क्या बजट से किसानों की आय दोगुनी करने में मदद मिलेगी ?

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वित्त मंत्री ने फिर से संसद में वचन दिया कि ‘हमारी सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य के लिए प्रतिबद्ध है।’ लेकिन देखना यह है कि क्‍या उन्‍होंने वही किया जो उन्‍होंने संसद में कहा था।

सरकार ने 2016 में अशोक दलवई की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था, जिसने 2015-16 में कृषि परिवारों की औसत आय 96,703 रुपए से बढ़ाकर 2022-23 में 192,694 रुपए करने का स्‍पष्‍ट लक्ष्‍य रखा था (2015-16 की कीमतों के आधार पर)। इस समिति के अनुसार, ‘2015-16 के आधार वर्ष पर 2022-23 तक किसानों की वास्तविक आय को दोगुना करने के लिए किसान की वास्तविक आय में 10.4% की वार्षिक वृद्धि की जरूरत है।’ लेकिन, पिछले 5 वर्षों के दौरान किसान की वास्तविक आय इससे बहुत कम, महज 3% प्रति वर्ष की दर से बढ़ रही है। इस लिहाज से किसानों की वास्तविक आय में इस बढ़ोतरी के लक्ष्‍य को पाने के लिए अपेक्षित वृद्धि दर सालाना 15% तक बढ़ गई है। यह ठीक उसी तरह कहने के समान है कि जीडीपी की वृद्धि दर दो साल में 5% से बढ़कर 9-10% हो जाएगी।

हम उम्मीद कर रहे थे कि पिछले 5 वर्षों में ‘वास्तविक कृषि आय’ में धीमी बढ़त की भरपाई करने के लिए सरकार किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने वाली योजनाओं या पीएम किसान योजना जैसी डायरेक्‍ट इनकम ट्रांसफर स्‍कीम के लिए बजट आवंटन बढ़ाएगी, लेकिन अफसोस ऐसा नहीं हुआ। दलवाई समिति ने यह भी अनुमान लगाया कि 2022 तक किसान आय दोगुनी करने के लिए 6.4 लाख करोड़ रुपए के अतिरिक्त निवेश की आवश्यकता होगी, लेकिन, बजट आवंटन बढ़ाने के बजाय, हमने कृषि से संबंधित विभिन्न योजनाओं में गिरावट ही देखी है।

बजट 2020-21 में, पहली बात जो आपको चौंकाती है, वह यह है कि 2020-21 में कृषि, संबद्ध और सिंचाई क्षेत्रों के तहत आवंटन 1.58 लाख करोड़ रुपए है, जो कि पिछले वर्षों के आवंटन 1.52 करोड़ की तुलना में केवल थोड़ा सा ही अधिक है। साल 2020-21 में कृषि, संबद्ध और सिंचाई क्षेत्रों के लिए बजट आवंटन 5.45% है जबकि पिछले बजट 2019-20 में यह 5.2% था। ग्रामीण विकास के लिए बजट आवंटन ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण पहलू है। जब इन क्षेत्रों को एक साथ लिया जाता है, तो 2020-21 के बजट में ग्रामीण अर्थव्यवस्था में आवंटन 2.83 करोड़ रुपए का होता है, यानी 201.4-20 के बजट के 9.83% के आवंटन के मुकाबले, 30.4 लाख करोड़ रुपए के 20120-21 बजट का 9.3%। इस तरह साफ है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए आवंटन में वृद्धि मामूली सी है।

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पीएम किसान योजना के तहत सभी 14.60 करोड़ किसानों को, चाहे उनकी जमीन कितनी भी हो, उन्‍हें 6,000 रुपए प्रतिवर्ष की वित्तीय सहायता का वादा किया गया है। लेकिन उसका भी बजट आवंटन 75,000 करोड़ रुपए पर अपरिवर्तित रहा है। जबकि तथ्‍य यह है कि 14.60 करोड़ किसानों पर 87,000 रुपए खर्च होंगे। ध्यान देने योग्य एक और बात यह थी कि सरकार ने 2019-20 में 75,000 करोड़ रुपए बजट में आवंटित किए थे लेकिन खर्च हुए केवल 54370.15 करोड़ रुपए।

जिन योजनाओं ने किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य देने में मदद की, इस बजट में उन पर भी कैंची चली है। बाजार हस्तक्षेप योजना (MIS) और मूल्य समर्थन योजना (PSS), बाजार की कीमतों में गिरावट की स्थिति में जल्‍द खराब होने वाली और साग-सब्जियों की खरीद के लिए राज्य सरकारों के अनुरोध पर लागू की जाती हैं। लेकिन मार्केट इंटरवेंशन स्कीम और प्राइस सपोर्ट स्कीम (MIS-PSS) के तहत आवंटन 2019-20 के 3,000 करोड़ रुपए से घटाकर 2020-21 के बजट में 2,000 करोड़ रुपए कर दिया गया। इसके अलावा, PM-AASHA योजना, जिसे 2018 में बहुत धूमधाम के साथ घोषित किया गया था, के भी बजट में कटौती की गई। इस योजना के जरिए यह सुनिश्चित किया जाना था कि सरकार के ऊंचे न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSPs) से दलहन और तिलहन उगाने वाले गरीब किसान लाभान्वित हों। इसके लिए बजट 2020-21 में महज 500 करोड़ रुपए आवंटित किए गए, जबकि 2019-20 के बजट में इसके लिए 1,500 करोड़ रुपए दिए गए थे।

इसके अलावा, प्रधानमंत्री किसान-धन योजना (पीएम-केएमवाई), जिसे 2019 में देश में सभी छोटे और सीमांत किसानों के लिए एक वृद्धावस्था पेंशन योजना के रूप में लाया गया था, उसके अवांटन में भी कटौती हुई है। 2020-21 के बजट में PM-KMY के आवंटन में 680 करोड़ की कमी की गई। 10,000 किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) के गठन और संवर्धन के लिए बजट 2020-21 में 500 करोड़ रुपए की मामूली राशि रखी गई है।

वित्त मंत्री ने 2025 तक दुग्ध प्रसंस्करण क्षमता को 53.5 मिलियन मीट्रिक टन से बढ़ाकर दोगुना यानि, 108 मिलियन मीट्रिक टन करने का प्रस्ताव किया, लेकिन डेयरी प्रसंस्करण और अवसंरचना कोष के तहत बजट 20-21 आवंटन में केवल 60 करोड़ रुपए रखे गए। कुछ सकारात्मक कदम भी थे, जैसा कि सरकार ने तय किया कि सहकारी समितियों का इनकम टैक्‍स 30% से घटाकर 22% करके उनके साथ कॉर्पोरेट की तरह व्‍यवहार किया जाए। इसके अलावा ‘किसान रेल’ और ‘किसान उड़ान’ योजनाएं शुरू करने का भी ऐलान करना सकारात्‍मक संकेत हैं बशर्ते कि ये योजनाएं जमीनी स्‍तर पर लागू की जाएं।

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आखिर में, एक और महत्‍वपूर्ण तथ्‍य, 2020-21 के बजट में मनरेगा के लिए 2.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी करते हुए 61,500 करोड़ रुपए आवंटित किए गए। वहीं संशोधित अनुमान के अनुसार वित्‍त वर्ष 2019-20 के लिए मार्च 2020 तक इसके लिए 71,000 करोड़ है।

समय की जरूरत ग्रामीण आबादी और किसानों के हाथों में पैसा पहुंचाने की थी, जिससे कि मांग बढ़े, जिसके बारे में सभी आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ कह रहे हैं। लेकिन इसके बजाय, सरकार ने पिछले साल कॉर्पोरेट जगत के हाथों 1.45 करोड़ रुपए सौंपने को प्राथमिकता दी। ये वही कॉर्पोरेट्स हैं जिनके2014-15 के बाद से 6.6 लाख करोड़ रुपए के एनपीए माफ कर दिए गए। वहीं दूसरी तरफ, किसानों के 2014 से 2019 के बीच के 1.5 लाख कृषि लोन माफ किए गए।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर पैसा खर्च करने की जगह सरकार ने वास्तविक अर्थों में ग्रामीण अर्थव्यवस्था में फंड की कटौती की है। सरकार के इन कदमों से हैरानी होती है कि सरकार की कथनी-करनी एक है या वह महज जुमले कस रही है।

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