इस दिवाली आप भी जलाइए झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों के बनाए दीए

प्रयागराज में झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों को न सिर्फ बेहतर शिक्षा मिल रही है, बल्कि उन्हें कई तरह के हुनर भी सिखाए जा रहे हैं; अभी वहाँ के बच्चे दिया बनाने में व्यस्त हैं।
#TheChangemakersProject

12वीं में पढ़ने वाली खुशबू विश्वकर्मा खुश हैं इस दीपावली उनके हाथों से बनाये दीये बाज़ार में बिकने भेजे गए हैं।

खुशबू की तरह कई झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चे पढ़ाई के साथ हुनरमंद बन रहे हैं और ये कमाल है उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 260 किलोमीटर दूर प्रयागराज के अल्लापुर के रहने वाले 31 साल के अभिषेक शुक्ला का।

खुशबू पहले सरकारी स्कूल में पढ़ती थीं, लेकिन आठ साल पहले जब अभिषेक उनकी बस्ती में आए तो उन्होंने उनकी क्लास ज्वाइन कर ली।

“सर के आने के बाद हम में काफी बदलाव आए हैं; पहले भी पढ़ाई करते थे, लेकिन आज हम शायद जहाँ हैं वहाँ नहीं होते, पढ़ाई के साथ अन्य गतिविधियाँ भी होती हैं, हम दिवाली पर दीये भी बनाते हैं और दीयों से मिले पैसे हम जैसे बच्चों की पढ़ाई पर खर्च होता है।” खुशबू गाँव कनेक्शन से बताती हैं।

दिवाली से कई हफ्तों पहले ही बच्चे अपनी क्लास खत्म होने के बाद अपने टीचर की मदद से दीए बनाने में लग जाते हैं, और दिवाली करीब आते-आते दस हज़ार दीए बना लेते हैं।

ये सारे बच्चे आसपास की झुग्गी-झोपड़ियों के रहने वाले हैं, इनमें से कई बच्चे तो पहले स्कूल भी नहीं जाते थे, लेकिन आज पढ़ाई के साथ ही कमाई का हुनर भी सीख रहे हैं।

अभिषेक ‘शुरुआत- एक ज्योति शिक्षा की’ नाम की संस्था चलाते हैं, जिसमें आसपास के झुग्गी-झोपड़ियों के बच्चों को पढ़ाते हैं।

अभिषेक गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “मेरा सफर आठ साल पहले 2016 में शुरू हुआ था, जब एक बच्ची को सड़क पर भीख माँगते देखा; मैंने उससे पूछा तो उसने बताया कि माँ नहीं हैं और घर चलाने के लिए भीख माँगती हूँ।”

“तब मुझे लगा कि शायद झूठ बोल रही है, लेकिन मैंने उसका पीछा किया और लोगों से पूछा तो पता चला कि माँ नहीं, पिता कुछ काम नहीं करता; दस साल की उम्र में अपने पाँच साल के भाई को संभाल रही है।” अभिषेक ने आगे कहा।

बस यहीं से अभिषेक ने शुरुआत की और सोचा कि इनकी मदद करनी है, तो पहले इन्हें पढ़ाना होगा। यूपीएससी की तैयारी के साथ उन्होंने बच्चों को पढ़ाना शुरू किया आज उनके पास 150 बच्चे पढ़ते हैं। उनके पढ़ाए हुए दो बच्चे इंजीनियरिंग कर रहे हैं और एक बच्चा माइक्रोबायोलॉजी में पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहा है।

लेकिन ये सब इतना आसान नहीं था, अभिषेक बताते हैं, “जब मैंने बच्चों को पढ़ाने के लिए कहा तो बच्चियाँ हँसने लगीं कि आपकी तरह बहुत से लोग आते हैं और फोटो खिंचा कर चले जाते हैं आप भी चले जाएँगे।”

लेकिन अभिषेक ने अपना प्रयास जारी रखा, और पहले दिन 45 बच्चे आए, उन्हें कॉपी, किताब और पेंसिल जैसी चीजें दी गईं। दूसरे दिन सिर्फ 30 और एक हफ्ते बाद बस 10 बच्चे आए। अभिषेक कहते हैं, “मुझे लगा कि इन्हें रोकने के लिए कुछ करना ही पड़ेगा, उन्हें खेल के जरिए पढ़ाना शुरू किया और टॉफी, बिस्किट देने लगे तो जो बच्चे नहीं आते थे वो भी आने लगे।”

जब बच्चे आने लगे तो अभिषेक उनकी फोटो और काम के बारे में सोशल मीडिया पर शेयर करने लगे तो लोगों ने मजाक बनाया कि तुम भी कुछ समय में बंद कर दोगे।

अभिषेक आगे कहते हैं, “जब बच्चे थोड़ा-बहुत पढ़ने और समझने लगे तो मुझे लगा कि अब उनका एडमिशन स्कूल में कराना होगा; लेकिन उनके परिवार वाले गुस्सा हो गए और कहने लगे कि अभी आपके पास अपने बच्चों को भेज रहे थे, क्या वो कम था जो स्कूल में भेजना चाहते हैं।”

अभिषेक को उनको समझाने में तीन महीने लग गए और साल 2017 में नंदिनी, कोमल और रेशम का एडमिशन स्कूल में हो गया। उसके बाद तो जैसे क्रांति सी आ गई, बच्चियाँ स्कूल यूनिफॉर्म पहनकर जब निकली तो उन्हें देखकर दूसरे बच्चे भी स्कूल जाने को तैयार हो गए।

अभिषेक ने अपना खुद का स्कूल शुरू किया, जिसकी फीस हर दिन के हिसाब से एक रुपए है, इस समय 60 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। इसके साथ यहाँ कम्प्यूटर लैब जैसी सारी सुविधाएँ हैं। यहाँ से पढ़ाई करने के बाद इन बच्चों का आगे एडमिशन अभिषेक ही कराते हैं।

17 साल की आँचल सोनकर चार साल से अभिषेक के साथ पढ़ाई कर रही हैं और एक प्राइवेट स्कूल में बारहवीं में हैं। वो बताती हैं, “पहले मेरा मन पढ़ने में नहीं लगता था, लेकिन अभिषेक सर की मदद से हाईस्कूल में मेरे 80 प्रतिशत आए थे।”

वो आगे कहती हैं, “स्कूल से लौटने के बाद मैं वहाँ जाती हूँ, दीया बनाने में मदद करती हूँ।”

अगर आप भी प्रयागराज या फिर आसपास के जिलों में रहते हैं और इन बच्चों की मदद करना चाहते हैं तो यहाँ से दीए खरीद सकते हैं। 

Recent Posts



More Posts

popular Posts