मुख्यमंत्री जी, सफ़र में यहां ज़रूर जाइएगा

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लखनऊ मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जि़लों में विकास का जायज़ा लेने निकलने वाले हैं। यह सराहनीय है। गाँव कनेक्शन के ज़मीनी रिपोर्टरों ने उन्हें इन छह जगहों पर जरूर जाने की सलाह भेजी है

वर्षों से सूखी पड़ी हैं नहरें 

मुख्यमंत्री जी, इस बार हज़ारों हेक्टेयर धान की फसल खेतों में सूख गई। मौसम ने तो बेरुखी दिखाई ही आप के अधिकारियों ने भी कसर नहीं छोड़ी। प्रदेश के अधिकांश जि़लों में धान की फसलें झुलसती रहीं लेकिन नहरों में पानी नहीं पहुंचा। अब गेहूं समेत रबी की दूसरी फसलों की बुआई का सीज़न है लेकिन नहरें सूखी पड़ी हैं। दर्जनों जि़लों में पलेवा नहीं लगने से रबी की बुआई पिछड़ रही है। अब गेहूं की सिंचाई के वक्त पानी नहरों में होगा इसकी भी कोई उम्मीद नहीं है। नहरों में पानी छोडऩे का रोस्टर भी गौर करने वाला है। अधिकांश इलाकों में पानी तब पहुंचता है जब किसान ट्यूबवेल से सिंचाई कर चुके होते हैं। माइनर और खेतों तक जाने वाली सहायक नहरों की वर्षों से सफाई नहीं हुई है। कुछ नहरें तो ऐसी हैं जहां वर्षों से पानी की एक बूंद तक नहीं पहुंची। नहरों में पानी नहीं है तो किसान ट्यूबवेल से सिंचाई करते हैं, जो भूजल स्तर को और नुकसान पहुंचा रहा है। इसलिए आप जब पंचायत चुनाव के बाद प्रदेश में विकास का जायज़ा लेने निकलें तो किसी खेत के किनारे खड़े होकर इन नहरों को ज़रूर देखिएगा।

लोहिया आवास जहां हैं सिर्फ दीवारें

मुख्यमंत्री जी राममनोहर लोहिया आवास योजना के तहत प्रदेश के हज़ारों लोगों को सिर पर छतें मिली हैं। बहुतों को मिलने की उम्मीद है लेकिन हज़ारों लोग ऐसे भी हैं जिनके घरों में सिर्फ दीवारें ही खड़ी हो पाई हैं। योजना के तहत दूसरी किस्त का इंतजार करते हुए उन्हें महीनों बीत गए हैं। जिम्मेदार अधिकारी और प्रधान काम करने के लिए किश्त में अपना हिस्सा मांग रहे हैं।

30 हज़ार पगार वाले टीचर क्या पढ़ा रहे हैं?

जब दो जि़लों की सीमा पर हों तो सीमावर्ती किसी सुदूर प्राथमिक स्कूल में अपना काफिला रुकवा दीजिएगा। वहां के प्राथमिक स्कूल में जाकर शिक्षक और शिक्षामित्र से मिलिएगा। आप जानकार हैं, बात करके ये परख लेंगे कि एक व्यस्था की आंड़ में कहीं शिक्षा स्तर से छेड़छाड तो नहीं हो रही। स्कूल के बच्चें से पूछिएगा क्या हैंडपाइप में अच्छा पानी आता है। शौचालय अच्छे बने हैं? मिड-डे मील मिलता है। मिड-डे मील से याद आया, अगर समय से पहुंचे हों तो रसोई पर नज़र ज़रूर मार लीजिएगा, अपने सामने बच्चें को दीवार पर बनी भोजन की सप्ताह सारणी के हिसाब से खाना-खाते देखिएगा। अगर खाना सारणी के हिसाब से न हो तो पूछिएगा ज़रूर ग्राम प्रधान और संबंधित अधिकारियेां से कि ऐसा क्यों हैं?

कागज़ों पर बने तालाब जहां एक बूंद पानी नहीं

मुख्यमंत्री जी आप ने ‘जल बचाओ अभियान’ में 75 जि़लों में 30 हज़ार से ज्य़ादा तालाब खोदने का आदेश दिया था, पुराने तालाबों को सफाई -खुदाई करवाने को कहा था। किसी जि़ले में यात्रा के बीच ज़रा सा समय निकाल कर चले जाइएगा किसी नए खुदे तालाब के किनारे। मानसून तक पूरे होने थे, टहलकर देखिएगा ज़रा किस हालत मेें हैं। कोशिश करके जि़ला मुख्यालय से थोड़ा दूर के किसी क्षेत्र में ही तालाब पूछिएगा। ये भी पुख़्ता कर लीजिएगा कि कहीं आपको वही चंद तालाब तो नहीं दिखाए जा रहे, जो खोदे जा सके हैं। पूछिएगा उस जि़ले के जि़लाधिकारी से कि कितनों में बारिश का पानी भरा है। तालाब के मानकों पर सरसरी निगाह ज़रूर डाल दीजिएगा, कहीं ऐसा तो नहीं कि आप जो पैसा भेजते हैं, उससे केवल खाना-पूर्ति हो रही हो।

ग्रामीण स्वास्थ्य केन्द्रों में दवाएं हैं, एम्बुलेंस है लेकिन डॉक्टर नहीं

प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में हर 10 किलोमीटर पर एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बना हुआ है। अस्पताल के अंदर मरीज़ और तीमारदारों की लाइनें भी हैं। लेकिन इन दवाओं को देने के लिए डॉक्टर नहीं हैं। कई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ऐसे हैं जहां छह महीने से डॉक्टर नहीं हैं, एएनएम ही सबका इलाज कर रही है। आपकी चलाई एंबुलेंस सेवा से मरीज निर्धारित समय में घर से अस्पताल तो पहुंच जाते हैं लेकिन वहां डॉक्टर न मिलने से इलाज नहीं होता। अस्पतालों में पंखे हैं, ट्यूबलाइट भी हैं लेकिन कई स्वास्थ्य केंद्रों पर लैंप की रोशनी में प्रसव हो रहे हैं। मुख्यमंत्री जी इस दौरे पर इन स्वास्थ्य केंद्रों की नब्ज़ ज़रूर टटोल लीजिएगा।

किसी धान बेच रहे किसान से मिलिएगा

आपने विभागों से इस वर्ष 42 लाख टन धान खरीदने को कहा था। एक अक्टूबर से खरीद शुरू हो गई होगी, किसी सरकारी धान खरीद केंद्र पर रुकिएगा कुछ देर। आस-पड़ोस वालों से पूछिएगा कि केंद्र नियम से खुलता है। पूछिएगा कि अब तक कितना धान खरीदा है। अगर कोई किसान दिखे तो उससे पूछिएगा कि उसके हित के लिए जो कुछ छूट आपने दी है, वो किसान को मिली है क्या। उसका धान कमज़ोर देखकर कहीं उसे लौटा तो नहीं दिया गया केंद्र से। 14 रुपए किलो ही मिला है न उसे अपने धान का। इस सबके बाद अगर समय बचे तो पास के खुदरा बजार जाइएगा वहां आपको कई किसान 8 से 10 रुपए किलो में अपना धान बेचते ज़रूर मिल जाएंगे। उसे बिठाकर अपने पास मजबूरी पूछिएगा उसकी।

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