लखनऊ। मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों के चाक की रफ्तार अब तेज होगी। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कुम्हारी कला को बढ़ावा देने के लिए उन्हें जमीन के पट्टे, अलग बाजार और सरकारी आवास दिए जाने का भरोसा दिया है।
अपने आवास पर प्रजापति समाज के प्रतिनिधियों के साथ मुलाकात के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा, “मिट्टी के दिए, बर्तन, खिलौने और अन्य कलाकृतियां हमारी समृद्ध लोककला और लोक संस्कृति का हिस्सा रही हैं। लेकिन, आधुनिक चमक-दमक में ये लुप्त हो रही हैं। लेकिन अब इस कला को प्रोत्साहन दिया जाएगा।”
मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि, “प्रजापति समाज के लोगों को मिट्टी की किल्लत न हो इसके लिए उन्हें पट्टे दिए जाएंगे और पात्र व्यक्तियों को लोहिया आवास योजना के तहत पक्के मकान मुहैया कराए जाएंगे। उनके गांवों को जनेश्वर मिश्र ग्राम योजना के तहत विकसित कराया जाएगा। साथ ही कुम्हारों के लिए अलग से मार्केट भी बनाया जाएगा।”
हाल ही में प्रजापति समाज के प्रतिनिधि मंडल ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और कन्नौज की सांसद डिंपल यादव से मुलाकात कर उन्हें अपनी समस्याओं के बारे में बताया था। प्रतिनिधि मंडल में लखनऊ जिले के सरोसा-भरोसा और कुरौनी गांवों के श्रीराम, गंगासागर, राखी समेत आधा दर्जन लोग शामिल थे।
इस दौरान प्रतिनिधि मंडल के सदस्यों के भगवान लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों के साथ मिट्टी के बनी कई कलाकृतियां मुख्यमंत्री और डिंपल यादव को भेंट की थी। कलाकृतियां देखने के बाद मुख्यमंत्री ने न सिर्फ कलाकारी की तारीफ की बल्कि लोगों से भी मिट्टी के पारंपरिक बर्तनों के इस्तेमाल की अपील की। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा, “इस दीवाली पर प्रदेश के लोग पारंपरागत मिट्टी के दीपक तो जलाएं ही साथ ही मिट्टी के खिलौनों का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करें। मिट्टी का कलाकृतियां न सिर्फ पर्यावरण अनुकूल हैं बल्कि लोक कला को भी जीवित रखेंगी।”
बाराबंकी जिले में छेदा गांव के कन्धई (६५वर्ष) ने मुख्यमंत्री के आश्वासन को राहत की खबर बताते हुए कहा, “जब तक चार पइसा न बचिहैं कौनोओ यू काम काहे करी। हमरे लड़कों (बेटों) ने दूसरे काम शुरू कर दिए हैं। हमहूं बस तीज त्योहार ही दीया, मलिया (मटका) बनाते हैं।”
पिछले कई वर्षों में चायनीय दीपकों, झालरों के बढ़ते इस्तेमाल के चलते परंपरागत मिट्टी के दीपकों की मांग अचानक कम हो गई है। कुम्हारों के लिए कमाई का एक बड़ा जरिया कुल्हड़ थे लेकिन, फाइबर और प्लास्टिक के अपेक्षाकृत सस्ते और सुलभ होने से कुल्हड़ भी मांग से बाहर हो गए हैं।