उन्नाव। हाल ही आए भूकम्प के झटकों ने भले ही सारे देश में लोगों को थर्रा दिया हो लेकिन सदर कोतवाली के मगरवारा गाँव में ऐसे झटके हर रोज आते है। यह बात अलग है कि ये झटके किसी प्राकृतिक आपदा के नहीं बल्कि क्षेत्र के औद्योगिक विकास की देन है।
उन्नाव शुक्लागंज मार्ग पर बसा मगरवारा गाँव विकास के दृष्टिकोण से औद्योगिक क्षेत्र कहा जाता है। यहां चमड़े से लेकर लोहे, बाल विकास एवं पुष्टाहार में बांटी जाने वाली पंजीरी, दूध से निर्मित अन्य उत्पादों समेत अनेक कारखाने स्थापित है, जिनमें बनी सामग्री न सिर्फ देश बल्कि विदेशों तक जाती है। इन्हीं में से एक है आटो पार्ट बनाने का संयत्र जिसे लोग जैन कालिया नाम से जानते है। जेेकेइडब्ल्यू फारजिंग नाम के इस कारखाने में 3 से लेकर 8 टन तक के भारी भरकम हैमर लगे हुए है। जिस समय फैक्ट्री में काम चलता है यहां की धरती थर्राने लगती है। सड़क किनारे बैंक ऑफ इंडिया के बगल में ओईएफ कर्मी रवि शंकर द्विवेदी ने कुछ वर्षों पूर्व अपना मकान बनवाया था। रवि शंकर बताते है, ”इसके निर्माण के समय उन्होंने फैक्ट्री के प्रभाव को ध्यान मे रखते हुए मजबूती के लिहाज से कोई कोर कसर नहीं छोड़ी लेकिन नतीजा सिफर रहा। बकौल रवि शंकर घर में जगह जगह दरारें पड़ जाती हैं। जिसके चलते समय समय पर मरम्मत करानी पड़ती है।
लोगों के फौलादी मकानों में इनके चलते दरारें पड़ गयी हैं। इतना ही नहीं यहां पहली बार आने वाले रिश्तेदार रात को अचानक बिस्तर छोड़ कर इस भ्रम में घर बाहर भागने लगतेेे हैं कि भूकम्प आ गया है। ऐसा भी नहीं इतनी बड़ी समस्या के विरोध में क्षेत्रीय लोगों ने आवाज न उठाई हो लेकिन प्रशासनिक और फैक्ट्री प्रबंधन की दूरभि संधि के चलते समस्या जस की तस बनी हुई है। परेशान क्षेत्रवासी अब आन्दोलन की तैयारी बना रहे हैं। यहीं के राम कुमार गुप्ता बताते है, ”यूं तो कारखाने औद्योगिक विकास का द्योतक होते हैं लेकिन यह फैक्ट्री क्षेत्र वासियों के लिए अभिशाप साबित हो रही है। लोग अपने खून पसीना की कमाई लगाकर अपने परिवार की सुरक्षा के लिए आशियाना बनाते है लेकिन यह कारखाना उसके आशियाने के लिए दुश्मन साबित हो रहा है। हर रोज भूकंप जैसा लगता है। कुछ महीनों पहले आए भूकंप का तो हमें पता ही नहीं चला, हमने सोचा कि फिर हैमर चला होगा।”
कमजोर घरों में तो कम्पन्न इस कदर होता है कि अलमारियों में रखे बरतन सरकते सरकते नीचे गिर जाते हैं। जिन अलमारियों में स्लाइडिंग वाले शीशे लगेेे होते हैं, उनसे खन खन का संगीत बजने लगता है। पुराने मकानों की चूले तो इन झटकों ने हिला ही रखी है लेकिन जिन लोगों ने फैक्ट्री में लगे हैमर को ध्यान में रखते हुए अपने नए मकानों को बुनियादी मजबूती दी है उनमें भी इस कम्पन के साफ असर देखने को मिलते है। कई मकानों की दीवारों में दरारे पड़ गई हैं। तमाम मकानों की छतों में दरारे पड़ने से बारिश का पानी भी रिसता है। कुछ ऐसी ही कहानी बयां करते है मगरवारा बाजार के रहने वाले मुन्ना गुप्ता। उन्होंने बताया कि फैक्ट्री हैम्मर के चलते घर की बुनियाद तक हिल गयी है। अक्सर घरों में रखे बर्तन फैक्ट्री से होने वाले कम्पन में गिर जाते हैं। यही चाट का ठेला लगाने वाले राजू बताते है, ”फैक्ट्री की दहशत हमारे घरों में आने वाले रिश्तेदारों में भी है। कई दफा नए रिश्तेदार रात को अचानक घर से यह सोच कर बाहर भागने लगते हैं कि शायद भूकम्प आ गया है।”
गाँव के नव निर्वाचित प्रधान गोवर्धन सिंह से इस सम्बन्ध में हुई बातचीत में उन्होंने कहा समस्या वास्तव में गंभीर है। ग्राम वासियों को समस्याओं ने निजात दिलाना मेरा दायित्व है। मैं हर स्तर ग्रामीणों के साथ इस समस्या के निराकरण के लिए संघर्ष करूंगा। उनका कहना है कि हमें कारखाने से कोई आपत्ति नहीं है बसर्ते इसके झटकों के प्रभाव को कम करने के इंतजाम किये जाने आवश्यक है। इस बारे में जब मुख्य विकास अधिकारी और जिलाधिकारी सौम्या अग्रवाल से बात करने की कोशिश की गई तो उनसे संपर्क नहीं हो पाया।
रिपोर्टर- दीपकृष्ण शुक्ला