उन्नाव। जनपद में एक ऐसा पुस्तकालय भी है जो पिछले कई दशकों से छप्पर के नीचे चल रहा है। प्रशासन की उपेक्षा से यहां जो भी पाठक आते हैं, वह छप्पर के नीचे ही बैठकर पुस्तकें पढऩे को मजबूर हैं। किसी भी तरह की प्रशासनिक मदद के बगैर पुस्तकालय चला रहे गणेश चंद्र अपने ही पैसों से हर माह नई-नई पुस्तकें खरीद कर लाते हैं।
जिला मुख्यालय से बीस किलोमीटर की दूरी पर बिछिया विकासखंड के बड़ौरा गाँव में स्थित केदारनाथ पुस्तकालय व वाचनालय की नींव आजादी से एक वर्ष पूर्व दो जून 1946 में रखी गई थी। विद्यार्थी सेवा समिति से जुड़े पं. बुद्धिशंकर सामवेदी ने इस पुस्तकालय की आधारशिला रखी थी। क्षेत्र में रहने वाले बुजुर्ग विद्याशंकर
बताते हैं, ”पुस्तकालय खुलने के बाद यहां बुद्धिजीवियों का जमावड़ा लगता था। दूर-दूर से लोग पुस्तकें पढऩे के लिए एकत्रित होते थे। पुस्तकालय के बाहर ही बैठकर गंभीर मुद्दों पर लोग चर्चा करते थे। समय बदला पर पुस्तकालय नहीं बदल सका। वह अब भी अपनी पुरानी हालत में ही है।”
आर्थिक मदद न मिलने से पुस्तकालय के हाल नहीं बदल सके। कच्ची मिट्टी की दीवार पर केदारनाथ पुस्तकालय व वाचनालय का एक छोटा सा बोर्ड लगा हुआ था। वहीं बारिश से बचाव के लिए एक बड़ा सा छप्पर पड़ा हुआ था। छप्पर के नीचे ही कुछ बच्चे व महिलाएं किताबें पढ़ रहे थे। बच्चों से जब गाँव कनेक्शन संवाददाता ने पूछा कि वह पुस्तकालय के बाहर बैठकर किताबें क्यों पढ़ रहे हैं तो उन्होंने बताया कि अंदर रोशनी के पर्याप्त संसाधन नहीं है। इससे वह सूरज की रोशनी में किताबें पढऩे के लिए छप्पर के नीचे बैठ जाते हैं। पुस्तकालय के अंदर जाकर जब हाल देखा गया तो वहां छोटी-छोटी अलमारी रखी हुई थी। उनमें कुछ किताबें रखी हुई थी।
पुस्तकालय को संभाल रहे गणेश चंद्र बताते हैं, ”पुस्तकालय की आधारशिला आजादी से पूर्व रखी गई थी। पिता पं. बुद्धिशंकर सामवेदी के निधन के बाद मैंने पुस्तकालय को आगे चलाने का निर्णय लिया था। पुस्कालय के लिए अब तक प्रशासन की आेर से कोई मदद नहीं मिली है। मैं पेंशन के नाम पर मिलने वाले पैसों से हर माह पुस्तकें व अखबार खरीदकर लोगों को पढ़ाता हूं।” इस संबध में जब जिलाधिकारी सौम्या अग्रवाल से बात की गई तो उन्होंने बताया कि अभी एेसे किसी भी पुस्तकालय की उन्हें जानकारी नहीं है। फिर भी पुस्तकालय के लिए उनसे जो भी मदद हो सकेगी, वह कराएंगी।
रिपोर्टर – श्रीवत्स अवस्थी/जितेंद्र मिश्रा