देश में लाखों हेक्टेयर भूमि ऊसर और क्षारीय है, जिससे यह भूमि बिना किसी उपयोग के पड़ी रहती है। केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, लखनऊ के निदेशक विनय कुमार मिश्रा बता रहे हैं कि कैसे उन्नत खेती कर ऊसर भूमि को उपजाऊ बना सकते हैं।
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अप्रैल से मई महीना ऊसर खेत को सुधारने का सही समय होता है। इस समय किसान ऊसर पड़े खेतों में समतलीकरण करके मेड़बंदी करें। मेड़बंदी के बाद उस खेत में जिप्सम डालकर उसकी हल्की जुताई कर दें। फिर खेत में लगभग 10 सेमी तक पानी भर देना चाहिए, लेकिन ध्यान रखना चाहिए पानी सूखने न पाए। इसलिए समय-समय पर पानी देखते रहना चाहिए।
पन्द्रह दिन तक पानी ऊसर भूमि से निकाल देना चाहिए और पानी को किसी खेत में छोड़ने के बजाय नाली के जरिए बाहर कर देना चाहिए। इस खेत में संस्थान द्वारा विकसित धान की लवण सहनशील प्रजातियों जैसे सीएसआर-36, सीएसआर-43, सीएसआर-30 लगाना चाहिए। इनकी नर्सरी 30 दिन से कम न हो। तैयार नर्सरी की रोपाई इस खेत में कर देनी चाहिए।
केन्द्रीय मृदा लवणता संस्थान और उत्तर प्रदेश सरकार के सहयोग से प्रदेश में 13 लाख हेक्टेयर ऊसर जमीन में से आठ लाख हेक्टेयर भूमि को ऊसर मुक्त कराया जा चुका है। जिप्सम की सहायता से सुधारी गयी जमीन का सिर्फ 30 सेमी ऊपर का भाग ही उपजाऊ हो पाता है। जबकि 30 सेमी के नीचे के भाग में क्षारीयता बनी रहती है, जिससे पौधों की जड़ों की वृद्धि नहीं हो पाती है। ऐसे में किसान उन्नत तरीके अपना खेत को उपजाऊ बना सकते हैं।
ज्यादा जुताई से भी मिट्टी की भौतिक संरचना खराब हो जाती है। इसलिए धान की रोपाई करते समय पानी भरकर कम से कम जुताई करनी चाहिए। मई जून के महीने में किसान खेत में ढैंचा बोकर जब ये पौधे 30-40 दिन के हो जाएं तो उन्हें खेत में जुताई कर मिट्टी में मिला देना चाहिए। ढैंचा के पौधे अच्छी जैविक खाद के साथ ही मिट्टी की क्षारीयता भी कम करते हैं।
आजकल किसान गेहूं को कंबाइनर से काटते हैं, जिससे खेत में काफी अवशेष बच जाता है। ऐसे में किसानों को खेत में फसल अवशेष को नहीं जलाना चाहिए। जलाने से मृदा में मौजूद कार्बन और जीवाणुओं पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। इससे मृदा के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है। फसल अवशेष को खेत में ही जुताई करके मिट्टी में मिला देना चाहिए। आजकल जब गोबर की खाद नहीं मिलती है तो ऐसे में किसान फसल अवशेष का समुचित प्रबंधन कर खेत की उर्वरता बढ़ा सकते हैं। गेहूं के साथ ही दूसरे फसल अवशेष से भी खेत की उर्वरता बढ़ायी जाती है।