नई दिल्ली। एक ओर देश के कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह अफ्रीका में दालों और तिलहन की खेती को बढ़ावा देकर वहां से सस्ते में आयात करने की सलाह दे रहे हैं, जबकि देश के कृषि वैज्ञानिक मानते हैं कि अगर देश में ही इन फसलों को बढ़ावा दिया जाए तो अगले पांच वर्षों में संकट ही खत्म हो जाएगा।
नई दिल्ली में ‘फिक्की’ द्वारा आयोजित ‘इंडिया-अफ्रीका एग्रीबिजनेस फोरम’ में केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा, ”ऐसी नीति सोची जा सकती है, जिसके तहत दालों और तिलहन को, जिनकी भारत में कमी है, उगाने के लिए भारतीय कंपनियां अफ्रीका में निवेश करें। इसी तरह अफ्रीका के उद्योग भारत में लाभकारी गठबंधन के बारे में सोच सकते हैं।”
वहीं, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के निदेशक त्रिलोचन महापात्रा कहते हैं, ”दलहन-तिलहन के आयात पर जोर ने ही भारत में इन फसलों को हतोत्साहित किया है।”
”ज़रूरत को पूरा करने के लिए दाल और खाने का तेल आयात करते हैं, जो अरबों रुपए इनके आयात पर खर्च किए जाते हैं, अगर वो देश में इनकी खेती को बढ़ावा देने में उपयोग हो तो अगले पांच वर्षों में आयात की ज़रूरत ही नहीं होगी।” त्रिलोचन महापात्रा ने ‘गाँव कनेक्शन’ से कहा।
भारत में ज़रूरत को पूरा करने के लिए अभी काफी मात्रा में दालों और खाद्य तेलों का आयात किया जाता है। देश में हर साल 40-50 लाख टन दालें और 1.3 से 1.4 करोड़ टन खाद्य तेल का आयात होता है।
”यह सच है कि दलहल व तिलहन की कुछ समस्याओं को वैज्ञानिक नहीं सुलझा पाए-उदाहरण के तौर पर चने के पॉड बोरर (दाने में छेद करने वाला कीड़ा) का अभी तक समाधान नहीं कर पाए हैं-लेकिन यह बहाना नहीं हो सकता, जो किस्में और तकनीक पहले से हमारे पास है, वो अगले पांच साल में देश में दाल की खेती में क्रांति लाने के लिए काफी है।” महापात्रा ने कहा
”सवाल उनके प्रयोग की नीतियों का है, उन्हें लागू करवाने का है। सरकार को बीजों की उपलब्धता, उसके बाज़ार मूल्य, खरीद, अन्य लागत मूल्यों को कम करने पर ध्यान देना होगा। दलहन की खेती को बढ़ावा देने की योजनाओं में राज्य सरकारों, वैज्ञानिकों, गैर सरकारी संस्थाओं और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की भागीदारी तय करनी होगी।” महापात्रा ने कहा।
आईएआरआई निदेशक ने स्व. राजीव गांधी की सरकार के समय में एक पहल का उदाहरण देते हुए कहा, ”राष्ट्रीय तिलहन मिशन के तहत तिलहनी फसलों की खेती में देश ने बहुत बढ़त की थी, फिर मिशन डगमगा गया। इसी तरह ‘बागवानी मिशन’ से बागवानी फसलों की खेती बढ़ी।” महापात्रा ने कहा, ”ऐसे ही हमें दलहन व तिलहन की खेती को बढ़ावा देने को मिशन बनाना होगा। इससे उत्पादन में तो आत्मनिर्भरता आएगी ही, मिट्टी की सेहत भी सुधरेगी और आयात में खर्च हो रहे करोड़ों रुपए बचेंगे।”
”पंजाब जिसने देश को हरित क्रांति दी, अब वहां भू-जल की समस्या है। यदि नीति बने तो पंजाब कम पानी की ज़रूरत वाली दाल और तिलहनी फसलों का गढ़ बन सकता है। इसकी ओर सरकार का ध्यान जाना चाहिए था।” महापात्रा ने कहा।
इसके लिए हम वर्षा आधारित क्षेत्रों का ही इस्तेमाल कर सकते हैं, जहां पानी की उपलब्धता कम है। कम पानी की खपत वाली दलहन-तिलहन फसलों के बीज का बड़े स्तर पर उत्पादन करके उसे किसान तक पहुंचा दीजिए, खरीदने में मदद कीजिए। इसके बाद आप देखिए, दलहन-तिलहन तो इतना होने लगेगा कि हम दूसरे देशों को बेचने लगेंगे।
देश के कृषि मंत्री विदेश में दालों और तिल की खेती करवाने में निवेश की बात कह रहे हैं, जानकारों के अनुसार इसी तरह की नीतियों ने भारत में इन फसलों की खेती का बंटाधार किया।