यूपीभर में चल रहा डग्गामार बसों की गुंडई का नेटवर्क

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लखनऊ। दिल्ली से लख़नऊ समेत किसी रूट के लिए अगर आपने प्राइवेट बस में ऑनलाइन सीट बुक कराई है तो सुरक्षित सफर को भूल जाइए। इनकी बदसलूकी आैर गुंडई झेलने के लिए भी तैयार रहिए। 

इन डग्गामार बस सर्विसों पर न तो परिवहन विभाग अंकुश लगा सकता है और न रोडवेज, जबकि इन बसों के चलते रोडवेज को करोड़ों रुपए का चूना लगता है।

गाजियाबाद में आनंद विहार आईएसबीटी के सामने कौशांबी मेट्रो स्टेशन के नीचे रोजाना दो दर्जन से ज्यादा बसें लखनऊ, कानपुर समेत कई शहरों के लिए रोज रात को निकलती हैं। ठीक ऐसा ही नज़ारा लखनऊ के बंगला बाजार, शहीदपथ और पॉलिटेक्निक चौराहाें पर भी देखने को मिलता है। इन बसों में सवारियों से बदलसलूकी की शिकायतें अक्सर मिलती हैं। नोएडा में सॉफ्टवेयर इंजीनियर दिवाकर त्रिपाठी (26 वर्ष) ने पिछले दिनों लखऩऊ से दिल्ली की प्राइवेट एसी बस में टिकट बुक कराई थी, वो एजेंट के बताए गए वक्त से 15 मिनट पहले रात 9.45 पर बंग्ला बाजार पहुंचे, लेकिन बस तय समय से पहले ही चली गई। दिवाकर बताते हैं,“एजेंट कहने लगा कि तुम लेट आए हो, मेरे पैसे भी चले गए”। दिवाकर ने 1,200 रुपए की टिकट ऑनलाइन बुक की थी। 

अनुमान के मुताबिक पूरे प्रदेश में ऐसी एक हज़ार से ज्याद प्राइवेट वॉल्वो बसे हैं।

कौशांबी बस डिपो, गाजियाबाद के एआरएम अनिल कुमार बताते हैं, “इन बसों का पूरा रैकेट है, इनके चलते रोडवेज को हर महीने लाखों के राजस्व का नुकसान हो रहा है”।

एआरएम अनिल कुमार ने बताया, “लेकिन ये रोकना हमारे बस में नहीं है। एआरटीओ और पुलिस का काम है।” रोडवेज के क्षेत्रीय प्रबंधक, गाजियाबाद पल्लव बोस ने फोन पर बताया, “डग्गामार बसों के चलते रोडवेज को काफी नुकसान हो रहा है। इनमें अधिकतर ड्राइवर अनट्रेंड होते हैं, जो अक्सर हादसों की वजह बनते हैं। ये बस ऑपरेटर्स परमिट का गलत फायदा उठाते हैं। इनमें से कइयों ने रोडवेज के लोगों और विभाग का नाम तक लिखवा रखा है। हर महीने हम लोग डीएम और संबंधित अधिकारियों से इऩकी शिकायत करते हैं।” वो आगे बताते हैं, “पिछले दिनों हमने यात्री बनकर खुद ऑनलाइन टिकट बुक किया और बस तक पहुंचे, उसके बाद हमने नामजद एफआईआर करवाई लेकिन वो जुर्माना देकर छूट गया।”

व्यवसायिक बसों को दो तरह के परमिट मिलते हैं, स्टैट कैरियर परमिट- जिसके तहत निर्धारित रूट पर बस चलाते हुए वो निर्धारित बस अड्डों पर रुकते हुए चलेंगे जबकि दूसरा कांट्रेट कैरियर परमिट होता है, जिसके तहत स्कूल बस, शादी-बारात और टूरिस्ट समेत एक शहर से दूसरे शहर के लिए यात्री ले जाने की अऩुमति मिलती है। पल्लब बोस बताते हैं, “डग्गामार बस ऑपरेटर्स इसी कांट्रैट कैरियर परमिट का गलत इस्तेमाल करते हैं। वो बस अड्डों के सामने से ही सवारियां भर लेते हैं और शहर-शहर उतारते हुए चलते हैं। रोकने पर ये लोग विवाद पर उतारू हो जाते हैं।” बोस की बात में दम है पिछले दिनों एटा में डग्गामार बसों के ऑपरेटर्स ने एआएम संजीव सरन के साथ मारपीट के बाद पिस्टल तान दी थी जबकि शुक्रवार को लखनऊ के पॉलीटेक्टिक चौराहे पर इसी खबर की पड़ताल में जुटी गाँव कनेक्शऩ की टीम के फोटो जर्नलिस्ट विनय गुप्ता के साथ गोरखपुर रूट के लिए सवारियां भरवा रहे डग्गामार बसों के गुड़ों ने मारपीट की और उनका कैमरा तोड़ने की कोशिश की।

रोडवेज मुख्यालय में बैठने वाले एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, ये सब पुलिस और आरटीओ की मिलीभगत से नेताओं की शह पर होता है। परिवहन विभाग का दलील है कि वो नियमत: इन पर कोई कार्रवाई नहीं कर सकता है, क्योंकि इनके पर परमिट होता है। आरटीओ प्रवर्तन लखनऊ लक्ष्मीकांत मिश्रा सफाई देते हुए बताते हैं, “जिन बसों को डग्गामार कहा जाता है वो भी विभाग से परमिट लेकर चलाती है, इनमें से अधिकांश का ऑलइंडिया परमिट है। नियम के मुताबिक ये लोग किसी सार्वजनिक जगह से सवारियां नहीं भर सकते हैं। बाकी जहां कहीं भी। नियम तोड़ते पाए जाने पर हम कार्रवाई करते हैं। लेकिन इन पर सिर्फ जुर्माना ही लगाया जा सकता है, हमनें नहीं छोड़ा तो ये कोर्ट से गाड़ी छुड़वा लेंगे। क्योंकि नियम वैसे नहीं हैं।”

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