स्वाति शुक्ला
लखनऊ। महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर मनकामेश्वर मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी। यहां भक्तों ने सालों से चली आ रही परंपरा को तोड़कर पहली बार गोमती नदी के पानी से महादेश के शिवलिंग का जलाभिषेक किया। मंदिर की महंत दिव्या गिरी ने बताया कि मंदिर की स्थापना के बाद ये पहला मौका है जब गोमती नदी के जल से शिवलिंग का जलाभिषेक किया गया है। इससे पहले भक्त गंगाजल से जलाभिषेक करते आ रहे थे। लखनऊ के डालीगंज इलाके के मनकामेश्वर मंदिर की स्थापना 1000 साल पहले की गई थी। मंदिर की स्थापना के बाद से शिव भक्त यहां भगवान शिव का जलाभिषेक गंगाजल से करते आ रहे हैं। लेकिन इस बार शिवरात्रि के मौक़े पर इस रीति को बदल दिया गया। सोमवार के दिन शिवरात्रि के पर्व पर भगवान शिव का गोमती नदी के जल से जलाभिषेक करने का निर्णय लिया गया। भक्तों ने पुरानी रिवाज़ों को छोड़कर नई रीति को अपनाया और हजारों की संख्या में भक्तों ने गोमती नदी से जल लेकर भोलेनाथ का जलाभिषेक किया। मनकामेश्वर मंदिर की महंत दिव्या गिरी ने बताया कि पहले की अपेक्षा गोमती नदी के जल में बेहद परिवर्तन आया है। सरकार के प्रयास से नदी के पानी की गुणवत्ता सुधर रही है। जिसके चलते यह निर्णय लिया गया। वहीं वर्षों से चली आ रही रीति पर उन्होंने बताया कि वो नई परंपरा के जरिए लोगों को संदेश देना चाहती हैं कि नदी को स्वच्छ रखना हमारे लिए कितना जरूरी है। नदी के जल से ही हम भगवान का पूजन करते हैं। ऐसे में अगर नदी का जल प्रदूषित होगा तो हम पूजन कैसे करेंगे। इसके साथ ही हजारों की संख्या में कांवड़ियों ने सुबह गोमती नदी से जल लेकर भगवान शिव का जलाभिषेक किया था।
40 दिन लगातार आने पर पूरी होती है मनोकामना
भक्तों के बीच मान्यता है कि मनकामेश्वर मंदिर में भगवान शिव के लगातार 40 दिन तक दर्शन करने से मनोकामना पूर्ण हो जाती है। यहां हर रोज हजारों की संख्या में भक्त भगवान शिव के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। मंदिर के विशेष कार्याधिकारी जगदीश गुप्ता ने बताया कि सावन महीने में यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। शिवरात्री के दिन मंदिर में दर्शन करने पहुंचे धर्मेंद्र निगम ने बताया कि वो 20 साल से लगातार मनकामेश्वर मंदिर में भगवान शिव के दर्शन करने आ रहे हैं। वह बताते हैं कि पहले उनके पास सिर्फ साइकिल थी लेकिन अब भगवान की कृपा से सब कुछ है।
चढ़ावे में आने वाले दूध से बनाई गई खीर
मनकामेश्वर मंदिर में भक्त दूध से भगवान महादेव का अभिषेक करते हैं। पूर्व में अभिषेक के लिए प्रयोग होने वाला दूध नालियों में बहा दिया जाता था। दूध को नालियों में बहने से बचाने के लिए इस बार नियम बनाया गया था कि भक्त शिवलिंग से दूध को स्पर्श कराने के बाद उसे पात्र में जमा कर दें। जिससे उस दूध का प्रयोग प्रसाद बनाने में किया जा सके। हालांकि यह नियम पूरी तरह से लागू नहीं हो सका। इस पर मंदिर के पदाधिकारियों ने शिवलिंग के पास ही जाली लगा दी। जिससे दूध अभिषेक पूरा होने के बाद जाली से छनकर पात्र में इकट्ठा कर लिया गया। सोमवार को भगवान शिव के अभिषेक के लिए भक्तों द्वारा चढ़ाए गए दूध से ही प्रसाद में खीर बनाई गई।
लक्ष्मण ने की शिवलिंग की स्थापना
मान्यता है कि भगवान लक्ष्मण जब मां सीता को अग्नि परीक्षा देने के लिए वन में छोड़कर वापस आ रहे थे तब उन्होंने गोमती नदी के तट पर रुककर शिवलिंग की स्थापना की थी। इस मंदिर से जुड़ी एक और कहानी प्रचलित है। बताते हैं कि यहां पर सैकड़ों साल पहले संत रामगिरी रहते थे। मंदिर के स्थान पर घने जंगल के सिवा कुछ नहीं था। इसलिए खाने के लिए रामगिरी लकड़ी की राख का ही प्रयोग करते थे। एक दिन संत रामगिरी के पास कई महंत पहुंचे, जिन्होंने भूख लगने पर खाने की मांग की। खाने के लिए कुछ भी पास न होने पर संत रामगिरी परेशान हो गए और उन्होंने हारकर भगवान शिव की अराधना शुरू की। बताते हैं तभी शिवलिंग के पास से किसी ने अदृश्य व्यक्ति ने आवाज दी और कहा कि द्वार पर किसी भक्त ने भोजन सामग्री रखी हुई है। अदृश्य व्यक्ति की आवाज सुनकर जब संत रामगिरी मंदिर के द्वार पर पहुंचे तो उन्हें वहां भोजन रखा मिला। तब से ही मंदिर का नाम मनकामेश्वर पड़ गया।