बजट 2022 से क्या चाहते हैं किसान? सस्ते डीजल और उर्वरक के अलावा क्या हैं किसानों की उम्मीदें, देखिए वीडियो

आम बजट में किसान चाहते हैं कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण डीजल के दाम कम करें। Budget 2022 में डीएपी-यूरिया जैसे उर्वरक और पेस्टीसाइड सस्ते हों। गांव कनेक्शन ने किसानों से पूछा आखिर वो क्या चाहते हैं? बजट से उनकी क्या उम्मीदें हैं? विस्तृत रिपोर्ट
budget 2022

लखनऊ। “बजट में हम चाहते हैं कि डीजल-पेट्रोल के रेट घट जाएं। बिजली के रेट थोड़े कम हो जाएं। खाद बीज किसान को सब्सिडी पर मिलें।” पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बिजनौर जिले के किसान विकास कुमार (36 वर्ष) कहते हैं।

बिजनौर से करीब 460 किलोमीटर दूर यूपी में ही बाराबंकी जिले के किसान कमलेश सिंह (60 वर्ष) चाहते हैं कि सरकार पीएम किसान निधि के जो साल में 6000 रुपए देती है भले वो न दे लेकिन बजट में कुछ ऐसा इंतजाम कर दे कि छुट्टा पशुओं से मुक्ति मिल जाए।

बाराबंकी से करीब 1100 किलोमीटर दूर महाराष्ट्र में धुले जिले के फल और सब्जी उत्पादक किसान विक्की राजपूत (30 वर्ष) चाहते हैं कि सरकार बजट में ऐसा प्रबंध करे कि फसल का लाभकारी रेट मिले। वो कहते हैं, “मेरे पास 5 एकड़ पपीता है और पके पपीता का भाव 3 रुपए किलो है, जबकि लागत 6 रुपए किलो में निकलेगी। इसलिए हमारे यहां किसानों ने रोक (हड़ताल) कर दी है।)” विकी के मुताबिक एक साल में उर्वरक इतने महंगे गए हैं कि किसान का बजट बिगड़ गया है। वो कहते हैं, “एनपीके (10:26:26) पिछले साल 1250 रुपए का था कल मैं 1640 रुपए का लाया हूं। ऐसे में क्या बचेगा।”

किसान नेता दिगंबर सिंह कहते हैं, “बजट में हम सरकार से उम्मीद करते हैं कि किसान को उसकी फसलों के दाम ठीक मिलें। दूसरी चीजों  महंगाई बढ़ती जा रही है। सरकार को ऐसी व्यवस्था  करनी चाहिए कि खेती की लागत कम हो। इनपुट कास्ट घटे।” दिगंबर सिंह बिजनौर में रहते हैं और भारतीय किसान यूनियन की युवा विंग के अध्यक्ष हैं।

सस्ता डीजल, उर्वरक और पेस्टीसाइड की कीमतों में कटौती की उम्मीद

यूपी, महाराष्ट्र, पंजाब हो या बिहार, बजट को लेकर सभी राज्यों के किसानों की पहली मांग रही कि डीजल-उर्वरक के रेट कम किए जाएं, फसलों के रेट सही मिलें। बजट को लेकर किसानों की उम्मीदों पर सवाल के जवाब में अलग-अलग राज्यों के सैकड़ों किसानों ने कहा कि महंगे डीजल-उर्वरक के रेट में कटौती की जाए।

केंद्र सरकार 1 फरवरी को वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए आम बजट पेश करेगी। बजट वैसे तो पूरे साल का आय-व्यय का लेखा-जोखा होता है, लेकिन भारत में बजट में कई योजनाओं की शुरुआत भी होती है। बजट का आवंटन उस क्षेत्र की दशा तय करता है। इसलिए बजट से देश के करोड़ों किसानों को भी उम्मीद है कि वित्त मंत्री के टेबलेट से उनके लिए कई सौगातें निकलेंगी।

बिजनौर में नया गांव के किसान विकास कुमार के पास 2 भाइयों में 8 एकड़ जमीन है। जिसमें वो गन्ने और गेहूं की खेती करते हैँ। विकास कहते हैं, “जो खेत पिछले साल 500 रुपए के डीजल में जोतते थे उससे 1500 लग रहे। ट्यूबवेल का जो बिल 8000 का आता था वो 12000-16000 रुपए हो गया है। सरकार को चाहिए कि डीजल से टैक्स हटाए और बिजली सस्ती करे।”

डीजल की महंगाई ने बिगाड़ा किसान का बजट

किसानों के मुताबिक उन्हें सबसे ज्यादा डीजल की महंगाई ने परेशान किया है। उत्तर प्रदेश में जनवरी 2022 में डीजल की औसत कीमत 87 रुपए प्रति लीटर है। जबकि साल 2021 के जनवरी में रेट 74-75रुपए लीटर था। रबी के पीक सीजन में (नवंबर 2021) में किसानों को 98.89 रुपए में लीटर में डीजल खरीदना पड़ा। कई जगह से 100 का आंकड़ा पार भी कर गया था। थोड़ा और पीछे जाएं तो जनवरी 2020 में यूपी में डीजल की औसत कीमत 64-65 रुपए प्रति लीटर थी।

यही वजह है कि किसान डीजल पर सब्सिडी चाहते हैं। यूपी में बरेली के किसान श्यामवीर मौर्या कहते हैं, “खेती में जुताई लेकर सिंचाई, ढुलाई तक सब डीजल से होता है इसलिए सरकार को चाहिए किसान को सब्सिडी पर डीजल मिले। किसान की खाता बही (खसरा खतौनी) देखकर कम रेट पर डीजल मिलना चाहिए।”

साल 2021-22 के बजट में सरकार ने कृषि क्षेत्र के लिए 1.48 लाख करोड़ का बजट आवंटित किया था। पिछले बजट में सरकार के मुताबिक उनका जोर बुनियादी ढांचे को मजबूत करने पर था। एक लाख करोड़ रुपए का एग्री इंफ्रा फंड की भी घोषणा हुई थी। इस दौरान उर्वरक सब्सिडी 79530 करोड़ रुपए थी। इस दौरान कृषि ऋण के लिए 16.5 लाख करोड़ निर्धारित किए गए थे। इस वर्ष कृषि ऋण बजट फिर बढ़ने का अनुमान है।

कृषि ऋण का सिर्फ किसान के लिए हो इस्तेमाल- प्रो. सुखपाल

भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) अहमदाबाद में प्रोफेसर और सेंटर ऑफ मैनेजमेंट इन एग्रीकल्चर (cma) के पूर्व चेयरमैन प्रो. सुखपाल सिंह सलाह देते हैं सरकार को चाहिए कृषि क्षेत्र के लिए जो बजट आवंटित हो उससे दूसरे सेक्टर को अलग रखा जाए।

उदाहरण के लिए वो कृषि लोन का जिक्र करते हुए कहते हैं, “सरकार हर साल कृषि ऋण में करोड़ों रुपए का इंतजाम करती है लेकिन उसका बड़ा हिस्सा किसानों को न मिलकर फूड प्रोसेसिंग सेक्टर, कोल्ड स्टोरेज और कृषि से जुड़े दूसरे सेक्टर को चला जाता है, कोई 25 करोड़ कोई 50 करोड़ का लोन ले जाता है। ऐसे में बैंकों का प्राथमिक सेक्टर का कोटा पूरा हो जाता है लेकिन आम किसानों को उसका फायदा नहीं मिल पाता है।”

प्रो. सुखपाल सिंह सलाह देते हैं कि बैंकों के लिए प्राथमिक सेक्टर का जो 15-18 फीसदी लोन देने का कोटा होता है उसमें सिर्फ किसान को शामिल किया जाए। प्रो. सिंह कहते हैं, “रिजर्व बैंक ने बैंकों को छूट दी है अगर उनके प्राथमिक कोटा का लोन पूरा हो जाता है तो वो उससे आगे का दूसरे बैंकों को दे सकते हैं। यानी बैंक आपस में ट्रेडिंग कर सकते हैं, इससे क्या होता है कोई बैंक बिल्कुल किसानों को लोन नहीं देता, निजी बैंक इसमें सबसे पीछे हैं वो दूसरी बैंक से ट्रेडिंग कर कोटा पूरा कर लेते हैं। इस पर तुरंत रोक लगनी चाहिए।”

‘वेयर हाउस पर रखे अनाज पर लोन की सरल हो सुविधा, बटाईदार को भी मिले पीएम किसान निधि’

बजट के जिक्र में प्रो सुखपाल दूसरा सुझाव वेयरहाउस में रखे अनाज पर लोन की सुगम सुविधा का देते हैं। प्रो. सुखपाल के मुताबिक भारत में ज्यादातर किसान लोन लेकर खेती करते हैं। और फसल काटने के बाद पेमेंट (भुगतान) के लिए वो किसी भी रेट में फसल बेच देते हैं। सरकार की जो योजना है, जिसमें वेयर हाउस में रखने अनाज की कीमत के 80 फीसदी के बराबर बैंक लोन मिलता है, उसे दुरुस्त करना चाहिए।

प्रो सुखपाल गांव कनेक्शन को बताते हैं, “देश में वेयरहाउसिंग के जरिए लोन वाली व्यवस्था काफी कारगर हो सकती है। देश में 2007 से वेयरहाउस एक्ट लागू है और 2010 से वेयरहाउसिंग डेवलपमेंट एंड रेगुलेटरी अथॉरिटी काम कर रही है। लेकिन अभी तक देश में 3000 से भी कम वेयरहाउस है जिनकी रसीद पर बैंक लोन देती हैं। अगर लोन सही तरीके से मिलने लगा तो वो किसान औने-पौने कीमत पर फसल बेचने पर मजबूर नहीं होगा। क्योंकि जब फसल आती है तो अमूमन मार्केट रेट कम ही होता है।”

बजट और खेती किसानी की बात करते हुए प्रो. सुखपाल भूमिहीन और बटाईदार किसानों के तक लाभ पहुंचाने की वकालत करते हैं। वो कहते हैं, “हमारे देश में सरकारी आंकड़ा ही मानता है कि 17 फीसदी के आसपास बटाई या ठेके पर खेती होती है। लेकिन जमीन पर देखे तो कम से कम 30-40 फीसदी किसान ऐसे होंगे जो किसी और की जमीन पर खेती करते हैं, ऐसे लोगों को बैंक किसान नहीं मानता उन्हें कोई फायदा नहीं मिलता है। ऐसे किसानों को वेयरहाउसिंग वाला लोन काम आ सकता है। दूसरी ऐसे किसानों को पीएम किसान योजना का भी फायदा नहीं मिल पाता। सरकार को इसके बारे में भी सोचना चाहिए।”

किसान की फसल का मिले उचित मूल्य

बढ़ती लागत के बाद किसान जिस मुद्दे पर सबसे ज्यादा बात करते हैं वो उनकी फसल का उचित मूल्य है। बरेली के किसान यशपाल गंगवार के पास 2 एकड़ में गन्ना था और थोड़ी में सरसों है। वो कहते हैं, “खेती में सबसे ज्यादा खर्च डीजल का है। काश्तकार (किसान) को कम रेट में डीजल मिलना चाहिए। सरकार या तो डीजल के रेट घटाए या फिर सस्ती दरों पर ट्यूबवेल से सिंचाई की व्यवस्था करे। अगर लागत घटती तो किसान का हिसाब ठीक बैठ जाएगा।”

बरेली में ही बदायूं से करीबी इलाके में उर्वरक और पेस्टीसाइड की दुकान चलाने वाले हुकुम राजपूत कहते हैं, “बजट किसान के फेवर (पक्ष) में हो तभी सबका फायदा है। व्यापारी हो या कारोबारी। जब किसान सुखी होगा तो सब सुखी रहेंगे। किसान का गल्ला (अनाज) महंगा बिकेगा, उसकी आय बढ़ेगी, उसके हाथ में पैसा होगा तो वो सब ठीक होगा। किसान का महंगा सामान बिकेगा तो वो बाजार से भी खरीदारी करेगा।”

देश में सरकार ने 23 फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य और 2 फसलों का एफआरपी (उचित और लाभकारी मूल्य) घोषित किया है। लेकिन खुद सरकारी आंकड़े और कई रिपोर्ट बताती रही हैं कि किसानों की एक बड़ी आबादी एमएसपी के फायदे से दूर है। बाजार में किसान की उपज कम कीमत में बिकती है। इसलिए किसान, किसान नेता और कृषि हितैषी लोग एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांग करते रहे हैं।

MSP पर गारंटी मिले या फिर बढ़ाई जाए पीएम किसान निधि- चौधरी पुष्पेंद्र सिंह

किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष चौधरी पुष्पेंद्र सिंह कहते हैं, “किसान के लिए बजट में सबसे जरूरी है कि एमएसपी का गारंटी या उसके एवज में भुगतान हो। सरकारी खरीद के इतर जो प्राइवेट सेक्टर किसान से खरीदता है वहां रेट एमएसपी से औसतन 25 फीसदी कम होता है। कोई फसल अगर एमएसपी से महंगी बिकती है तो कई फसलें उससे काफी नीचे भी रहती हैं। साल 2020-21 के अगर फसलों के आंकड़े को मोटा-मोटी जोड़े तो प्राइवेट सेक्टर करीब 4 लाख करोड़ का माल किसान से खरीदता है, लेकिन किसानों को भुगतान करीब 3 लाख करोड़ का होता है। ये जो एक लाख करोड़ रुपए किसान की जेब में कम पहुंचते हैं, सरकार को इसका इंतजाम करना होगा। इसके लिए या तो वो एमएसपी की गारंटी या या फिर पीएम किसान निधि के जरिए किसानों की भरपाई करे।” पुष्पेंद्र चौधरी यूपी के गाजियाबाद में रहते हैं।

साल 2021-22 के बजटमें मुख्य बजट आवंटन

छुट्टा पशुओं के लिए हो इंतजाम, बैरीकेडिंग के लिए मिले सब्सिडी

बजट की चर्चा में किसानों के बीच छुट्टा पशुओं की बड़ी समस्या नजर आती है। यूपी के बाराबंकी में बागवानी विभाग के पूर्व कर्मचारी और किसान अनिल श्रीवास्तव इन पंक्तियों से अपनी बात शुरू करते हैं, “जमीन को चीर को हम उम्मीद बोते हैं, हम किसान हैं चैन से कहां सोते हैं?” वो आगे कहते हैं, “हम किसान बहुत अच्छा उत्पादन करते है लेकिन उसे बचा नहीं पाते हैं। आने वाले बजट में सरकार घेराबंदी (फेंसिंग) आदि के लिए अनुदान देना चाहिए। इसके अलावा किसान जो कोल्ड स्टोर आलू आदि रखते हैं सरकार को चाहिए कि उस छूट दे। प्याज-टमाटर जैसी फसलों के बीज बहुत महंगे हैं इनके लिए भी सरकार को सोचना चाहिए।”

वहीं वाराणसी में गौर गांव के बुजुर्ग किसान डॉ शीतल प्रसाद सिंह जो पीएचडी तक पढ़ाई कर चुके हैं वर्तमान में धान गेहूं की खेती करते हैं। उनके मुताबिक डीजल और घरेलू गैस के दाम कम होना चाहिए। वो कहते हैं, “महंगाई बहुत ज्यादा पहले से है। डीजल-पेट्रोल की वजह से महंगाई पर बहुत भार पड़ता है। इससे ट्रांसपोर्टेशन महंगा हो जाता है। जिससे आम आदमी की रोज की खाने-पीने वाली चीजें महंगी हो जाती है। इससे हर आदमी परेशान होता है। ऐसी चीजों पर सरकार को टैक्स और जीएसटी कम करना चाहिए।”

बजट के तमाम आंकड़ों और लाखों करोड़ों के बजट से इतर बरेली में अपने खेत में मेथी का साग काट रही उर्मिला मौर्या कहती हैं, “बाकी सब ठीक है लेकिन इतनी महंगी गैस और तेल खरीद कर काम कैसे चलेगा। 200 रुपए में कभी तेल बिका था। सरकार को इसे सस्ता करना चाहिए।”

इनपुट-मो. आरिफ, अंकित सिंह, वीरेंद्र सिंह, सचिन तुलसा त्रिपाठी, रामजी मिश्र, बिजेंद्र दुबे, मोहित शुक्ला

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