कला सीखने की निरन्तर प्रक्रिया है: सुरभि टंडन

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पने नृत्य के माध्यम से दर्शकों की तालियां बटोरने वाली सुरभि सिंह टण्डन बेहतरीन कथक कलाकार हैं। उनका कहना है कि कला के क्षेत्र में कुछ भी बहुत जल्दी मिलना आसान काम नहीं है क्योंकि इसके लिए गहन साधना की जरूरत है। इसके लिए कोई टाइम निश्चित नहीं है। हो सकता है शुरुआती दौर बहुत कठिन गुजरे। साल दो साल आपको सड़कों की खाक छाननी पड़े इसका कोई साल निर्धारित नहीं है कि आपको कितने वक्त में सफलता मिल जाएगी। साथ ही कला को वह निरंतर सीखने वाली प्रक्रिया बताती हैं।

सुरभि बताती हैं कि मेरे नाना जी भी एक बहुत बड़े कवि थे तो मैंने बचपन से ही कलाकार बनने की ठान ली थी। कला के क्षेत्र में आगे बढ़ने पर पारिवारिक जिन्दगी में बहुत फर्क पड़ता है क्योंकि कला का विषय है साधना का विषय और जब हम किसी साधना लीन हो जाते है तो फिर दूसरी चीज की सुध-बुध नहीं रहती है। कला के क्षेत्र में आगे बढ़ने पर चाहे लड़कियां हो या लड़के उन सबको कई सारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इसका शुरुआती दौर बहुत कठिनता के साथ गुजरता है और अगर आप सही मुकाम सही दिशा पकड़कर चलते हैं तो आपकी साधना सफल हो जाती है। मुझे खुद सफल होने में काफी वक्त लग गया।

बीस साल हो गए मुझे कथक कलाकार के रूप में अपनी पहचान बनाए लेकिन आज भी मैं सीख रही हूं ओैर अपने बचे हुए जीवन में भी सीखती रहूंगी क्योंकि कला सीखने की एक निरन्तर प्रक्रिया है जो कभी न खत्म होने वाला प्रक्रिया है। सुरभि आगे कहती हैं, ‘आजकल क्राइम बढ़ रहा है वह कहीं न कहीं इसलिए बढ़ रहा है क्योंकि आजकल लोगों का सांस्कृतिक विकास बहुत कम हो रहा है। अगर लोगों का दिमाग सही जगह लगने लगे तो क्राइम रेट कम हो जाएगा। अगर बच्चा कला के क्षेत्र में जाता है तो ज्यादा से ज्यादा वक्त उसे रियाज करने में लगेगा जिससे उसे याद नहीं आयेगा कि उसे पब जाना है शराब पीनी है जिससे बहुत सारे क्राइम कम हो जाएंगे। भारत में सांस्कृतिक माहौल के बारे में सुरभि बताती हैं, ‘उत्तर भारत में कला का विकास थोड़ा कम है क्योंकि लोगों के अन्दर समझ विकसित नहीं है। हजारों में एक कलाकार कहीं ढूढने से मिलता है अगर यही चीज घर-घर में फैलेगी तो शायद कला का विकास हो सके। वहीं अभिभावकों को सुरभि राय देती हैं कि बच्चों को वही करने दें जो बच्चा चाहता है। 

कथक के बारे में

भारत के आठ शास्त्रीय नृत्यों में से सबसे पुराना कथक नृत्य है जिसकी उत्पत्ति उत्तर भारत में हुई। कथक एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ ‘कहानी से व्युत्पन्न करना’ है। यह नृत्य कहानियों को बोलने का साधन है। कथक राजस्थान और उत्तर भारत की नृत्य शैली है। यह बहुत प्राचीन शैली है क्योंकि महाभारत में भी कथक का वर्णन है। मध्य काल में इसका सम्बन्ध कृष्ण कथा और नृत्य से था। मुसलमानों के काल में यह दरबार में भी किया जाने लगा। इस नृत्य के तीन प्रमुख घराने हैं। 

रिपोर्टर – दरख्शां कदीर सिद्दिकी

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