कांग्रेस ने लम्बे समय तक हिन्दुत्व का लाभ लिया

कांग्रेस पार्टी अपने को महात्मा गांधी की अनुयायी कहती है और उन्हीं के नाम से जानी जाती थी। उनके भजन "रघुपति राघव राजाराम पतित पावन सीताराम" अथवा "वैष्णव जन ते तैने कहिए जे पीर पराई जाणे रे" पूरे हिन्दू समाज की आवाज है। उनकी अहिंसा, सत्याग्रह, शाकाहारी सादा जीवन, वैष्णव जनों का आवाहन, जीवन शैली सब कुछ सनातनी हिन्दू की कल्पना थी
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साभार: इंटरनेटआरम्भ में कांग्रेस ने बिना उद्घोष किए हिन्दुत्व का रास्ता अपनाया और लाभ उठाया। सोमनाथ मन्दिर का निर्माण, अनेक प्रदेशों में गोवध बन्दी, सरकारी आयोजनों पर हवन पूजन, मुहूर्त देखकर मंत्रिमंडल का शपथ ग्रहण जैसे अनेक कदम उठे। लेकिन जैसे-जैसे संघ परिवार का प्रखर हिन्दुत्व बढ़ता गया, कांग्रेस मुस्लिम तुष्टीकरण के मार्ग पर चल पड़ी। कांग्रेसी हिन्दुत्व को सॉफ्ट कहें या छद्म हिन्दुत्व कहें, लेकिन मुहम्मद अली जिन्ना कांग्रेस को हिन्दू पार्टी मानता था। राहुल गांधी वही हिन्दुत्व पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहे हैं।

कांग्रेस ने 1952 में गोवंश का प्रतीक दो बैलों की जोड़ी को अपना चुनाव चिन्ह बनाया और 1972 में गाय और बछड़ा को चुनाव चिन्ह बनाया जो विचारधारा के प्रतीक थे। इसके पहले जब 1949 में तथाकथित बाबरी मजिद पर हिन्दुओं ने कब्जा कर लिया तो कांग्रेस मौन रही।

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प्रदेश और केन्द्र में उसकी सरकार थी, यदि चाहते तो मुसलमानों को कब्जा वापस दिला सकती थी। नेहरू जी का विशाल व्यक्तित्व था, सेकुलर छवि थी, आपस में मिल बैठकर फैसला करा सकते थे। उन्होंने कुछ नहीं किया, मामला अदालत में गया और जन्मस्थान में ताला पड़ गया। कालान्तर में मस्जिद का ताला खुलवाने और मन्दिर का शिलान्यास कराने में कांग्रेस की अहम भूमिका रही। कांग्रेस ने बाद में अपना चुनाव प्रचार भी अयोध्या से ही शुरू किया।

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कांग्रेस पार्टी अपने को महात्मा गांधी की अनुयायी कहती है और उन्हीं के नाम से जानी जाती थी। उनके भजन “रघुपति राघव राजाराम पतित पावन सीताराम” अथवा “वैष्णव जन ते तैने कहिए जे पीर पराई जाणे रे” पूरे हिन्दू समाज की आवाज है। उनकी अहिंसा, सत्याग्रह, शाकाहारी सादा जीवन, वैष्णव जनों का आवाहन, जीवन शैली सब कुछ सनातनी हिन्दू की कल्पना थी।

जो लोग सोचते हैं संघ परिवार ने गांधी को अचानक अपनाया उनकी मति मारी गई है। आपातकालीन जेल से छूटने के बाद अटल जी ने कहा था जेल में रहते हुए जब गांधी जी को पढ़ा तो लगा मेरे विचार उनसे भिन्न नहीं हैं।

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संघ परिवार को गांधी जी के विचार इसलिए पसन्द थे कि वह हिन्दू रीतिरिवाज और जीवन शैली के साथ अखंड भारत चाहते थे। गोडसे का कलंक संघ के माथे पर नेहरू कांग्रेस ने मढ़ा था, नहीं तो वह संघ की शाखा पर गया भी होगा लेकिन स्वयंसेवक नहीं था। सच यह है कि गांधी जी प्रत्येक हिन्दू के आदर्श थे क्योंकि वह सम्पूर्ण हिन्दू समाज की भाषा बोलते थे। पता नहीं नेहरू को भी ऐसे सनातनी विचार पसन्द थे या नहीं क्योंकि उन्होंने स्वयं कहा था उनका शरीर भारतीय और मस्तिष्क इंगलिश था।

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नेहरू जी का भोजन, रहन-सहन, पहनावा, भाषा और धर्म चिन्तन कुछ भी तो गांधी से मेल नहीं खाता था। तब फिर नेहरू जी गांधी के अनन्य भक्त क्यों थे या थे भी। यदि न होते तो क्या नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के सामने टिक पाते, वल्लभ भाई पटेल को किनारे लगा पाते, देश के प्रधानमंत्री बन पाते? शायद नहीं।

भारत विभाजन पर गांधी और नेहरू में मतैक्य नहीं था लेकिन गांधी जी कुछ कर नहीं पाए और हताशा में कहा भी था यदि सुभाष होते तो देश नहीं बटता। गांधी जी कहते थे भारत का बटवारा मेरी छाती पर होगा, यह संघ के मन की बात थी जो अखंड भारत चाहता था।

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गांधी युग के कांग्रेस नेताओं पर विचार करें तो बाल गंगाधर तिलक जिन्होंने गणेशोत्सव आरम्भ किया, मदनमोहन मालवीय जिन्होंने हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन जो हिन्दी के प्रबल समर्थक थे, डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद जो नेहरू की पसन्द राजगोपालाचारी का विकल्प और पटेल के निकट थे, इनमें से सभी नेता और स्वयं गांधी जी हिन्दुत्व के पक्षधर थे।

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कांग्रेस में आरएएस के संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार भी रहे और हिन्दू महासभा के श्यामाप्रसाद मुखर्जी भी। सेकुलरवादियों के ध्यान में रहना चाहिए कि मोदी ने अचानक गांधी जी की माला जपनी नहीं आरम्भ की है। आरएएस ने दशाब्दियों पहले गांधी जी को प्रातःस्मरणीय माना था और अपने प्रात: स्मरण में गांधी जी का नाम सम्मिलित किया था। वे मूर्ख हैं जो कहते हैं कि गांधी जी की हत्या के लिए संघ की विचारधारा जिम्मेदार है क्योंकि गांधी जी की मृत्यु से सर्वाधिक नुकसान संघ सोच को हुआ था।

यह ठीक ही लगता है कि गांधी जी के जाते ही गांधी कांग्रेस चली गई। गांधीवादी ग्राम स्वराज को कांग्रेस ने कोई महत्व नहीं समझा और इसे आगे बढ़ाया विनोबा भावे, जयप्रकाश नारायण और नानाजी देशमुख ने। मोदी के लिए गांधी जी को अपनाना उतना ही स्वाभाविक है जितना दीनदयाल जी के एकात्म मानववाद को अपनाना। गाँवों के सन्दर्भ में गांधी सोच आज सर्वाधिक प्रासंगिक है, चाहे जिस कारण से राहुल गांधी ने किसानों की आवाज बनने की कोशिश की है, यह सराहनीय है। 

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