जब मेरी नियुक्ति 2007 में झुम्मरखाली शासकीय प्राथमिक शाला में हुई तो यहां टीन की छत के नीचे बच्चे पढ़ते थे। गाँव में नया-नया स्कूल शुरू हुआ था, इसलिए स्कूल में 10-12 बच्चों से ज्यादा नहीं आते थे।
फिर बच्चों की संख्या बढ़ाने के लिए उनके घर जाकर बच्चों के परिवारों से बात करनी शुरू की, उन्हें एहसास कराया कि बच्चे स्कूल में खेल भी सकते हैं। धीरे-धीरे बच्चों की संख्या बढ़ने लगी। लेकिन अभी स्कूल टीन शेड के नीचे ही चलता था, जिसे बनवाने की जिम्मेदारी शिक्षकों पर थी और क्योंकि स्कूल मे शिक्षक की संख्या सिर्फ दो थी, लेकिन हमने हार नहीं मानी और अधिकारियों से बात करके हर प्रकार की कोशिश की और हमें फिर स्कूल की बिल्डिंग बनाने की जमीन मिली।
जहां पर स्कूल बनाने के लिए जगह मिली वहां पर भी जंगल ही था, बच्चों के साथ मिलकर हमने वहां पेड़-पौधे लगाकर सुंदर गार्डेन बना दिया। धीरे-धीरे स्कूल में हर उन सुख सुविधाओं को उपलब्ध कराया जिससे बच्चों को पढ़ाया जा सके। काफी संघर्षों के बाद स्कूल का निर्माण हो पाया था।
मेरे स्कूल मे सूरज नाम का एक बच्चा है जो कभी स्कूल ही नहीं आना चाहता था स्कूल के नाम से भागता था। सूरज की माँ को लगा शायद प्राइवेट स्कूल में इसका मन लगे, लेकिन सूरज के न जाने कारण से स्कूल वालों ने सूरज को स्कूल में लेने से मना कर दिया। सूरज की माँ निराश हो गई तब मैंने धीरे धीरे सूरज पर बिना किसी दबाव के स्कूल आने के लिए बोला तब कभी-कभी आने लगा।
फिर मैंने उसे ग्राउन्ड में खेलने के लिए बुलाना शुरू कर दिया, इसके बाद सूरज स्कूल भी आने लगा पढाई में भी उसका मन लगने लगा और आज क्लास का सबसे अच्छा बच्चा है। इसे देखकर मुझे बहुत खुशी मिलती है एक शिक्षक के लिए इससे बड़ी क्या बात होगी। स्कूल मे अब बच्चे छुट्टी वाले दिन भी स्कूल आना चाहते हैं, इस काम के लिए मुझे सम्मनित भी किया गया है।
सब कुछ ठीक चल रहा है, लेकिन अचानक कोविड महामारी के आने से सब कुछ ठप पड़ गया, बच्चों के माता-पिता उन्हें स्कूल नहीं भेजना चाहते थे। उनके परिवारों को समझाना बहुत मुश्किल था, क्योंकि उनके पास स्मार्ट फोन भी नहीं था, जिससे बच्चे घर से ऑनलाइन पढ़ाई कर सकें। मैंने बच्चों के घर जाकर उनके अभिभावकों को समझाया और पूरी जिम्मेदारी ली तब जाकर वो लोग अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए राजी हुए।
बच्चे स्कूल आने लगे लेकिन उनके साथ उनके घर से कोई न कोई गार्जियन जरूर आता था, बच्चों को रोके रखने के लिए उन्हें रेडियो और टेलीविजन की मदद से उन्हें पढ़ाना शुरू किया। मैं आज भी बच्चों को कुछ नया सिखाने के लिए इनकी मदद लेती हूं, जिससे हर बच्चा डेली स्कूल आए।
जैसा कि नीतू ठाकुर ने गाँव कनेक्शन की इंटर्न अंबिका त्रिपाठी से बताया
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