सरकारी स्कूल में बच्चे न पढ़ाये तो अधिकारी होंगे दण्डित

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इलाहाबाद। प्रदेश के सरकारी प्राथमिक विद्यालयों की ख़राब हालत पर दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक बड़ा फ़ैसला सुनाया हैं।

फैसले में अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि सभी नौकरशाहों और सरकारी कर्मचारियों के बच्चों को सरकारी प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाना अनिवार्य किया जाए।

उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि सरकारी कर्मचारी, निर्वाचित जनप्रतिनिधि, न्यायपालिका के सदस्य एवं वे सभी लोग जो सरकारी खजाने से वेतन एवं लाभ प्राप्त करते हैं, वे सभी अपने बच्चों को माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा संचालित प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने के लिए भेजें। साथ ही ऐसी व्यवस्था भी की जाए कि अगले शिक्षा-सत्र तक इसे लागू किया जा सके।

यह याचिका शिवकुमार पाठक की तरफ से दायर की गई थी| पाठक की इस याचिका में कहा गया था कि सरकारी परिषदीय स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति पर नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है जिसके चलते अयोग्य शिक्षकों की नियुक्ति हो रही है। इसके चलते बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं मिल पा रही है।

इसकी चिंता ना तो सम्बंधित विभाग के अधिकारियों को है और ना ही प्रदेश के उच्च प्रशासनिक अधिकारियों को।

सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल की पीठ ने अपने फैसले में यह भी कहा कि आदेश का उल्लंघन करने वालों के लिए दंडात्मक कार्रवाई के भी प्रावधान किए जाएं।

न्यायालय ने उदाहरण देते हुए कहा कि यदि अधिकारियों या निर्वाचित प्रतिनिधि अपने बच्चे को किसी ऐसे निजी विद्यालय में भेजते हैं जो कि माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की ओर से संचालित नहीं है तो ऐसे अधिकारियों या निर्वाचित प्रतिनिधियों की ओर से फीस के रूप में भुगतान किए जाने वाली राशि के बराबर धनराशि प्रत्येक महीने सरकारी खजाने में तब तक जमा की जाए जब तक कि अन्य तरह के प्राथमिक स्कूल में ऐसी शिक्षा जारी रहती है। इसके आलावा उन्हें वेतन वृद्धि, पदोन्नति जैसे अन्य लाभ से भी वंचित रखा जाए|

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