आकांक्षा श्रीवास्तव
आज मैं आपसे बात करना चाहती हूं सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने पर। सोशल मीडिया जैसे फेसबुक, ट्विटर या इंस्टाग्राम। आपको ये जान कर हैरानी होगी कि दुनिया में सोशल साइट और ऐप इस्तेमाल करने की औसत उम्र है 10 साल कुछ महीने । यानि 11 साल से छोटे बच्चे भी इसका इस्तेमाल कर रहे हैं।
भारत में ये औसत उम्र 12 साल है। लेकिन क्या आपको लगता है कि 12 साल के बच्चे को यह पता होगा कि कौन सा ऐप इस्तेमाल करना चाहिए और कौन सा नहीं? किस व्यक्ति की आईडी फर्जी है और किसकी नहीं? फेसबुक, ट्विटर या दूसरे साइट्स पर हमें किसे दोस्त बनाना चाहिए किसे नहीं? शायद आप मेरी बातों से सहमत होंगे कि बच्चे इतने परिपक्व नहीं होते कि वे इस स्तर पर सही-गलत का फैसला कर सकें।
तो फिर ऐसी क्या वजह है कि आजकल हर बच्चे के हाथ में स्मार्ट फोन हैं? स्मार्ट फोन है और उसमें इंटरनेट है तो बच्चे सोशल मीडिया ऐप भी इस्तेमाल करते होंगे। यानि एक तरह से अभिभावकों की सहमति है। मुझे लगता है कि मां-पिता को इसमें बहुत सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि इतनी कम उम्र में सोशल मीडिया जैसा खुला हथियार सही नहीं। फेसबुक जैसे बहुत सारे सोशल मीडिया ऐप यह चेतानवी देते हैं कि बच्चों को 13 साल के बाद ही . सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने दें और माता-पिता उनकी एक्टिविटी पर ध्यान भी दें।
लेकिन उसके लिए जरुरी है मां-पिता के पास इतना वक्त हो कि वे देख सकें कि बच्चा फोन में करता क्या है, वो देखता क्या है। किससे बात करता है, क्योंकि पिछले कुछ समय में जिस तरह से सोशल मीडिया पर पहले दोस्ती और फिर ब्लैकमेलिंग के मामले सामने आए हैं उन्होंने सोचने पर मजबूर कर दिया है। अगर आप के कम उम्र के बच्चे स्मार्टफोन का इस्तेमाल कर रहे हैं तो आप भी सजग रहिए उन्हें लगातार जागरुक करते रहें कि वो अजनबियों से बात न करें।
दिल्ली-मुंबई और लखनऊ समेत दर्जनों शहरों और कस्बों में अपने अभियान के दौरान बच्चों, छात्र-छात्राओं, पुलिस और सामाजिक लोगों से बात करके मुझे समझ आया कि ये कई समस्याओं की जड़ है। मैंने कई बच्चों को इसके मकड़जाल में फंसते हुए देखा है, जिसका खामियाजा उनके माता-पिता तक को भुगतना पड़ा है।
मेरी विनती है कि अपने बच्चे के हित के लिए उसे कम उम्र में फोन न दें। हो सकता है आप बहुत व्यस्त हैं, आपके पास समय न हो, इसलिए आप बच्चों के हाथ में फोन पकड़ा देते हैं लेकिन ये हल नहीं। आप वक्त निकालिए, अपने बच्चे के साथ थोड़ा खेलिए, उसे भी खेलने के लिए प्रेरित करें। मैं तो कहूंगी कि जब तक कि वे समझ न जाएं कि सोशल मीडिया पर सही गलत क्या है, किसी की फेसबुक, ट्विटर आईडी पर उसकी हरकतें देख उसके सही-गलत होने का निर्यण कर सकें तब तक उन्हें फोन की लत न डालें। यह उम्र खेलने-कूदने दोस्त बनाने की है।
नोट- लेखक देश में सोशल मीडिया पर शोषण के खिलाफ मुहिम चला रही हैं, ये उनके निजी विचार हैं।