हमारे स्कूल में पहले बहुत कम संख्या में बच्चे आते थे, क्योंकि स्कूल जिस गाँव में है, वहां और आसपास के गाँवों के ज्यादातर लोग कपड़ों पर कढ़ाई का काम करते हैं, इस वजह से बच्चे भी इसी काम के लगे रहते थे।
एक दिन विद्यालय प्रबंधन समिति की बैठक में इस बात को उठाया गया तो एसएमसी के अध्यक्ष प्रकाश ने हमें सुझाव दिया क्यों न हम स्कूल में ही बच्चों को ये सारी चीजें सिखाने लगें। प्रकाश का ये सुझाव हमें भी बहुत पसंद आया, क्योंकि हर शनिवार को कुछ न कुछ एक्टिविटी कराई जाती है, हमने इस दिन यही काम शुरू किया। फिर तो बच्चे खुद ही हर दिन स्कूल आने लगे।
इसके बाद हम यहीं नहीं रुके एसएमसी की सदस्य ललिता ने बच्चों को सिलाई सिखाना शुरू कर दिया है। हमने कम्प्यूटर लाकर बच्चों को बेसिक चीजें बतानी शुरू की अब तो बच्चे खुद से ही पॉवर प्वाइंट पर प्रजेंटशन भी बनाने लगे हैं। एक किस्सा आप सभी से साझा करना चाहती हूं, एक बार हमारे जिले के बेसिक शिक्षा अधिकारी हमारे स्कूल आए और बच्चों से पूछने लगे, तभी एक बच्चा बोला क्या आप पावर प्वाइंट पर प्रजेंटशन देखेंगे, फिर क्या बच्चे ने पूरा प्रजेंटशन उन्हें दिखाया और उन्हें समझाया भी वो बहुत प्रभावित हुए।
सबसे ज्यादा परेशानी गर्मी की छुट्टी में होती है, जब बच्चा अपने घरों पर होते हैं, कई बार ऐसा होता है कि साल भर की सिखाई चीजें वो भूल जाते हैं। मुझे लगा कि इस बार बच्चों के लिए कुछ करना चाहिए। मैंने बहुत पता किया तो मिट्टी फाउंडेशन के बारे में पता चला जो कि ऑनलाइन व्यवसायिक प्रशिक्षण देते हैं।
हमने अपने स्कूल के 520 बच्चों के साथ ही कुल 18 शिक्षकों को इनके कार्यक्रम के लिए रजिस्ट्रेशन कराया है। वैसे तो इस ट्रेनिंग के लिए 500 रुपए फीस ली जाती है, लेकिन सभी के लिए ये मुफ्त कार्यक्रम शुरू किए गए हैं।
हर दिन आधे घंटे की ऑनलाइन क्लास में सभी को मिट्टी के बर्तन, पपेट व मुखौटा, वित्तीय साक्षरता, ग्राफिक्स, क्राफ्ट्स, कुकिंग, चिकित्सा टीके का जीवन चक्र, डिजिटल नागरिकता, ब्लॉक प्रिंटिंग, खाद्य संरक्षण जैसे विषयों के बारे में बताया जाएगा।
जैसा कि श्वेता दीक्षित ने गाँव कनेक्शन की अंबिका त्रिपाठी से बताया
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