घुटने टेक रही प्रौढ़ शिक्षा व्यवस्था

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रायबरेली। देश के ग्रामीण क्षेत्रों में अशिक्षित लोगों को साक्षर बनाने के लिए केंद्र सरकार से चलाए जा रहे राष्ट्रीय साक्षरता मिशन के प्रौढ़ शिक्षा अभियान में भले ही देशभर के 13 करोड़ लोगों को साक्षर बनाने का दावा किया जा रहा हो। पर इसकी ज़मीनी हकीकत कुछ और ही तस्वीर दिखा रही है।

रायबरेली जिला मुख्यालय से 22 किमी उत्तर दिशा में पीठन गाँव की रहने वाली निर्मला देवी (45 वर्ष) पिछले चार महीने से अपने गाँव के लोक शिक्षा केन्द्र पर नहीं जा सकी हैं। शिवकुमारी बताती हैं, ”गाँव के सरकारी स्कूल में पहले 10 लोग पढऩे जाते थे पर चार महीने से पढ़ाने वाले ही नहीं आए तो कैसे पढ़ लें।”

पीठन गाँव जैसी तस्वीर सिर्फ रायबरेली जिले की ही नहीं बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश का यही हाल है। शिक्षा विभाग के 13 मार्च 2015 को जारी आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में 1,75,203 लोग अशिक्षित हैं। जिनमें से सिर्फ 1,56,000 लोगों को इस अभियान से जोड़ा जा सका है।

”केद्र पर हमें गिनती, ककहरा, कहानियां, अपना नाम लिखना और समय देखना सिखाया जाता था। कुछ दिनों तक पढ़ाई हुई फिर मास्टर ही नहीं आएं।” शिवकुमारी आगे बताते हैं।

प्रौढ़ शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पहली पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत राष्ट्रीय साक्षरता मिशन एनएलएम में 15-35 वर्ष की आयु समूह में अशिक्षितों को कार्यात्मक साक्षरता प्रदान करने के लिए 1988 में शुरू किया गया था, जिसे वर्ष 2009 में सर्व साक्षरता अभियान में शामिल कर लिया गया। इसके साथ ही इस योजना में कई बदलाव किए गए।

इस मिशन के अंतर्गत ग्राम स्तर पर प्रौढ़ विद्यार्थियों को शिक्षा देने के लिए प्रेरक रखा जाता है। पर प्रेरकों की भी अपनी अलग समस्या है। जिससे इस अभियान में रुकावट आ रही है।

शिक्षा विभाग के साक्षरता प्रकोष्ठ के जिला समन्वयक मोहम्मद अकमल प्रदेश में प्रौढ़ शिक्षा का हाल बताते हुए कहते हैं, ”प्रदेश भर में प्रौढ़ शिक्षा के लिए हर ग्राम सभा में 40,000  प्रेरकों की तैनाती की गयी थी, पर वर्ष 2013 के बाद से इनका मानदेय रोक लिया गया, जिससे प्रदेश के 40 फीसदी लोक शिक्षा केंद्र या तो बंद हैं या समय-समय पर चलाए जा रहे हैं।”

हर वर्ष केंद्र सरकार सर्व शिक्षा अभियान के तहत करोड़ों का बजट जारी करती है। इसके बावजूद ग्रामीण स्तर पर चलाए जा रहे लोक शिक्षा केन्द्रों की हालत वैसी की वैसी है।

”रायबरेली जिले में कुल 1386 प्रेरक हैं। हमें इस वर्ष केंद्र सरकार से 1.8 करोड़ रुपए का बजट जारी हुआ था, जिससे 2013 तक का पैसा प्रेरकों को दे दिया गया है। बाकी बचा पैसा अगली किश्त आने पर मिलेगा।” अकमल आगे बताते हैं।

मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार भारत में एनएलएम के अंतर्गत 127.45 मिलियन व्यक्तियों को साक्षर किया गया है, जिनमें से 60 प्रतिशत महिलाएंए 23 प्रतिशत अनुसूचित जाति (अजा) और 12 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति (अजजा) शामिल हैं।

ग्रामीणों का अभियान के बीच में ही पढ़ाई छोड़ देना गाँवों में प्रौढ़ शिक्षा के घटते स्तर का एक और बड़ा कारण है।

रायबरेली से 17 किमी उत्तर दिशा में हरचंदपुर ब्लॉक के टांडा गाँव के रामपाल ने अपने गाँव के लोक शिक्षा केंद्र में जाना बंद कर दिया है। वो कहते हैं, ”जब आजकल स्कूली बच्चों को इतना पढ़ लिख कर भी नौकरी नहीं मिल रही है तो अब इस उम्र में हमारे पढऩे लिखने से क्या फायदा।”

ग्रामीणों के बीच में अभियान को छोड़ देने से उनका पाठ्यक्रम पूरा नहीं माना जाता है। इससे उस विद्यार्थी का अभियान में पंजीकरण रद्द कर दिया जाता है।

मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार के मुताबिक, वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की साक्षरता दर 72.99 फीसदी है। इसमें पिछले 10 वर्षों की अवधि में समग्र साक्षरता दर में 8.15 फीसदी की वृद्धि हुई है। (2001 में 64.84 फीसदी और 2011 में 72.99 फीसदी)।

 ”जैसे-जैसे केंद्र सरकार से पैसा मिल रहा है हम उसे योजना में लगा रहे हैं। अभी हाल ही में एक करोड़ रुपए का बजट आया था, जिससे प्रेरकों का बचा मानदेय उपलब्ध कराया गया है। ब्लॉक समन्वयकों का पैसा अभी भी बाकी है।” बेसिक शिक्षा अधिकारी, रायबरेली राम सागर पति त्रिपाठी बताते हैं।

जहां एक ओर प्रदेश में प्रौढ़ शिक्षा व्यवस्था घुटने टेक रही है तो वहीं दूसरी तरफ रायबरेली के टांडा गाँव में प्रौढ़ शिक्षा का  पुट अभी भी बाकी है। गाँव के इस केंद्र में तैनात प्रेरक प्रहलाद चौधरी (वर्ष 30) को भले ही 2013 के बाद से मानदेय नहीं मिला हो पर बावजूद इसके गाँव का यह केंद्र नियमित तौर पर चलाया जाता है।

केंद्र के बारे में प्रौढ़ शिक्षा प्रेरक प्रह्लाद बताते हैं,  ”केंद्र में आस-पास के तीन गाँवों से कुल 16 लोग आते हैं, जिनमे 10 महिलाएं हैं और बाकी पुरुष हैं। हमे यहां पढ़ाने के लिए 2000 रुपए हर महीने मानदेय मिलता था जो पिछले 22 महीने से रुका हुआ है।”

देश में साक्षरता की बात की जाए तो केरल (94 फीसदी), लक्षद्वीप (91.85 फीसदी) एवं मिजोरम (91.33 फीसदी) के साथ सबसे शिक्षित प्रदेश हैं। साक्षर राज्यों की सूची में उत्तरप्रदेश का स्थान शीर्ष 20 राज्यों में भी नहीं है। प्रदेश में साक्षरों की संख्या 70 फीसदी से कम है। देश में निरक्षरों की संख्या 28 करोड़ है।

”मानदेय न मिलने के बावजूद भी हम अपना काम पूरी लगन से कर रहे हैं क्योंकि हमे पता है कि शिक्षा दान सबसे बड़ा दान होता है और सरकार एक न एक दिन हमारे ऊपर भी ध्यान देगी।” प्रेरक प्रह्लाद आगे बताते है।

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