प्रतापगढ़। आधुनिक युग में जहां बाजार में सैकड़ों ब्राण्डेड घडिय़ां देखने के मिलती हैं, वहीं आज भी दशकों पुरानी धूप घड़ी का उपयोग किया जाता है। बताया जाता है कि जिस तरह कोर्णाक मंदिर के पहिए सूर्य की रोशनी से सही समय बताते हैं, उसी तरह यह पत्थर घड़ी भी काम करती है। इसलिए लोग इसे धूप घड़ी भी कहते हैं।
जनपद प्रतापगढ़ मुख्यालय से 28 किमी प्रतापगढ़-रायबरेली रोड़ पर गाँव हण्डौर हैं। हण्डौर गाँव ऐतिहासिक गाँव है, जिसके लिए कहा जाता है कि महाभारत कालीन भीम की पत्नी हिडिम्बा यहीं की थी। महाभारत में उल्लिेखित पाण्डवों के अज्ञातवास के दौरान भीम ने यहां हिडिम्बा के साथ कुछ माह बिताए और इसी समय उनके पुत्र घटोत्कक्ष का जन्म हुआ। फिलहाल यहां एक विशाल टीला मौजूद है, जहां से कई महत्वपूर्ण पुरावशेष प्राप्त हुए है। इसी गाँव में मुख्य मार्ग से अन्दर चलने पर 100 मीटर की दूरी पर दाहिनी तरफ कूए के पास दुर्लभ धूप घड़ी स्थापित है। जिसे प्रतापगढ़ के राजा अजीत प्रताप सिंह ने 1936 में बनवाया था। इसके ऊपरी सतह पर घड़ी के डायलनुमा आकृति बनी है और इसके बीचोबीच एक ओर तिकोनी लोहे की पत्ती लगी है। जो समय के अनुसार धूप की छाया लोहे की पट्टी पर पडऩे पर समय बताती है।
सामाजिक कार्यकर्ता हेमन्त नन्दन ओझा ने बताया, ”जब मेरी नजर इस दुर्लभ घड़ी पर पड़ी तब घड़ी के डायल का कुछ हिस्सा टूटा हुआ था, उन्होंने उसकी मरम्मत कराई। ऐतिहासिक दृष्टि व आने वाली पीढ़ी को इस दुर्लभ घड़ी से परिचित कराने के लिए इसे संरक्षण की आवश्यकता है। इस ओर शासन-प्रशासन का कोई ध्यान नहीं है।” सामाजिक कार्यकर्ता हेमन्त नन्दन ओझा ने शासन-प्रशासन से इसके संरक्षण की मांग की है।
घड़ी की खासियत
धूप घड़ी में रोमन और हिन्दी के अंक अंकित हैं। इस पर सूर्य के प्रकाश से समय देखा जाता था। पहले के दिनों में नहाने से लेकर पूरा कामकाज घड़ी के आधार पर होता था। इसी के चलते इसका नाम धूप घड़ी रखा गया। बताया जाता है कि जब घड़ी आम चलन में नहीं थीए तब भी इसका बहुत महत्व था। घड़ी के बीच में लोहे की तिकोनी प्लेट लगी है। कोण के माध्यम से नंबर अंकित है।
रिपोर्टर – मो. सलीम खान