ओडिशा के पर्यावरणविद काफी खुश हैं, क्योंकि घड़ियालों के प्रजनन पर चार दशक लंबी परियोजना, लुप्त हो चुकी मगरमच्छ की प्रजाति उनके प्राकृतिक आवास में सकारात्मक असर दिखा रही है।
लगातार दूसरे साल पिछले हफ्ते 11 मई को ओडिशा के अंगुल जिले के सतकोसिया वन्यजीव अभयारण्य के भीतर महानदी में लगभग 32 बच्चों का जन्म हुआ है।
सुदर्शन महाराणा, घड़ियाल परियोजना सलाहकार और एक प्रसिद्ध पशु चिकित्सक ने गाँव कनेक्शन को बताया, “ओडिशा में घड़िया संरक्षण प्रोजेक्ट के लॉन्च होने के चार दशक के बाद, पिछले साल 22 मई को, सतकोशिया घाटी के नो फिशिंग जोन के अंदर महानदी में अपने प्राकृतिक आवास में 21 घड़ियाल के बच्चे पैदा हुए।” महाराणा 1980 के दशक में देश में पहली बार हुए घड़ियाल प्रजनन में शामिल थे, जो ओडिशा नंदनकानन बायोलॉजिकल पार्क में हुआ था।
महाराणा ने बताया, “इस साल 11 मई को दुबारा प्राकृतिक प्रजनन हुआ है, जिसमें एक ही मां के अंडों से एक ही स्थान पर 32 घड़ियाल के बच्चे पैदा हुए हैं। सतकोसिया में घड़ियाल का प्राकृतिक प्रजनन देश में घड़ियाल संरक्षण के लिए अच्छा संकेत है।”
सतकोसिया वन्यजीव अभयारण्य के डिविजनल वन्य अधिकारी, सरोज कुमार पांडा ने बताया, “घड़ियाल खास तौर पर बारिश के मौसम में बाढ़ की वजह से नदी में बह जाते हैं, जो उनके संरक्षण को और ज्यादा चुनौतीपूर्ण बना देता है। महानदी में घड़ियालों की मौजूदगी सतकोसिया अभयारण्य में पर्यटन को बढ़ावा देगी।”
खतरे में घड़ियाल
1974 में हुए एक सर्वेक्षण में महानदी में घड़ियालों के दक्षिणी घरेलू क्षेत्र में सिर्फ 5 घड़ियाल (दो नर और 3 मादा) पाए गए थे। लुप्त होने की कगार पर पहुंच जाने की वजह से राज्य के वन विभाग ने 1975 में मगरमच्छ प्रजातियों के अंडे सेने और दो मीटर लम्बा होने पर उन्हें नदियों में छोड़ने के मकसद से मगरमच्छ संरक्षण परियोजना शुरू की।
इसके अलावा, बाहर से इकट्ठा किए गए अंडों को टिकरपाड़ा एक पालन केंद्र में और नंदनकानन प्राणी उद्यान में कैप्टिव ब्रीडिंग सेंटर में बंदी प्रजनन की योजना बनाई गई थी। दुनिया में घड़ियाल का पहला बंदी प्रजनन 1980 में नंदनकानन में हुआ था और 1977 से 2016 तक कुल 867 घड़ियाल के बच्चे नदियों में छोड़े जा चुके हैं, जिनमें से एक तिहाई टकरपाड़ा से और दो तिहाई नंदनकानन जूलॉजिकल पार्क से थे।
महाराणा ने बताया कि 2017 की जनगणना में 12 घड़ियाल पाए गए, घड़ियालों के जीवित रहने की दर खतरनाक हद तक कम पाई गई।
घड़ियालों को बचाने की नई रणनीति
पशु चिकित्सक ने बताया कि घड़ियालों को बचाने के लिए 2019 में ‘महानदी में घड़ियाल की प्रजातियों की तलाश’ नाम से नई रणनीति बनाई गई थी। इसने संरक्षण की कोशिशों को पुनर्गठित किया है जैसे छोटे घड़ियालों को छोड़ने के बजाय बाढ़ में बह गए घड़ियालों के संरक्षण के उपायों के सख्त कार्यान्वयन के लिए महानदी के दोनों तरफ 11 वन प्रभागों की भागीदारी, नो फिशिंग जोन की घोषणा, जाल में फंसे घड़ियाल को इनाम व नेट का मुआवजा, जनभागीदारी के लिए व्यापक जन जागरूकता अभियान।
इसके नतीजे में प्राकृतिक प्रजनन के लिए मुनासिब हालात पैदा हुए। और 40 साल बाद, पिछले साल 22 मई को महानदी की मशहूर सतकोसिया घाटी के नो फिशिंग जोन में लगभग 21 बच्चों का जन्म हुआ। महाराणा ने बताया, “चूंकि हम पालने वाले घड़ियाल को कैद में रखने में विफल रहे हैं, इसलिए माँ को पिछले साल अपने 28 बच्चों के पालन पोषण का काम सौंप दिया गया। भारी बाढ़ ने बच्चों को बहा दिया और तीन बच्चों को 2021 में मछली पकड़ने की जाल से निकाला गया।”
दोबारा प्राकृतिक प्रजनन इस साल 11 मई को हुई जब एक ही स्थान पर एक ही माँ के अंडों से 32 बच्चों का जन्म हुआ। महाराणा ने कहा, “यह जानकर खुशी हो रही है कि स्पाइसेज रिकवरी प्रोजेक्ट ने इस टाइटल को सही ठहराया है जिसमें घड़ियाल के अस्तित्व को बड़ा फायदा मिला है।”
घड़ियाल एक लंबी चोंच वाला मगरमच्छ है जिसका भोजन खास तौर पर मछली है। यह महानदी और उसकी सहायक नदियों के साथ हिमालय से पोषित नदी प्रणालियों में पाया जाता है। पूर्व डिप्टी वन संरक्षक, उड़ीसा सरकार, मिहिर पटनायक ने कहा, “घड़ियाल इंसानों के लिए खतरा नहीं है। लेकिन खारे पानी के मगरमच्छ आदमखोर होते हैं और बहुत सारे लोग अनजाने में घड़ियाल को खारे पानी के मगरमच्छों से जोड़ देते हैं, जिसकी वजह से घड़ियालों की जान अब खतरे में है।”
अनुवाद: मोहम्मद अब्दुल्ला सिद्दीकी