प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बीए और एमए पास हैं या नहीं, इस काम पर दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने अपनी टीम जुटा दी है। सवाल है यदि नहीं पास हैं तो क्या होगा और यदि पास हैं तो क्या करोगे। यह कोई विश्वविद्यालय के प्राध्यापक का पद नहीं है जिसके लिए न्यूनतम योग्यता न होने पर नौकरी चली जाएगी। सांसद की न्यूनतम योग्यता क्या है पहले इसका निर्णय हो जाए। मैं समझता हूं कितने ही सांसद निरक्षर रहे हैं। मांग यह होनी चाहिए कि सासदों और विधायकों की न्यूनतम योग्यता निर्धारित की जाए।
केजरीवाल की नाराजगी का कारण समझ में आता है क्योंकि सीबीआई ने उनके कार्यालय पर छापा मार कर कुछ फाइलें अपने कब्जे में ले ली हैं और शायद जिनमें कुछ ऐसी जानकारी है जो उन्हें असहज कर रही हैं। दूसरे उन पर जेटली ने मानहानि का मुकदमा दाग रखा है और पहले भी मानहानि के मुकदमे चल रहे हैं, ऐसा कहा जाता है। स्मृति ईरानी की योग्यता पर भी सवालिया निशान लगे थे लेकिन अब शान्ति है। ध्यान रहे आरोप लगाने वाले वे लोग हैं जिन पर जांच पड़ताल चल रही हैं। कानून का रास्ता क्यों नहीं अपनाते और टीवी पर हल्ला क्यों करते रहते हैं यह वही जानें।
प्रधानमंत्री मोदी से सोनिया गांधी और राहुल गांधी भी नाराज हैं क्योंकि उनके खिलाफ भी जांच चल रही है और कार्रवाई हो रही है। पहले नेशनल हेराल्ड का मसला और अब अगस्ता कम्पनी से हेलिकॉप्टर खरीदने में रिश्वत की बात। यूपीए सरकार के जितने भी घोटालों की जांच होगी उन सब की आंच सोनिया और राहुल पर आएगी क्योंकि यही असली कर्ता-धर्ता थे उस सरकार में। इसी प्रकार भारतीय जनता पार्टी के नेता और अटल जी की सरकार में डिसइन्वेस्टमेंन्ट के मंत्री रहे महेश्वरी भी मोदी के तीव्र आलोचक हैं। सरकारी कम्पनियां बेचने में उनकी भूमिका पर लोगों ने उंगली उठाई थी और शायद जांच भी हुई थी, पता नहीं पूरी हुई अथवा नहीं।
अब सवाल है क्या डिग्री का सांसद, मंत्री या प्रधानमंत्री की कुर्सी से कोई सम्बन्ध है। हमारे देश के कुशल नेता कामराज नादर केवल कक्षा सात उत्तीर्ण थे और इन्दिरा गांधी के पास भी कोई भारी भरकम डिग्रियां नहीं थीं, भारत का गवर्नर जनरल लॉर्ड क्लाइव जहां तक कक्षा तीन पास था। यह रिसर्च का विषय होगा कि किस नेता के पास कौन सी डिग्री थी। उससे भी अधिक रिसर्च का विषय है सरकारी कामकाज में डिग्री कितनी सहायक हुई।
वैसे मैं यह तो नहीं जानता कि मोदी के पास कौन सी डिग्री है लेकिन उनके भाषण सारगर्भित होते हैं और जिस फोरम पर बोलते हैं उसमें विषयान्तर नहीं होता। चुनाव भाषणों की बात अलग है। इसका मतलब यह नहीं कि डिग्रियां अनावश्यक हैं लेकिन वहीं देखी जानी चाहिए जहां न्यूनतम योग्यता का सवाल बनता हो। शासक का मूल्यांकन उसकी शासन व्यवस्था देखकर होना चाहिए ना कि डिग्रियों के आधार पर। किसी अकादमी अवार्ड का निर्णय नहीं हो रहा है।टीवीवालों की कौन कहे वे तो दुनिया के किसी मसले पर अपना फैसला सुनाने को आतुर रहते हैं। मैंने देखा इस विषय के पैनल में जो लोग बैठते हैं उनमें एक भी उपकुलपति या कुलसचिव नहीं रहता जो बता सके मामला क्या है।