विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने सेलफोन का इस्तेमाल करने वालों के लिए चेतावनी दी है। उसका कहना है कि सेलफोन और अन्य वायरलेस उपकरणों के अत्यधिक इस्तेमाल से कैंसर हो सकता है। डब्ल्यूएचओ से जुड़ी कैंसर पर शोध करने वाली इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (आइएआरसी) ने निष्कर्ष पेश किया। उसका कहना है कि मोबाइल फोन जैसे उपकरणों के इस्तेमाल से उत्पन्न होने वाले विद्युत चुंबकीय क्षेत्र से कैंसर की आशंका पैदा होती है। विशेषज्ञों ने इस बात पर भी जोर दिया कि सेलफोन आने के बाद मस्तिष्क में होने वाले एक प्रकार के कैंसर ‘ग्लिओमा’ के भी मामले बढ़े हैं। इस समय दुनिया भर में कुल पांच अरब लोग सेलफोन का इस्तेमाल करते हैं। 2012 में डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) की रिपोर्ट के मुताबिक, रोज आधे घंटे या उससे ज्यादा मोबाइल का इस्तेमाल करने पर 8-10 साल में ब्रेन ट्यूमर की आशंका 200-400 फीसदी बढ़ जाती है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, दिन भर में 24 से 30 मिनट फोन से करना सेहत के लिहाज से मुफीद है।
कैसे फैलता है रेडिएशन?
माइक्रोवेव रेडिएशन उन इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों के कारण होता है, जिनकी फ्रिक्वेंसी 1000 से 3000 मेगाहर्ट्ज होती है। माइक्रोवेव ओवन, एसी, वायरलेस कंप्यूटर, कॉर्डलेस फोन और दूसरे वायरलेस डिवाइसों से रेडिएशन बढ़ता है। फोन के अधिक इस्तेमाल की वजह से फोन से और मोबाइल टॉवर से रेडिएशन अधिक फैलता है, जो सबसे खतरनाक साबित हो सकता है।
रेिडएशन को लेकर क्या है मानक
जीएसएम टावरों के लिए रेडिएशन लिमिट 4500 मिलीवॉट/मी. स्क्वेयर तय की गई। लेकिन इंटरनैशनल कमिशन ऑन नॉन आयोनाइजिंग रेडिएशन (आईसीएनआईआरपी) की गाइडलाइंस जो इंडिया में लागू की गईं, वे दरअसल शॉर्ट-टर्म एक्सपोजर के लिए थीं, जबकि मोबाइल टॉवर से तो लगातार रेडिएशन होता है। इसलिए इस लिमिट को कम कर 450 मिलीवॉट/मी. स्क्वेयर करने की बात हो रही है। ये नई गाइडलाइंस 15 सितंबर से लागू होंगी। विशेषज्ञों का कहना है कि यह लिमिट भी बहुत ज्यादा है और सिर्फ 1 मिलीवॉट/मी. स्क्वेयर रेडिशन भी नुकसान देता है। यही वजह है कि ऑस्िट्रया में 1 मिलीवॉट/मी. स्क्वेयर और साउथ वेल्स, ऑस्ट्रेलिया में 0.01 मिलीवॉट/मी. स्क्वेयर लिमिट है।
SAR मोबाइल के मानक देखकर ही खरीदें फोन?
भारत समेत कई देशों में मोबाइल और उनके पार्ट्स निर्यात करने वाली कंपनी यूनिवर्सल एग्जिम के प्रोडक्ट मैनेजर आशुतोष शुक्ला बताते हैं, “रेडिएशन इस पर भी निर्भर करता है कि आपके मोबाइल की SAR (विशिष्ट अवशोषण दर) वैल्यू क्या है? अधिक SAR वैल्यू के फोन पर बात करना अधिक नुकसानदेह है। देश में अधिकतर फोन SAR मानक के ही हैं।” उन्होंने बताया, “बाजार में मोबाइल आने से पहले सभी कंपनियां SAR टेस्ट करवाती हैं। जिसकी वैल्यू हर मोबाइल के पीछे लिखी भी होती है। आशुतोष का कहना है मोबाइल में लगे एंटेना की क्वालिटी ही रेडियो फ्रिक्वेंसी निर्धारित करती है। मोबाइल जितना सस्ता होगा, उसमें निकलने वाला रेडिएशन उतना ही ज्यादा घातक होगा।”
बिना SAR संख्या वाला मोबाइल न खरीदें
आपके मोबाइल के पीछे छपी जानकारी ही SAR कहलाती है। कम SAR संख्या वाला मोबाइल ही खरीदें, क्योंकि इससे रेडिएशन का खतरा कम ही होता है। इसके अलावा आप मोबाइल कंपनी की वेबसाइट पर जाकर यूजर मैनुअल से यह संख्या चेक कर सकते हैं। कुछ भारतीय कंपनियां ऐसी भी हैं, जो SAR संख्या का खुलासा नहीं करतीं। ऐसे में ग्राहकों को बिना एसएआर वाले मोबाइल फोन खरीदने से बचना चाहिए।
भारत में SAR के लिए क्या हैं नियम?
भारत में अभी तक हैंडसेट्स में रेडिएशन के यूरोपीय मानकों का पालन होता है। इनके मुताबिक, हैंडसेट का SAR लेवल 2 वॉट प्रति किलो से अधिक नहीं होना चाहिए। एक्सपर्ट इसे सही नहीं मानते। उनके मुताबिक, यूरोपीय लोगों की तुलना में भारतीयों में कम बॉडी फैट होता है। इसके चलते रेडियो फ्रिक्वेंसी का भारतीयों पर अधिक असर पड़ता है। केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित गाइडलाइंस में यह सीमा 1.6 वॉट प्रति किग्रा कर दी गई है, जोकि अमेरिकन स्टैंडर्ड है।
ये भी ध्यान रखें
यदि सिग्नल कम आ रहे हों, तो मोबाइल का इस्तेमाल न करें। इस दौरान रेडिएशन अधिक होता है। पूरे सिग्नल आने पर ही मोबाइल का इस्तेमाल करना चाहिए। साथ ही खुले में मोबाइल का इस्तेमाल करना बेहतर है, क्योंकि इससे तरंगों को बाहर निकलने का रास्ता मिल जाता है।
बात करते समय रेडिएशन से बचें
ब्लैकबेरी फोन में एक मैसेज आता है, जो कहता है कि मोबाइल को शरीर से 25 मिमी (करीब 1 इंच) की दूरी पर रखें। सैमसंग गैलेक्सी एस-3 में भी मोबाइल को शरीर से दूर रखने का मेसेज आता है। ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉ. रनवीर सिंह बताते हैं, “मोबाइल पर लंबी बात से सुनने की क्षमता प्रभावित होती है। इसके अलावा ब्लूटूथ से बात करते समय भी एक फीट की दूरी रखें।”
मोबाइल फोन के टॉवर भी हैं ख़तरनाक
साइबर एक्सपर्ट रक्षित टंडन के मुताबिक, “टॉवर के 300 मीटर एरिया में सबसे ज्यादा रेडिएशन होता है। लोग दिन भर में मोबाइल का कम इस्तेमाल करते हैं, जबकि टॉवर चौबीस घंटे रेडिएशन फैलाते हैं। इसलिए सबसे अधिक परेशानी टॉवर से ही होती है। मोबाइल पर यदि हम घंटे भर बात करते हैं, तो उससे हुए नुकसान की भरपाई के लिए 23 घंटे मिलते हैं, जबकि हम लगातार टॉवर से निकलने वाली तरंगों के संपर्क में रहते हैं। वैज्ञानिक शोधपत्रिका ‘एंटीऑक्सिडेंट्स एंड रिडॉक्स सिग्निलंग’ में प्रकाशित शोध के मुताबिक कि मोबाइल फोन के अत्यधिक इस्तेमाल से कोशिकाओं में तनाव पैदा होता है, जो कोशिकीय एवं अनुवांशिक उत्परिवर्तन से संबद्ध है। इसके कारण कैंसर का खतरा होता है। मोबाइल फोन के अधिक इस्तेमाल से कोशिकाओं में उत्पन्न होने वाला विशेष तनाव (ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस) डीएनए सहित मानव कोशिका के सभी अवयव नष्ट कर देता है। ऐसा विषाक्त पराक्साइड व स्वतंत्र कण विकसित होने के कारण होता है। तुलनात्मक अध्ययन में पाया गया कि मोबाइल फोन का अत्यधिक इस्तेमाल करने वालों के लार में ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस की उपस्थिति के संकेत कहीं अधिक हैं। शोध के अनुसार मोबाइल रेडिएशन से लंबे समय के बाद प्रजनन क्षमता में कमी, कैंसर, ब्रेन ट्यूमर और मिस-कैरेज की आशंका भी हो सकती है। हमारे शरीर और दिमाग में मौजूद पानी धीरे-धीरे बॉडी रेडिएशन को अब्जॉर्ब करता है और सेहत के लिए नुकसानदेह होता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक मोबाइल से कैंसर हो सकता है। हर दिन आधे घंटे या उससे ज्यादा मोबाइल के इस्तेमाल पर 8-10 साल में ब्रेन ट्यूमर की आशंका 200-400 फीसद तक बढ़ जाती है। मोबाइल रेडिएशन मोबाइल टावर और मोबाइल फोन दोनों वजह से होता है। टावर से सिग्नल, सिग्नल से फोन और फोन से आवाज आने तक की पूरी प्रक्रिया रेडियेशन पर आधारित है।
टॉवर के रेडिएशन से ऐसे बचें
- मोबाइल टॉवरों से जितना मुमकिन है, दूर रहें।
- टावर कंपनी से ऐंटेना की पॉवर कम करने को बोलें।
- यदि घर के बिल्कुल सामने मोबाइल टावर है, तो घर की खिड़की-दरवाजे बंद रखें।
- रेडिएशन डिटेक्टर की मदद से घर में रेडिएशन का लेवल चेक करें। (Detex नाम का रेडिएशन डिटेक्टर करीब 5000-7000 रुपये में मिलता है)
- घर की खिड़कियों पर खास तरह की फिल्म लगा सकते हैं, क्योंकि सबसे ज्यादा रेडिएशन ग्लास के जरिए आता है। एंटी-रेडिएशन फिल्म की कीमत एक खिड़की के लिए करीब 4000-500 रुपए पड़ती है।
- खिड़की दरवाजों पर शिल्डिंग पर्दे लगा सकते हैं। ये पर्दे काफी हद तक रेडिएशन को रोक सकते हैं।
मोबाइल रेडिएशन से ऐसे बचें
- मोबाइल को कान से करीब 1 इंच की दूर पर रखकर बात करें।
- मोबाइल को हर वक्त साथ लेकर न घूमें।
- सोते वक्त फोन को तकिए के नीचे न रखें।
- रेडिएशन कम करने के लिए अपने फोन के साथ फेराइट बीड (रेडिएशन सोखने वाला एक यंत्र) भी लगा सकते हैं।
- लंबी बात के लिए लैंडलाइन फोन का इस्तेमाल करें।
- बचाव के लिए रेडिएशन ब्लॉक एप्लिकेशन का इस्तेमाल कर सकते हैं।
- मोबाइल फोन रेडिएशन शील्ड का इस्तेमाल कर भी इससे बच सकते हैं।
- खास एिप्लकेशन के इस्तेमाल से वाईफाई, ब्लू-टूथ, जीपीएस या ऐंटेना को ब्लॉक कर दें।
- फोन खरीदते वक्त SAR संख्या जरूर देखें।
आंकड़ों की जुबानी
- 2010 में डब्ल्यूएचओ की एक रिसर्च में खुलासा हुआ कि मोबाइल रेडिएशन से कैंसर होने का खतरा है।
- जर्मनी में हुई रिसर्च के मुताबिक, जो लोग ट्रांसमीटर एंटेना के 400 मीटर के एरिया में रह रहे थे, उनमें कैंसर होने की आशंका तीन गुना बढ़ गई। 400 मीटर एरिया में ट्रांसमिशन बाकी एरिया से 100 गुना ज़्यादा होता है।
- केरल में की गई एक रिसर्च के अनुसार सेल फोन टॉवरों से होने वाले रेडिएशन से मधुमक्खियों की कमर्शल पॉप्युलेशन 60 फीसदी तक गिर गई है।
- टावर्स से काफी हल्की फ्रिक्वेंसी (900 से 1800 मेगाहर्ट्ज) की इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्ज निकलती हैं। ये भी छोटे चूजों को काफी नुकसान पहुंचा सकती हैं।
- हंगरी में साइंटिस्टों ने पाया कि जो युवक बहुत ज्यादा मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते थे, उनके स्पर्म की संख्या कम हो गई।
- ईयरफोन लगाकर ज्यादा देर तक म्यूजिक सुनने के चलते दिनो-दिन लोगों को कम सुनाई कम पड़ने की समस्या बढ़ रही है।
- 2010 की इंटरफोन स्टडी इस बात की ओर इशारा करती है कि लंबे समय तक मोबाइल के इस्तेमाल से ट्यूमर होने की आशंका बढ़ जाती है।