने पर वो मात्रा पूरी करनी होती इसलिए अलावा नारकोटिक औषधि और मनः प्रभावी द्रव्य पदार्थ अधिनियम, 1985 के तहत तमाम प्रावधानों का भी पालन करना होता है। किसान और सरकार के बीच इन्हीं नियमों को लेकर गतिरोध रहते हैं।
20 दिसंबर को लोकसभा में हनुमान बेनीवाल ने सरकार से सवाल किया कि क्या सरकार का विचार मॉर्फिन नियम को हटाने का है, और इसे राजस्थान समेत अन्य राज्यों में अफीम उत्पादक किसानों की औसत मांग पर पट्टे देने का है?
इसके जवाब में सरकार ने कहा कि अफीम की खेती ही चिकित्सा उद्देश्य के लिए एल्कलॉइड विशेष कर मार्फिन प्राप्त करने के लिए होती है, इसलिए किसान को दिए जाने वाले लाइसेंस में अफीम की मात्रा को मॉर्फिन में बदला गया है। अफीम की मात्रा मार्फिन से मापी जाती है लेकिन इसमें मानवीय दखल न्यूनतम होता है। औसत उपज पद्धति कम वैज्ञानिक थी, नए नियमों से गुणवत्ता में सुधार हुआ है इसलिए आगे भी यही नियम लागू रहेगा।
अफीम की खेती के लिए सरकार हर साल अफीम पॉलिसी जारी करती है। 1 अक्टूबर 2021 से 30 सितंबर तक चलने वाली अफीम फसल वर्ष की खेती के लिए सरकार ने अक्टूबर महीने में पॉलिसी जारी की थी, जिसके उन किसानों को ही लाइसेंस मिलेगा, जिन्होंने 2020-21 अफीम की खेती की थी और उनकी मॉर्फिन की औसत उपज 4.2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से कम नहीं थी।
किसान चाहते हैं मार्फिन नहीं औसत उपज पर हो खेती
किसानों को इसी माॅर्फिन उपज से एतराज है। मध्य प्रदेश में मंदसौर जिले के मल्हारगढ़ तालुका में बालागूढ़ा गांव के किसान अमृतलाल पाटीदार गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, “अफीम की खेती में सरकार ने इतने नियम-कानून लाद दिए हैं कि ये किसान के बस की बात नहीं रही है। खेत में कितनी अफीम पैदा होगी ये किसान मेहनत और खाद-पानी डालकर ज्यादा कर सकता है, लेकिन उसमें माॅर्फिन कितनी निकलेगी ये कैसे तय करेगा। दूसरा माॅर्फिन सरकार की फैक्ट्री में तय होती है, अंदर क्या हुआ किसी को नहीं पता। जो अधिकारी लिख देते हैं, हमें मानना होता है। सरकार को चाहिए ये माॅर्फिन के नियम में बदलाव करें।” सरकारी अधिकारियों के मुताबिक नए नियम अफीम उत्पादन में गुणवत्ता और पारदर्शिता लाने के लिए किए गए हैं।
मंदसौर में ही तखतपुर गांव के किसान जितेंद्र सिंह कहते हैं, “ये बहुत जोखिम वाली खेती है। किसान डर-डर कर खेती करते हैं। माॅर्फिन का नियम पूरी तरह गलत है। माॅर्फिन, अफीम के अंदर पाया जाना वाला रसायन है वो किस खेत में किस जगह कितना निकलेगा ये प्रकृति पर निर्भर करता है। हमारे यहां पिछले साल एक ही खेत में दो किसानों को पट्टे थे, और दोनों की माॅर्फिन काफी कम निकली थी। जब दोनों ने बराबर खाद-पानी दिया था।”
अफीम की खेती में कमाई
अमृतलाल पाटीदार के मुताबिक सरकार एक पात्र किसान को औसतन 12 आरी (0.12 हेक्टेयर) अफीम की खेती का पट्टा देती है। हमारे घर में दो पट्टे हैं। सरकार के नियमों के मुताबिक 9 किलो अफीम ले जाएंगी, जिससे माॅर्फिन निकलेगी तो 10 हजार रुपए मिलेंगे। इसके अलावा अफीम के दाना (खसखस) बेचकर 12 आरी से करीब डेढ़ लाख रुपए मिल जाएंगे। लेकिन इतने झंझट है कि पूछो मत। हम लोग अब अफीम की खेती इसलिए कर रहे हैं क्योंकि ये मान सम्मान की बात है।”
क्या सम्मान से भी जुड़ी है खेती?
अमृतलाल पाटीदार के मुताबिक एमपी हो या राजस्थान का ये इलाका जहां अफीम का पट्टा सम्मान से जुड़ा है। लोगों के पास जमीन कम हैं। ऐसे में जिसके पास पट्टा होता है उसे लोग सम्मानित मानते हैं। वो कहते हैं, “अफीम का पट्टा है तो बेटा-बेटियों की शादी-बारात में आसानी होती है लेकिन वर्ना यहां क्या रखा है।”
एनडीपीएस एक्ट की धारा 8/29 धारा का मुद्दा
मादक पदार्थों की तस्करी और कारोबार को रोकने के लिए सरकार एनडीपीएस एक्ट के तहत कार्रवाई करती है। एनडीपीएस एक्ट का प्रयोग अफीम या उससे जुड़े उत्पादों के व्यावसायिक मात्रा यानि खरीद-बिक्री के लिए उद्देश्य से नशीले पदार्थ रखने पर किया जाता है। इसके तहत 10-20 साल की सजा , एक लाख से 2 लाख रुपए तक का जुर्माना हो सकता है। कम मात्रा मिलने पर भी 10 साल की सजा और एक लाख रुपए का जुर्माना या फिर दोनों का प्रावधान है।
संसद में एनडीपीएस एक्ट संशोधन अधिनियम 2020 (The Narcotic Drugs & Psychotropic Substances (Amend) Bill, 2021) पर चर्चा करते हुए 13 दिसंबर को हनुमान बेनीवाल ने देश में युवाओं के नशे में डूबने का मुद्दा तो उठाया ही साथ ही नारकोटिक्स विभाग द्वारा किसानों को गलत तरीके से फंसाए जाने, आपसी दुश्मनी का जरिया बनाने की भी बात कही।
उन्होंने कहा, “किसान अगर किसी एनडीपीएस एक्ट के झूठे मामले में पकड़ा जाता है तो उसकी सुनवाई बहुत मुश्किल होती है। कई बार व्यक्तिगत कारणों से दुश्मनी निकालने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। अधिकारी उनका शोषण करते हैं। यहां तक कि अगर कोई व्यक्ति पकड़ा जाता है और वो किसी से फोन पर बात करता है भले उसका अपराध तस्करी से कोई लेना-देना न हो उसे पकड़ लिया जाता है। इसलिए धारा 8/29 के दुरुपयोग को लेकर सरकार को सोचना चाहिए सदन में मैं इस पर नियम 193 के तहत चर्चा की मांग करता हूं।”
लोकसभा में एनडीपीएस एक्ट पर चर्चा करते हनुमान बेनिवाल
मंदसौर के किसान मनोहर चौहान कहते हैं, “एमपी में मंदसौर नीमच, राजस्थान में प्रतापगढ़ और चित्तौड़गढ़ समेत कई इलाकों की जेल युवाओं से भरी हैं, जो दाना पोस्ता के चक्कर में जेल गए हैं। जबकि उनमें माॅर्फिन की मात्रा 0.2 फीसदी होती है, लेकिन एनडीपीएस एक्ट में डोडा-चूरा (अफीम का तना आदि) मादक पदार्थों में दर्ज है इसलिए पकड़ा जाता है। दूसरी बात ये है कि इसमें सबसे बड़ा खेल ये होता है अगर कोई इस काम में पकड़ा गया तो वो जिसका-जिसका नाम ले लेगा सबको पकड़ा जाता है, फिर वहां लेन देन होता है। बहुत लोग दूसरी दुश्मनी निकालने के लिए इसका मिलीभगत कर इसका इस्तेमाल करते हैं।”
क्या कहते हैं वकील
मध्य प्रदेश की मंदसौर कोर्ट में अधिवक्ता महावीर प्रसाद बौराना कहते हैं, “एनडीपीएस एक्ट के तहत आने वाले मादक पदार्थों (अफीम, डोडा-पोस्त, अल्प्राजोलम, गांजा आदि) के मामले में पुलिस जब किसी से रिकवर (जब्त) करती है करती है तो वो लिंक जोड़ती है, माल किससे लिया गया और किसे दिया गया, या जाना था, उसमें पुलिस उन्हें ऐसे लोगों को सहअभियुक्त बनाती है। सहअभियुक्त बनाने की धारा 8/29 है। अभी तक के हमारे अनुभव के मुताबिक 5 फीसदी ही मामले होते हैं 95 फीसदी फर्जी मुलजिम बनते हैं। एविडेंस की एक्ट की धारा 27 के तहत पुलिस मुख्य अभियुक्त (जो पकड़ा गया) उसके बयान के आधार पर धरपकड़ करती है।”
वो आगे कहते हैं, “ये इतना संगीन मामला है कि हमारे मंदसौर जिले में ही 2-2 विशेष एनडीपीएस कोर्ट हैं (विशेष न्यायाधीश एनडीपीएस एक्ट)। जबकि नीमच में है, एक जावद में है। एक मनासा में है, एक जावला में है। ऐसे कई कोर्ट बनी हैं। इसमें 10 साल की सजा का प्रावधान है।”
वो आगे बताते हैं, “डोडा-चूरा में को एनडीपीएस एक्ट में शामिल कर रखा है। एनडीपीएस एक्ट में उस चीज को शामिल किया जाता है, जिसमें मॉर्फिन की मात्रा 0.04 फीसदी होना चाहिए लेकिन जबकि डोडा चूरा में 0.02 फीसदी ही मॉर्फिन है। किसान इसे एनडीपीएस एक्ट से हटाकर राज्य के आबकारी एक्ट में शामिल किया जाना चाहिए। क्योंकि इसका दुरुपयोग हो रहा है।”