बाराबंकी (सूरतगंज)। पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान से नस्ल सुधार के लिए निरंकार मिश्रा को पशुपालन विभाग से दो माह का प्रशिक्षण दिया गया था लेकिन वह अब ज्यादा पैसे कमाने की होड़ में पशुओं का इलाज करने लगे हैं जो पशुओं के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है।
पशुओं की स्वास्थ्य व्यवस्था चिकित्सकों की जगह पशुमित्रों के भरोसे है जबकि सरकारी तौर पर इनका कार्य नस्ल सुधार का है। पशुपालन विभाग की ओर से हर साल हाईस्कूल पास पशुमित्रों का चयन किया जाता है और चयनित पशुमित्रों को चार का माह का प्रशिक्षण दिया जाता है। पहले इसकी शैक्षिक योग्यता विज्ञान से 12वीं पास होती थी और दो माह का प्रशिक्षण दिया जाता था।
पशुमित्रों के पास पर्याप्त ज्ञान न होने के कारण पशुपालकों को भी कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ”तीन महीने पहले मेरी भैंस छह लीटर दूध देती थी लेकिन अब मुश्किल से डेढ़ लीटर दूध देती है जिससे हमको नुकसान हो रहा है।” ऐसा कहना है राजेश सिंह (29 वर्ष) का। राजेश शाहजहांपुर जिला मुख्यालय से उत्तर पूर्व दिशा में 45 किलोमीटर दूर जैतीपुर ब्लॉक के आलमपुर गाँव में रहते है। राजेश के पास चार भैंस और एक गाय है।
तीन महीने पहले राजेश की भैंस को पैर में घाव हो गया था, जिसका इलाज इन्होंने पशु चिकित्सक से न कराकर पशुमित्र से कराया था। गलत इंजेक्शन के प्रयोग से राजेश की भैंस ने दूध देना कम कर दिया। राजेश बताते हैं, ”सरकारी डॉक्टर तुरंत नहीं मिल पाते हैं। पशुमित्र गाँव में रहते हैं तो जल्दी मिल जाते है इसीलिए ज्यादातर लोग उन्ही से इलाज करा लेते है। जब धीरे-धीरे हमारी भैंस का दूध कम होने लगा तो हमने पशु चिकित्सक को दिखाया तब पता चला कि हमारे पशु को गलत इंजेक्शन लगा था।”
भारतीय पशुचिकित्सा परिपषद के एक्ट 1984 में यह लिखा हुआ है कि पशुमित्र केवल प्रारम्भिक चिकित्सा कर सकते है लेकिन आजकल पशुमित्र पैसा कमाने के चक्कर में योजनाओं की जानकारी छोड़कर चिकित्सा की ओर भाग रहे हैं और एक्ट के खिलाफ काम कर रहे हैं। पशुमित्रों की बड़ी समस्या बताते हुए लखनऊ स्थित उत्तर प्रदेश पशुधन विकास परिषद के पशु प्रजनन प्रकोष्ठ अधिकारी के रूप में तैनात डॉ. केके चौहान बताते हैं, ”कई बार बीमारियों के कुछ लक्षण एक जैसे होते हैं जिनको पशुमित्र पकड़ नहीं पाते हैं और गलत दवा देते हैं तो पशुओं पर उल्टा प्रभाव पड़ता है।”
यह समस्या राजेश की ही नहीं बल्कि कई पशुपालकों की है। समय पर डॉक्टर नहीं मिला तो चिकित्सा के लिए पशुमित्रों का सहारा लेेना पड़ता है। पशु प्रजनन प्रकोष्ठ अधिकारी केके चौहान बताते हैं, “पशुमित्रों को प्राथमिक चिकित्सा के बारे में जानकारी दी जाती है जिसमें उन्हें छोटी मोटी दवाईयों के बारे में बताया जाता है। लेकिन उनका मुख्य कार्य कृत्रिम गर्भाधान कराना होता है। इसके बावजूद ज्यादा पैसा कमाने की होड़ में वो गलत इलाज करते रहते हैं जो पशुओं के लिए काफी खतरनाक होता है। अपनी बात को जारी रखते हुए चौहान बताते हैं, ”पशुओं में गलत दवाओं के इस्तेमाल उनके दूध उत्पादन में प्रभाव डालता है जिससेे पशुपालकों को आर्थिक नुकसान होता है।”
उत्तर प्रदेश में करीब आठ हजार पशुमित्र है जिसमें से छह हजार पशुमित्र अपने क्षेत्र में सक्रिय है। 1800 पशुओं पर एक पशुमित्रों रखा जाता है। वर्तमान में 75 जिलों की हर न्याय पंचायत में एक पशुमित्र तैनात है। आलमपुर गाँव के सुरेश यादव (30 वर्ष) पशु के बीमार हो जाने पर पशुमित्र से इलाज करा लेते है। सुरेश बताते हैं,”पशु की बीमारी ज्यादा न बढ़े, इसीलिए तुरंत का तुरंत इलाज कराने के लिए पशुमित्रों को बुला लेते हैं और पशुमित्र समय पर मिल भी जाते हैं क्योंकि हर न्याय पंचायत में एक पशुमित्र है।”
”हमारे पास कई ऐसे पशुपालक आते हैं जो पहले पशुमित्र की बताई एंटीबायोटिक दवाओं को दे देते हैं और जब पशु ज्यादा बीमार हो जाता है तब हम लोगों को बताते हैं। पशुमित्र कृत्रिम गर्भाधान के दौरान भी काफी लापरवाह होते हैं, बिना साफ-सफाई के गर्भाधान करते हैं। ऐसा बताते हैं, जैतीपुर ब्लॉक के पशुचिकित्सक डॉ. नीरज सिंह। पशुमित्र द्वारा प्रयोग किए जाने वाली दवाइयों के बारे में नीरज बताते हैं, ”पशु को उनके भार के अनुसार एंटीबायोटिक दवा के डोज दिए जाते हैं लेकिन पशुमित्र इस बात का ध्यान नहीं रखते हैं और कभी-कभी अधिक मात्रा में एंटीबायोटिक दवा देते है जो पशु के दूध उत्पादन पर असर डालती है। डाइक्लोफि नेक जैसी प्रतिबधित दवाइयों का प्रयोग करते हैं।”
जैतीपुर ब्लॉक में काम कर रहे पशुमित्र धमेंद्र यादव बताते हैं, ”जिन दवाओं के बारे में जानकारी होती है हम उन्हीं दवाओं के बारे में पशुपालकों को बताते हैं और हम लोगों का काम कृत्रिम गर्भाधान का होता है तो ज्यादातर वहीं करते हैं। हमको कोई मानदेय भी नहीं दिया जाता है, कृत्रिम गर्भाधान में ही हम पशुपालकों से रुपए लेते हैं।”
कैसे होता है पशुमित्रों का चयन
पशुपालन विभाग की गतिविधियों को संचालित करने के लिए लोगों की कमी है, इसीलिए योजनाएं को लोगों तक पहुंचाने के लिए पशुमित्रों को रखा गया जाता है। पशुमित्र का प्राथमिक चयन जिले के मुख्य पशुचिकित्सा अधिकारी द्वारा किया जाता है उसके बाद उत्तर प्रदेश पशुधन विकास परिषद, उत्तर प्रदेश पशुपालन विभाग और कृषि विविधिकरण परियोजना (डास्प) के अंतर्गत पशुमित्रों का चयन किया जाता है, जिसमें ऐसे पशुमित्रों को रखा जाता है जिनकी योग्यता हाईस्कूल/इंटरमीडिएट होती है। एक न्याय पंचायत में एक पशुमित्र होता है, जिनका मुख्य कार्य कृत्रिम गर्भाधान कराना, टीकाकरण के बारे में जानकारी देना, टीकाकरण अभियान चलने पर टीका लगवाना और चारा का प्रचार प्रसार और सेंटरों में चारे की उपलब्धता के बारे में पशुपालकों को बताना होता है। इनका मानदेय जिले के मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी द्वारा दिया जाता है।