अरविंद शुक्ला/गणेश जी वर्मा
लखनऊ। बदमाशों को पकड़ने गए लखनऊ के सरोजनीनगर में दारोगा साहब ने जब चोरों को भगाने के लिए हवाई फायरिंग की तो जवाब में चोरों ने पुलिस पर फायर झोंक दिया। दारोगा साहब को गोली लगी और उनका इलाज चल रहा है।
पुलिस पर हमले की घटनाएं प्रदेश के कोने-कोने से हर रोज आती रहती हैं। इस तरह के मामले पिछले कुछ सालों में लगातार बढ़े हैं। सरकार ने भी विधानसभा में माना कि पुलिस पर हमलों में अधिकता आई है।
विधानसभा में एक सवाल के जवाब में संसदीय कार्य मंत्री आज़म खान ने माना कि “पिछले चार सालों में अब तक पुलिस पर 1044 हमले हुए हैं। जबकि साल 2007 से 2012 के बीच पुलिस पर 547 बार हमले हुए। हालांकि इसके लिए सपा सरकार का तर्क था कि हमारे शासन में आंकड़े छिपाए नहीं जाते।
“इन घटनाओं से पुलिसकर्मियों का मनोबल टूट रहा है। वो आसान शिकार बन रहे हैं। पुलिस का इकबाल कम हुआ है। बदमाश तो दूर से गोली मारते हैं, एक छुटभैय्या नेता आकर थाने में सिपाही को थप्पड़ मार देता है, यही रहा तो आगे एसपी पिटेंगे। आज की जरूरत है कि पुलिस मुजाहिमत करे।” पूर्व डीजीपी बिक्रम सिंह कहते हैं।
पुलिसकर्मियों पर बढ़ रहे हमलों को संगीन मानते हुए सरकार ने हमलावरों पर पिछले महीने ही राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) समेत दूसरी कई संगीन धाराएं लगाने का आदेश भी दिया है।
“हर घटना के पीछे अलग-अलग कारण होते हैं, पुलिस सॅाफ्ट टारगेट नहीं है, कहीं आक्रोशित भीड़ पुलिस पर हमला कर रही है, तो कहीं बदमाश। पुलिस पर हो रहे हमलों को लेकर मुख्यालय में, मानीटरिंग की जा रही है। ऐसे लोगों को चिन्हित किया जा रहा है।” भगवान एस श्रीवास्तव, यूपी के महानिरीक्षक कानून व्यवस्था, कहते हैं।
लगातार हो रहे हमलों को देखते पिछले महीने डीजीपी जावीद अहमद ने बदमाशों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) लगाने का भी आदेश दिया।
पूर्व डीजीपी बिक्रम सिंह ने एक किस्सा सुनाते हुए कहा, “एक मंत्री ने किसी बात पर एक सिपाही को थप्पड़ मार दिया था और मंत्री की ज़िंदगी जेल में कट गई। क्योंकि उस वक्त के अधिकारियों ने हिम्मत दिखाई थी और सरकार प्रशासन भी पुलिसकर्मी के साथ था। अब ऐसा नहीं होता। बड़े अधिकारियों को अपनी ताकत भी समझनी होगी।”
प्रतापगढ़ के मानिकपुर थाने में पिछले 25 फरवरी को बदमाशों ने थाने पर हमला कर होमगार्ड की गोली मार कर हत्या कर दी। प्रतापगढ़ में ही सीओ जियाउल हक की भी हत्या हो चुकी है। मानिकपुर के थानाध्यक्ष प्रभात कुमार यादव बताते हैं, “पुलिसकर्मियों को हर गोली का हिसाब देना पड़ता है। भीड़ समझती है पुलिसकर्मी ज्यादा से ज्यादा हवा में गोली चलाएंगे। हमारी नौकरी में अक्सर ट्रांसफर होते हैं। गोली चलाई तो बार-बार कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने पड़ते हैं, इसलिए पुलिसवाले भी विवाद से बचते रहते हैं।”