महात्मा गांधी के जन्मदिन पर 2014 को जब नरेन्द्र मोदी ने स्वच्छ भारत का आवाहन किया तो कांग्रेस के लोगों ने कहा कि मोदी रोज झाड़ू लगाएं और जीवन के हर क्षेत्र में गांधी को उतारें तब उन्हें गांधीवादी कहा जाएगा लेकिन मोदी ने अपने को कभी गांधीवादी घोषित नहीं किया है। एक और आलोचना हुई कि मोदी हर बात को इवेन्ट यानी आयोजन बना देते हैं। उन्हें कौन समझाए कि गांधीजी भी यही करते थे। कहीं पढ़ा था गांधीजी उच्चस्तरीय बैठक छोड़कर बकरी की टूटी टांग में मिट्टी बांधने चले गए थे और कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में टोकरा लेकर गन्दगी साफ करने लगे थे।
अटल जी को आपातकाल के बाद 1977 में जब इंदिरा गांधी ने जेल से छोड़ा तो उन्होंने कहा था जेल में गांधी जी को पढ़ा और पाया कि उनके खुद के विचार गांधी जी से भिन्न नहीं हैं। जब कांग्रेस ने डीजल के दाम बढ़ाए तो अटल जी बैलगाड़ी पर बैठ कर संसद गए थे और लखनऊ में एक बार विधानभवन जाते समय उन्हें रोका गया तो सड़क पर ही बैठ गए और शुरू हो गया आन्दोलन। हर चीज को इवेन्ट बनाना एक कार्यपद्धति है जो देश को गांधी जी से मिली है। शायद आरएसएस, अटल जी और नरेन्द्र मोदी ने महात्मा गांधी को कांग्रेस से बेहतर ढंग से समझा है।
जब गांधी जी ने नमक सत्याग्रह का आवाहन किया और वल्लभ भाई पटेल की अगुवाई में दांडी मार्च का आयोजन हुआ तो किसी ने उनसे यह नहीं कहा कि रोज नमक बनाओ तो जाने। गांधी जी ने नमक सत्याग्रह को इवेन्ट बना दिया था परन्तु उससे देश की रगों में खून दौड़ गया था। गांधी जयन्ती पर सफाई अभियान का शुभारम्भ करके मोदी ने देश के कोने-कोने तक स्वच्छ भारत आन्दोलन की लहरें पहुंचाई हैं। स्वच्छता गांधी जी के जीवन का मूलमंत्र था और लगता है नरेन्द्र मोदी के जीवन का भी।
जब गांधी जी ने सूत कातकर देश में आन्दोलन किया तो यह भी सांकेतिक ही था, परन्तु चरखा आजादी का निशान बन गया। कांग्रेस ने तो उसे अपनी पार्टी का निशान बना दिया। केवल कपड़ा बनाकर देश के स्वावलम्बन की बात होती तो देश में जुलाहों की कमी नहीं थी, उन्हें संगठित और प्रेरित कर सकते थे गांधी जी। गांधी जी तो देश में प्राण फूंकना चाहते थे और उन्होंने ऐसा ही किया, चरखा चलाकर। नरेन्द्र मोदी ने देश का आवाहन किया है कि खादी का एक कपड़ा जरूर पहनो चाहे वह रूमाल ही क्यों न हो। इससे गांधी, आजादी और स्वाभिमान का अहसास होगा। दोनों की अथक मेहनत और किस्मत का साथ एक जैसा है। गांधी, पटेल और मोदी तीनों ही गुजरात से सम्बन्ध रखते हैं और व्यवहारिक सोच रखते हैं।
कांग्रेस ने गांधी विचार को सम्मान नहीं दिया लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रातः स्मरण में गांधी जी को प्रतिदिन नमन किया जाता है। अटल बिहारी वाजपेई ने 1980 में जब अपनी पार्टी का आर्थिक सिद्धान्त सोचा तो वह गांधीवादी समाजवाद था, दीनदयाल जी का एकात्म मानववाद नहीं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गांधी जी का स्वच्छ भारत का अधूरा सपना पूरा करने का निश्चय किया है। कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए खादी पहनना अनिवार्य हुआ करता था, अब नहीं है, शताब्दी जैसी गाड़ियों में गांधी जी का प्रिय भजन ‘‘वैष्णव जन तो तेने कहिए जे पीर पराई जाणे रे” बन्द कर दिया गया है, प्रभातफेरियों में अब ‘रघुपति राघव राजाराम, पतित पावन सीताराम” नहीं सुनाई पड़ता, जिन लोगों ने विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी उनके वंशज विदेशों में पढ़कर विदेशी संस्कृति का पालन अपना गौरव समझते हैं।
कहने को सभी मानते हैं कि महात्मा गांधी के विचारों को आगे बढ़ाया जाए तो फिर इससे कोई अन्तर नहीं पड़ना चाहिए कि इसका समर्थक कौन है, चलाने वाला कौन है। यह सच है कि दीनदयाल उपाध्याय, नानाजी देशमुख, अटल बिहारी वाजपेयी और अब नरेन्द्र मोदी ने कभी भी गांधी टोपी नहीं पहनी और अपने को गांधीवादी नहीं कहा परन्तु उनके काम गांधी विचार के निकट रहे हैं। आशा है कांग्रेस और दूसरे दलों के लोग अपने पूर्वाग्रहों को छोड़ेंगे अच्छे कामों की आलोचना नहीं करेंगे।