साल 2016 में मेरा ट्रांसफर प्राथमिक विद्यालय भगेसर में हुआ, स्कूल आया तो यहाँ सिर्फ 46 बच्चों का एडमिशन था, क्योंकि पास में प्राइवेट स्कूल था, इसलिए ज़्यादातर लोग अपने बच्चों को वहीं भेजते थे। फिर मैंने स्कूल के भौतिक परिवेश में परिवर्तन लाना शुरू किया, इसके साथ ही बच्चों के माता पिता के साथ मीटिंग की, जिससे उन्हें स्कूल के बारे में बताया जा सके। अभी हमारे स्कूली बच्चों की संख्या 208 हो गई है।
बच्चे रोज़ स्कूल आए इसलिए हमने बच्चों के कई ग्रुप बना रखे हैं। अगर कक्षा एक में 40 बच्चे हैं, हमने 8-8 बच्चो के पाँच ग्रुप बना दिए, उन ग्रुप के लीडर बना दिए। और एक असिस्टेंट लीडर भी है। यही ग्रुप लीडर ही टीचर से बात करते हैं,किसी ग्रुप का नाम कल्पना चावला है तो किसी का नाम भगत सिंह। ग्रुप का नाम ऐसे महान लोगों के नाम पर रखा है, जिससे बच्चे उनसे कुछ सीख पाएँ।
उस ग्रुप के ही बच्चे ही एक दूसरे को देखते हैं कि सभी स्कूल आ रहे हैं कि नहीं, अगर कोई बच्चा नहीं आता तो फोन करके पूछते हैं कि क्यों नहीं आया, अगर कोई समस्या होती है तो बच्चों के घर जाकर पता करते हैं।
हमारे स्कूल में सभी बच्चों को आत्मरक्षा का भी प्रशिक्षण भी दिया जाता है। यही नहीं हमारे स्कूल के बच्चे स्पोर्ट्स में भी काफी अच्छे हैं, जिला स्तरीय खेल प्रतियोगिताओं में हमारे यहाँ के बच्चे जाते रहते हैं।
हमारे स्कूल में दो बच्चियाँ ममता और रेखा थीं, किसी कारण से उनका स्कूल छूट गया, उन्हें लगा कि अब वो आगे पढ़ ही नहीं पाएँगी। मैंने उन दोनों बच्चियों को समझाया कि अभी देर नहीं हुई। वो आगे पढ़ाई कर सकती हैं, ये उनका अधिकार है। आज दोनों लड़कियाँ पढ़ रहीं हैं, एक 9वीं क्लास में है और दूसरी 10वीं में, उन्हें देखकर अच्छा लगता है।
हमारे स्कूल में जितना भी बदलाव अभी हुआ हैं उनमें ज़्यादा से ज़्यादा चीजें यहाँ पर पढ़ाई कर चुके पुराने छात्रों की मदद से लगाई गईं। स्कूल में बच्चों को तकनीक की मदद से बेहतर शिक्षा दी जा रही है। स्कूल में आठ कक्षाओं में से पाँच प्रोजेक्टर, एलईडी स्क्रीन और कंप्यूटर के साथ स्मार्ट क्लासरूम हैं।
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