लखनऊ। विद्रोही कविता के कलमकार अवतार सिंह संधू जिन्हें दुनिया पाश के नाम से जानती है। उनका जन्म 9 सितंबर 1950 को तलवंडी के सलेम गाँव (पंजाब) में जन्मे संधू समकालीन पंजाबी साहित्य के महत्वपूर्ण कवि माने जाते हैं। उनका जन्म एक किसान परिवार में हुआ था। 1967 में पाश बंगाल के नक्सलवादी आंदोलन से जुड़े और विद्रोही कविता को इतने सरल शब्दों में गढ़ा कि आज भी वे लोगों की जुबां पर चढ़ी हैं। 23 मार्च 1988 को जलंधर में दुनिया को अलविदा कहने वाले पाश अपनी कविताओं में हमेशा अमर रहेंगे।
पाश की कविताएं विचार और भाव के सुंदर संयोजन से बनी गहरी राजनीतिक कविताएं हैं जिनमें लोक संस्कृति और परंपरा का गहरा बोध मिलता है। आम जनता की परेशानियों को पाश बाहरी व्यक्ति की तरह नहीं लिखते थे बल्कि उनकी कविताओं में गुस्सा, दुख और निराशा ऐसे नज़र आती है जैसे वो उनके अंदर की बात हो।
सुनिए उनकी एक कविता नीलेश मिसरा की आवाज़ में सुनिए उनकी कविता – मेहनत की लूट
मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
गद्दारी, लोभ की मुट्ठी
सबसे ख़तरनाक नहीं होती
बैठे बिठाए पकड़े जाना बुरा तो है
सहमी सी चुप्पी में जकड़े जाना बुरा तो है
पर सबसे ख़तरनाक नहीं होती
सबसे ख़तरनाक होता है
मुर्दा शांति से भर जाना
ना होना तड़प का
सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौट कर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना
सबसे खतरनाक वो आँखें होती है
जो सब कुछ देखती हुई भी जमी बर्फ होती है..
जिसकी नज़र दुनिया को मोहब्बत से चूमना भूल जाती है
जो चीज़ों से उठती अन्धेपन कि भाप पर ढुलक जाती है
जो रोज़मर्रा के क्रम को पीती हुई
एक लक्ष्यहीन दुहराव के उलटफेर में खो जाती है
सबसे ख़तरनाक वो दिशा होती है
जिसमे आत्मा का सूरज डूब जाए
और उसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा
आपके ज़िस्म के पूरब में चुभ जाए
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