लखनऊ। आने वाले साल में आलू की कीमतें मार्च से लेकर मई के दौरान 450 से 675 रुपए कुंतल के बीच रहने का अनुमान लगाया जा रहा है। किसान इन दरों को ध्यान में रखकर अभी से आलू का रकबा निर्धारित कर सकते हैं।
केंद्र सरकार की मार्केट इंटेलिजेंस परियोजना के अंतर्गत अध्ययन के ज़रिए आने वाले समय में प्रदेश की तीन सबसे बड़ी आलू मण्डियों अगरा, वाराणसी और कानपुर में आलू के दामों का अनुमान जारी किया गया है। आगरा मण्डी में आलू की कीमतें मार्च, अप्रैल एवं मई 2016 में क्रमश: 450-500, 500-525, 525-600 रुपए प्रति कुंतल रह सकती है। कानपुर मण्डी में इसी तिमाही में दरें क्रमश: 500-550, 550-600, 600-650 रूपए प्रति कुंतल और वाराणसी मण्डी में 500-550, 550-600, 600-675 रूपए प्रति कुंतल के बीच आलू का मूल्य संभावित है।
परियोजना के तहत यह अध्ययन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में कृषि विज्ञान संस्थान के कृषि अर्थशास्त्र विभाग द्वारा प्रो. राकेश सिंह के नेतृत्व में पिछले 14 वर्षों के आवक एवं मूल्यों के आंकड़ों का विश्लेषण से किया गया है। यह अध्ययन इसलिए अहमियत रखता है क्योंकि उत्तर प्रदेश देश के सबसे बड़े आलू उत्पादकों में से एक है, इस वर्ष भी प्रदेश में लगभग 1.5 करोड़ टन उत्पादन की संभावना है। प्रदेश में आलू लगभग छह लाख हेक्टेयर पर उगाई जाती है एवं औसत उत्पादकता 24 टन प्रति हेक्टेयर है।
सितंबर से लेकर दिसंबर तक आमतौर पर आलू के मूल्य बहुत ज्यादा होते हैं, जिसका एक कारण यह भी है कि किसान बुआई के बीज के लिए आलू खरीदता है जिससे मांग बढ़ जाती है। लेकिन पिछले साल अथाह उत्पाद के कारण इस वर्ष इस चलन को ठेस पहुंची है। ”आलू बिक नहीं पा रहा, बात चल रही है कि मुम्बई की मण्डियों में यहां से भेजा जाए, लेकिन क्वालिटी खराब होने की वजह से इस बार वो भी नहीं हो पा रहा। पिछले सितंबर-2014 में आलू औसतन 1839 रुपए प्रति कुंतल बिक रहा था, जो इस साल सितंबर-2015 में 525 रुपए रहा। दरों में सीधे 70 प्रतिशत की गिरावट है,” अगरा के मण्डी निरीक्षक संजय कुमार बताते हैं।
कृषि अर्थशास्त्री इस वर्ष मिल रहे सस्ते बीज के विपरीत परिणामों का भी अनुमान लगाकर किसानों का आगाह कर रहे हैं। ”आगरा एवं गाजीपुर जनपद के आलू उत्पादकों के विचार विर्मश के परिणाम स्वरूप यह संकेत मिल रहे कि बीज का मूल्य कम होने का कारण एवं बदलते हुए मौसम के कारण आलू का क्षेत्रफल इस वर्ष बढ़ सकता है, जिससे आलू के दाम में बेतहाशा कमी आ सकती है”, प्रो. राकेश सिंह आगाह करते हैं।
उत्तर प्रदेश में आलू प्रमुखत: फर्रूखाबाद, आगरा, कन्नौज, इटावा, कानपुर एवं वाराणसी जैसे जि़लों में उत्पादित होता है। गत वर्ष भारत में आलू का उत्पादन 45 मिलियन टन हुआ था जो 2013-14 की तुलना में लगभग आठ प्रतिशत अधिक था।
हालांकि किसान का पक्ष है कि उसके पास और कोई विकल्प नहीं। ”आलू पर किसान जुंआ खेलने को तैयार रहता है, इस बार बाजार में किसान का आलू बिक नहीं पाया, स्टोर में रखा है तो वो करे क्या, फिर बोए दे रहा है। देखिए आलू किसान के पास विकल्प भी तो नहीं है, गन्ना की हालत अलग खराब, केला पिछले साल 13 रुपए प्रति किलो बिका था, इस बार सात-आठ रुपए में है,” सीतापुर के किसान उमेशचंद्र पाण्डेय (55 वर्ष) ने कहा।
उमेश चिप्स बनाने वाली अंतरराष्ट्रिय कंपनी पेप्सिको को बेचने के लिए चिप्सोना व लेडी रोसेटा किस्म की आलू बोते थे, इस वर्ष फरवरी-मार्च में हुई वर्षा से उनके आलू में ब्लाइट रोग लग गया था, जिससे आलू खराब हो गया। ”अच्छा किसान इस साल ब्लाइट से मारा गया, दूसरा जो छोटा-छोटा गन्ने का किसान था, उसने पिछले साल पैसा फसने से गन्ने का कुछ रकबा आलू में बदल दिया, इससे बाजार में सब आलू ही आलू हो गया, खराब क्वालिटी की वजह से बिक भी नहीं पाया, दाम मर गए”।
”मूल्य वृद्घि को रोकने और स्थिरिता बनाए रखने के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम, मूल्य स्थिरिकरण कोष एवं भण्डारण आदि उपायों की तैयारी सरकार को अभी से करनी होगी। हमारे पास सरप्लस को ट्रीट करने के लिए प्रोसेसिंग उद्योग नहीं हैं। आवश्यकता है कि सरकार उद्योगों के लिए ज़रूरी किस्मों की जानकारी किसानों तक पहुंचाने के साथ ही किसानों और आलू उद्योगों के बीच संबंध स्थापित करने पर भी काम करना होगा,” प्रो राकेश ने कहा। इन्होंने बिहार का उदाहरण दिया कि कैसे उसने डाबर के साथ अनुबंध किया जिसके बाद वहां शहद व जैम जैसे उत्पादों में प्रयुक्त फलों का बाज़ार सशक्त हुआ।
आलू की कीमत में बेतहाशा कमी के कारण पश्चिम बंगाल में इस वर्ष बहुत से आलू उत्पादकों ने आत्म हत्या कर ली थी। उत्त्तर प्रदेश में आलू उगाने वाले किसानों की हालात बहुत खराब हो गई थी।