फास्ट ट्रैक कोर्ट: पीड़ितों को जल्द न्याय, वर्षों के मुकदमे महीनों में निपट रहे

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लखनऊ। आशियाना गैंगरेप कांड का मुकदमा 11 वर्षों से चला आ रहा था, लेकिन फास्ट ट्रैक कोर्ट ने मात्र चार माह में ही आरोपी को सलाखों के पीछे भेज दिया। देश की अदालतों में चल रहे करोड़ों मामलों को त्वरित निपटाने के लिए यह अदालतें काफी कारगर हैं।

लखनऊ के दुबग्गा क्षेत्र के ईटगाँव से फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई के लिए आई एक महिला (67 वर्ष) बताती हैं, “मेरे बेटे के पर दहेज का आरोप बहू ने लगाया है, उसी के लिए आए हैं। एक माह से सुनवाई जल्दी हो रही है। पहले दो महीने से काम नहीं हो रहा था, अब मामला नई कोर्ट में चला गया है। अब तारीख पता करने के लिए कोर्ट नहीं आना पड़ता है”।

महिलाओं से जुड़े मामलों की जल्द सुनवाई कर न्याय दिलाने के लिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अगस्त 2014 में इलाहाबाद हाइकोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र लिख कर हर जिले में फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित करने की सहमति मांगी थी। कैबिनेट से पास होने के बाद जिलों में इन कोर्ट की स्थापना की प्रक्रिया शुरु हुई। 

प्रदेश में इस समय 110 फास्ट ट्रैक कोर्ट हैं। लखनऊ फास्ट ट्रैक कोर्ट के सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता (फौजदारी), सुनील यादव बताते हैं, “फास्ट ट्रैक कोर्ट से सुनवाई जल्दी होने लगी है। साथ ही फरियादी को बहुत आराम हो गया। उनको अब तारीख के लिए चक्कर नहीं काटने पड़ते”।

आंकड़ों के अनुसार देश की सभी जि़ला व अधीनस्थ अदालतों में 2.40 करोड़ मामले लंबित पड़े हैं।

इस बारे में लखनऊ फास्ट ट्रैक अदालत के ही एक अन्य सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता (फौजदारी), नरेन्द्र यादव बताते हैं, “फास्ट ट्रैक कोर्ट में कार्य जल्दी करना होता है। (अभी तक एक फास्ट ट्रैक कोर्ट होने से) लगातार केस पर सुनवाई होने के कारण फाइलों पर काम करना मुश्किल हो रहा था। अब (एक और0 फास्ट ट्रैक कोर्ट से) एक माह से थोड़ा आराम है।”  

लखनऊ में पहले से चल रही फास्ट ट्रैक कोर्ट में अब 325 व नए बने फास्ट ट्रैक कोर्ट में 300 मुकदमें चल रहे हैं। अधिवक्ता नरेंद्र ने कहा, “महिला उत्पीड़न के मामलों में दोनों तरफ से ज्य़ादा तारीखें लगती हैं, कई बार बयान दर्ज़ किया जाता है, जिससे काम अधिक था। जब से दो फास्ट ट्रैक कोर्ट बन गई हैं, तब से काम आधा हो गया है। मामले जल्दी-जल्दी निपटने लगे हैं। जो कार्य पहले तीन माह में नहीं हो पता था, वह 15 दिन में हो जाता है।”

एक फास्ट ट्रैक कोर्ट के निर्माण व संचालन के बजट में केन्द्र सरकार 60 प्रतिशत और राज्य सरकार की 40 प्रतिशत हिस्सेदारी होती है। लेकिन देशभर में यह फास्ट ट्रैक कोर्ट बजट की कमी का सामना कर रही हैं।

पहला

मोहनलालगंज महिला हत्याकाण्ड : एक महिला का बलात्कार के बाद उसकी हत्या कर दी गई थी। इस केस में सुरक्षा गार्ड रामसेवक पर आरोप है। आरोपी पर बालात्कार की धारा 376, व हत्या की धारा 302 के तहत मुकदमा चल रहा है।

दूसरा

माधव कालिया, जिसके ऊपर 24 मुकदमें चल रहे हैं। इनमें हत्या, गुण्डा एक्ट, पुलिस पर हमला आदि के मामले शामिल हैं। इसका मंगलवार 19 अप्रैल को फैसला आना था, लेकिन अधिवक्ताओं की हड़ताल के चलते तारीख बढ़ गई। 

तीसरा

भानू यादव पर आरोप है कि उसने अलग-अलग घटनाओं में दो नाबालिक लड़कियों के साथ बलात्कार कर उनकी हत्या कर दी। बाराबंकी जिला अदालत ने पहले मामले में भानू यादव को अपराधी मानते हुए फांसी की सजा सुनाई थी। बलात्कार और हत्या के दूसरे आरोप पर फैसला आना है।

चौथा

विशेष कुमार गुप्ता नामक व्यक्ति पर आरोप है कि उसने अपनी तीन बेटियों व पत्नी के साथ बलात्कार किया। दो साल पुराना यह मामला अब फास्ट ट्रैक कोर्ट में है, इस मामले में इसी माह फैसला आना है।

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