हिमाचल प्रदेश के एक गाँव में इन दिनों अजीब नज़ारा देखने को मिल रहा है जिससे गाँव के किसान भी हैरान हैं।
जी हाँ, शिमला से करीब 200 किलोमीटर दूर कुल्लू ज़िले के तरगली गाँव में एक सेब का बगीचा हर दिन महिला किसानों से भर जाता है। यहाँ ये महिलाएँ अनीता नेगी के बगीचे में उनसे प्राकृतिक खेती के गुर सीखने आती हैं।
अनीता सहफसली खेती के साथ ही दूसरी महिला किसानों को प्राकृतिक खेती का ज्ञान भी देती रहती हैं, तभी तो उनके यहाँ हर दिन आसपास की महिलाओं का जमावड़ा लगा रहता है।
लेकिन पाँच साल पहले ऐसा नहीं था, क्योंकि कुल्लू के तरगली गाँव की रहने वाली अनीता भी तब रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल से खेती किया करती थीं, लेकिन साल 2018 में खेती में आ रही समस्याओं के चलते उन्होंने प्राकृतिक खेती की तरफ रुख कर दिया।
52 वर्षीय अनीता गाँव कनेक्शन से बताती हैं, “25 साल हो गए खेती करते हुए, शादी के बाद जब से यहाँ आयी हूँ इस काम से जुड़ी हूँ । प्राकृतिक खेती की शुरुआत टमाटर से शुरू की, जिसमें तीन महीने में पाँच से छह लाख की बिक्री हो जाती, फिर लहसुन उगाना शुरू किया और धीरे-धीरे फल, सब्जियाँ सब पूरी तरह से प्राकृतिक कर दिया।”
अब तो खेती की पैदावार भी अच्छी होने लगी है, खेतों की उर्वरक क्षमता भी बढ़ गई है। अनीता अनाज के साथ ही अपने बाग में सेब, कीवी जैसे 15 तरह के फलों की खेती करती हैं। उनकी नर्सरी भी है, जिससे आसपास ही नहीं दूर के गाँव के किसान भी फलदार पौधे लेकर जाते हैं।
अनीता कहती हैं, “खेत में पैदावार अच्छी हो गई है, अब तो मोटे अनाजों की भी खेती करती हूँ। अब तो दूसरे किसानों को भी प्राकृतिक खेती की ट्रेनिंग देती हूँ। क्योंकि ये खाने में बेहतर तो होता ही है, साथ ही स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है।”
अनीता सुभाष पालेकर प्राकृतिक कृषि मॉडल से खेती करती हैं, इसके लिए उन्होंने खुद भी प्रशिक्षण लिया है।
अनीता अपने गाँव के साथ ही आसपास की पंचायतों में जाकर प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण देती हैं वो कहती हैं, “अब तो स्कूल कॉलेज में भी जाकर बच्चों को खाने के प्रति सचेत करती हूँ कि कौन सा खाना स्वास्थ्य के लिए सही है और कौन सा नुकसानदेय।”
15 साल से खेती कर रहीं 42 साल की विनीता देवी, अनीता से सीखकर प्राकृतिक खेती करने लगीं हैं। पास ही के गाँव त्रिलाड़ी की रहने वाली विनीता गाँव कनेक्शन से बताती हैं, “मैंने भी प्राकृतिक खेती की शुरुआत किचन गार्डन से की थी, जिसमें पालक, मटर, गोभी, जैसी सब्जियों की फसल लगाई थी, अब तो मक्की, टमाटर सब प्राकृतिक तरीके से ही करती हूँ।”
वो आगे कहती हैं, “रासायनिक खेती के कारण फ़सलों को बहुत नुकसान हो रहा था, खेतों में समस्या बढ़ गई, जिसको लेकर हम काफी परेशान हुए। खर्चे भी ज़्यादा होने लगे और बचत कम, इसलिए हमने रासायनिक खेती को छोड़ प्राकृतिक खेती की तरफ बढ़ना शुरू किया, जिसमें कम खर्चों में अच्छी खेती होने लगी।”
हिमाचल प्रदेश कृषि विभाग ने साल 2018 से ‘प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान’ योजना की शुरुआत की है। राज्य सरकार ने कृषि-बागवानी में रसायनों के प्रयोग को कम करने के लिए इस योजना के तहत ‘सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती’ विधि को लागू किया है।
अनीता खेती के साथ ही छोटी सी दूध डेयरी भी चलाती हैं, जिससे खाद के लिए गोबर तो मिल ही जाता है साथ ही दूध से भी कमाई हो जाती है। पहाड़ों में खेती आसान नहीं लेकिन इतने लम्बे समय से खेती कर रहीं अनिता कहती हैं, “खेती बहुत मुश्किल तो नहीं लेकिन बस रासायनिक खेती से काफी समस्याएँ आती हैं, लेकिन अब जो भी किसान प्राकृतिक खेती कर रहा है उसे ज़्यादा फायदा हो रहा है।
अनीता के साथ उनके पति और बेटा भी प्राकृतिक खेती में पूरी मदद करते हैं।
त्रिगाली गाँव की चंपा देवी भी वैसे तो आंगनबाड़ी में नौकरी करती हैं, लेकिन अब प्राकृतिक खेती में भी हाथ आजमा रहीं हैं। अनीता से सीखकर अब वे दूसरों को भी ट्रेनिंग देने लगीं हैं। चंपा देवी गाँव कनेक्शन से बताती हैं, “मैं तीस साल से खेती कर रहीं हूँ, प्राकृतिक खेती अभी शुरू की है, जिसमें मटर, टमाटर, मिर्च, शिमला मिर्च जैसी फसलें उगाती हूँ। मैंने सेब के भी 500 फल लगा दिए हैं। प्राकृतिक खेती के अपने अलग फायदे हैं।”