मामना गाँव (महोबा), उत्तर प्रदेश। प्यारी देवी हमेशा अपने काले रेक्सीन बैग के साथ नज़र आती हैं। उनके इस बैग में मातृ स्वास्थ्य और शिशु देखभाल पर सरकार की ओर से जारी महत्वपूर्ण जानकारी और शिक्षा सामग्री होती हैं। उनके हाथ में एक पारदर्शी प्लास्टिक का डिब्बा भी है जिसमें कंडोम, गर्भनिरोधक और आयरन की गोलियाँ हैं। उन्हें यह सब दवाईयाँ और समान जिला अस्पताल से मिला है।
प्यारी देवी उत्तर प्रदेश के महोबा जिले के अपने गाँव मामना में गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए जी जान से जुटी रहती हैं। हालांकि वह सरकार की तरफ से नियुक्त आशा (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) कार्यकर्ता नहीं हैं।
वह गाँव की महिलाओं के साथ संपर्क में रहने वाली एक ऐसी शख्स है जो मदद माँगने वाले किसी भी व्यक्ति को निराश नहीं करती हैं। मदद माँगने वाला व्यक्ति गाँव में बने उनके दो कमरे के मिट्टी और ईंट के घर की ओर खिंचा चला जाता है।
उस दिन शाम 6 बजे जब गाँव कनेक्शन ने उनसे मुलाकात की, तो 35 साल की ये महिला एक साथी ग्रामीण के साथ पूरा दिन बिताकर घर लौटी थी।
प्यारी देवी ने कहा, “मैं सुबह नौ बजे घर से निकल गई थी, क्योंकि आठ महीने की गर्भवती विमला को पेट दर्द हो रहा था। मैं उसे अस्पताल ले गई और अभी-अभी लौटी हूँ।” उन्होंने तुरंत कहा कि वह आशा कार्यकर्ता नहीं हैं लेकिन उन्होंने मातृ स्वास्थ्य के लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया है।
प्यारी देवी ने समझाते हुए कहा, “आशा बहू बनने के लिए मुझे हाईस्कूल पास होना जरूरी है, लेकिन मैंने सिर्फ आठवीं कक्षा तक ही पढ़ाई की है। मैंने ग्राम प्रधान से बात की थी। मैंने उनसे पूछा कि क्या मुझे आशा बहू के रूप में नियुक्त किया जा सकता है, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है।”
प्यारी देवी के चार बच्चे हैं जिनमें से एक बेटा और तीन बेटियाँ हैं। इनकी सभी की उम्र आठ से 19 साल के बीच है। अपने बच्चों के लिए रात का खाना बनाते समय, प्यारी देवी ने प्रसव के दौरान हुए अपने दर्दनाक अनुभव के बारे में बताया। यह वह अनुभव था जिसने उन्होंने मातृ स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में कुछ करने के लिए प्रेरित किया।
प्यारी ने याद करते हुए कहा, “मैं 2011 में गर्भवती थी। मेरे पेट में दर्द था लेकिन मेरे पति ने मुझे खेत में काम करने के लिए मजबूर किया। जैसे ही मैंने झटके से मिट्टी की एक टोकरी उठाई, मुझे तुरंत पता चल गया कि कुछ गड़बड़ है।” वह तीन दिनों तक दर्द से जूझती रही और जब अगले दिन उसे भारी रक्तस्राव हुआ, तब भी वह इसके बारे में कुछ नहीं कर सकी क्योंकि उसे बताने या समझाने वाला कोई नहीं था।
जब वह बड़ी उम्र की महिलाओं के पास गई, तो उन्होंने उससे कहा कि ऐसा कभी-कभार हो जाता है। उन्हें इसे लेकर चिंता नहीं करनी चाहिए। लेकिन, जब खून बहना नहीं रुका तो प्यारी दो किलोमीटर पैदल चलकर मुख्य सड़क तक पहुँची और वहाँ से ऑटो लेकर जिला अस्पताल आई।
उसने कहा, “लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। मैंने बच्चा खो दिया।”
प्यारी ने बताया, “यह एक डरावना समय था। अगर गाँव में कोई सही सलाह देने वाला होता तो इसे आसानी से टाला जा सकता था।” प्यारी के अनुसार, अपने गर्भपात के बाद भी उसे सब कुछ अकेले ही सहना पड़ा था। उन्होंने याद करते हुए कहा, ” यह सबसे बड़ा दर्द था, जिससे मुझे अकेले गुजरना पड़ा था।”
ग्रामीण महिलाओं की एक विश्वसनीय सलाहकार
आज विमला जैसी महिलाओं के लिए प्यारी एक विश्वसनीय सलाहकार है। एक ऐसी मददगार जो प्यारी के पास नहीं थी। वह अपने इस काम के जरिए उस खालीपन को भरने की कोशिश करती है जो उन्होंने तब देखा था जब उन्हें इसी तरह की मदद की जरूरत थी। वह महिलाओं को मातृ एवं यौन स्वास्थ्य पर सलाह देती हैं और गर्भवती महिलाओं के लिए संस्थागत प्रसव की सुविधा भी मुहैया कराती हैं।
यह सब सीखने के लिए प्यारी ने अपने गर्भपात होने के एक साल बाद साल 2012 में मातृ स्वास्थ्य देखभाल पर लखनऊ में एक निजी संस्थान द्वारा आयोजित एक ट्रेनिंग वर्कशॉप में भाग लिया था।
ट्रेनिंग छह माह तक चली। महीने में पाँच दिन उन्हें मातृ स्वास्थ्य देखभाल की बुनियादी बातों पर ट्रेनिंग दी जाती थी। बाकी जानकारी उन्होंने महोबा जिला अस्पताल से ली।
प्यारी ने कहा, “जिला अस्पताल के स्वास्थ्य कार्यकर्ता हमें यह बताते हैं कि माताओं और बच्चों के लिए टीकाकरण कब किया जाना है और आयरन और कैल्शियम गोलियों की कितनी जरूरत है।”
वह आठ साल से जिला अस्पताल का दौरा कर रही हैं और उन्होंने स्वास्थ्य कर्मचारियों का विश्वास जीता है।
महोबा जिला अस्पताल के स्वास्थ्य कार्यकर्ता अनिल कुमारी ने गाँव कनेक्शन को बताया, “प्यारी अपने काम में बहुत अच्छी है। हमने उन्हें ममना गाँव की गर्भवती महिलाओं और नई माताओं तक पहुंचने में मदद करने के लिए किताबें और चित्र मार्गदर्शिकाएं दी हैं। दरअसल उन्हें जरूरी स्वास्थ्य देखभाल सहायता प्राप्त करने में मदद की है।”
तेज़ी से कार्रवाई
प्यारी एक कॉल के जरिए ममना गाँव की गर्भवती माताओं के लिए जिला अस्पताल से सरकारी एम्बुलेंस बुलाती हैं ।
उन्होंने कहा, “प्रसव के बाद भी मैं नई माँओं से मिलती हूँ और उनकी हर बात सुनती हूँ। अपनी मानसिक लड़ाइयाँ और प्रसव के बाद की कहानियाँ सब कुछ वो मेरे साथ साझा करती हैं। मैं उन्हें जज नहीं करती और इसीलिए वे मुझ पर भरोसा करती हैं।”
दलित समुदाय से आने वाली प्यारी ने बताया, “यहाँ तक कि ऊँची जाति के लोगों के घर की महिलाओं को प्रसव के लिए अस्पताल ले जाने की जरूरत होती है, तो वो लोग भी मेरे पास आते हैं। वे जानते हैं कि मुझे इसमें अनुभव है और अगर मैं इसमें शामिल हो जाऊं तो यह प्रक्रिया आसान हो जाएगी।”
संस्थागत प्रसव के अलावा, प्यारी गाँव की महिलाओं को गर्भनिरोधक और अवांछित गर्भधारण के मामलों में भी सलाह देती हैं । प्यारी ने गाँव कनेक्शन से कहा, “अगर गाँव की कोई महिला बच्चे का गर्भपात कराना चाहती है, तो मैं उसे सलाह देती हूँ कि वह खुद से दवाइयों पर निर्भर न रहे। डॉक्टर के पर्चे के बिना मिलने वाली दवाइयाँ लेने के बजाय प्रक्रिया को पूरा करने के लिए अस्पताल जाएँ। आखिरकार भुगतना तो एक महिला को ही पड़ता है, न कि पति को, जो इन मामलों को हल्के में लेता है।”
अपने अनुभव बताते हुए प्यारी ने कहा कि पूरी गर्भावस्था के दौरान उनमें खून की कमी रही थी। उन्होंने कहा, “लेकिन, मुझे नहीं पता था कि मुझे आयरन की दवाइयाँ लेनी चाहिए या अपने खाने में हरी सब्जियाँ शामिल करनी चाहिए। मुझे और मेरे बच्चों को अज्ञानता का खामियाजा भुगतना पड़ा।”
प्यारी अब इस बात का खास ख्याल रखती है कि उसके गाँव की महिलाएँ प्रसव के दौरान और उसके बाद फोलिक एसिड और आयरन की खुराक लेती रहें और इनके महत्व को समझें।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -5 में दर्ज किया गया है कि ग्रामीण उत्तर प्रदेश में सिर्फ 39.6 फीसदी गर्भवती महिलाएँ ही कम से कम चार प्रसवपूर्व देखभाल के लिए गईं और सिर्फ 8.5 प्रतिशत माताओं ने अपनी गर्भावस्था के दौरान 180 दिनों या उससे अधिक समय तक आयरन फोलिक एसिड की दवाइयाँ लीं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, बच्चे को जन्म देने के बाद भी महिलाओं को संतुलित आहार खाने की ज़रूरत होती है, जैसा कि उन्होंने गर्भावस्था के दौरान किया था। जन्म के बाद तीन महीने तक आयरन और फोलिक एसिड की खुराक भी जारी रखनी चाहिए।
बढ़ता गया भरोसा
पिछले कुछ सालों में प्यारी ने अपनी एक ऐसी पहचान बना ली है कि युवा नई शादी-शुदा और अन्य महिलाएँ शारीरिक अंतरंगता और रिश्तों के मामलों पर चर्चा करने के लिए उनके पास चली आती हैं। गाँव की युवा महिलाएँ अक्सर चोरी-छिपे उनसे मिलने आती हैं। वे न सिर्फ अपने और अपने पतियों के लिए गर्भनिरोधक लेती हैं, बल्कि उनके पास गुपचुप लंबी बातचीत और ढेर सारे सवाल भी होते हैं।
प्यारी ने कहा, “वे मुझसे पूछते हैं कि क्या कंडोम का इस्तेमाल करने से उनके पति के स्वास्थ्य पर असर पड़ेगा या फिर उन्हें इसका इस्तेमाल करने के लिए कैसे मनाया जाए, आदि। मेरे पास बहुत सी युवा अविवाहित लड़कियाँ भी आती हैं। वो ऐसे मामले लेकर आती हैं जिनके बारे में कोई भी उनके साथ खुलकर चर्चा नहीं करता। लेकिन मैं करती हूँ।”
उन्होंने कहा कि महिलाओं ने उन पर भरोसा किया और उन्होंने अपनी ओर से उस भरोसे को बनाए रखने के लिए सब कुछ किया है। उनके लिए महिलाओं को यौन मामलों, स्वास्थ्य देखभाल और गर्भधारण के बारे में शिक्षित करना सबसे महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा, “वे जो मुझसे कहती हैं वह हमारे बीच रहता है।”
प्यारी मुस्कुराते हुए कहती हैं , “समुदाय के साथ ऐसा विश्वास बनाने में सालों लग जाते हैं वे अपने जीवन के महत्वपूर्ण पलों में मेरे पास पहुँचते हैं। यह उनका विश्वास ही तो है। यह सिर्फ मेरे द्वारा कमाया गया पैसा नहीं है।”
प्यारी को महोबा जिला अस्पताल से मिलने वाली आयरन और कैल्शियम की दवाओं पर 30 प्रतिशत कमीशन मिलता है, और जिन मरीजों को वह अस्पताल ले जाती है उनके परिवारों के आधार पर, वह 200 रुपये से 500 रुपये के बीच कुछ कमा लेती हैं।