बांदा के इस किसान से सीखने आते हैं अमेरिकी

India

बुंदेलखंड में सूखे से त्राहि-त्राहि भले ही हो लेकिन यहां कुछ किसान ऐसे हैं, जिनसे अमेरिका और आस्ट्रेलिया जैसे प्रगतिशील देशों के किसान खेती के गुर सीखने आते हैं। बांदा जिले के बड़ोखर गाँव में रहने वाले प्रेम सिंह इन किसानों को खेती का वो प्राकृतिक तरीका बताते हैं, जो ये अपने देशों में आजमाते हैं।

बुंदेलखंड के ज्यादातर इलाकों से किसान पलायन कर रहे हैं। दो वर्षों से प्राकृतिक आपदाओं और सूखे का सामना कर रहे इस क्षेत्र के हजारों किसानों के घर में अनाज का एक दाना नहीं हुआ है। रोजी-रोटी की तलाश में वो दिल्ली जैसे शहरों में रोजगार की संभावनाएं तलाश रहे हैं। लेकिन बुंदेलखंड के ही बांदा जिले के बड़ोखर खुर्द गाँव में रहने वाले प्रेम सिंह (57 वर्ष) खेती से हर साल 15 लाख रुपये की कमाई करते हैं। इतना ही नहीं हर वर्ष 3000-4000 किसान उनसे खेती के गुर भी सीखने आते हैं, जिनमें सैकड़ों विदेशी होते हैं। प्रेम सिंह बुंदेलखंड के दूसरे तमाम किसानों से अलग तरीके से खेती करते हैं।

बाकी किसान जहां रासायनिक खादों के सहारे बाजार के लिए खेती करते हैं वहीं प्रेम सिंह खेती, पशुपालन और बागवानी का अनूठा मॉडल अपनाए हुए हैं। प्रेम सिंह ने अपनी कुल जमीन को तीन भागों में बांट रहा है। जमीन के एक तिहाई हिस्से में उन्होंने बाग लगाई है तो दूसरा भाग पशुओं के चरने के लिए है। जबकि बाकी एक तिहाई हिस्से में वो जैविक विधि से खेती करते हैं। प्रेम सिंह ने उसे आवर्तनशील खेती का नाम दिया है।

बांदा जिला मुख्यालय से पूरब-दक्षिण दिशा में बांदा-इलाहाबाद मार्ग पर लगभग 6 किमी दूरी पर बड़ोखर खुर्द में बैठे प्रेम सिंह भारतीय जैविक खेती संगठन से जुड़े हैं वे तीस वर्षों से अपने 25 एकड़ खेत में पूरी तरह से जैविक खेती कर रहे हैं।

अपनी सफलता का सूत्र बताते हैं, ”मैं बाजार के लिए खेती नहीं करता। अपने लिए बाग लगाए हैं, अपने लिए पशु पाले हैं, जैविक तरीके से खेती करता हूं। खेतों में पैदा हुए अनाज़ को सीधे बेचने की बजाय उसके प्रोडक्ट बनाकर बेचता हूं, जैसे गेहूं की दलिया और आटा, जो दिल्ली समेत कई शहरों में ऊंची कीमत पर जाते हैं।”

प्रेम सिंह के इसी फार्मूले की बदौलत अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों से किसान उनके यहां ये सफल फार्मूला सीखने आते हैं। फार्म हाउस की बांस की एक झोपड़ी में बैठे प्रेम सिंह बताते हैं, “जब आप समाधान की बात करते हैं, और उसके लिए प्रयास करते हैं, तो उसकी ख्याति दूर तक जाती है। दुनिया में बहुत से किसान हैं जो मेरी तरह मुनाफे और सेहतमंद खेती करना चाहते थे, लेकिन वो कर नहीं पाते। जब उन्हें पता चलता है कहीं इसका सफल प्रयोग हो रहा है, तो वो खुद चले आते हैं, मेरे यहां आने वाले किसान और विदेशी उसी का हिस्सा है।”

अपनी बात को जारी रखते हुए वो बताते हैं, “मेरे यहां हर साल में 3000-4000 किसान आते हैं, जिसनें कृषि में शोध करने वाले छात्र, प्रगतिशील किसान, कृषि के जानकार होते हैं। अब तक अमेरिका, फ्रांस समेत 18 देशों के किसान और रिसर्चर, पर्यावरण प्रेमी भी बड़ोखर खुर्द आ चुके हैं। अभी फिलहाल ऑस्ट्रेलिया की उल्लरिके आई हैं, जो कृषि की जानकार हैं और मध्यप्रदेश के आदिवासी इलाकों में एक स्कूल खोलना चाहती हैं, जहां कक्षा छह से ही छात्रों को खेती सिखाई जाएगी।”

ग्रामोदय विश्वविद्यालय चित्रकूट, जनपद सतना (म.प्र.) से एमआरडीएम के फाउंडर छात्र रहे प्रेम सिंह की बदौलत उनके जिले के तमाम किसानों ने बागवानी शुरू की है। खुद उनके गाँव के 28 फीसदी क्षेत्रफल पर में बाग लगे हैं। दूसरे तमाम किसानों के लिए प्रेरणस्त्रोत बने प्रेम सिंह बुंदेलखंड समेत देश के दूसरे किसानों की दशा के लिए सरकार को जिम्मेदार मानते हैं। नाराजगी के साथ वो कहते हैं, ”मेरे मॉडल से किसान प्रभावित हुए, उन्होंने तरीके अपनाएं भी लेकिन सरकार पर असर नहीं पड़ा। अगर नीतिगत स्तर पर ऐसे कृषि व्यवस्था शुरू की जाए तो बुंदेलखंड देश के करोड़ों की हालत सुधर सकती है। लेकिन देश में किसानी की बात होती है, कोई किसान की बात नहीं करना चाहता है। देश के सभी कृषि विश्वविद्यालय और अनुसंधान संस्थान किसानी की नई तकनीकें विकसित कर रहे हैं, लेकिन किसान दिनों दिन निराशा के गर्त में जा रहा है। इसीलिए मैंने किसानों के हित में सोचने वाले कुछ साथियों और बेल्जियम के एक साथी की मदद से “ह्मेन एग्रेयिशन सेंटक, किसान विद्यापीठ” भी खोला है, जहां किसानों को स्वावलंबी, समृद्धि और आत्मनिर्भर बनाने के तरीकों पक काम होता है।”

सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए प्रेम सिंह कहते हैं, ”बुंदेलखंड में पारंरपरिक तौर-तरीकों से इतना दलहन होता आया है, लेकिन आपने (सरकार) ऐसी व्यवस्था कर दी कि यहां दाल की जगह गेहूं होने लगा, और अब जब दाल के भाव आसमान पर पहुंच गए हैं आप विदेशों से दाल की खेती कराना चाहते हैं, क्योंकि आप खुद नहीं चाहते किसान समृद्ध हो।”

लाल खां की कमाई सलाना 10-12 लाख

बरईमानपुर (बांदा)। “हम लोग घर के पढ़ाई लिखाई में कमजोर बच्चे को किसान बनाते हैं, जो पढ़ लिख जाते हैं उन्हें नौकरी के लिए बाहर भेज देते हैं, फिर सोचते हैं कि खेती से कमाई हो।” सालाना 10-15 लाख रुपये की कमाई खेती और पशुपालन से करने वाले बांदा के प्रगतिशील किसान लाल खां खेती के पिछड़ने की वजह बताते हैं।

बांदा जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में विंध्यवासनी देवी मंदिर के आगे बरईमानपुर गाँव में लाल खां का फॉर्म है। करीब 25 एकड़ में फैले लाल खां के फॉर्म में खेती के अलावा (बकरा, भैंस, मुर्गी, मछली,केचुआ) पशु पालन कर रहे हैं। बांदा में ज्यादातर किसान जहां सूखे से परेशान हैं, लाल खां ने 200 कुंतल से ज्यादा प्याज पैदा किया है।

छप्पर की बखारी (स्टोर रुम) में प्याज दिखाते हुए वो कहते हैं, ”कौन कहता है बुंदेलखंड में पानी की समस्या है, यहां औसतन 400 मिलीमीटर पानी बरसता है जबकि खेती के लिए जरूरत 150 मिमीलीटर की सालाना होती है। पानी खूब बरसता है, लेकिन वो सब बंगाल चला जाता है। समस्या पानी रोकने की है। मेरे पास एक तालाब पहले से है और एक अभी सरकार की खेत तालाब योजना से बनवाया है।”

लाल खां बकरी, मछली और मुर्गी पालन के लिए देशभर के किसानों को ट्रेनिंग देते हैं, जबकि मथुरा स्थित भारतीय बकरी अनुसंधान संस्थान के रजिस्टर्ड सलाहकार हैं।

अपने फार्म हाउस के एक हिस्से में मूंग की फसल को दिखाते हुए लाल खां बताते हैं,”यहां पर गेहूं और धान की खेती करके अपना जीवनयापन नहीं कर सकता है या तो उसके पास उतनी सुविधा हो। खेती में खर्चा बढऩे लगा तो इंट्रीगेडेट फॉमिग को अपनाया और आज इससे अच्छा मुनाफा भी हो रहा है।”

उनके फॉर्म में 70 देशी प्रजाति के बकरे हैं इसके साथ ही 600 ग्रे-रेड प्रजाति की मुर्गियां है। दुग्ध व्यवसाय के लिए लाल खां ने मुर्रा प्रजति की तीन भैंसे भी पाल रखी हैं। लाल खां पशुपालन तो करते ही हैं साथ कई किसानों को ट्रेनिंग भी दे चुके हैं। लाल खां बताते हैं, ”कई बार किसान पशुपालन व्यवसाय तो अपना लेता है पर जानकारी के अभाव में वो ज्यादा मुनाफा नहीं कमा पाते है। पशु को खिलाने के तरीका, रखरखाव जैसी पशुपालन संबधी जानकारी हम लोगों को देते है।” लाल खां से अब तक 150-200 किसान प्रशिक्षण ले चुके हैं। इसके लिए वो बाकायदा 500 रुपये प्रति किसान से फीस भी लेते हैं।

लाल खां बताते हैं, ”कई किसानों ने हम से प्रशिक्षण लेकर पशुपालन व्यवसाय को अपनाया। मुझे पूरे देश से फोन भी आते हैं जिनको में फोन पर ही सलाह देता हूं।”

पशुपालन व्यवसाय के अलावा मौसमी सब्जी को भी अपने फॉर्म में लगाते है। खेती में आने वाली दिक्कतों के बारे में लाल खां बताते हैं, ”यहां सिंचाई का कोई साधन नहीं है फिर भी हम खेती कर रहे है। आस-पास कोई भी ट्यूबवेल की व्यवस्था भी नहीं है। खुद का तालाब है उससे ही पानी निकल कर खेती करते है और उसी में मछलियों के बीज भी डाले हुए हैं।”

लाल खां को अपने मछली वाले तालाब से ही अकेले इस वर्ष 10 लाख की आमदनी होने की उम्मीद है। कृषिशास्त्र से स्नातक लाल खां दूसरे किसानों की समस्या को लेकर वो कहते हैं, “खेती के बारे में हम किसानों की राय सोच बड़ी परंपरागत है। हम खेती को मुख्य व्यव्साय नहीं बल्कि कुछ न होने पर उसे करते हैं। घर के जो पढ़े लिखे लड़के होते हैं उनके नौकरी और दूसरे व्यवसाय करवाते हैं जबकि जो पीछे रह जाता है उसे खेती में ढकेल देते हैं। जो किसी तरह उसे बस ढोते रहते हैं न अपने तरफ से कोई प्रयास करते हैं न नए तरीके अपनाते हैं, जो उनकी पिछड़ने और घाटे का कारण बनता है।”

सूखे जैसे क्षेत्र में जहां लाल खां इंट्रीगेडेट फॉमिंग से लाखों कमा रहे है। बीएससी कर चुके लाल खां तिल की फसल पर रिसर्च कर रहे हैं, जल्द ही अपनी रिसर्च का पेंटेट कराने वाले हैं, इंतजाम पर उनकी प्रजाति को मान्यता मिलनी है।

लाल खां की प्रगति से बांदा का कृषि महकमा भी गदगद है। बरमईमानपुर में उनके जन्नत कृषि फार्म पर मिले जिलाकृषि अधिकारी बाल गोविंद यादव बताते हैं, ”इऩ हालातों में लाल खां उपलब्धि सराहनीय है, कृषि विभाग भी हर संभव मदद करता है, अभी इन्हें एक तालाब बनाया है। इन्हें देखकर दूसरे किसानों को प्रेरणा मिलती है।” 

भैंस बेचकर लगवाया सोलर पंप

पहाड़ियों और रेत के टीलों पर लगे बबूल और खजूर के पेड़ों में भी पत्तियां न के बराबर हैं लेकिन इस गाँव में करीब दो एकड़ का एक खेत पूरा हराभरा है। ज्यादातर हिस्से में मूंग बोई है तो बाकी में बैंगन और टमाटर लगे हैं। कुछ पेड़ हरीमिर्च के भी होंगे। जबकि सड़क किनारे लगे सोलर पैनल से उनकी सिंचाई होती है। सौर्य ऊर्जा से चलित मोटर से निकलते पानी को गर्व से दिखाते हुए राकेश सिंह कहते हैं, सोलर पंप लगवाने के लिए 50 हजार रुपये की भैंस बेची और 65 हजार रुपये किसान क्रेडिट कार्ड से निकवाए है बाकी के ढाई लाख रुपये की सरकार ने सब्सिडी दी, जिससे 240 वॉट का ये पंप लगा है।”

राकेश अब साल में तीन बार फसल लेते हैं, वो बताते हैं, ”बारह मास कोई न कोई फसल बोते हैं क्योंकि अब पानी की कोई कमी नहीं है।” राकेश ने अपने खेत में 300 सागौन के पेड़, 50 नीबू के पेड़, 100 करौंदा के पेड़ भी लगे हुए है। वो कहते हैं, आठ- दस सालों में मेरे सागौन के पेड़ ही लाखों रुपये के बिकेंगे फिर मुझे पागल कहने वाले लोग समझ पाएंगे कौन पागल हैं। क्योंकि खेती मेहनत और सही तरीका मांगती है, वक्त पर उसकी देखभाल करनी पड़ती है।” राकेश खेतों में रासायनिक उर्वरकों की जगग गोबर और नीम की खली और सामाजिक का इस्तेमाल करते हैं।

अपने इन्हें तरीकों से वो अपने दो भाइयों को पांच-पांच बीघे हरे-भरे खेत दे चुके हैं, जहां बाग और गन्ना तक लगा हुआ है। मुस्कुराते हुए राकेश कहते हैं, पिछले महीने में हुई कमाई से मैंने इसी हफ्ते 45 हजार रुपये की भैंस खरीदी है, अब घर में दूध भी होगा।”

Recent Posts



More Posts

popular Posts