रायबरेली। विश्व में हर वर्ष सबसे ज्यादा 13 करोड़ टन दूध उत्पादन भारत में होता है। इसके बावजूद देश में सालाना 10 लाख से ज़्यादा लोग अशुद्ध डेयरी उत्पादों के संक्रमण से बीमार पड़ते हैं। इसका कारण डेयरी उत्पादों का खराब भंडारण व वितरण है।
प्यारेलाल (42 वर्ष) हर रोज़ अपने गाँव से शहर 30 किमी की दूरी तय करके दूध बेचने जाते हैं, वो हर रोज़ करीब 35 लीटर से ज़्यादा दूध शहर तक लाते हैं। प्यारेलाल बताते हैं, “हम हर रोज़ गाँवों से दूध लाकर शहर में बेचते हैं। हम अधिकतर लोहे के बड़े कंटेनरों व स्टील की बाल्टियों में दूध भर कर बेचने जाते हैं। हम पचास से ज़्यादा घरों में दूध देते हैं।”
दूध की गुणवत्ता व इससे उपयोग के बारे में बताते हुए भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान (आईआईटीआर) के वैज्ञानिक मुकुल दास ने गाँव कनेक्शन को बताया, ‘दूध की सेल्फ लाइफ होती है जो यह तय करती है कि दूध सही है या खराब। अगर दूध काफी समय तक बिना ठंडा किए बंद डिब्बे में रखा जाता है तो वह फट जाता है। यानी कि दूध की शेल्फ लाइफ खत्म हो चुकी होती है।”
संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (एफ एओ) की 2013-14 की रिपोर्ट के अनुसार अंतरराष्ट्रीय दुग्ध व्यापार में भारत में सबसे ज़्यादा 21.7 करोड़ दूध उपभोक्ता हैं। देश में हर वर्ष औसतन 13 करोड़ टन दूध उत्पादन होता है। लेकिन रखरखाव के अभाव में इस मात्रा का एक चौथाई हिस्सा खराब या इस्तेमाल करने लायक नहीं होता है।
रायबरेली शहर के चंद्र नगर मोहल्ले में रहने वाली नीलम पांडे (38 वर्ष) बताती हैं, “हम पिछले दस वर्षों से गाँव के दूधिये से दूध लेते हैं। पहले दूध अच्छा मिलता था और उसमें मलाई भी अच्छी जमती थी। पर अब जो दूध मिलता है उसमें यह पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि इसमे दूध ज्य़ादा है या पानी।”
अधिक समय तक दूध की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए अमेरिका के मैसाचुसेट्स प्रौद्योगिक संस्थान (एमआईटी) ने प्रोमीथियन-पॉवर मिल्क चिलर्स नामक एक यंत्र बनाया है। यह उपकरण थर्मल बैटरी की मदद से चलता है। यह यंत्र बिजली के बिना ही अधिक समय तक दूध को ठंडा रखने के लिए सक्षम है।
देश में हर वर्ष 21 हज़ार मैट्रिक टन से ज़्यादा दूध सप्लाई कर रही कंपनी पराग की क्वालिटी इंस्पेक्टर शबनम चोपड़ा बताती हैं, ‘दूध दुहने के बाद उसे कुछ समय तक ठंडे तापमान में रखना ज़रूरी होता है, ताकि दूध की गुणवत्ता बनी रहे। कई कंपनी इसके लिए रेफ्रिजरेशन प्रणाली इस्तेमाल करती हैं।”
कैसे काम करता है प्रोमीथेन-पॉवर मिल्क चिलर
यह उपकरण दूध के तापमान को तेज़ी से गिराता है, जिससे दूध में किसी भी प्रकार की जीवाणु विकास की गतिविधियां रुक जाती हैं। इस उपकरण में थर्मल बैट्री लगाई गई है जो ऊष्मीय उर्जा को एकत्र करती है। प्रोमीथियन-पॉवर मिल्क चिलर उपकरण में एक विशेष प्रकार का तरल होता है, जो जमने के तापमान पर भी नहीं जमता। सबसे पहले इस यंत्र से जुड़े कंटेनर में गाय का दुहा हुआ दुध (एक बार में 1,000 लीटर) डाला जाता है। यह कंटेनर उस विशेष तरह के तरल के बीचों बीच रखा जाता है, जैसे ही दूध उस कंटेनर में डाला जाता है, तरल उसे एक उचित तापमान तक ठंडा कर देता है। इससे दूध करीब पांच से सात घंटे तक खराब नहीं होता है। इस प्रकार दूध को कई घंटों तक बिना खराब अवस्था में स्टोर करके रखा जा सकता है। इस यंत्र को भारत के किसानों के लिए महत्वपूर्ण बताते हुए सोरिन ग्रामा ने बताया, ‘भारत में दूध किसानों के लिए तरल नकदी जैसा है। हम भारत की शीर्ष 100 डेयरियों में यह उपकरण लगवा चुका है। यह उपकरण प्रतिदिन 20 से 30 दूधिओं के लिए एक अच्छी कमाई का साधन बन सकता है।”
भारत में दूध का उत्पादन तीन लाख से ज्य़ादा गाँवों में होता है। पर इनमें से सिर्फ एक लाख बीस हज़ार गाँवों के संगठित उद्योग ही औद्योगिक स्तर पर दूध बेचने के लिए सक्षम हैं, इसका कारण है, अधिकतर गाँव दूध की गुणवत्ता और सुरक्षा के मानकों को हासिल करने में चूक जाते हैं। “आमतौर पर गाँवों में ज्य़ादा बिजली नहीं आती है। इससे दूधिए दूध को बिना ठंडा किए बेचते हैं। अगर दूध समय से फ्रिज़ ना किया जाए तो इसकी क्वालिटी खराब हो जाती है।” शबनम चोपड़ा आगे बताती हैं।