ऐसे समय में जब किसानों का एक बड़ा तबका दिल्ली बॉर्डर पर बेहतर आय एवं न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने के लिए प्रदर्शन कर रहा है, तब 2021 के बजट से यह उम्मीद थी कि यह किसानों के लिए एक बेहतर बजट साबित होगा। खासकर तब, जब अर्थशास्त्री देश में ग्रामीण मांग को मज़बूत करने का मांग कर रहे हों, वित्त मंत्री से अपेक्षाएं थी कि वे प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) के माध्यम से सीधे किसानों के खाते में सहायता पहुंचाने के लिए ठोस कदम उठाएंगी।
हालांकि इन सारी परिस्थितियों के बावजूद बजट में बीते साल प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के लिए 75,000 करोड़ का प्रावधान था जिसे घटाकर इस साल 65,000 करोड़ रुपए कर दिया गया है। इस योजना के तहत जिन किसानों के पास भूमि है, उन्हें सालाना 6000 रुपए की राशि तीन किस्तों में दी जाती है। चालू वित्तीय वर्ष की शुरुआती दो तिमाहियों में कृषि क्षेत्र के उन्नत प्रदर्शन को देखते हुए यह अपेक्षा थी कि सरकार किसानों को दी जाने वाली राशि बढ़ाकर 18,000 रूपए तक करेगी, जिसके लिए बजट में किसान सम्मान निधि योजना के तहत तकरीबन 1.5 लाख करोड़ रुपए की आवश्यकता पड़ती।
बहरहाल वित्तीय वर्ष 2021-21 में कृषि क्षेत्र के लिए बजट में 1.48 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है, जो कि पिछले वित्तीय वर्ष में 1.45 लाख करोड़ रुपए था।
हालांकि इस वित्तीय वर्ष में कृषि ऋण के लिए पिछले वर्ष के 15 लाख करोड़ रुपए की तुलना में 16.5 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। किसानों को बढ़ते हुए कर्ज की समस्या से उबारने के लिए सार्थक प्रयासों की आवश्यकता है। इसके लिए आवश्यक है कि कृषि क्षेत्र में सार्वजनिक क्षेत्र के निवेश में वृद्धि हो और इसके साथ ही किसानों की बेहतर आय सुनिश्चित की जाए। आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार साल 2011-12 से 2017-18 के बीच कृषि में सार्वजनिक क्षेत्र का निवेश जीडीपी का मात्र 0.4 फीसदी रहा है। इसीलिए पेट्रोल और डीज़ल पर उपकर लगा कर कृषि निवेश कोष बनाना स्वागत योग्य कदम समझा जा सकता है, लेकिन अधिक बेहतर होता कि रेल, सड़क एवं पूंजी क्षेत्र की तर्ज पर ही कृषि क्षेत्र के लिए भी आधारभूत घोषणाएं की जाती।
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प्राथमिक रूप से कृषि क्षेत्र में मार्केटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने की आवश्यकता है। भारत में वर्तमान में लगभग 7000 कृषि मंडियां हैं, लेकिन यदि 5 किलोमीटर के दायरे के पीछे एक मंडी खोलने का विचार करें तो लगभग 42000 कृषि मंडियों की आवश्यकता होगी। ई-नाम (नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट) के तहत देश भर के 22000 से अधिक हाट-बाजारों को जोड़ने की योजना से आए परिणाम उत्साहजनक नहीं समझे जा सकते इसीलिए अब ग्रामीण कृषि अवसंरचना को सुदृढ़ बनाने की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए।
बजट 2021 एक ऐसे समय में आया है जब कई महीनों से देश भर के किसान आंदोलन कर रहे हैं। वित्त मंत्री ने विगत वर्षों में धान, गेहूं, कपास एवं दालों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में हुई वृद्धि का ज़िक्र किया, और इसके साथ ही हितग्राहियों की संख्या का भी उल्लेख किया है। हालांकि प्रदर्शनकारी किसान एमएसपी को कानूनी अधिकार बनाने कि मांग कर रहे हैं जिसका अर्थ होगा कि जिन 23 फसलों के लिए प्रतिवर्ष एमएसपी घोषित की जाती है उस निर्धारित कीमत से कम पर उन फसलों की खरीदी नहीं की जा सकेगी।
किसानों द्वारा एमएसपी के संदर्भ में फसलों के लिए उपज लागत से 50 प्रतिशत अधिक मुनाफे (तकनीकी तौर पर ए2+एफएल फार्मूला) के विरोध में प्रदर्शन किया जा रहा है। स्वामीनाथन आयोग द्वारा दिए सुझावों में व्यापक लागत पर पचास प्रतिशत मुनाफे (सी2 फार्मूले) की अनुशंसा की गयी है। सरल शब्दों में यदि वित्तीय वर्ष 2020-21 में पंजाब के किसानों को स्वामीनाथन आयोग की अनुशंसा पर आधारित एमएसपी का लाभ मिलता तो उन्हें अतिरिक्त 14,296 करोड़ की आमदनी होती।
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प्रधानमंत्री के “सबका साथ और सबका विकास” के सपने को चरितार्थ करने के लिए बेहतर होगा कि किसानों के हाथों में अधिक आय सुनिश्चित की जाए। इस प्रकार ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मांग प्रबल होने से अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में आधारभूत सफलता भी मिलेगी। जिस समय कोविड-19 के कारण अर्थव्यवस्था में संकुचन की स्थिति बन रही है, ग्रामीण मांग को सुदृढ़ करने से ना केवल अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी, बल्कि आर्थिक प्रगति की दिशा में ज़ोरदार उछाल भी पैदा होगा। एक प्रभावशील कृषि क्षेत्र से जीविका के साधनों को बल मिलेगा और रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। इसीलिए यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि आज भी कृषि में अर्थव्यवस्था के विकास का इंजन बनने की ताकत है।
(देविंदर शर्मा के देश के प्रख्यात खाद्य एवं निर्यात नीति विशेषज्ञ हैं। लेख उनके निजी विचारों के आधार पर है।)