हजारों पशु मर चुके हैं, कुपोषित और बीमार गायें हो रहीं बाँझ

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बुंदेलखंड में पशुओं की मौत हो रही है। बुंदेलखंड में 57 लाख पशुओं में से ज्यादातर कुपोषित हैं, जबकि छुट्टा घूमने वाली लाखों गायें बांझ हो रही हैं। जो गर्भवती हो भी रही हैं वो अंधे और मरे बच्चों को जन्म दे रही हैं। चारे के अभाव और बीमारियों के चलते इसी वर्ष यूपी के सात जिलों में ही 30 हजार पशुओं के मरने की खबर हैं। इनमें ज्यादतर पशु छुट्टा घूमने वाले हैं।

यहां भले ही लाखों की संख्या में पशु नज़र आते हों लेकिन उनमें सेज्यादातर किसानों के लिए बोझ हैं। दुनिया में सबसे कम दूध देने वाले पशु क्षेत्र में शामिल बुंदेलखंड के सभी 13 जिलों के पशु दयनीय हालत में हैं। कम दूध देने की समस्या तो दशकों पुरानी है लेकिन 19वीं पशुगणना के अनुसार बुंदेलखंड में 57 लाख पशु हैं, जिनमें से 23.50 हजारो गोवंश हैं। इनमें से करीब 15 लाख पशु छुट्टा जानवर हैं, जो बीमारियों और मौत का शिकार हो रहे हैं।

इसके साथ-साथ 15 लाख बकरियां और डेढ़ लाख भेड़ हैं। सुअरों की संख्या एक लाख के ऊपर है। कमोवेश हालत लगभग सबकी एक जैसी है।

अपने गाँव के पास ऐसे ही कई पशुओं की मौत देखकर अप्रैल महीने में इन पशुओं के चारा-पानी के लिए गोशाला खोलने वाले महोबा जिले के सामाजिक कार्यकर्ता नसीर सिद्दीकी बताते हैं, “दो वर्षों में कम से कम 30 हजार पशुओं की मौत हुई है, अधिकतर पशुओं की हालत इतनी दयनीय है कि उनके बच्चे पैदा होते ही या तो वो मर जाते हैं, कई जगह तो मुझे बच्चे अंधे तक पैदा होने की खबर मिली है।” नसीर आगे बताते हैं, “महोबा में डिगोहा बिलरई समेत छह गाँवों में अप्रैल महीने में ही मैंने जब इनकी 70 लाशें देखी तो हैरान रह गया फिर मैंने एक साथी किसान की मदद से पशुओं के लिए गोशाला खोली।”

उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के 13 जिलों में 11,065 गांव आते हैं, इन सबके के बाहर आप कई-कई जानवरों के शव और कंकाल देखने को मिल जाएंगे। स्वराज अभियान ने तो अकेले मई महीने में बुंदेलखंड में 10 हजार पशुओं की मौत हुई है। हालांकि स्थानीय इस संख्या पर सवाल खड़े करते हैं। लेकिन चौंकाने वाली बात ये है कि इतनी भारी संख्या में मौत के बावजूद बुंदेलखंड के शायद ही किसी जिले में किसी पशु का पोस्टमार्टम हुआ हो। पशुपालन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “इतनी संख्या में पशु मर रहे हैं किस-किस का पोस्टमार्टम कराएं।” हालांकि झाँसी के मुख्य पशुचिकित्सा अधिकारी सुधीर कुमार सिंह बताते हैं, “अगर किसी गांव से सूचना मिलती है तो पशु का पोस्टमार्टम कराते हैं।”

पशुओं की मौत के पीछे की वजह सिर्फ चारे की कमी नहीं है। मरने वाले ज्यादातर जानवर छुट्टा हैं, जिनका न तो कभी टीकाकरण होता है और न ही उचित देखरेख होती है। लखनऊ में जीवाश्रय के पशु विशेषज्ञ डॉ. सूर्य प्रकाश मिश्र बताते हैं, “बुंदेलखंड में पशुओं के जो मरने की ख़बर आ रही है उसकी वजह कीटोसिन बीमारी, जो भूख से होती है, दूसरा इनमें मल्टी विटामिन और मल्टी मिनरल की भारी कमी है, जो पशुओं की शारीरिक क्षमता को खत्म कर देता। दूसरा इऩ पशुओं को टीकाकरण न के बराबर होता, जिससे एक बीमार पशु, तमात दूसरे पशुओं को बीमार कर देता है।”  लखनऊ पशु विशेषज्ञ एस. के कुमार बताते हैं, “यहां लोग अपने पशु का पेट भरने के लिए भूसा खिला देते हैं पर भूसा पशुओं के शरीर में जरुरी तत्वों को पूरा नहीं करता है। फिर बाहर का सड़ा गला खाने से भी इंफेक्शन हो जाता है।”

वैसे तो पशुपालन विभाग वर्ष में दो बार पशुओं को खुरपका, मुंहपका समेत कई टीके मुफ्त लगवाता है, लेकिन इन पशुओं के साथ तकनीकि पेंच फंस जाता है। पशुओं से संबंधित सभी समस्याओं के लिए पशुपालन विभाग को जिम्मेदार ठहराए जाने पर सवाल खड़े करते हुए बांदा में पशुपालन विभाग के वरिष्ठ सहायक डॉ. ए.के. सचान बताते हैं, “ जब तक पशु बंधे हैं वो पालतू की श्रेणी में आती है, जब उनका मालिक छोड़ देता है तो वो जंगली जानवर की श्रेणी में आ जाते हैं, ऐसे पशुओं का टीकाकरण का मुश्किल होता है। फिर भी हम लोग गांव-गांव जाकर कोशिश करते हैं।”

पशु मौतों के बाद बचे इन पशुओँ पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। पशुजानकारों के मुताबिक 90 कुपोषित हैं जो आने वाले नस्लों को भी प्रभाव डाल रहे हैं। महोबा जिले के डहर्रा गाँव के छन्नु लाल (45वर्ष) बताते हैं, कुछ दिन पहले ही मेरी गाय ने बच्चा दिया और वह इतना कमजोर था की दो दिन उठ नहीं पाया। इससे पहले वाला बच्चा मर गया था। गाय भी कमजोर है। मैं बाकी लोगों की तरह खुला तो नहीं छोड़ता लेकिन भूसा इतना महंगा है कि चारा दे पाना मुश्किल है। सरकार जो भूसा बांट रही है वो हमको आज तक नहीं मिला।

छन्नू लाल का दर्द बुंदेलखंड के दूसरे लाखों किसानों की तरह ही है। बांदा जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में महुआ ब्लॉक के रहने वाले दुर्गेश कुमार (25वर्ष) के पास दो गाय हैं। दुर्गेंश बताते हैं, “एक गाय ऐसी है जो एक बार ही ब्याही थी उसके बाद से अभी तक ब्याही नहीं है। बुंदेलखंड की गाय समेत दूसरे पशुओं में बांझपन की समस्या भी कुपोषण से जुड़ी हैं। डॉ. सचान आगे बताते हैं, “जब पूरा पोषण नहीं मिलता हैं गर्भवती पशु के शरीर का कैल्शियम गलने लगता है। इससे बच्चा तो कमजोर होता ही है, कई बार पेट में झर भी रह जाती है। जो गर्भाशय में ही सड़ जाती है, इससे पशु बांध हो जाता है।”

पशुओं के कमजोर और बीमार होने का कारण बताते हुए उत्तर प्रदेश पशुपालन विभाग के उपनिदेशक वी.के.सिंह ने बताते हैं, “बुंदेलखंड इलाके के गायों की स्थिति ज्यादा खराब है, ज्यादा दूध उत्पादन न कर पाने के कारण किसान गायों को चारा नहीं खिलाते हैं और बाहर छोड़ देते हैं। भैंसों की हालत थोड़ा बेहतर है। किसान के पास चारा नहीं है, बाहर चरने को नहीं है। खेतों में ऐसी फसलें नहीं हैं कि वो खा सकें। ऊपर से तिल की खेती ने समस्या बढ़ा दिया है। तो दो गाय एक आध लीटर दूध देती थी वो भी नहीं देती।”

दलहन-तिलहन के उत्पादन बुंदेलखंड की मिट्टी और जलवायु उपयुक्त है। दूसरे किसानों ने सरकारी पहल के बाद सूखे से बचने के लिए फसलों में बदलाव कर तिल की खेती शुरू की है। लेकिन इससे चारे की समस्या और बढ़ गई है। क्योंकि पशु इसके किसी भी भाग को खाते नहीं हैं। अपनी बात को जारी रखते हुए वी.के.सिंह बताते हैं, कृषि विभाग को ऐसी फसल पर जोर देना चाहिए जो उन पशुओं के लिए भी लाभदायक हों।”

सूखे को देखते हुए सरकार द्वारा बुंदेलखंड़ इलाकों में भूसा वितरित करने की योजना बनी है। पशु भूखे न मरें इसके लिए हर जिले को एक-एक करोड़ रुपये भूसा प्रबंध के लिए सौंपा गया। हर तहसील मुख्यालय पर वितरण सेंटर खोले गए है। भूसा वितरण की जिम्मेदारी राजस्व विभाग के लेखपालों को सौंपी गई। इस योजना के बारे में डॉ वीके सिंह बताते हैं, “भूसा उन्ही पशुपालकों को दिया जाता है जो लघु-सीमांत कृषक हैं जबकि ऐसे पशुपालकों को भूसा देना चाहिए जो भूमिहीन हैं। वहीं किसान अपने पशुओं को छोड़ देते है। जिस किसान के पास जमीन है वो तो अपने पशु को खिला ही देता है।”

मध्यप्रदेश के चित्रकूट में दीनदयाल शोध संस्थान से जुड़ी आरोग्यधाम संस्था जो कि देशी गायों के संरक्षण करती है के पशु वैज्ञानिक डॉ. राम प्रकाश शर्मा बताते हैं, पिछले कई दशकों से बुंदेलखंड के पशुओं की अनदेखी हो रही है। जो पशु कभी यहां आजीविका का आधार थे वो कलंक बन गए हैं। दाना-चारा महंगा हुआ तो लोगों ने जंगलों में चराना शुरु कर दिया, वहां पोषण की समस्या तो हुई ही ब्रीडिंग की समस्या हो गई। पशुओं के मां-बेटे में संबंध बन रहे हैं जो खतरनाक हैं, जीन में समस्या आ गई है। फिर सरकारों ने जो पहल की वो धरातल पर नहीं उतरी। बुंदेलखंड में ब्रीडिंग और फीडिंग दोनों स्तर पर सरकारें फेल रही हैं।” पशु सेवक नसीर सिद्दीकी बताते हैं, “इन सबके पीछे भी वजह वनों का खत्मा, अवैध खनन और चारे की समस्या है। अब पशु यहां किसानों के मित्र और आजीविका के साधन नहीं रहे।”

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